10 फरवरी 1993 : सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी डा गयाप्रसाद कटियार का निधन

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भारतीय स्वाधीनता संग्राम में कुछ ऐसे सेनानी हुये जिनका पूरा जीवन संघर्ष में बीता । पहले स्वतंत्रता के लिये अंग्रेजों से संघर्ष किया और स्वतंत्रता के बाद जन समस्याओं के निवारण के लिये अपनी ही सरकार से । सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ.गया प्रसाद कटियार ऐसे ही संघर्षशील सेनानी थे । स्वतंत्रता के लिये वे दोनों संघर्ष में सहभागी रहे । अहिसंक आँदोलन में भी और क्राँतिकारी गतिविधियों में भी ।

ऐसे विलक्षण स्वाधीनता संग्राम सेनानी डाक्टर गया प्रसाद कटियार का जन्म 20 जून 1900 को उत्तर प्रदेश के कानपुर जिला अंतर्गत बिल्हौर तहसील के ग्राम जगदीशपुर में हुआ था। उनके पिता मौजीराम भारतीय औषधियों के वैद्य थे और माता नंदरानी भारतीय परंराओं के अनुरूप अपना जीवन निर्वाह करने वाली सुघड़ गृहस्थ थीं । परिवार आर्यसमाज से जुड़ा था । हाई स्कूल की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने कानपुर में मेडिसिनल प्रैक्टिस कोर्स किया और नाम के आगे डाक्टर उपाधि लगी । अपनी आजीविका और जनसेवा के लिये उन्होंने कानपुर में चिकित्सक व्यवसाय अपनाया । 1919 में उनका विवाह रज्जो देवी से हुआ । परिवार दायित्व और चिकित्सा व्यवसाय के साथ वे कानपुर आर्यसमाज शाखा से जुड़े । उन दिनों कानपुर आर्यसमाज भारतीय स्वाधीनता आँदोलन केलिये एक वैचारिक केन्द्र था । यहाँ उनकी भेंट अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से हुई और वे अहिसंक आँदोलन से जुड़ गये । कानपुर में होने वाली प्रभात फेरी एवं सभाओं के आयोजन में सक्रिय हुये । असहयोग आँदोलन आरंभ हुआ तो डाक्टर गयाप्रसाद ने आँदोलन में भाग लिया और गिरफ्तार हुये । तभी चौरी चौरा काँड हुआ और गाँधीजी ने आँदोलन स्थगित कर दिया । डाक्टर गयाप्रसाद कटियार गाँधी जी के इस निर्णय से सहमत नहीं हुये । वे संघर्ष निरन्तर रखना चाहते थे । कानपुर आर्य समाज में उनका परिचय उस समय के सुप्रसिद्ध पत्रकार गणेशशंकर विद्यार्थी से हुआ था। विद्यार्थी प्रताप समाचार पत्र के संपादक थे । यह समाचार पत्र क्राँतिकारियों का एक प्रमुख मिलन केन्द्र था । विद्यार्थी के माध्यम से डाक्टर गयाप्रसाद जी क्राँतिकारी आँदोलन से जुड़े। यहाँ उनका परिचय क्राँतिकारी आँदोलन का नेतृत्व कर रहे चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और राजगुरु जैसे क्राँतिकारियों से बना और डा गयाप्रसाद कटियार का चिकित्सा केन्द्र भी इस क्राँतिकारी आँदोलन का गुप्त केन्द्र बन गया । डाक्टर गयाप्रसाद जी के लगभग सभी क्राँतिकारियों से गहरे संबंध थे । भगत सिंह और राजगुरु दोनों होली मनाने के लिए 20 मार्च, 1926 को डॉ. गया प्रसाद के गाँव जगदीशपुर भी गए थे ।

क्रांतिकारियों ने गया प्रसाद को बम तथा अन्य हथियार बनाने की फैक्ट्री बनाने का काम सौंपा। डा कटियार ने क्राँतिकारी बीएस निगम के नाम को आगे करके औषधि निर्माण कारखाने के नाम पर यह बम फैक्ट्री शुरू की । यह फैक्ट्री 10 अगस्त 1928 से 9 फरवरी 1929 तक चालू रही । कारखाने में छ्द्म नाम से अन्य क्रांतिकारी भी सक्रिय रहे जैसे क्राँतिकारी शिव वर्मा का नाम राम नारायण कपूर, चन्द्रशेखर आजाद का संबोधन पंडित जी, सुखदेव को बलेजर, महावीर सिंह को प्रताप सिंह, जयगोपाल को गोपाल और बच्चू की भूमिका में विजय कुमार सिन्हा के रूप में पहचान बनी । कहने के लिये यह औषधालय था पर इसका उपयोग बम बनाने के लिए था। कारखाने से अक्सर रासायनों की गंध आती थी पर पड़ोसी समझते थे कि यह औषधियों के निर्माण से उठने वाली गंध है ।

डाक्टर गयाप्रसाद कटियार को क्राँतिकारी आँदोलन के प्रमुख रणनीतिकारों में थे । माना जाता है कि सांडर्स वध की योजना एवं क्राँतिकारी भगतसिंह का नाम और स्वरूप बदलकर गुप्त केंद्रीय कार्यालय संचालन करने की रणनीति डा कटियार ने ही बनाई थी । दिल्ली की पार्लियामेंट में फेंके गए बम निर्माण आदि कार्यों में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा ।

पुलिस ने इस टोली की तलाश में रातदिन एक कर दिये । इसका संकेत क्राँतिकारियों को मिल गया था । सावधानी के बतौर उन्होंने यह बम फैक्ट्री सहारनपुर स्थानांतरित कर ली। लेकिन पुलिस को सूचना मिल गई । पुलिस ने छापा मारा और 15 मई 1929 को कटियार जी को बंदी कर लाहौर भेज दिये गये। उन्होंने यहां अन्य क्रांतिकारियों के साथ भूख हड़ताल आरंभ की। उन पर लाहौर षडयंत्र केस में शामिल होने का आरोप लगा और मुकदमा चला । उन्हे आजीवन कारावास की सजा सुनाकर लाहौर से अंडमान सेलुलर जेल दिया गया। अंडमान की जेल काला पानी के नाम से कुख्यात थी । जहाँ कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार होता था । डाक्टर गयाप्रसाद कटियार ने इसके विरोध में यहाँ भी भूख हड़ताल आरंभ की जो 46 दिन चली । इसी भूख हड़ताल में क्राँतिकारी महावीर सिंह का बलिदान हुआ था । उनके मुँह में बल पूर्वक भोजन खिलाने का प्रयास में ही उनका प्राणांत हो गया था । महावीर सिंह के बलिदान के बाद डाक्टर गयाप्रसाद कटियार को पहले अन्य जेल भेजा लेकिन कुछ दिनों बाद फिर से सेलुलर जेल लाया गया । जब भारत की स्वतंत्रता लगभग सुनिश्चित हुई तब अंग्रेजों ने सभी राजनैतिक बंदी रिहा किये थे । 1946 में डाक्टर गयाप्रसाद जी भी रिहा हो गये ।

सेलुलर जेल से रिहा हुये तब शारीरिक रूप से बहुत कमजोर थे । उन्हें स्वस्थ होने में लगभग दो वर्ष लगे ।

स्वस्थ होने के बाद वे सामाजिक कार्यों में सक्रिय हुये और समाजवादी आँदोलन से जुड़ गये । इसके माध्यम से उन्होंने किसानों और श्रमिकों के अधिकारों के लिए संघर्ष आरंभ किया। इन आँदोलनों में वे दो बार जेल गये । पहली बार 1958 में 6 महीने के लिए और फिर 1966 में डेढ़ साल के लिए। जेल से रिहा होकर उन्हें अनेक बीमारियों ने घेर लिया इससे सामाजिक आयोजनों में उनकी सक्रियता कम हुई और अंततः एक लंबी बीमारी के बाद 10 फरवरी 1993 को 93 वर्ष की आयु में उन्होंने संसार से विदा ली ।

भारत सरकार ने 26 दिसंबर 2016 को उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किया। इसके लिये आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री सुश्री अनुप्रिया पटेल ने की थी ।

विकास, सुशासन और राष्ट्रवाद की ऐतिहासिक जीत पर जेएनयू में स्नेहमिलन समारोह

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नई दिल्ली, जेएनयू | विकास, सुशासन और राष्ट्रवाद की ऐतिहासिक विजय के शुभ अवसर पर आज शाम 04:00 बजे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में JNUTF के नवनियुक्त पदाधिकारियों द्वारा एक स्नेहमिलन समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित शिक्षकों, शोधार्थियों और छात्रों ने गरिमामयी उपस्थिति दर्ज कराई और राष्ट्रहित में योगदान देने की प्रेरणा ली।

उल्लेखनीय उपस्थिति:

इस कार्यक्रम में प्रमुख रूप से डॉ. अंशु जोशी, डॉ. आयुषी केतकर, डॉ. ज्योति, डॉ. पूनम मेहता, डॉ. पल्लवी, प्रो. पवन कलेरिया, प्रो. केदार सिंह, प्रो. सुनील कटारिया, डॉ. आशीष, डॉ. अनिल कुमार सिंह, डॉ. लक्ष्मण बेहरा, डॉ. अभिषेक बंसल, डॉ. अभिषेक श्रीवास्तव, डॉ. विजेंद्र, डॉ. दीप नारायण पांडेय, डॉ. नरेश वर्मा, डॉ. राम प्रवेश, डॉ. बुद्ध सिंह, डॉ. रामोतार मीणा एवं जेएनयू के अनेक छात्रों ने सहभागिता की।

सभी आमंत्रित अतिथियों ने इस स्नेहमिलन को एक महत्वपूर्ण अवसर बताया, जहां शिक्षकों और छात्रों ने अपने विचार साझा किए और इस ऐतिहासिक उपलब्धि की महत्ता को रेखांकित किया। कार्यक्रम में उपस्थित सभी शिक्षकों, शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों ने राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका को और अधिक प्रभावी बनाने का संकल्प लिया।

इस आयोजन के सफल संचालन हेतु प्रो. सपना रतन शाह (JNUTF अध्यक्ष), डॉ. रवि वर्मा (JNUTF उपाध्यक्ष) और डॉ. गोपाल राम (JNUTF सह-सचिव) ने सभी प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया और भविष्य में भी इसी ऊर्जा और समर्पण के साथ राष्ट्रहित में कार्य करने की प्रेरणा दी।

रेपो दर में कमी के साथ ही भारत में ब्याज दरों के नीचे जाने का चक्र प्रारम्भ

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भोपाल। भारतीय रिजर्व बैंक के नवनियुक्त अध्यक्ष श्री संजय मल्होत्रा ने अपने कार्यकाल की प्रथम मुद्रानीति दिनांक 7 फरवरी 2025 को घोषित की। अभी तक प्रत्येक दो माह के अंतराल पर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा घोषित की गई मुद्रा नीति के माध्यम से लिए गए निर्णयों का देश में मुद्रा स्फीति को नियंत्रण में रखने में विशेष योगदान रहा है। हालांकि पिछले लगभग 5 वर्षों में रेपो दर में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया गया है। मई 2020 में अंतिम बार रेपो दर में वृद्धि की घोषणा की गई थी। इसके बाद घोषित की गई 29 मुद्रा नीतियों में रेपो दर को स्थिर रखा गया है और यह अभी भी 6.5 प्रतिशत के स्तर पर कायम है। परंतु,अब फरवरी 2025 माह में घोषित की गई मुद्रा नीति में रेपो दर में 25 आधार बिंदुओं की कमी करते हुए इसे 6.50 प्रतिशत से 6.25 प्रतिशत पर लाया गया है। केंद्र सरकार द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक को देश में मुद्रा स्फीति की दर को नियंत्रण में रखने हेतु मेंडेट दिया गया है और इस मेंडेट पर ध्यान रखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने देश में मुद्रा स्फीति को नियंत्रण में रखने में सफलता भी पाई है। परंतु, वित्तीय वर्ष 2024-25 के प्रथम एवं द्वितीय तिमाही में देश के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर घटकर 5.2 प्रतिशत एवं 5.4 प्रतिशत के निचले स्तर पर आ गई थी, जबकि वित्तीय वर्ष 2023-24 में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत की रही थी। अतः देश में आर्थिक विकास की दर पर भी अब विशेष ध्यान देने की आवश्यकता प्रतिपादित हो रही थी, इसीलिए भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो दर में 25 आधार बिंदुओं में कमी की घोषणा की है। रेपो दर में कमी करने का उक्त निर्णय मुद्रानीति समिति के समस्त सदस्यों ने एकमत से लिया है।
भारतीय रिजर्व बैंक के आंकलन के अनुसार वित्तीय वर्ष 2024-45 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर 6.4% की रहेगी और वित्तीय वर्ष 2025-26 में यह बढ़कर 6.7 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच जाएगी। इस वर्ष खरीफ की फसल बहुत अच्छे स्तर पर आई है एवं आगे आने वाली रबी की फसल भी ठीक रहेगी क्योंकि मानसून की बारिश अच्छी रही थी और देश के जलाशयों में, क्षमता के अनुसार, पर्याप्त पानी इन जलाशयों में उपलब्ध है, जिसे कृषि सिंचाई के लिए उपयोग में लाया जा रहा है और जो अंततः कृषि की पैदावार को बढ़ाने में सहायक होगा। इससे ग्रामीण इलाकों में उत्पादों की मांग में वृद्धि देखी गई है। हालांकि शहरी इलाकों में उत्पादों की मांग में अभी भी सुधार दिखाई नहीं दिया है। परंतु हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा मध्यमवर्गीय करदाताओं को आय कर में दी गई जबरदस्त छूट के चलते आगे आने वाले समय में शहरी क्षेत्रों में भी उत्पादों की मांग में वृद्धि दर्ज होगी और विनिर्माण क्षेत्र में कार्यरत औद्योगिक इकाईयों की उत्पादन वृद्धि दर तेज होगी। सेवा क्षेत्र तो लगातार अच्छा प्रदर्शन कर ही रहा है। प्रयागराज में आयोजित महाकुम्भ मेले में धार्मिक पर्यटन के चलते देश की अर्थव्यवस्था में लगभग 2 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त योगदान होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। इस प्रकार, भारत की आर्थिक विकास दर के वित्तीय वर्ष 2023-24 में लगभग 7 प्रतिशत एवं वित्तीय वर्ष 2024-25 में लगभग 8 प्रतिशत रहने के प्रबल सम्भावना बनती है। भारतीय रिजर्व बैंक का आंकलन उक्त संदर्भ में कम ही कहा जाना चाहिए।
इसी प्रकार मुद्रा स्फीति के संबंध में भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमान के अनुसार उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई की दर वित्तीय वर्ष 2024-25 में 4.8 प्रतिशत एवं वित्तीय वर्ष 2025-26 में घटकर 4.2 प्रतिशत रह सकती है। भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई की दर मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों के महंगे होने के चलते ही बढ़ती है, जिसे ब्याज दरों को बढ़ाकर नियंत्रण में नहीं लाया जा सकता है। हेडलाइन मुद्रा स्फीति की दर अक्टूबर 2024 में अपने उच्चत्तम स्तर पर पहुंच गई थी परंतु उसके बाद से लगातार नीचे ही आती रही है। इसी प्रकार, कोर मुद्रा स्फीति की दर भी लगातार नियंत्रण में बनी रही है। केवल खाद्य पदार्थों में के महंगे होने के चलते उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई पर दबाव जरूर बना रहा है। इस प्रकार महंगाई दर के नियंत्रण में आने से अब भारत में ब्याज दरों में कमी का दौर प्रारम्भ हो गया है। आगे आने वाले समय में भी भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में कमी की घोषणा की जाती रहेगी ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है और दिसम्बर 2025 तक रेपो दर में लगभग 100 आधार बिंदुओं की कमी की जा सकती है और रेपो दर घटकर 5.25 प्रतिशत तक नीचे आ सकती है। हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक का कहना है कि देश में आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर रेपो दर में परिवर्तन के बारे में समय समय पर विचार किया जाएगा। भारतीय रिजर्व बैंक ने नीति उद्देश्य को भी निष्पक्ष रखा है परंतु चूंकि ब्याज दरों में अब कमी करने का चक्र प्रारम्भ हो चुका है अतः इसे उदार रखा जा सकता था। इसका आश्य यह है कि आगे आने वाले समय में भी रेपो दर में कमी की सम्भावना बनी रहेगी।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में की गई कमी की घोषणा के बाद अब विभिन्न बैकों को ऋणराशि पर ब्याज दरों को कम करते हुए ऋणदाताओं को लाभ पहुंचाने के बारे में शीघ्रता से विचार करना चाहिए जिससे आम नागरिकों द्वारा बैकों को अदा की जाने वाली किश्तों एवं ब्याज राशि में कुछ राहत महसूस हो सके। इससे अर्थव्यवस्था में भी कुछ गति आने की सम्भावना बढ़ेगी।
दिसम्बर 2024 माह में देश में तरलता में कुछ कमी महसूस की जा रही थी और बैकों के पास ऋण प्रदान करने योग्य फंड्ज की कमी महसूस की जा रही थी। भारतीय रिजर्व बैंक ने तुरंत निर्णय लेते हुए आरक्षित नकदी अनुपात (CRR) को 4.5 प्रतिशत से घटाकर 4 प्रतिशत कर दिया था, जिससे बैकों की तरलता की स्थिति में कुछ सुधार दृष्टिगोचर हुआ था। बैकों के लिए इसे अधिक सरल बनाने की दृष्टि से जनवरी 2025 में भी भारतीय रिजर्व बैंक ने लगभग 1.50 लाख करोड़ रुपए बांड्ज विभिन्न बैकों से खरीदे थे ताकि इन बैकों की तरलता की स्थिति में और अधिक सुधार किया जा सके और बैकिंग सिस्टम में तरलता की वृद्धि की जा सके। उक्त वर्णित उपायों का परिणाम यह है कि आज भारतीय बैकों का ऋण:जमा अनुपात 80.8 प्रतिशत के स्तर पर बना हुआ है और बैकों की लाभप्रदता में भी लगातार सुधार होता दिखाई दे रहा है। विभिन्न बैकों द्वारा अभी तक घोषित किए गए परिणामों के अनुसार, बैकों ने लगभग 1.50 लाख करोड़ रुपए का लाभ घोषित किया है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जरूर परिस्थितियां अभी भी अस्थिर बनी हुई हैं और वैश्विक स्तर पर रुपए पर दबाव बना हुआ है। अभी हाल ही में डॉलर इंडेक्स 109 के स्तर तक पहुंच गया था और 10 वर्षीय यू एस बांड यील्ड भी 4.75 प्रतिशत तक पहुंच गई थी, इससे अन्य देशों की मुद्राओं पर दबाव बढ़ता जा रहा है और आज अमेरिकी डॉलर के मुकाबले में रुपए की कीमत अपने निचले स्तर 87.66 पर पहुंच गई थी। परंतु, आगे आने वाले समय में अमेरिका में भी यदि ब्याज दरों में कमी की घोषणा होती है तो भारत में भी ब्याज दरों में कमी का चक्र और भी तेज हो सकता है। ब्रिटेन एवं कुछ अन्य यूरोपीयन देशों ने भी हाल ही के समय में ब्याज दरों में कमी की घोषणा की है। चूंकि अब कई देशों में मुद्रा स्फीति नियंत्रण में आ चुकी है अतः अब लगभग समस्त देश ब्याज दरों में कमी की घोषणा करते हुए दिखाई दे रहे हैं। इससे अब आने वाले समय में इन देशों में आर्थिक विकास दर में कुछ तेजी आते हुए भी दिखाई देगी। अमेरिकी डॉलर के मजबूत होने के चलते अमेरिका के शेयर बाजार में केवल जनवरी 2025 माह में ही 15,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि निवेशकों द्वारा डाली गई है, जबकि भारत के शेयर बाजार से 2.50 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा निकाली गई है, इससे भी भारतीय रुपए पर दबाव बना हुआ है। परंतु भारतीय रिजर्व बैंक को शायद आभास है कि यह समस्या अस्थायी है एवं भारतीय कम्पनियों की लाभप्रदता में सुधार होते ही विदेशी संस्थागत निवेशक पुनः भारतीय शेयर बाजार में अपने निवेश को बढ़ाएंगे। अमेरिका एवं चीन के बीच छिड़े व्यापार युद्ध का प्रभाव भी भारत पर सकारात्मक रहने की सम्भावना है क्योंकि इससे यदि चीन से अमेरिका को निर्यात कम होते हैं तो सम्भव हैं कि भारत से अमेरिका को निर्यात बढ़ें। भारत से निर्यात बढ़ने पर भारतीय रुपए पर दबाव कम होने लगेगा, जिससे भारतीय रिजर्व बैंक को भारत में रेपो दर को कम करने में और अधिक आसानी होगी।

ऐतिहसिक आँदोलन इन्हीं नेतृत्व में हुआ था : धर्मसंघ और रामराज्य परिषद के संस्थापक थे

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धर्म सम्राट करपात्रीजी महाराज एक महान सन्त, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उनका पूरा जीवन भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की प्रतिष्ठापना और स्वत्व जागरण के लिये समर्पित रहा । इतिहास प्रसिद्ध गौरक्षा आँदोलन उन्हीं के आव्हान पर हुआ था । वे उतना ही भोजन ग्रहण करते थे जितना हाथों में आ जाये । इसलिये “करपात्री महाराज के नाम से प्रसिद्ध हुये ।
संन्यास के पहले उनका नाम हरि नारायण ओझा था। दीक्षा लेकर दसनामी परम्परा के संन्यासी बने तब उनका उनका नाम ” हरिहरानन्द सरस्वती” हुआ । उनमें अद्वितीय विद्वत क्षमता और स्मरण शक्ति थी । वेद, पुराण, अरण्यक ग्रंथ, संहिताएँ, गीता रामायण आदि ऐसा कोई धर्मशास्त्र नहीं जिनका अध्ययन उन्होंने न किया हो । सबके उदाहरण उनके प्रवचनों में होते थे। उनकी इस अद्वितीय विद्वता के कारण उन्हें ‘धर्मसम्राट’ की उपाधि से संबोधित किया गया । भारत के ऐसी विलक्षण विभूति संत स्वामी करपात्री जी महाराज का जन्म श्रावण मास शुक्ल पक्ष द्वितीया संवत् 1964 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिला अंतर्गत ग्राम भटनी में हुआ था । उस वर्ष यह 11 अगस्त 1907 को थी । पिता श्री रामनिधि ओझा परम् धार्मिक और वैदिक विद्वान थे । उनकी शिक्षा काशी में हुई थी । और माता शिवरानी देवी भी धार्मिक एवं संस्कारों के प्रति समर्पित गृहणी थीं। जन्म के समय उनका नाम ‘हरि नारायण’ रखा गया। पिता उन्हें भी काशी भेजकर वैदिक विद्वान बनाना चाहते थे । सात वर्ष की आयु में यज्ञोपवीत संस्कार और 9 वर्ष की आयु में विवाह हो गया । पत्नि महादेवी भी संस्कारित परिवार की थीं। गौना पन्द्रह वर्ष की आयु में हुआ । पर उनका मन घर गृहस्थी में न लगा । वे सोलह वर्ष की आयु में गृहत्याग कर सत्य की खोज में चल दिये और ज्योतिर्मठ पहुँचे। वहाँ शंकराचार्य स्वामी श्री ब्रह्मानंद सरस्वती जी से दीक्षा ली और हरि नारायण से ‘ हरिहर चैतन्य ‘ बने। उनकी स्मरण शक्ति इतनी विलक्षण थी कि एक बार पढ़ लेने के वर्षों बाद भी पुस्तक और पृष्ठ का विवरण दे सकते थे।
  काशी में रहकर नैष्ठिक ब्रम्हचर्य श्री जीवन दत्त महाराज से संस्कृत, षड्दर्शनाचार्य स्वामी श्री विश्वेश्वराश्रम महाराज से व्याकरण शास्त्र, दर्शन शास्त्र, भागवत, न्यायशास्त्र और वेदांत अध्ययन, श्री अचुत्मुनी महाराज से अध्ययन ग्रहण किया। अध्ययन के साथ तपस्वी जीवन शैली अपनाई और साधना से आत्मशक्ति जागरण का अभ्यास किया । चौबीस वर्ष की आयु में दंड धारणकर स्वयं अपना आश्रम स्थापित कर “परमहंस परिब्राजकाचार्य 1008 श्री स्वामी हरिहरानंद सरस्वती श्री करपात्री जी महाराज” कहलाए। 1942 के भारत छोड़ो आँदोलन में संतों की टोली बनाकर शोभा यात्रा निकाली और गिरफ्तार हुये । उस समय की राजनीति में स्वामी जी ने  दो बातें अनुभव कीं । एक तो भारत विभाजन के वातावरण की तीव्रता और दूसरे राजनीति में नैतिकता, साँस्कृतिक वोध और राष्ट्रभाव का अभाव । स्वामी ने समाज में इन दोनों बातों पर जाग्रति लाने के लिये देशव्यापी यात्रा की । संत और समाज सम्मेलन किये लेखन भी किया । उनके संबोधनों और साहित्य में एक ओर राष्ट्रचेतना और गौरव का भान होता और दूसरी ओर धार्मिक कुरीतियों का निवारण भी । स्वामी ने सनातन धर्म को विकृत करने वाले किस्से कहानियों का तर्क और प्रमाण सहित खंडन किया । इन दोनों उद्देश्य पूर्ति के लिये दो संस्थाओं का गठन किया । पहली अखिल भारतीय धर्म संघ और दूसरी रामराज्य परिषद । आखिल भारतीय धर्मसंघ का गठन 1940  में किया जिसका दायरा व्यापक बनाया । इसका उद्देश्य केवल मनुष्य या हिन्दु समाज ही नहीं  प्राणी मात्र में सुख शांति स्थापित करना था ।। उनकी दृष्टि में समस्त जगत और उसके प्राणी सर्वेश्वर, भगवान के अंश हैं और रूप हैं । मनुष्य यदि स्वयं शांत और सुखी रहना चाहता है तो औरों को भी शांत और सुखी बनाने का प्रयत्न  होगा। आज धार्मिक आयोजनों के समापन पर “धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो” यह उद्घोष करने की परंपरा स्वामी करपात्री महाराज ने ही आरंभ की थी ।
 राजनैतिक शुचिता के साथ भारत राष्ट्र  का निर्माण करने के लिये दूसरा संघठन राजनैतिक दल “अखिल भारतीय रामराज्य परिषद” की स्थापना की । इसका गठन 1948 में किया था और 1952 के प्रथम लोकसभा चुनाव में 3 सीटें जीतीं । 1952 के अतिरिक्त 1957 एवम् 1962 के विधानसभा चुनावों में भी इस दल की प्रभावी उपस्थिति रही ।
 गोरक्षा आन्दोलन
स्वामी जी ने देश भर में पदयात्रा की थी वे जहाँ कहीं जाते वे गौरक्षा, गौपालन और गौसेवा पर जोर देते थे । और चाहते थे कि भारत में गौहत्या प्रतिबंधित हो । उन्हें तत्कालीन सरकारों से आश्वासन तो मिले पर निर्णय न हो सका । यह भी कहा जाता है कि इंदिराजी जब सूचना प्रसारण मंत्री थीं तब स्वामी जी से मिलने आईं थीं। उन्होने स्वामी जी को गौहत्या रोकने का आश्वासन भी दे दिया था । पर जब इंदिराजी प्रधानमंत्री बनीं तब यह निर्णय न हो सका । अंत में स्वामी जी ने आँदोलन की घोषणा कर दी । स्वामी जी संतों के प्रतिनिधि मंडल के साथ इंदिराजी से मिलने भी गये । स्वामी जी चाहते थे कि सविधान में संशोधन करके गौ वंश की हत्या पर पूर्ण पाबन्दी लगे । जब बात न बनी तब स्वामी करपात्री जी महाराज के नेतृत्व संतों ने 7 नवम्बर 1966 को संसद भवन के सामने धरना शुरू कर दिया । पंचांग के अनुसार वह दिन विक्रमी संवत 2012 कार्तिक शुक्लपक्ष की अष्टमी थी । जिसे “गोपाष्टमी” भी कहा जाता है .इस धरने में चारों पीठाधीश्वर शंकराचार्य एवं भारत की समस्त संत परंपरा के संत सम्मलित हुये। इनमें जैन, बौद्ध, सिक्ख आदि सभी थे । इस आन्दोलन में आर्यसमाज के लाला रामगोपाल शालवाले और हिन्दू महासभा के प्रधान प्रो॰ रामसिंह जी भी बहुत सक्रिय थे। श्री संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी तथा पुरी के जगद्‍गुरु शंकराचार्य श्री स्वामी निरंजनदेव तीर्थ तथा महात्मा रामचन्द्र वीर के आमरण अनशन ने आन्दोलन में प्राण फूंक दिये थे । उनदिनों श्रीमती इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं। स्वामी करपात्रीजी को आशा थी कि गौहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लग जायेगा । पर उनकी उम्मीद के विपरीत निहत्ते संतों पर पुलिस का गोली चालन हो गया । जिसमें अनेक संतों का बलिदान हुआ । पुलिस ने पूज्य शंकराचार्य तक पर लाठियाँ चलाईं। इस ह्त्याकांड से क्षुब्ध होकर तत्कालीन गृहमंत्री ” गुलजारी लाल नंदा ” ने खेद व्यक्त किया और स्वयं को जिम्मेदार माना । उनके खेद व्यक्त करने के बाद भी  संत ” रामचन्द्र वीर ” अनशन पर अडिग रहे । स्वामी रामचन्द्र वीर का अनशन 166 दिन चला । इतना लंबा अनशन दुनियाँ की पहली घटना थी ।
गौरक्षा आँदोलन में संतों के बलिदान ने स्वामी करपात्री जी महाराज को बहुत क्षुब्ध किया । इसके बाद उन्होंने अपना अधिकांश समय बनारस स्थित अपने आश्रम में ही बिताया। और माघ शुक्ल चतुर्दशी संवत 2038 को केदारघाट वाराणसी में शरीर त्यागा। यह 7 फरवरी 1982 की तारीख थी । स्वामी जी की इच्छानुसार उनकी नश्वर देह को गंगाजी के केदारघाट में ही जल समाधि दी गई|
 उनके द्वारा रचित प्रमुख ग्रंथों में वेदार्थ पारिजात, रामायण मीमांसा, विचार पीयूष, मार्क्सवाद और रामराज्य आदि हैं। उन्होंने अपने ग्रंथो में भारतीय परंपरा, संस्कृति की व्यापकता और प्राचीनता को का बहुत प्रभावी और प्रामाणिक ढंगसे प्रस्तुत किया है । वर्तमान पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद जी उनके ही शिष्य हैं।
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