हथकड़ियां-बेड़ियां युक्त मास डिपोर्टिंग अमानवीय है

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आचार्य श्रीहरि

डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने सैनिक विमान में हथकड़ियां और बेडियां पहना कर अवैध घुसपैठियों को भारत डिपोर्ट कर दिया। इससे पूर्व कई अन्य देशों के घुसपैठियों के साथ भी अमेरिका ने इसी तरह की कार्रवाइयां की हैं। ये कारवाईयां घोर अमानवीय है। पर मानवाधिकार का हनन है कि नहीं इस पर एकतरफा नहीं बल्कि संपूर्ण मंथन की जरूरत है। क्योंकि भारत मे हथकड़ियों और बेडियों युक्त डिपोर्टिंग नीति का घोर विरोध हुआ है, संसद बाधित हुई है और विपक्षी राजनीतिक पार्टियां गुस्से में हैं, वे इसके लिए नरेन्द्र मोदी की आलोचना कर रहे हैं और नरेन्द्र मोदी विश्व शक्ति के कथित गर्व की खिल्ली भी उडा रहे हैं। क्या हमें भारतीयों को अवैध घुसपैठिये बनने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए? हमें भारतीयो को अवैध घुसपैठिये बनने के लिए कतई प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए। मुस्लिम देश, चीन और उत्तर कोरिया जैसे हिंसक देश तो अवैध घुसपैठिये को जेलों में प्रताड़ना का शिकार बना कर मार भी देते हैं। दुनिया में सिर्फ भारत ही एक मात्र देश है जो अवैध घुसपैठियो को सभी प्रकार की मानवीय और नागरिक सुविधाएं देकर आत्मघात करता है।

हथकड़ियों और बेड़िया युक्त डिपोर्टिंग के शिकार भारतीय कौन लोग हैं? क्या ये निर्दोष थे? क्या ये घुसपैठिये नहीं थे? निश्चित तौर पर ये घुसपैठिये थे और अवैध घुसपैठिये अपराधी ही होते हैं। कानूनी तौर पर अमेरिका इन्हें कठिन सजा देने का अधिकार रखता है। अवैध घुसपैठिये किस तरह अमेरिका में पहुंचे थे उस पर ध्यान रखना चाहिए। ये एजेंट के माध्यम से अमेरिका पहुंचे थे। एजेंट को करोड़ो रूपये दिये थे, कई देशों की जगली सरहदें पार कर अमेरिका में पहुंचे थे जहां पर अमेरिकी पुलिस के हत्थे चढ गये थे। कोई शरण की गारंटी नही, कोई रोजगार की गारंटी नहीं, पास में कोई ढंग की शैक्षणिक और विशेषज्ञता की डिग्री नहीं फिर भी अमेरिका की चमकीली समृद्धि को लूटने चले गये। मूर्खता में भारतीय कभी अमेरिका तो कभी रूस और कभी इस्राइल जाकर युद्ध के शिकार भी होते हैं और आरोप भारत सरकार झेलती है, परेशानी भारत सरकार झेलती है।

अभी तो ये सिर्फ झलकी भर है। बहुत बडा मानवाधिकार संकट खडा हुआ है। लगभग दो करोड़ की आबादी को अमेरिका डिपोर्ट करने वाला है। ये दो करोड की आबादी बेमौत मरने के लिए विवश होगी, क्योंकि ये दो करोड आबादी अमेरिका में अपना सबुकछ छोड़कर अपने पूर्व देश को लौटेगी जहां पर उन्हें भूख और बेकारी सहित अन्य समस्याओं से जूझना पडेगा। मास डिपोर्ट की नीति लागू होते ही राष्ट्रवादियों की बाहें खिल गयी है और वे बले-बले कर रहे हैं जबकि गैर राष्ट्रवादियों की गर्दन झूक गयी है, उनकी जबान पर गुस्सा है और डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ अनाप-शनाप बोल रहे हैं, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि अमेरिकी जनता की भी खिंचाई कर रहे हैं, आलोचना का शिकार बना रहे हैं, इस पक्ष का कहना है कि अमेरिका की जनता ने विध्वंसक-संहारक डोनाल्ड ट्रम्प को राष्ट्रपति चुनकर दुनिया के लिए नयी समस्याएं उत्पन्न की है।

डोनाल्ड ट्रम्प का अभियान अवैध शरणार्थी मुक्त अमरिका बनाने का है। अमेरिका को अवैध शरणार्थी मुक्त बनाने की अभियान के खिलाफ मानवाधिकार संगठनों के साथ ही साथ अमेरिका की डेमोक्रेट पार्टी भी है, डेमोक्रेट पार्टी मानवाधिकार के नाम पर अवैध शरणार्थियों का समर्थन करती है और उन पर उदारता का भाव भी रखती है। लेकिन राष्ट्रपति चुनावों में डेमोकेट पार्टी की करारी हार के बाद अवैघ शरणार्थियों का समर्थन अमरिका के अंदर में बहुत ही सीमित हो गया है। ऐेसे भी डोनाल्ड ट्रम्प अपने लक्ष्य और अभियान के प्रति बहुत ही जिद्दी और जुनूनी होते हैं, उन्हें कोई भी आलोचना से न तो डर होता है न ही उनके अभियान में रूकावटें आती हैं।

डोनाल्ड ट्रम्प अवैध शरणार्थियों के प्रति इतने गुस्से में क्यों हैं और अवैध शरणार्थियों को निकालने के लिए सभी हदें क्यों पार करना चाहते हैं? क्या सही में अवैध शरणार्थी अमेरिका की आर्थिक अर्थव्यवस्था के लिए संकट हैं, क्या अवैध शरणार्थी सही में अमेिरका के हितों के लिए नकरात्मक हैं, क्या सही में अवैध शरणार्थी अमेरिका की आतंरिक सुरक्षा ही नहीं बल्कि वाह्य सुरक्षा के लिए भी खतरे की घंटी है? क्या सही में अवैध शरणाथी अपराध, बलात्कार और अन्य अस्वीकार कार्यो मे लिप्त है? सबसे बडी बात यह है कि अवैध शरणार्थी कितने है और उनकी राष्ट्रीयताएं क्या-क्या है? अमेरिका की वर्तमान आबादी लगभग 35 करोड है। आबादी के हिसाब से दुनिया का तीसरा बडा देश है अमेरिका। आबादी के हिसाब से भारत दुनिया का सबसे बडा देश है जबकि चीन का स्थान दूसरा है। 35 करोड की कुल आबादी में एक करोड से ज्यादा अवैध शरणार्थी हैं। कहने का अर्थ यह है कि अमरिका का हर 35 वां आदमी अवैघ शरणार्थी हैं। जिनके पास अमरिका में आने और बसने का कोई वैध काबजात नहीं हैं, वे अमेंरिका के अंदर कैसे प्रवेश किये, इसका भी कोई लेखा’जोखा नहीं हैं। लैटिन अमेरिकी सीमा से अवैध शरणार्थी अमरिका में प्रवेश करते हैं और अमेरिका के लिए काल बन जाते हैं।

अवैध शरणार्थियों के कितने अधिकार होते हैं। शरणार्थियों के अधिकार होते हैं। पर अवैध शरणार्थियेां के अधिकार नहीं होते हैं, उनके पास सिर्फ दया होती है, करूणा और सहानुभूति होती है। जिस देश में अवैध शरणार्थी बने हैं, बलपूर्वक घुसपैठ किया है उस देश की इच्छा होगी तो फिर वह देश ऐसे समूह को शरणार्थी की सुविधा उपलब्ध करा सकता है, अपने नागरिक अधिकार उसे दे सकता है। सभ्य और मानवता पंसद देश ऐसा करते भी हैं। खासकर यूरोपीय देश ऐसे शरणार्थियों के लिए अपने दरवाजे खोलते रहे हैं। अमेरिका भी अपने यहां ऐसे शरणार्थियों को शरण देने का काम किया है। लेकिन अमेरिका का अनुभव अच्छा नहीं रहा है। अमेरिका के उपर भी आबादी का दबाव बढ रहा है। आबादी के अनुपात में अेमेरिका दुनिया का तीसरा बडा देश है। फिर एक करोड से अधिक अवैध शरणाथियों को संभालना कितना कठिन कार्य है, यह भी उल्लेखनीय है। एक करोड से अधिक अवैध शरणार्थियों की भीड अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बूरी तरह से प्रभावित कर रही है। अमेरिकी नागरिकों के लिए सुविधाएं बहुत सीमित होती जा रही हैं।

सबसे उल्लेखनीय है भस्मासुर बन जाना। अवैध प्रवासी अमरिका के लिए भस्मासुर बन गये हैं। ये अपराध की दुनिया में सक्रिय रहते हैं। सडकों को लूट और हत्या का घर बना देना इनका कार्य होता है, आवासीय क्षेत्रों को अपराध और गद्रगी का ढेर बना डाला। बलात्कार और छेडछाड जैसी घटनाएं तो आम बात हो गयी है। अभी-अभी एक हजार से अधिक जिन अवैध शरणार्थियों को पकडा गया है वे दुर्दांत अपराधी रहे हैं और उनके कारनामे बहुत ही लामहर्षक हैं। सबसे बडी बात यह है कि डॉक्टर, इजीनियर और वैज्ञानिक सहित सूचना तकनीक के क्षेत्र में अवैध घुसपैइिये बहुत ही कम है। फिर अवैध घुसपैठिये है कौन और उनकी श्रेणियां क्या-क्या है? अधिकतर घुसपैठिये अनपढ हैं, मजदूर है, अप्रशिक्षित है और तस्कर भी होते हैं। ऐसी श्रेणियों के अवैध घुसपैठियों को रोजगार मिलना आसान नहीं होता है, अमेरिका में प्रशिक्षित मजदूरों को रोजगार मिलता है, काम मिलता है, अप्रशिक्षित लोग मशीन को हैंडिल तक नहीं कर पाते हैं। फिर अवैध शरणार्थियों की आजीविका कैसे चलेगी, उन्हें रहने के लिए आवास और पेट भरने के लिए पैसे कहां से अर्जित होगे? फिर इन्ही कारणों से अवैध धुसपैठिये अपराध की दुनिया में कुख्यात हो जाते हैं और अमेरिका की आतंरिक शांति के दुश्मन बन जाते हैं।

राजनीति भी एक कारण है। जिस प्रकार से बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिये भारत में अपनी राजनीतिक शक्ति हासिल कर चुके हैं, भाजपा विरोधी राजनीतिक शक्ति के हथकंडे बन गये हैं उसी प्रकार से अमरिका में भी अवैध शरणार्थी डेमोक्रेट पाटी के वोटर बन जाते हैं और हथकंडा बन जाते हैं। भाजपा की तरह अमेरिका में रिपल्किन पार्टी राष्ट्रवादी पार्टी मानी जाती है और उसकी समझ यह है कि अवैध शरणार्थी अमेरिका की राष्ट्रीय अस्मिता की कब्र खोदते हैं और अपनी संहारक व घृणित संस्कृति हम पर लादना चाहते हैं। चूंकि अधिकतर अवैध शरणार्थी मुस्लिम हैं, इसलिए मुस्लिम आतंक की भी समस्या है। मुस्लिम जहां भी होते हैं वहां की मूल संस्कृति का दोहण और संहार करते हैं। मजहबी शासन की माग करना उनका लक्ष्य होता है। अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर मुस्लिम आतंकी हमला भी कुचर्चित रहा है और अमेरिकी अस्मिता पर हमला के रूप में देखा जाता है। यही कारण है कि राष्ट्रवादियों और खासकर मुस्लिम अवैध शरणार्थियों के बीच मे तनातनी होती है। डोनाल्ड ट्रम्प ने मुस्लिम देशों से आने वाले नागरिकों को अमेरिका में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया था। कहने का अर्थ यह है कि डोनाल्ड ट्रम्प अपने पहले कार्यकाल के दौरान भी मुस्लिम शरणार्थियों को लेकर आगबबूला थे और इस काल में भी मुस्लिम अवैध घुसपैठियों के साथ ही साथ संपूर्ण शरणार्थी प्रश्न पर कठिन नीति अपनायेंगे।

अवैध शरणार्थियो को रोकने के लिए कठिन कार्य भी शुरू हो चुका है। खासकर अपनी सीमा को सुरक्षित बनाने की नीति महत्वपूर्ण हुई है। अमेरिका में अवैध घुसपैठ का सर्वाधिक रास्ता मैक्सिकों की सीमा से बनता है। मैक्सिकों की सीमा पर तार की बांउड्री खडी होनी शुरू हो गयी है, वेनेजुएला की सीमा पर भी सख्ती जारी है। वेनेजुएला में कभी कम्युनिस्ट तानाशाही थी। कम्युनिस्ट तानाशाही ने वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था का विध्वंस कर दिया। वेनेजुएला दिवालिया हो गया। यहां की आबादी भूख और बेकारी से तबाह हो गयी।वेनेजुएला की एक बडी आबादी अपने पडोसी देशो में घुसपैठ कर गयी। वेनेजुएला के रास्ते अमेरिका में बडे पैमाने पर घुसपैठ होता है। अमरिका ने अपनी मैक्सिकों और वेनेजुएला सहित अन्य सीमाओं पर तार की दीवार खडी करने और पक्की दीवारे भी खडी कर रहा है। हमें भारतीयों को अवैध सुसपैठिये बनने के लिए कतई प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए।

विद्यार्थियों की ‘मुछों वाली माँ’ गिजुभाई बधे के शैक्षणिक चिंतन द्वारा आत्मनिर्भरता के नवाचार प्रयोग

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समीर कौशिक

गिजुभाई बधे (1885-1938) भारतीय शिक्षा के एक महान सुधारक और शैक्षिक विचारक थे। वे बच्चों की शिक्षा और उनके मानसिक विकास को समझने में अग्रणी विद्वान थे । गिजुभाई का मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान देना नहीं, बल्कि बच्चों की प्राकृतिक क्षमताओं का विकास करना है, ताकि वे जीवन में खुश और सफल बन सकें। उनका शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण आज भी शिक्षकों और शिक्षा नीतियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

गिजुभाई का जन्म 1885 में गुजरात राज्य के एक छोटे से गांव में हुआ था। उनका पूरा नाम गिजुभाई बधे था। गिजुभाई ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में प्राप्त की और फिर उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गए। वहाँ उन्होंने वेस्ले कॉलेज और बाद में सेंट्रल स्कूल ऑफ एजुकेशन से शिक्षा ली। शिक्षा में गिजुभाई की रुचि ने उन्हें भारतीय शिक्षा प्रणाली में सुधार की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित किया।

गिजुभाई ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को एक नई दिशा देने हेतु नूतन प्रयास किये । उनका मानना था कि शिक्षा केवल पुस्तक ज्ञान तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि बच्चों की मानसिक और भावनात्मक विकास की दिशा में भी काम किया जाना चाहिए। उन्होंने कई ऐसे महत्वपूर्ण पक्षों पर ध्यान केंद्रित किया, जो उस समय के पारंपरिक शिक्षा ढांचे में नजरअंदाज किए जाते थे।

बच्चों की स्वाभाविक प्रवृत्तियों को समझने हेतु गिजुभाई का कहना था कि बच्चों के विकास में उनकी स्वाभाविक और मानसिक स्थिति महत्वपूर्ण होती है। इसलिए बच्चों के लिए एक अनुकूल वातावरण तैयार किया जाना चाहिए, जहाँ वे अपनी रुचियों और क्षमताओं को पहचान सकें। बच्चों से अत्यधिक वात्सल्यता एवं ममत्व के चलते उन्हें मुछों वाली माँ के नाम से भी जाना जाता है ।

शिक्षा में रचनात्मकता और आनंद ही उनका उद्देश्य रहा है, गिजुभाई ने शिक्षा को केवल बोझ नहीं, बल्कि एक आनंदमयी अनुभव बनाने पर जोर दिया। उनका मानना था कि बच्चों को खेल, कला, संगीत और रचनात्मक कार्यों के माध्यम से शिक्षा दी जानी चाहिए।

गाँधी जी के साथ शिक्षा के सुधार की दिशा में कार्य किया गिजुभाई का गहरा संबंध महात्मा गांधी से था। उन्होंने गांधीजी के शिक्षा के सिद्धांतों को अपना आधार बनाया, जिसमें ‘नैतिक शिक्षा’, ‘सार्वजनिक कार्यों में भागीदारी’ और ‘स्वदेशी शिक्षा’ की बात की जाती थी।

गिजुभाई द्वारा स्थापित “नवजीवन विद्यालय” की स्थापना उन्होंने ने अहमदाबाद में की । यहाँ पर बच्चों को केवल किताबों से नहीं, बल्कि जीवन के वास्तविक अनुभवों प्रयोगों एवं नवाचारों से शिक्षा दी जाती थी। यह विद्यालय भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक क्रांतिकारी कदम था।

इस हेतु उन्होंने अपने शैक्षिक जीवन अनुभव नवाचारों को पुस्तकें और लेख के रूप में संग्रहित भी किया, जो शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण माने जाते हैं जिनमे कुछ की चर्चा तत्व रूप में हम करेंगे ।

अपने लेख एवं पुस्तकों के माध्यम से गिजुभाई ने बच्चों के साथ संवाद करने के विभिन्न तरीकों पर प्रकाश डाला और उन्हें समझने की दिशा में मार्गदर्शन किया। साथ ही मानसिक और नैतिक विकास के विषय मे बात की और उनकी शिक्षा में सुधार के तरीकों और बच्चों के साथ सही व्यवहार पर जोर दिया है उनकी मुख्य कृति ‘दिवास्वप्न’, “प्राथमिक विद्यालय की शिक्षा पद्धतियां” , “धर्मात्माओं नाँ चरित्र चित्रण”, आदि शिक्षण क्षेत्र में उच्चतम स्थान पर ग्रँथ स्वरूप सम्मानित हैं ।

उन्होंने बच्चों की शिक्षा को जीवन के उद्देश्य से जोड़ा, और शिक्षा को केवल अकादमिक ज्ञान तक सीमित रखने की बजाय इसे एक समग्र अनुभव बनाने का प्रयास किया। उनके विचार और कार्य आज भी भारतीय शिक्षा के सुधार में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

गिजुभाई की शिक्षा की परिभाषा ने न केवल भारत में, बल्कि अखिल विश्व में शिक्षा के प्रति एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। वे हमेशा यह मानते थे कि शिक्षा का उद्देश्य केवल बच्चों को पढ़ाना नहीं, बल्कि उन्हें जीवन जीने की कला सिखाना है। गिजुभाई बधे का जीवन और उनका शैक्षिक कार्य भारतीय शिक्षा के इतिहास में मील का पत्थर है। उनके दृष्टिकोण ने बच्चों के लिए एक ऐसे शैक्षिक वातावरण की स्थापना की, जो उनकी रचनात्मकता, मानसिकता और भावनाओं का सम्मान करता था। उनकी शिक्षाएँ और विचार आज भी बच्चों के विकास और शिक्षा के सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

“नवजीवन विद्यालय” की स्थापना और गिजुभाई का शैक्षिक दृष्टिकोण भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक क्रांतिकारी बदलाव का संकेत था। जिसने भारतीय शिक्षा को एक नई दिशा दी और बच्चों को अधिक सृजनात्मकता और समग्र शिक्षा की ओर अग्रसर किया।

गिजुभाई के जीवन की मुख्य शैक्षिक घटना थी उनके द्वारा ‘नवजीवन विद्यालय’ की स्थापना 1920 में अहमदाबाद में की और उस विद्यालय में उन्होंने जो शिक्षा के नये दृष्टिकोण को लागू किया , यह घटना गिजुभाई के शैक्षिक दृष्टिकोण का सबसे बड़ा उदाहरण है और उनकी जीवन यात्रा में एक महत्वपूर्ण साबित हुई।

नवजीवन विद्यालय की स्थापना का उद्देश्य पारंपरिक शिक्षा प्रणाली से हटकर बच्चों को एक नया और जीवन से जुड़ा हुआ शिक्षा अनुभव देना था। यहाँ पर बच्चों को केवल पाठ्यक्रम से नहीं, बल्कि उनके जीवन के अनुभवों, कला, खेल, संगीत और रचनात्मकता के माध्यम से शिक्षा दी जाती थी।

इस विद्यालय में गिजुभाई ने बच्चों के मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक विकास को एकीकृत रूप से देखा। उनका मानना था कि शिक्षा केवल जानकारी तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह बच्चों की स्वाभाविक क्षमताओं को भी प्रोत्साहित करनी चाहिए।

शिक्षा के प्रति गिजुभाई के अपने दृष्टिकोण से शिक्षा में बच्चों की स्वतंत्रता और उनकी रुचियों का सम्मान करते हुए, उन्हें आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी। “नवजीवन विद्यालय” ने यह सिद्ध किया कि अगर बच्चों को एक अनुकूल और उत्साहवर्धक वातावरण मिलता है, तो वे अपनी क्षमताओं को पूरी तरह से पहचान सकते हैं और अपने ज्ञान को जीवन में लागू कर सकते हैं।

इस विद्यालय में गिजुभाई का योगदान यह था कि उन्होंने बच्चों को एक आत्ममूल्य और आत्मनिर्भरता का अनुभव कराया, जो भारतीय शिक्षा के पारंपरिक दृष्टिकोण से पूरी तरह भिन्न था।

गिजुभाई बालकेंद्रीक शिक्षा के प्रणेता थे। उन्होंने शिक्षा में नवाचारों को लागू करने के साथ ही बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए आत्मनिर्भरता पर जोर दिया। गिजुभाई वैसे तो नवाचारों के समुन्द्र हैं परन्तु उनके आत्मनिर्भरता के कुछ प्रमुख नवाचार प्रयोग हम सांकेतिक रूप से समझने का प्रयास करेंगे ।
गिजुभाई ने बच्चों को आत्मनिर्भर बनने के लिए स्वतंत्र कार्यों की ओर प्रोत्साहित किया। उन्होंने विद्यार्थियों को अपने कार्यों और समस्याओं का समाधान स्वयं करने के लिए प्रेरित किया, जिससे उनके आत्मविश्वास और निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि हो।

उन्होंने बच्चों को प्राकृतिक साधनों और संसाधनों का उपयोग करके शिक्षा में नवाचार करने के लिए प्रेरित किया। उदाहरण स्वरूप, उन्होंने विद्यालयों में कागज, लकड़ी, मिट्टी, और अन्य साधारण सामग्री से बच्चों के लिए गतिविधियाँ विकसित की, जो उनके रचनात्मक कौशल को बढ़ावा देती थीं। आत्मनिर्भरता के लिए गिजुभाई ने कला और शिल्प कार्यों को शिक्षा का हिस्सा बनाया, ताकि बच्चें अपने हाथों से कुछ निर्माण कर सकें और आत्मनिर्भरता का अनुभव कर सकें। यह बच्चों को आत्मविश्वास और सृजनात्मकता के साथ-साथ जीवन में उपयोगी कौशल भी सिखाता था। भाषा शिक्षा से नवाचार हेतु गिजुभाई ने बच्चों को अपनी भाषा में संवाद करने का अवसर दिया। उन्होंने बच्चों को अपनी बात को स्पष्ट और आत्मविश्वास से व्यक्त करने की प्रक्रिया सिखाई, जो विद्यार्थियों में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने वाला है । समाज में योगदान एवं सामाजिक सहभागिता समरसता हेतु गिजुभाई का मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत विकास नहीं, बल्कि समाज के प्रति उत्तरदायित्व को भी समझाना है। इसलिए, उन्होंने बच्चों को समाज के प्रति जागरूक किया और यह सिखाया कि वे समाज में किस प्रकार योगदान दे सकते हैं।

गिजुभाई के ये कुछ मुख्य नवाचार, शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम थे जो बच्चों को आत्मनिर्भर बनने की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करते रहे हैं और आज भी वर्तमान पीढ़ी के शिक्षकों विद्यार्थियों एवं समाज के किसी भी वर्ग हेतु प्रेरणा पुंज हैं ।

अरविन्द केजरीवाल के कुछ गुमनाम मित्र

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कुछ मित्रों से पिछले दिनों मिला था। ये सभी अरविन्द केजरीवाल के 2011 के मित्र थे। वे जब अपना काम काज छोड़कर अरविन्द के साथ आए थे तब भी चुपके से आए थे। सोशल मीडिया पर किसी तरह की सोशेबाजी नहीं की थी। वे अपना नाम चमकाने नहीं बल्कि व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई में अरविन्द का साथ देने आए थे।

अरविन्द के ये सभी मित्र आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे लेकिन आंदोलन जब राजनीतिक पार्टी में तब्दील हुआ तो इन्होंने उस वक्त भी केजरीवाल पर विश्वास किया। जब उनके इस निर्णय पर अन्ना हजारे स्वयं संदेह जता चुके थे। उनके मित्रों ने सोचा, अरविन्द जो भी करेंगे अच्छा करेंगे।

इन मित्रों का साथ बहुत अधिक दिनों तक नहीं रहा। अरविन्द मुख्यमंत्री बने। उन्हें सत्ता मिली और वे बदल गए। फिर धीरे-धीरे मित्रों का मोहभंग हुआ। मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी बातचीत और व्यवहार में परिवर्तन आ गया था। जिस तरह की राजनीति का विरोध करने के लिए उन्होंने जंतर मंतर से कथित नई राजनीति की शुरूआत की। अरविन्द उसी तरह की राजनीति में मुब्तिला हो गए थे।

उनके मित्र मानते हैं कि अरविन्द ने दिल्ली की जनता के साथ विश्वासघात किया है। आने वाले सालों में किसी भी आंदोलन पर जनता को विश्वास नहीं होगा क्योंकि उनके पास अरविन्द केजरीवाल की मिसाल होगी।

इसीलिए अन्ना आंदोलन के बाद कोई भी आंदोलन जनता का विश्वास नहीं जीत पाया। इस पाप की जिम्मेवारी अरविन्द केजरीवाल को लेनी होगी। उन्होंने आंदोलन के नाम पर दिल्ली की जनता के साथ छल किया।

इस बार दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल की पुरानी टीम में शामिल ये महत्वपूर्ण मित्र नई दिल्ली सीट पर सक्रिय थे। अरविन्द केजरीवाल के प्रचार के लिए नहीं बल्कि जनता को उनकी सच्चाई बताने के लिए। वे खबर में नहीं थे लेकिन जमीन पर काम कर रहे थे।

अरविन्द के ये मित्र आंदोलन से लेकर पार्टी बनने तक साथ थे। पार्टी चलाने के तौर तरीके पर उन्होंने अपनी असहमति भर जताई थी, जिसे आप में सुना नहीं गया। मुख्यमंत्री बनने के बाद अरविन्द भी असमतियों को अधिक महत्व देने के मूड में नहीं थे। उन्होंने पार्टी के अंदर ऐसे कथित शिकायती लोगों को सुनना बंद कर दिया था। जिन्हें उन्होंने आंदोलन से जोड़ा था। वे अपनी नौकरी और कारोबार छोड़कर अरविन्द के बुलावे पर आए थे। उन्हें महत्व ना देकर अरविन्द ने उन्हें संदेश दे दिया था कि उनकी अब पार्टी को कोई जरूरत नहीं है।

इस तरह विचारवान और सार्थक काम करने वाले लोग धीरे-धीरे पार्टी छोड़कर जाते रहे। कुछ की चर्चा मीडिया में हुई। अधिकांश का लोगों ने नाम तक नहीं जाना।

2025 के विधानसभा चुनाव में अरविन्द को हराने के लिए उनके कुछ पुराने मित्र नई दिल्ली सीट पर सक्रिय थे। मीडिया में उनकी खबर नहीं आई लेकिन अपने कम संसाधनों के बीच उन्होंने मतदाताओं से ‘वास्तविक’ अरविन्द केजरीवाल का परिचय कराया। अब उनके अभियान की नई दिल्ली की सीट पर आए परिणाम में क्या भूमिका रही? यह बताना थोड़ा मुश्किल है लेकिन वह समूह कल भी गुमनाम था और आज भी उनके संबंध में लोग नहीं जानते।

‘सही प्रश्न’ में एक ग्लिच है

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राजीव मिश्र

आज एक मित्र ने एक वैलिड प्रश्न उठाया कि केजरीवाल ने अगर मोदी से शत्रुता के बजाय पार्टनरशिप की राजनीति की होती तो आज भी मजे से सत्ता भोग रहा होता. यह बात फ़ैक्चुअली सही है, लेकिन इस आकलन में सिर्फ एक बेहद महत्वपूर्ण और फंडामेंटल ग्लिच है… केजरीवाल होने के मनोविज्ञान का आकलन.

कोई केजरीवाल क्यों बनता है? केजरीवाल की सबसे मूल ग्रंथि है उसकी गहनतम हीन भावना.
केजरीवाल के बचपन की कल्पना कीजिए… वह अवश्य एक मरियल, दब्बू, झगड़ालू और ईर्ष्यालु बच्चा रहा होगा जिसको मोहल्ले के बच्चे साथ में खेलने नहीं देते होंगे. तो उसने सोचा, चलो इन सबको दिखा देता हूँ कि मैं कितना खास हूँ.. और वह पढ़ कर, एग्जाम पास करके आईआईटी में चला गया.
लेकिन आईआईटी पहुँचा तो पाया, वहाँ तो सभी आईआईटियन ही थे… वहां कौन इस बात की घास डालता. तो वहां वह पढ़ाई लिखाई छोड़कर एक्टिविज्म में लग गया. आईआईटी से निकल कर टाटा स्टील की नौकरी की तो वहां वह टाटा के CSR डिपार्टमेंट से जुड़ गया… उसमें उसे सीएसआर की फंडिंग और एक्टिविज्म की मलाई का रहस्य समझ में आया. टाटा में न टिक कर वह आईएएस बनने चला, जहां से सारी मलाई बंटती है… आईएएस बन नहीं पाया, रेवेन्यू सर्विसेज से संतोष करना पड़ा. तब वह फुल टाइम एक्टिविज्म में कूद पड़ा.

यानि यह व्यक्ति जहां भी रहा, इस कुंठा से ग्रस्त रहा कि वह अपने आस पास के लोगों से कमतर है. इसलिए वह एक फील्ड से दूसरे में कूदता रहा कि इस बार वह अपने को प्रूव कर देगा. उसे और किसी तरह की सुपीरियरिटी नहीं मिली तो मॉरल सुपीरियरिटी का क्लेम करता रहा. पर सेल्फ एस्टीम की कमी आसानी से दूर होने वाली कमी नहीं है. बचपन के मारियल, दब्बू, उपेक्षित अरविंद ने केजरीवाल का पीछा कभी नहीं छोड़ा. आपको कभी भी केजरीवाल के साथ उसका कोई बचपन का साथी नहीं मिलेगा. कोई भी, जो उसे पहले से और व्यक्तिगत रूप से जानता है वह उसके आसपास नहीं फटकेगा.

केजरीवाल का वामपंथी होना सिर्फ एक पॉलिटिकल आइडियोलॉजी का प्रश्न नहीं है, उसकी पूरी पर्सनालिटी का प्रश्न है…उसके चरित्र का भाग है. यह उसकी हीनभावना की उपज है. वह हमेशा उन सभी से द्वेष रखता है जो उससे बेहतर हैं. वह किसी भी अपने से योग्य व्यक्ति का मित्र हो ही नहीं सकता. केजरीवाल सत्ता के लिए भी मोदी से हाथ नहीं मिला सकता. मोदी के बगल में खड़े होने से ही वह हीन भावना से मर जाएगा. उसके जीवन की व्यर्थता, उसके चरित्र की तुच्छता उसे कभी मोदी के साथ खड़ा होने ही नहीं देगी.

केजरीवाल सही कहता है कि वह राजनीति में सत्ता का सुख लेने नहीं आया है… इसके लिए जो पर्सनल एंबीशन, जो महत्वाकांक्षा होनी चाहिए वह उसमें है ही नहीं. वह कोई भी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा रखने की चारित्रिक क्षमता ही नहीं रखता. सत्ता वह सत्ता का सुख भोगने के लिए नहीं खोजता. वह अपने जीवन की निरर्थकता का उत्तर सत्ता में खोजता है.

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