भारत में आर्थिक विकास दर को 8 प्रतिशत से ऊपर ले जाने के हो रहे हैं प्रयास

Indian-Economy-1.jpg.webp


ग्वालियर: विश्व के कुछ देशों में सत्ता परिवर्तन के बाद आर्थिक क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हुए दिखाई दे रहे हैं। विशेष रूप से अमेरिका में राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प विभिन्न देशों को लगातार धमकी दे रहे हैं कि वे इन देशों से अमेरिका में होने वाले आयात पर कर की दर में वृद्धि कर देंगे। दिनांक 4 फरवरी 2025 से कनाडा एवं मेक्सिको से अमेरिका में होने वाले उत्पादों के आयात पर 20 प्रतिशत एवं चीन से होने वाले आयात पर 10 प्रतिशत का आयात कर लगा दिया है। वैश्विक स्तर पर उक्त प्रकार की उथल पुथल के अतिरिक्त रूस यूक्रेन युद्ध जारी ही है एवं कुछ समय पूर्व तक हमास इजराईल युद्ध भी चलता ही रहा था। वैश्विक स्तर पर उक्त विपरीत परिस्थितियों के बीच भी भारत, अपनी आर्थिक विकास दर को कायम रखते हुए, विश्व की सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बना हुआ है। हां, वित्तीय वर्ष 2024-25 की प्रथम दो तिमाहियों में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर गिरकर 5.2 प्रतिशत एवं 5.3 प्रतिशत क्रमशः के आसपास रही है। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भारत को वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प लिया है। यदि भारत को विकसित राष्ट्र बनाना है तो आगे आने वाले दो दशकों तक आर्थिक विकास दर को 8 प्रतिशत से ऊपर रखना आवश्यक होगा। अतः केंद्र सरकार द्वारा भारत की आर्थिक विकास दर को इस वित्तीय वर्ष की दो तिमाहियों में दर्ज की गई लगभग 5.3 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर को 8 प्रतिशत से ऊपर ले जाने के प्रयास किए जा रहे हैं। 

अभी हाल ही में केंद्र सरकार की वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारामन ने लोक सभा में वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए केंद्रीय बजट पेश किया है। इस बजट के माध्यम से ऐसे कई निर्णय लिए गए हैं जिससे देश की आर्थिक विकास दर पुनः एक बार 8 प्रतिशत से ऊपर निकल जाए। दरअसल, आज देश में उत्पादों की मांग को बढ़ाना अति आवश्यक है जो पिछले कुछ समय से लगातार कम होती दिखाई दे रही है। इसके लिए आम नागरिकों के हाथों में अधिक धनराशि उपलब्ध रहे, ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं। जैसे, आयकर की सीमा को वर्तमान में लागू सीमा 7 लाख रुपए प्रतिवर्ष से बढ़ाकर वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए 12 लाख रुपए प्रतिवर्ष कर दिया गया है। साथ ही, आय पर लगने वाले कर की दर को भी बहुत कम कर दिया गया है। इस प्रकार लगभग 1 करोड़ मध्यमवर्गीय करदाताओं को लगभग 1.10 लाख रुपए तक प्रतिवर्ष का अधिकतम लाभ होने जा रहा है। इस राशि से विभिन्न उत्पादों का उपभोग बढ़ेगा एवं देश की आर्थिक विकास दर में तेजी दिखाई देगी। हालांकि इससे केंद्र सरकार के बजट पर एक लाख करोड़ रुपए का भार पड़ेगा। परंतु, फिर भी बजटीय घाटा वित्तीय वर्ष 2024-25 में 5.8 प्रतिशत से घटकर वित्तीय वर्ष 2025-26 में 5.4 प्रतिशत रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। अतः देश की वित्तीय स्थिति को सही दिशा दिए जाने के सफल प्रयास हो रहे हैं।     

विनिर्माण के क्षेत्र को गति देना भी आज की आवश्यकता है। राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन भी चलाए जाने का प्रस्ताव है। आज देश में एक करोड़ से अधिक सूक्ष्म, मध्यम एवं लघु उद्योग हैं जो 7.5 करोड़ नागरिकों को रोजगार उपलब्ध कर रहे हैं एवं भारत के कुल उत्पादन में 36 प्रतिशत का योगदान दे रहे हैं तथा देश से होने वाले विभिन्न उत्पादों के निर्यात में भी 45 प्रतिशत की भागीदारी इन उद्योगों की रहती हैं। कुल मिलाकर भारत आज अपनी इन कम्पनियों को वैश्विक स्तर पर ले जाना चाहता है। भारत में आज निर्यात प्रोत्साहन मिशन को चालू किया जा रहा है ताकि भारत की कम्पनियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिले। इसी प्रकार भारत को वैश्विक स्तर पर खिलौना उत्पादन के केंद्र के रूप में विकसित किये जाने के प्रयास भी किये जा रहे हैं। केवल एक दशक पूर्व भारत में खिलौनों का शुद्ध आयात होता था आज भारत खिलौनों का शुद्ध निर्यातक देश बन गया है। पिछले 10 वर्षों में भारत में खिलौनों के निर्यात में 200 प्रतिशत की वृद्धि एवं खिलौनों के आयात में 52 प्रतिशत की कमी दर्ज हुई है। भारत ने 15 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि के खिलौनों का निर्यात किया है।

भारत के सकल घरेलू उत्पाद में पर्यटन क्षेत्र का योगदान लगभग 5 प्रतिशत है। विशेष रूप से वाराणसी, श्री अयोध्या धाम, उज्जैन एवं महाकुम्भ, प्रयागराज में पर्यटकों के लिए विकसित की गई आधारभूत सुविधाओं के बाद इन सभी शहरों की पहचान धार्मिक पर्यटन के केंद्र के रूप में पूरे विश्व में कायम हुई है। आज आध्यात्म की ओर पूरा विश्व ही आकर्षित हो रहा है अतः भारत में अन्य धार्मिक केंद्रों को भी इसी तर्ज पर विकसित किया जाना चाहिए जिससे विभिन्न देशों के नागरिक भी इन धार्मिक स्थलों पर आ सकें एवं जिससे देश के  धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिल सके। वित्तीय वर्ष 2025-26 के बजट में पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए 2,541 करोड़ रुपए की राशि का आबंटन किया गया है जबकि वित्तीय वर्ष 2024-25 में 850 करोड़ रुपए की राशि आबंटित की गई थी। भारतीय पर्यटन उद्योग का आकार 25,600 करोड़ अमेरिकी डॉलर का है, जो कि बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। उत्तर पूर्व के राज्यों से लेकर जम्मू एवं कश्मीर तक 50 नए पर्यटन केंद्र विकसित किए जा रहे हैं। यह ऐसे पुराने पर्यटन केंद्र हैं जिनकी पहचान कहीं खो गई है। अब इन पर्यटन केंद्रों पर आधारभूत सुविधाओं को विकसित किये जाने की योजना बनाई जा रही है। इन केंद्रो पर पहुंच को आसान बनाने के उद्देश्य से यातायात के साधनों का विकास किया जाएगा, सर्वसुविधा सम्पन्न होटलों का निर्माण किया जाएगा, एवं इन स्थलों पर अन्य प्रकार की समस्त सुविधाएं पर्यटकों को उपलब्ध कराई जाएंगी। साथ ही, भारत में मेडिकल पर्यटन को भी बढ़ावा दिया जा सकता है क्योंकि विकसित देशों की तुलना में भारत में विभिन्न बीमारियों का उच्चस्तरीय इलाज बहुत ही सस्ते दामों पर उपलब्ध है। और फिर, भारतीय नागरिकों के डीएनए में ही सेवा भावना भरी हुई है, अतः इन देशों के नागरिकों को भारत में इलाज कराने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। वैश्विक स्तर पर मेडिकल पर्यटन का आकार 13,700 करोड़ अमेरिकी डॉलर का है। अतः भारत में मेडिकल पर्यटन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इससे पर्यटन के क्षेत्र में रोजगार के करोड़ों नए अवसर निर्मित किए जा सकते हैं।

इसी प्रकार भारत में सुरक्षा के क्षेत्र में भी अपार सम्भावनाएं मौजूद हैं। भारत अभी तक अपनी सुरक्षा सम्बंधी आवश्यकताओं के लिए सुरक्षा उपकरणों का बड़ी मात्रा में आयात करता रहा है। परंतु, पिछले कुछ वर्षों में सुरक्षा के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए चलाए जा रहे अभियान का स्पष्ट असर अब दिखाई देने लगा है और भारत आज मिसाईल सहित कई सुरक्षा उपकरणों का निर्यात करने लगा है। वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए केंद्र सरकार के बजट में सुरक्षा क्षेत्र के लिए 4.92 लाख करोड़ रुपए की भारी भरकम राशि का आबंटन किया गया है, साथ ही, पूंजीगत खर्चों में भी सुरक्षा क्षेत्र के लिए 2 लाख करोड़ रुपए के बजट का अतिरिक्त प्रावधान किया गया है। इसी प्रकार, देश में अधोसंरचना को और अधिक मजबूत बनाने के उद्देश्य से पूंजीगत खर्चों को भी 11.20 लाख करोड़ रुपए के स्तर पर रखा गया है। साथ ही, सरकारी उपक्रमों एवं निजी क्षेत्र की कम्पनियां भी अपने पूंजी निवेश को बढ़ाने का प्रयास यदि करती हैं एवं विदेशी कम्पनियों द्वारा किए जाने वाले विदेशी निवेश को मिलाकर पूंजीगत मदों पर खर्चे को 15 लाख करोड़ रुपए की राशि तक ले जाया जा सकता है। इसके लिए देश में ईज आफ डूइंग बिजनेस को अधिक आसान बनाना होगा एवं पुराने कानूनों को हटाकर उद्योग मित्र कानून बनाए जाने की आवश्यकता है।

चूंकि विश्व के कई देशों, विशेष रूप से विकसित देशों, में प्रौढ़ नागरिकों की संख्या लगातार बढ़ रही है अतः इन देशों में युवाओं की संख्या में कमी के चलते विभिन्न संस्थानों में कार्य करने वाले नागरिकों की कमी हो रही है। अतः भारत को पूरे विश्व में कौशल से परिपूर्ण युवाओं के केंद्र के रूप में विकसित किया जा सकता है। जापान, ताईवान, इजराईल, वियतनाम सहित कई विकसित देशों ने तो भारत से कौशल से परिपूर्ण इंजनीयर्स, डॉक्टर एवं नर्सों की मांग भी की है। आज भारत पूरे विश्व को ही कौशल से परिपूर्ण युवाओं को उपलब्ध कराने की क्षमता रखता है। साथ ही, देश में रोजगार के अधिकतम अवसर निर्मित हों, इसके प्रयास भी किए जा रहे हैं। विशेष रूप से रोजगार उन्मुख क्षेत्रों, यथा, कृषि, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों (टेक्स्टायल उद्योग, फूटवेयर उद्योग, खिलोना उद्योग, पर्यटन उद्योग, आदि सहित) एवं सेवा क्षेत्र पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। साथ ही, स्टार्ट अप को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 10,000 करोड़ रुपए का विशेष फंड बनाया गया है ताकि स्टार्ट अप को भारत में सफल बनाया जा सके। देश में स्टार्ट अप के माध्यम से भी लाखों नए रोजगार निर्मित हो रहे हैं। इस फंड में केंद्र सरकार एवं निजी क्षेत्र ने मिलकर भागीदारी की है। अभी तक 1,100 से अधिक स्टार्ट अप ने इस फंड का लाभ उठाया है। इसी प्रकार, केंद्र सरकार चाहती है कि वैश्विक स्तर पर भारत आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स (एआई) का केंद्र बने। एआई के क्षेत्र में भारतीय इंजीनियरों में कौशल विकास के उद्देश्य से वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए 500 करोड़ रुपए की राशि उपलब्ध कराई जा रही है एवं इस सम्बंध में 13 नए कौशल विकास केंद्रों की स्थापना भी की जा रही है। 

देश में हाल ही के समय में सरकारी कम्पनियों की कार्यप्रणाली में बहुत सुधार हुआ है एवं अब इन कम्पनियों की लाभप्रदता में अतुलनीय सुधार दिखाई दिया है और आज यह कपनियां केंद्र सरकार को लाभांश की मद में भारी भरकम राशि प्रदान करने लगी हैं। वरना, एक समय था जब प्रतिवर्ष केंद्र सरकार को इन कम्पनियों को चलायमान रखने के उद्देश्य से भारी भरकम राशि का निवेश करना होता था। वित्तीय वर्ष 2025-26 में भारतीय रिजर्व बैंक सहित केंद्र सरकार के विभिन्न उपक्रमों द्वारा केंद्र सरकार को 2.56 लाख करोड़ रुपए की राशि का लाभांश प्रदान करने की सम्भावना व्यक्त की गई है। इसी प्रकार, केंद्र सरकार के कई उपक्रमों द्वारा अपनी संपतियों का मौद्रीकरण किया जा रहा है। केंद्र सरकार के इन उपक्रमों द्वारा लगभग 6 लाख करोड़ रुपए की राशि का मौद्रीकरण किया गया है। वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए विनिवेश के लक्ष्य को भी बढ़ाकर 47,000 करोड़ रुपए किया गया है जो वर्ष 2024-25 के लिए संशोधित अनुमान के अनुसार 33,000 करोड़ रुपए का था।  

कांग्रेस पब्लिक के सामने एक्सपोज हो चुकी है

images-2.jpeg
पंकज कुमार झा
कल नगरीय निकाय चुनाव के लिए छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने भाजपा द्वारा जारी घोषणा पत्र पर आशा के अनुरूप ही प्रतिक्रिया दी है। इससे अधिक उनके पास कहने को और कुछ है भी नहीं। कांग्रेस ने ‘अटल विश्वास पत्र’ में अटलजी के नाम पर सवाल उठाये हैं। यह उनकी खिसियाहट मात्र है।
भाजपा को अपने संस्थापक अध्यक्ष, भारत रत्न अटलजी पर गर्व है। अटलजी छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माता भी हैं। उनके शताब्दी वर्ष पर स्वाभाविक ही घोषणा पत्र उन्हें समर्पित किया गया है। कांग्रेस के पास आज अगर ऐसे किसी चेहरे का अकाल है, तो वह क्या नाम रखेगी भला?
तरीके से कांग्रेस को भी कल जारी होने वाले अपने घोषणा पत्र का नाम अपने संस्थापक ‘एलन ऑक्टवियो ह्यूम’ को समर्पित करते हुए जारी करना चाहिये। उसे शर्म क्यों आती है अपने पहले अध्यक्ष का नाम लेते हुए? क्यों वह अपने स्थापना दिवस पर भी अपने पहले एलनजी को भूल जाती है?
ह्यूमजी का जिक्र करने से कांग्रेस का असली इतिहास लोगों को पता चल जायेगा, इससे डरती है कांग्रेस। अगर यह डर है तो सोनियाजी या राहुलजी के नाम पर ही ले आये मैनिफेस्टो। उन्हें तो बहुत लोकप्रिय मानती है न कांग्रेस! किसने रोका हुआ है उन्हें?
मैं अक्सर एक बात कहता हूं कि अपने असली इतिहास वाले दो ‘ओक्टावियो’ का योगदान हमेशा छिपाती है कांग्रेस। एक थे उसके संस्थापक ओक्टावियो ह्यूम, और दूसरे थे ऑक्टावियो क्वात्रोकी। दोनों को उनके योगदान के अनुसार याद करना चाहिए कांग्रेस को।
यह सही है कि ‘काठ की हांडी’ बार-बार नहीं चढ़ती। कांग्रेस की हांडी को अब पहचाना जा चुका है। जनता ने इनकी हांडी तो तोड़ कर फेक दिया है।
इनके 2018 के कथित जन घोषणा पत्र का हश्र तो हम सब देख ही चुके हैं। लेकिन लोग शायद भूल गए हैं कि कांग्रेस ने प्रदेश में 2019 में निकाय चुनाव में भी एक घोषणा पत्र जारी किया था। जैसे 2018 का कथित जन घोषणा पत्र भारतीय राजनीति के इतिहास में ठगी का सबसे बड़ा दस्तावेज साबित हुआ था, उसी तरह निकायों का इनका घोषणा पत्र छल, प्रपंच और फरेब का ‘डपोशंख पत्र’ था।
अब अपने नये ढकोसला पत्र जारी करने से पहले कांग्रेस को यह रिपोर्ट कार्ड भी देना चाहिए कि निकाय चुनाव की घोषणाओं पर क्या-क्या किया, जबकि संविधान की हत्या कर, कानून बदल कर कांग्रेस ने सभी निकायों पर कब्जा कर लिया था।
अगर कुछ भी नहीं है उनके पास नगरीय निकाय 2019 के चुनाव घोषणा पत्र पर कहने को, तो कल के उनके दस्तावेज का नाम उन्हें ‘क्षमा याचना पत्र’ रखना चाहिये। यह सलाह अनुचित तो नहीं है न प्रदेश कांग्रेस के लिए?

दिल्ली का हाल

images-1.jpeg
मनिंद्र कुमार झा
मैं दिल्ली का वासी हूँ। पिछले 30 साल से वोटर भी रहा हूँ। स्कूल का मॉडल ये है कि पूछिए मत 1233 स्कूल में से 833 में प्रिंसिपल ही नहीं। टीचर सारे एडहॉक लगाए हैं । 2013 के बाद एक बार भी नियमित टीचरों की बहाली नहीं हुई। बिल्डिंग नहीं टीचर पढ़ाते हैं । 20 हजार की टीचर वैकेंसी खाली है। स्वास्थ का हाल बताऊं तो जा के देखिए किसी दिल्ली के अस्पताल में अब मुश्किल कुछ दवा मिलती है। बाकी दवा मरीज को बाहर से लेनी पड़ती है। बिना घूस दिए आपका अस्पताल में नंबर नहीं लगता। मोहल्ला क्लिनिक में किसी बड़ी बीमारी का इलाज हो ही नहीं सकता तो और पिछले 10 साल में दिल्ली की आबादी 1.5 करोड़ से 3 करोड़ हो गई इस हिसाब से हॉस्पिटल भी दूने होने थे लेकिन मुश्किल से 2 हॉस्पिटल इन्होंने नए बनवाए हैं।बिजली फ्री केवल उनके लिए हैं जो 200 यूनिट तक बिजली चलाते हैं ।खुद केजरीवाल कहता है 17 लाख हाउस होल्ड सब्सिडी ले रहे है। 3 करोड़ के हिसाब से 60 लाख हाउसहोल्ड हुए। यानी 43 लाख नहीं ले रहे।
उनसे पूछिए कि बिजली के बिल पे कितना सरचार्ज लगता है। रेट क्या है? पानी के लिए तो केवल ये कहना काफी होगा कि पानी कितना साफ हो कर आता है जा कर किसी प्लांट से पता कीजिए। एलम किसी प्लांट के पास है ही नहीं। खत्म हो गया है। और बिजवासन का वीडियो तो आप गूगल कर लें। ट्रांसपोर्ट की भी सच्चाई सुन लीजिए । जहां मेट्रो चलने लगी है वहां से बस हटा कर उन इलाकों में लगा दिया जहां मेट्रो नहीं चलती नतीजा उस इलाके में छोटी दूरी जाने वाले जिनको एक या दो स्टॉप जाना है आधा घंटा से 40 मिनट वेटिंग हो गया है।आबादी दूनी हो गई बस घट गई। बिजली बिल न चुकता होने की वजह से बस बाहर नहीं निकल पाती क्योंकि वो चार्ज कहां करें। मैं तो भुगत रहा हूं । बज बजाती नाली टूटे सड़क और थोड़ी सी पानी में डूब जाती दिल्ली देख कर बस रोना आता है। आप का सपोर्टर होना तो ठीक है पर जिस ईमानदार आदमी का चोगा केजरीवाल ने ओढ़ा था वो भी उतर चुका है। ठग आदमी जनलोकपाल की बात कर के आया था। खुद पर आरोप लगे जेल से रह कर केस लड़ा। मुख्यमंत्री की कुर्सी पकड़े रहा ।इतना कौन गिरता है भाई।

मध्यप्रदेश में एक नहीं, तीन थीं भोजशालाएँ

1-2-2.jpeg

विजय मनोहर तिवारी

परमार राजवंश में राजा भोज ने अपनी राजधानी धार में ही भोजशाला का निर्माण नहीं कराया था। ऐसी दो और भोजशालाएँ थीं, जिन्हें ध्वस्त कर दिया गया था। पहली भोजशाला थी-उज्जैन में, दूसरी धार में और तीसरी मांडू में। राजा भोज के समय इनके नाम भोजशाला नहीं थे। ये संस्कृत में भारत की ज्ञान परंपरा के महत्वपूर्ण शिक्षा केंद्र थे, जिनका मूल नाम था-सरस्वती कंठाभरण।

ग्यारहवीं सदी में अपने निर्माण के बाद तीन सौ वर्षों तक ये केंद्र सक्रिय रहे। परमारों के पराभव के बाद इनका वैभव भी इस्लामी आक्रांताओं के हाथों ध्वस्त कर दिया गया। उज्जैन परमार राजाओं की पहली राजधानी थी, जिसे राजा भोज धार लेकर आए। धार का मूल नाम धारा नगरी है और मांडू उनके समय “मंडपदुर्ग’ के रूप में प्रतिष्ठित पर्वतीय मनोरम केंद्र था।

साल 2000-2001 में मुझे परमार राजवंश और उनके महान रचनात्मक योगदान पर तीन दशक तक अध्ययन और शोध करने वाले भारतीय मुद्रा एवं मुद्रिका अकादमी के निदेशक डॉ. शशिकांत भट्ट के साथ इन तीनों भोजशालाओं को निकट से देखने का अवसर मिला था। वह वाकई रोमांचकारी अनुभव था, जिनके प्रमाण दस्तावेजों में भी बिखरे हुए हैं।

उज्जैन में कहां
————-

महाकाल मंदिर से करीब एक किलोमीटर दूर अनंत पेठ मोहल्ले में 1990 के दशक तक एक उपेक्षित स्मारक था, जिसका डिजाइन बिल्कुल धार की प्रसिद्ध भोजशाला जैसा है। डॉ. भट्‌ट इतिहास के विद्यार्थियों को लेकर यहाँ कई बार आए थे। उनके अनुसार कोई नहीं जानता कि कब इस पर किसी इंतजामिया कमेटी का साइन बोर्ड टंग गया और पुरातत्व विभाग का यह लावारिस स्मारक नाजायज कब्जे में चला गया। मैंने इसके भीतर देखा कि किसी प्राचीन मंदिर के स्तंभों को निर्माण सामग्री के रूप में इस्तेमाल किया गया था, जिन्हें ताजे हरे गाढ़े ऑइल पेंट से पोता गया था।

इतिहास के प्रसिद्ध विद्वान भगवतीलाल राजपुरोहित की पुस्तक “भोजराज’ में ऐतिहासिक तथ्यों के साथ यह वर्णन है कि धार के समान ही उज्जैन और मांडू में भी राजा भोज ने संस्कृत की पाठशालाएं निर्मित कराई थीं। उज्जैन में वह शिप्रा के पूर्वी तट पर “बिना नींव की मस्जिद’ कहलाता है। इंतजामिया कमेटी के साइन बोर्ड पर इसे मस्जिद बगैर नींव ही लिखा गया। यानी एक ऐसा स्मारक जो पहले से रहा होगा, अलग से नींव की आवश्यकता ही नहीं थी।

मांडू में कहाँ
———–

शाही परिसर के लंबे किंतु विस्तृत क्षेत्र के एक आखिरी कोने पर दिलावर खाँ का मकबरा है। “विक्रम स्मृति ग्रंथ’ में एक अध्याय है-मांडव के प्राचीन अवशेष। इसमें लिखा है कि मकबरा 1405 में दिलावर खां ने बनवाया था। किंतु मकबरे की दक्षिणी दीवार के ढहने से नटराज शिव और देवियों की अनेक प्रतिमाओं सहित शिलालेख के काले पाषाण के टुकड़े मिले थे। सरस्वती की एक खंडित प्रतिमा भी यहीं मिली थी। उज्जैन में हुई एक संगोष्ठी में डॉ. भट्‌ट “परमारों की तीन भोजशालाएं’ विषय पर शोध पत्र भी पढ़ा था। किंतु मीडिया की उपेक्षा के कारण जनसामान्य में यह तथ्य आ नहीं पाए।

इंदौर के पुरातत्व संग्रहालय के पुस्तकालय में एक पुस्तक है-“धार एंड मांडू।’ 1912 में मेजर सी.ई. लुआर्ड द्वारा लिखी गई इस किताब में दिलावर खां के मकबरे की निर्माण सामग्री के आधार पर उसने इसे एक मुस्लिम इमारत के रूप में स्वीकार ही नहीं किया है। वह कहता है कि यहां कभी मंदिर था।

कौन था दिलावर खाँ
———–

दिल्ली में काबिज तुगलकों के समय 1392 में दिलावर खाँ गौरी को मालवा के नियंत्रण के लिए भेजा गया था। अलाउद्दीन खिलजी के समय परमार राजवंश के आखिरी राजा महलकदेव की पराजय के बाद वे मांडू के किले पर काबिज हो चुके थे। तुगलकों के खात्मे के बाद 1401 में मालवा में दिलावर खाँ ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया। संभवत: पहले ही ध्वस्त किए जा चुके परमारों के इन महान् स्मारकों को उसी मलबे से एक साथ मस्जिद और मकबरों की शक्ल दिलावर खां के समय दी गई। मांडू के हिंडोला महल, अशर्फी महल और जहाज महल में प्राचीन हिंदू भवनों के ही पत्थरों का उपयोग आज भी साफ दिखाई देता है। मांडू म्युजियम में इस्लामी दौर के विध्वंस के सबूत भी देखे जा सकते हैं।

राजा भोज का रचना विश्व
————

संग्रहालय की लाइब्रेरी में 417 पेज का यह शोध ग्रंथ भी भगवतीलाल राजपुरोहित की रचना है। इसके विभिन्न अध्यायों में राजा भोज के महान निर्माण कार्यों की चर्चा है। वे कहते हैं कि राजा भोज स्वयं एक कवि थे। उन्होंने उच्च कोटि के 60 ग्रंथों की रचना स्वयं की थी। उनकी विद्वानों की परिषद में पाँच सौ से अधिक सृजनशील लोग थे। इनके लिए ही धार में सरस्वती कंठाभरण या शारदासदम् नाम की एक सभा का निर्माण किया गया था। इसके पेज 309 पर शारदासदम को भारती भवन भी कहा गया है। यहीं 1034 में राजा भोज ने वाग्देवी की प्रतिमा प्रतिष्ठित कराई थी, जो लंदन के ब्रिटिश म्युजियम में है। यह शोध ग्रंथ हमें बताता है कि धार की तरह ही उज्जैन में भी सरस्वती कंठाभरण के नाम से एक प्रासाद निर्मित किया गया था, जिसका गर्भग्रह प्रशस्तियों के शिलाखंडों से भरा हुआ था।

गुजरात के राजा जय सिंह सिद्धराज का उज्जैन आगमन: राजपुरोहित के अनुसार राजा जयसिंह सिद्धराज 1132 में यहाँ आए थे और उन्होंने राजा भोज द्वारा लिखित विविध विषयों के ग्रंथ स्वयं देखे थे। यही नहीं, सरस्वती कंठाभरण के नाम से भी राजा भोज ने दो ग्रंथ लिखे थे। एक व्याकरण का और दूसरा काव्यशास्त्र का। पेज 315 पर उल्लेख है कि मंडपदुर्ग के छात्रावास के अध्यक्ष गोविंद भट्‌ट के पुत्र धनपति भट्‌ट को भोज ने भूमिदान की थी। एक छात्रावास का संदर्भ यह संकेत करता है कि मांडू में भी कोई विद्यापीठ अवश्य रही होगी।

scroll to top