विराट और भव्य भारत का होगा दर्शन, सज्जनशक्तियों का अनोखा संगम

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डॉ.देवकुमार पुखराज

हैदराबाद : प्रयागराज में चल रहे आध्यात्मिक महाकुंभ के बीच दक्षिण का राज्य कर्नाटक का सेडम शहर एक वैश्विक सांस्कृतिक महाकुंभ के लिए तैयार हो रहा है। कलबुर्गी जिले के सेडम में 29 जनवरी से आरंभ हो रहे 9 दिवसीय आयोजन का नाम है- भारतीय संस्कृति उत्सव-7। आयोजन का थीम है- प्रकृति केन्द्रित विकास। भारत विकास संगम और विकास अकादमी ने संयुक्त रुप से इसे आयोजित किया है। निमंत्रण पत्रिका पर ऊपर में लिखा है- सज्जन शक्तियों का अनोखा संगम।

भारत विकास संगम का यह आयोजन हर तीसरे साल होता है। अबतक छह आयोजन हो चुके हैं। सातवां संस्कृति उत्सव श्री कोत्तल बसवेश्वर भारतीय शिक्षण समिति की स्थापना के पचास साल पूरे होने के उपलक्ष्य में किया जा रहा है। 28 जनवरी को आयोजन के निमित्त दो शोभायात्राएं निकलेंगी। पहली शोभायात्रा कलबुरगी में सुबह 09 बजे शुरू होगी ठीक उसी समय सेडम में एक दूसरी शोभायात्रा शिवशंकर शिवाचार्य स्वामीजी के सान्निध्य में निकाली जाएगी।

*कैसा होगा भारतीय संस्कृति उत्सव-*
भारतीय संस्कृति उत्सव की संचालन समिति के राष्ट्रीय संयोजक श्री माधव रेड्डी यड्मा के मुताबिक सेडम के प्रकृति नगर में 29 जनवरी से शुरू होकर 6 फरवरी तक चलने वाला मुख्य समारोह 240 एकड़ विस्तृत भूमि पर होगा। इसमें विविध प्रकार के स्वदेशी उत्पादों के 900 स्टॉल होंगे। 9 थीम एक्जीविशन लगेंगे। अलग-अलग क्षेत्रों के 90 विशेषज्ञों के वैचारिक सत्र होंगे। उम्मीद की जा रही है कि 25 लाख विजिटर्स इस दौरान यहां आएंगे। व्यवस्था संभालने के लिए नौ हजार स्वयंसेवकों की तैनाती रहेगी।
उत्सव का आयोजन जिस विशाल परिसर में हो रहा है, जिसका नाम महान संत श्री सिद्धेश्वर स्वामी जी की स्मृति में प्रकृति नगर रखा गया है। इसमें 24 एकड़ भूमि पर 70 हजार लोगों के बैठने के लिए सभागार बनाया जा रहा है जिसमें सभी 9 दिन मुख्य समारोह होंगे। सायं काल में प्रत्येक दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम भी इसी के मुख्य मंच से होगा। इसके अलावे दो- दो हजार लोगों के बैठने की क्षमता वाले यनिगुंडी माते मनिकेश्वरी मंडप और जम्बलदिन्नी सभा मंडप भी तैयार हो रहा है। कृर्षि पद्धति औऱ एकीकृत जैविक खेती के लिए 11 एकड़ में कृषि लोक है। विज्ञान प्रदर्शनी के लिए 6 एकड़ आवंटित है। कलालोक में विविध कार्यशालाएं और प्रदर्शनियों के लिए दो एकड़ भूमि आवंटित है।

*किस दिन क्या होगा खास-*
9 दिनों तक चलने वाले महोत्सव में अलग-अलग दिन अलग-अलग सम्मेलन होने हैं। पहला दिन मातृ शक्ति सम्मेलन होना है, जबकि दूसरे दिन शैक्षणिक सम्मेलन के नाम रहने वाला है। इसी तरह युवा सम्मेलन तीसरे दिन और ग्राम कृषि सम्मेलन चौथे दिन प्रस्तावित है। आहार आरोग्य सम्मेलन के लिए 2 फरवरी ( पांचवा दिन) की तिथि निर्धारित है और उद्योग स्वयं उद्योग के लिए छठा दिन। सातवें दिन पर्यावरण सम्मेलन, आठवें दिन सेवा शक्ति सम्मेलन और अंतिम यानि 9वें दिन देश-धर्म- संस्कृति सम्मेलन होगा। समापन के दिन सायं काल में अनिवासी भारतीयों का सम्मान समारोह भी होगा। 7 फरवरी को एक विशेष आयोजन हो रहा है, जहां देश के जाने-माने विचारक-चिंतक और भारत विकास संगम के संस्थापक श्री के.एन गोविंदाचार्य के अभिनंदन एवं सहत्र चंद्र दर्शन कार्यक्रम भी आयोजित है।

*कौन- कौन होंगे विशेष आकर्षण-*
भारतीय संस्कृति उत्सव के लिए विविध प्रकार के प्रचार सामग्रियां हिंदी, अंग्रेजी, कन्नड और तेलुगू भाषा में छपी हैं। मुख्य आमंत्रण पत्र 52 पेज का है, जिसमें हर दिन होने वाले कार्यक्रमों की समय सारणी अतिथियों के नाम सहित प्रकाशित है। अतिथियों में जो नाम प्रमुख हैं और चर्चित हैं, उनमें पूर्व राष्ट्रपति श्रीरामनाथ कोविंद, भारत रत्न क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर, इंफोसिस वाली श्रीमती सुधा मूर्ति( सांसद), कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरामैया, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले, श्रीराम मंदिर ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष गोविंद गिरि जी महाराज, पूर्व जस्टिस शिवराज वी पाटिल, इसरो प्रमुख डॉ. एस सोमनाथ, एनएएफटी के चेयरमैन डॉ. अनिल सहस्त्रबुद्धे, यूजीसी के पूर्व चेयरमैन डॉ. जे एस राजपूत, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष विजयेन्द्र येदियरप्पा, अभिनेता रमेश अरविंद, लेखक चक्रवर्ती सुलीबेले, डॉ. नूमल मोमिन, पद्मश्री दीपा मलिक, पुणे के पद्मश्री मुरलीकांत पेटकर और ब्रह्माकुमारीज के सचिव डॉ. मृत्युंजय, केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी, शिवराज सिंह चौहान, मनसुख मंडविया, एच डी कुमारस्वामी, सुश्री शोभा करंदलाले, वी सोमन्ना, तेलंगाना के राज्यपाल जिष्णुदेव शर्मा, पद्मभूषण डॉ. इंदरजीत कौर, दीनदयाल शोध संस्थान के श्री अतुल जैन, जल पुरुष राजेन्द्र सिंह, योगऋषि बाबा रामदेव, मिलेटमैन डॉ. खादर वली, कैप्टन गोपीनाथ, पद्मश्री नीलिमा मिश्रा, पद्मश्री जमुना ( रांची), पद्मश्री महेश शर्मा( झाबुआ), विधा भारती के श्री के.एन. रघुनंदन, झारखंड के विधायक सरयू राय, जीवन विद्या के डॉ. गणेश बागड़िया, वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री रामबहादुर राय प्रमुख हैं।

*आयोजन के मूल सूत्रधार कौन-कौन-*
भारतीय संस्कृति उत्सव का सातवां संस्करण जिनके दिमाग की उपज है उनका नाम है श्री के.एन गोविंदाचार्य। बताने की जरुरत नहीं है कि वे कभी संघ के प्रचारक थे और बीजेपी के महासचिव (संगठन) भी। उन्होंने ही वर्ष 2004 में भारत विकास संगम की स्थापना की। उनके संकल्प को जमीन पर उतारने के काम में वर्षों से लगे हैं- सेडम निवासी पूर्व सांसद और जाने-माने समाजसेवी श्री बसवराज पाटिल। पूरे आयोजन को विजयपुर, कर्नाटक वाले श्री सिद्धेशवर स्वामीजी का संरक्षण प्राप्त है। हैदराबाद के श्री माधव रेड्डी आयोजन के राष्ट्रीय संयोजक हैं। अक्षर वनम नामक उनका शैक्षणिक प्रकल्प बहुत ही प्रसिद्ध है।

*उत्सव को लेकर क्या कहते हैं गोविंदाचार्य-*
उत्सव के प्रेरणास्त्रोत श्री के एन गोविंदाचार्य सभी को आयोजन में सहभागी बनने का अनुरोध करते हुए कहते हैं, देखें कि समाज में सज्जन शक्तियां कितनी सक्रिय हैं और विविध क्षेत्रों में कितना अच्छा काम कर रही हैं। मिलें उन तमाम लोगों से जो आपके जीवन में एक नया आयाम जोड़ सकते हैं। समझें कि भारत के विकास में समाज की कितनी मह्त्वपूर्ण भूमिका है। जरुरत है कि समाज आगे बढ़कर सरकार को रास्ता दिखाए। गोविंदाचार्य कहते हैं- यह उत्सव भारत की प्राचीन संगम परंपरा का ही नया रुप है। सज्जन शक्तियों के बीच संवाद, सहमति और सहकार का माहौल बने इसके लिए प्रयास है। वे आग्रह करते हैं कि सभी इस आयोजन का हिस्सा बनें और भारत के एक अदभूत स्वरुप का अपनी आंखो से स्वयं साक्षात्कार करें।

इंडिया टुडे सर्वेक्षण 2025

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आम आदमी पार्टी (AAP) के बारे में यह सवाल कि क्या वह अब भी ‘आम आदमी’ की उस सोच का प्रतिनिधित्व करती है, जिस सोच को आगे रखकर 10 साल पहले उसका निर्माण हुआ था। दिल्ली वालों के बीच हुए सर्वेक्षण में 56 प्रतिशत लोग मानते हैं कि आज पार्टी उस सोच के साथ खड़ी नहीं है।
सर्वेक्षण के आंकड़े और धारणा

• 56% लोग मानते हैं कि AAP अब ‘आम आदमी’ का वैसे प्रतिनिधित्व नहीं करती जैसा उसने शुरुआत में किया था।
• केवल 14% लोग “कुछ हद तक सहमत हैं।
• 07% लोग तटस्थ हैं, और 8% “कुछ हद तक असहमत हैं।

AAP का बदलाव

• AAP ने एक भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलन से शुरुआत की और खुद को पारदर्शिता, जवाबदेही, और आम आदमी से जुड़े मुद्दों पर केंद्रित पार्टी के रूप में पेश किया।
• सत्ता में आने और शासन की चुनौतियों ने AAP को वास्तविक राजनीति के करीब ला दिया, जिससे उसकी विशिष्ट पहचान धुंधली हो सकती है।
मुख्य विशेषताएं
• AAP के समर्थकों का कहना है कि पार्टी आज भी शिक्षा सुधार, सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं का निर्माण, मुफ्त बिजली-पानी, और महिलाओं की सुरक्षा जैसे आम आदमी के मुद्दों पर काम कर रही है।
• यह दलील दी जाती है कि विपक्षी दल सिर्फ AAP पर आरोप लगाते हैं लेकिन आम आदमी के मुद्दों पर चर्चा नहीं करते।
जनता की धारणा में चुनौती
• विपक्षी दलों ने AAP को एक पारंपरिक राजनीतिक पार्टी की तरह दिखाने की कोशिश की है।
• भ्रष्टाचार के आरोप, आंतरिक विवाद, और शासन की जटिलताओं ने AAP की ‘पार्टी विद अ डिफरेंस’ वाली छवि को कमजोर किया है।
वोटर्स का मूल्यांकन
• अब वोटर AAP को उसकी परफॉर्मेंस के आधार पर आंक रहे हैं, न कि उसके मूलभूत विचार या विशिष्ट पहचान के आधार पर।

सिविल सोसाइटी ने दिल्ली की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था पर उठाया प्रश्न

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नई दिल्ली, 23 जनवरी 2025: स्वतंत्र जन आवाज एनजीओ ने दिल्ली की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था पर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक महत्वपूर्ण प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया गया। इस अवसर पर सेवानिवृत्त आईएफएस अधिकारी ए.के. मल्होत्रा, सेवानिवृत्त जस्टिस एस. एन. ढींगरा, और सफदरजंग अस्पताल के डॉक्टर अश्विनी राय ने अपने विचार प्रस्तुत किए। वक्ताओं ने द्वारा पिछले 10 वर्षों में दिल्ली की बिगड़ी स्वास्थ्य व्यवस्था पर सरकार की जवाबदेही तय की गई और मतदाताओं को शत् प्रतिशत मतदान करने के लिए जागरूक किया गया।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सेवानिवृत्त जस्टिस एस. एन. ढींगरा ने कहा कि मोहल्ला क्लिनिक की वास्तविकता क्या है, यह जानना हमारे लिए अहम है। दिल्ली जहाँ की आबादी 2.5 करोड़ है, और जहाँ 1.5 करोड़ की आबादी इन्सुरेंस नहीं करा सकती। ऐसे मे कोई बीमार हो जाए तो पूरा घर चिंता मे लग जाता है। 40 रुपया पर पेशेंट के हिसाब से कौन सा डॉक्टर बैठेगा। यह सोचने वाली बात है।

डॉ. अश्विनी राय ने कहा कि दिल्ली मे स्वास्थ्य सुविधायें 2007 से भी कम है, इंफ्रास्टक्चर कमजोर है। मोहल्ला क्लिनिक मात्र टेम्परेरी व्यवस्था पर चलाये गये।

इस अवसर पर सेवानिवृत्त आईएफएस अधिकारी ए. के. मल्होत्रा ने कहा कि मोहल्ला क्लिनिक एक विज़न नहीं फ्रॉड है, जहाँ 1000 मोहल्ला क्लीनिक की बात की गयी थी, वहाँ 500 भी नहीं पूरे हुए।

स्वतंत्र जन आवाज एनजीओ द्वारा बताया गया कि स्वस्थ्य जीवन नागरिक का मौलिक अधिकार होता है लेकिन बढ़ता प्रदूषण और बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था ने दिल्ली के नागरिकों से उनका यह अधिकार भी छीन लिया है और दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार के पास इसको लेकर कोई भी ठोस योजना नहीं है। दिल्ली सरकार की मोहल्ला क्लीनिक अब अपनी प्रासंगिकता खो चुकी है। वर्तमान दिल्ली सरकार ने वित्त वर्ष 2024-25 में स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए लगभग 8700 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया है, लेकिन इसके बावजूद मोहल्ला क्लीनिक में ज़रूरी जेनेरिक दवाइयों और एंटीबायोटिक्स की कमी एक गंभीर समस्या बनी हुई है।

महिलाओं के लिए ये क्लीनिक पूरी तरह से अनुकूल नहीं माने जा सकते, क्योंकि यहां महिला रोगियों और स्वास्थ्य सेवाओं की विशेष आवश्यकताओं को पूरा करने में कमी देखी जा रही है। यदि मोहल्ला क्लीनिक को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का मॉडल माना जाता है, तो 2024 में 2023 की तुलना में 30% फुटफॉल में गिरावट क्यों दर्ज की गई? यह न केवल सरकारी दावों पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और उपलब्धता में सुधार की आवश्यकता है। जनता के विश्वास को बनाए रखने और स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ और प्रभावी बनाने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार हाल ही में कई मोहल्ला क्लीनिक बंद या बदहाल स्थिति में पाए गए। इन क्लीनिकों में घटिया दवाओं की आपूर्ति और फर्जी लैब टेस्ट से संबंधित घटनाएं सामने आई हैं। इसके अलावा मेडिकल उपकरणों और दवाओं की कमी, साथ ही डॉक्टरों और स्टाफ की अनुपस्थिति जैसी समस्याएं भी देखने को मिली हैं।उक्त विषय को संज्ञान में लेते हुए गृह मंत्रालय (MHA) ने पिछले महीने उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना की सिफारिश पर केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) से जांच शुरू करवाई है।

कांफ्रेंस में मतदाताओं को शत् प्रतिशत मतदान करने के लिए जागरूक किया गया और उनसे अपील की गई कि वे उन उम्मीदवारों और पार्टियों का समर्थन करें जो स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए ठोस योजनाएं प्रस्तुत करते हैं और नागरिक को स्वस्थ्य जीवन उपलब्ध कराने एवं प्रदूषण से मुक्ति दिलाने के लिए प्रतिबद्ध हों।

इस वर्ष की थीम : “स्वर्णिम भारत- विकास के साथ विरासत”

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26 जनवरी भारत में पूर्ण स्वराज आरंभ होने का ऐतिहासिक दिन है । इसी दिन भारतीय संविधान लागू हुआ था । इससे पहले 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र तो हो गया था पर राजकाज का संचालन ब्रिटिश कालीन “भारत अधिनियम 1935” से हो रहा था । भारतीय संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ और इसके साथ 26 जनवरी भारत का “पूर्ण स्वराज्य दिवस” की तिथि बनी ।

भारत के दो राष्ट्रीय पर्व हैं। एक स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त और दूसरा 26 जनवरी का गणतंत्र दिवस । 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ था एवं 26 1950 को स्वतंत्र भारत का संविधान लागू हुआ था । इसलिये पूरे देश में ये दोनों तिथियों पर आयोजनों की धूम होती है । भारत के प्रत्येक गांव, प्रत्येक नगर प्रत्येक विद्यालय और प्रत्येक बस्ती में ये दोनों उत्सव मनाये जाते हैं । इन दोनों उत्सवों के मुख्य आयोजन राजधानी दिल्ली में होते हैं। स्वतंत्रता दिवस आयोजन दिल्ली के लाल किला प्रांगण में और गणतंत्र दिवस आयोजन प्रगति मैदान में होता है । प्रगति मैदान से परेड लाल किले तक जाती है । गणतंत्र दिवस आयोजन में भारतीय सेना के तीनों अंगो की परेड होती है। भारतीय जवान अपने शौर्य का प्रदर्शन भी करते हैं। इसके साथ विभिन्न राज्यों की स्थानीय लोक जीवन एवं प्रगति पर आधारित शोभा यात्रा निकाली जाती है । देशवासी एक ओर भारत की विविधता से परिचित होते हैं और दूसरी ओर भारत की प्रगति से भी अवगत होते हैं। परेड की सलामी राष्ट्रपति लेते हैं। कार्यक्रम का शुभारंभ प्रधानमंत्री द्वारा इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति पर पुष्पांजलि अर्पित करने से होती है । यह पुष्पांजलि देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले सैन्य जवानों को स्मरण करने केलिये होती है। इसके बाद निकलने वाली परेड की सलामी राष्ट्रपति लेते हैं जबकि राज्यों में राज्य स्तरीय आयोजन में उस प्रदेश के राज्यपाल सैन्य सलामी लेते हैं। गणतंत्र दिवस के आयोजन में विशिष्ट सेवाओं और उपलब्धियों के लिये सशस्त्र बलों के जवानों को पदक और नागरिकों को पुरस्कार दिए जाते हैं। सशस्त्र बलों के हेलीकॉप्टर आसमान से परेड क्षेत्र पर पुष्प वर्षा करते हैं। बाल, किशोर और युवा बच्चे नाचते-गाते और देशभक्ति के गीत गाते हुए परेड में भाग लेते हैं। इन्हें बहुत तैयारी के साथ विभिन्न प्रदेशों से चयन करके आमंत्रित किया जाता है । सशस्त्र बलों के जवान मोटरसाइकिल पर विशिष्ट करतव के दिखाते हुये चलते हैं। परेड का समापन भारतीय वायु सेना द्वारा “फ्लाई पास्ट” के साथ होता है, जिसमें लड़ाकू विमान मंच के पास से गुज़रते हैं, जो प्रतीकात्मक रूप से राष्ट्रपति को सलामी देते हैं। ये भारतीय ध्वज के रंगों में धुएँ के निशान छोड़ते हैं।

इस राष्ट्रीय आयोजन के साथ भारत के सभी प्राँतों की राजधानियों और स्थानीय स्तर पर आयोजन होते हैं। इसमें शासकीय स्तर के साथ विभिन्न संगठनों, विद्यालयों एवं निजी संस्थानों में तिरंगा फहराकर गणतंत्र दिवस का आयोजन होता हैं । इसमें प्रबुद्ध जनों की उपस्थिति और राष्ट्र आधारित साँस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं।

गणतंत्र दिवस आयोजन की दो विशेषताएँ और होती हैं। प्रतिवर्ष इस उत्सव पर मुख्य अतिथि के रूप में कोई विदेशी राज प्रमुख आते हैं। दूसरी विशेषता यह है कि प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस उत्सव की एक थीम होती है । इस वर्ष मुख्य अतिथि के रूप में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति महामहिम प्रबोवो सुबिआंतो भारत आ रहे हैं। उन्होने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का निमंत्रण स्वीकार कर लिया है और वे 25 जनवरी 2025 को नई दिल्ली पहुँच जायेंगे। यह भी संभावना है कि प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी की उनसे द्विपक्षीय वार्ता होगी और कोई महत्वपूर्ण समझौता भी हो सकता है । गणतंत्र दिवस के उत्सव में सूत्र के रूप थीम घोषित करने का उद्देश्य राष्ट्र निर्माण में जन जागरण का वातावरण बनाना है । इस वर्ष की थीम “स्वर्णिम भारत-विकास के साथ विरासत” है । प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी ने भारत को विश्व में सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र बनाने का संकल्प व्यक्त किया है । वे भारत के विकास को पंख तो लगाना चाहते हैं लेकिन अपनी विरासत को सहेजते हुये । भारत यदि विश्व में प्रतिष्ठित रहा है तो अपनी गौरवशाली संस्कृति के आधार पर ही । इसलिये प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी ने “विकास के साथ विरासत” का नारा दिया है । उन्होंने “विकास के साथ विरासत” का यह आव्हान भारत के संविधान निर्माताओं की भावना के अनुरूप किया है । भारत के संविधान के प्रावधानों के अतिरिक्त संविधान में जो चित्र अंकित किये गये हैं वे सभी भारत की गौरवशाली विरासत का संदेश देते हैं। भारत के संविधान में ऐसे कुल बाईस चित्र हैं। इनमें वैदिक काल के गुरुकुल, भागीरथ की तपस्या, लंका पर रामजी की विजय, नटराज, हनुमानजी, गीता का उपदेश देते भगवान श्रीकृष्ण, मोहन जोदड़ो के चित्र, भगवान बुद्ध, महावीर स्वामी के अतिरिक्त मौर्य एवं गुप्त काल की गरिमाचित्र, विक्रमादित्य का दरबार, नालंदा विश्वविद्यालय, उड़िया मूर्तिकला, मुगलकाल में अकबर का दरबार, शिवाजी और गुरु गोविंद सिंह, टीपू सुल्तान, रानी लक्ष्मीबाई, गांधीजी की दांडी यात्रा आदि चित्र हैं। ये चित्र संविधान की सजावट के लिये नहीं जोड़े गये हैं अपितु भारतीय समाज जीवन को विशिष्ट संदेश देते हैं। अपने कर्म कर्तव्य की प्रेरणा देते हैं। संविधान में चित्रित इन विभूतियों, अथवा दर्शाए गई घटनाओं के चित्र भारतीय विरासत का गौरव हैं। चित्रों से स्पष्ट है कि संविधान निर्माता स्वतंत्र भारत की विकास यात्रा का आधार विरासत को बनाना चाहते थे । इसी भावना को ध्यान में रखकर संविधान में इन चित्रों का चयन किया गया है । इसी संदेश को ध्यान में रखकर मोदी जी ने अपनी विकास यात्रा विरासत से जोड़ी है ।

संविधान सभा का गठन

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारत स्वतंत्रता की ओर बढ़ने लगा था । अंग्रेजों ने भारत की स्वतंत्रता और विभाजन का संकेत दे दिया था। इसकी तैयारी होने लगी थी । इसी तैयारी में भविष्य में स्वतंत्र होने वाले भारत की सत्ता संचालन केलिये संविधान सभा का गठन हुआ । इसमें सभी राजनैतिक दलों प्रमुख सामाजिक संगठनों, विषय विशेषज्ञों तथा सरकार के मनोनीत प्रतिनिधियों को लेकर संविधान सभा का गठन हुआ । संविधानसभा के गठन की यह प्रक्रिया सितम्बर 1946 से आरंभ हुई और नवम्बर 1946 में पूरी हुई । 6 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की विधिवत घोषणा हुई । संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई । यह संविधान सभा जब पहली बार अस्तित्व में आई तब इसके कुल सदस्य 389 थे। लेकिन संविधान निर्माण की प्रक्रिया चलते अगस्त 1947 में भारत विभाजन और स्वतंत्रता की तिथि निश्चित हो गई। 14 अगस्त 1947 को विभाजन हुआ और पाकिस्तान अस्तित्व में आ गया । विभाजन के बाद संविधान सभा के कुछ सदस्य पाकिस्तान चले गये । तब भारतीय संविधान सभा के सदस्यों की संख्या घटकर 299 रह गई । संविधान सभा में महिला सदस्य 15, अनुसूचित जाति के 26 और अनुसूचित जनजाति के 33 सदस्य थे । डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा संविधान सभा के अस्थायी अध्यक्ष बने । बाद में डॉ. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के स्थाई अध्यक्ष चुने गए । संविधान के प्रावधान निश्चित हो जाने के बाद प्रारूप समिति बनी । डॉ. भीमराव अंबेडकर संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष बने । इस समिति में कुल सात सदस्य थे । 26 नवम्बर 1949 को अंतिम रूप से संविधान स्वीकार किया गया और 26 जनवरी 2950 से लागू हुआ । संविधान सभा के गठन से संविधान लागू होने तक कुल 2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन लगे । संविधान लागू होने के साथ भारत को पूर्ण स्वराज्य घोषित किया गया ।

भारतीय संविधान की विशेषताएँ

भारतीय संविधान संसार का सबसे विशिष्ट संविधान माना जाता है । भारत की संविधान सभा ने दुनिया के सभी संविधानों का अध्ययन किया और हर संविधान के विशिष्ट प्रावधानों को अपने संविधान में शामिल किया। नागरिक स्वतंत्रता के जितने अधिकार भारतीय संविधान में हैं उतने दुनिया के किसी अन्य संविधान में नहीं। भारतीय संविधान की दूसरी विशेषता संविधान की विशालता है । इतना विस्तृत संविधान दुनियाँ में कोई नहीं। यह सबसे व्यापक लिखित संविधान है । भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता का प्रावधान तो है लेकिन इसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्मानुसार आचरण करने की पूरी स्वतंत्रता है । इसमें नागरिकों के अधिकार और कर्तव्य की स्पष्ट विवेचना है । इसमें संघात्मकता भी है और एकात्मकता भी है। भारतीय संविधान में सत्ता चयन केलिये संसदीय प्रणाली को सुनिश्चित किया है तथा संचालन केलिये विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे तीन अंग सुनिश्चित किये । तीनों के बीच कार्यों, अधिकार और दायित्व का स्पष्ट निर्धारण किया । संविधान में इन तीनों संस्थाओं का प्रमुख होने का अधिकार भारत के राष्ट्रपति को दिये गये हैं । भारतीय संविधान में केंद्र और राज्य सरकार के बीच विषयों और कार्यों का स्पष्ट विभाजन है। केन्द्र सरकार को कुछ आपात अधिकार भी दिये गये हैं जिससे वह केन्द्र राज्य में हस्तक्षेप कर सकता है ।

गणतंत्र दिवस उत्सव आयोजन परंपरा

26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के साथ गणतंत्र दिवस उत्सव मनाने की परंपरा भी आरंभ हुई । 26 जनवरी 1950 को पहले गणतंत्र दिवस पर भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने 21 तोपों की सलामी के साथ ध्वजारोहण किया था। ध्वजारोहण के साथ राष्ट्रगान “जन गण मन…” का गायन हुआ और डा राजेन्द्र प्रसाद जी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुये भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों एवं अन्य वीर सपूतों का स्मरण किया। उन्होंने भारत को पूर्ण गणतंत्र राष्ट्र घोषित करते हुये 26 जनवरी को राष्ट्रीय पर्व भी घोषित किया गया। इस आयोजन में देशाक्ति गीत, राज्यों की चित्रकला एवं अन्य क्षेत्रीय विशेषताओं की झाँकी तथा सेना के तीनों की परेड हुई । यह एक ऐतिहासिक पल था । इस पहले गणतंत्र दिवस आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो भारत आये थे। उसी आयोजन भारत के प्रत्येक गणतंत्र दिवस पर विदेशी राज प्रमुख को आमंत्रित करने की परंपरा आरंभ हुई जो आज भी यथावत है।

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