शनिवार को खेती, किसान, पर्यावरण पर केंद्रित होगी, मीडिया स्कैन की परिचर्चा

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मीडिया स्कैन पत्रकारिता एंव जनसंचार के क्षेत्र में सुधार के लिए कार्यरत लाभरहित संस्था है। साथ ही यह संस्था मीडियाकर्मियों व संचार के छात्रों के हितों के लिए अनवरत प्रयासरत है। पत्रकारिता एवं जनसंचार से जुड़े विषयों पर विमर्श के लिए ‘मीडिया स्कैन’ नाम से हम एक पत्र (https://www.mediascan.in/) का भी प्रकाशन करते हैं।

*संस्था की एक नयी पहल खेत, किसान और पर्यावरण को केन्द्र में रखकर देश भर में परिचर्चा करना है। इस कड़ी में मीडिया स्कैन 04 जनवरी 2025 को जयपुर (राजस्थान) स्थित ‘राजस्थान वयस्क शिक्षा संघ’ के झालाना, डूंगरी स्थित कार्यालय के सम्मेलन कक्ष में एक परिचर्चा आयोजित कर रहा है।* परिचर्चा में पत्रकारिता, सामाजिक, राजनीतिक एवं अध्ययन-अध्यापन के क्षेत्र से जुड़े विद्वान सम्मिलित होंगे। बातचीत खेती और पर्यावरण जैसे मुद्दों को मिल रही ‘मीडिया कवरेज’ को केन्द्र में रखकर होगी।

संभव है कि कुछ विद्वान इस बात से सहमत ना हों लेकिन ‘मीडिया स्कैन’ का मत है कि खेती और पर्यावरण के मुद्दों को सही प्रकार से मीडिया अपने प्रिंट, इलेक्ट्रानिक और वेब माध्यम में स्थान देता तो ना दिल्ली के गैस चैम्बर बनने की नौबत आती और ना पंजाब के किसानों को अपनी बात कहने के लिए दिल्ली बोर्डर तक आना पड़ता। ‘मीडिया स्कैन’ की कोशिश है कि इस मुद्दे पर खुल कर चर्चा हो और विषय को लेकर दोनों पक्षों को सुना और समझा जाए। मीडिया स्कैन का विश्वास है, ‘संवादहीनता समस्या को सघन बनाती है और विमर्श में हल छुपा है। इसलिए संवाद जारी रहना चाहिए।’ आप इस संवाद का हिस्सा बने। जयपुर वालों का स्वागत है।

अब भारतीय समाज ‘संघियों’ की पहचान आसानी से कर पाएगा

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बीते दस सालों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और संघ के किसी बड़े अधिकारी को लेकर जितने तरह के विवाद खड़े करने के प्रयास किए गए। उसमें कोई एक अवसर नहीं मिलता, जहां संघ में बड़ी बेचैनी दिखी हो कि इस तरह के विवाद से संघ पर ‘स्वयंसेवकों’ का विश्वास कहीं कम होगा। हुआ उलटा, बीते सौ सालों में संघ पर जितने हमले हुए, संघ उतना ही मजबूत हुआ है। बढ़ता गया।

हाल में आरएसएस के सबसे बड़े अधिकारी (सरसंघ चालक) ने जब मंदिर और मस्जिद पर एक बयान दिया तो सबसे अधिक ठेस उन्हें पहुंची जो संघ की एक छवि बनाकर बैठे हैं। उन्होंने तय किया हुआ है कि संघ को ऐसा ही दिखाना है। वे टीवी, अखबार, पत्रिका, अकादमी जहां भी हैं, संघ को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़े हुए हैं, जबकि जो नियमित शाखा जा रहे हैं, ऐसे स्वयंसेवकों से बातचीत से पता चलता है कि उनके मन में कोई शंका नहीं है। ना संघ को लेकर, और न सर संघ चालक के उस वक्तव्य को लेकर। स्वयंसेवक तो सवाल खड़े करने वालों से पूछ रहे हैं कि क्या गलत कहा उन्होंने?

अब प्रश्न है कि इस वक्तव्य से सबसे अधिक परेशान कौन है? परेशान वे लोग हैं जिन्होंने बीते सौ सालों से प्रयासपूर्वक संघ की एक गलत छवि बना रखी है। एक ऐसी छवि, जैसा संघ है नहीं। अब जैसा संघ है, वह संघ समाज के बीच जाना और पहचाना जा रहा है तो संघ का कुल जमा ज्ञान ‘बंच आफ थॉट्स’ से लेने वाला वर्ग विशेष बेचैन होगा ही।

बंच आफ थॉट्स 1966 में प्रकाशित हुई। जिसे गुरूजी ने लिखा नहीं है। उनके भाषणों का संकलन है। इसका अर्थ है कि उसमें 1966 से पूर्व में दिए गए भाषण शामिल किए गए हैं। अब संघ को जो लोग समझते हैं, वे बताते हैं। जब गुरूजी ने 1947 के आस पास के वर्षों में जो कहा, वह उस समय की आवश्यकता थी। आज जो भागवतजी कह रहे हैं, वह आज के भारत की आवश्यकता है। मतलब संघ में ठहराव नहीं है। वह संवाद और परिवर्तन के लिए सदा तैयार है।

यह जानना कई लोगों के लिए दिलचस्प होगा कि आज के समय में कई लोग जो रात—दिन संघ की आलोचना करते हैं। ऐसे घोर आलोचकों की कट्टरता के लिए भी सवाल संघ से ही पूछा जाता है। यदि कोई व्यक्ति संघ के बताए रास्ते पर चल नही रहा, संघ की नीतियों पर उसका विश्वास ना हो फिर उसके द्वारा किए गए किसी व्यवहार के लिए संघ कैसे जिम्मेवार हो सकता है? यह बात समझने की है।

हार्पर कॉलिन से पिछले दिनों कुणाल पुरोहित की एक किताब आई, ‘H-Pop: The Secretive World of Hindutva Pop Stars’। कहने के लिए कुणाल हिन्दुत्व पर किताब लिख रहे थे लेकिन उनके निशाने पर आएसएस ही था। लेकिन उनकी केस स्टडी में कोई स्वयंसेवक नहीं था। वह इसलिए क्योंकि हार्पर से जिस तरह की सुपारी लेकर वे किताब लिखने निकले थे, वह स्वयंसेवकों पर केन्द्रित किताब लिखने से सधता नहीं।

कुछ सालों से हिन्दुत्व पर बोलने वालों की संख्या सोशल मीडिया पर अचानक बढ़ी है। यह अच्छी बात है कि इससे अलग—अलग मतों को अवसर मिल रहा है, अपनी बात रखने का लेकिन ऐसे सभी सोशल मीडिया विचारकों को संघ से जोर दिया जाता है। ऐसे में यह भी ठीक है कि संघ ने अपनी बात साफ शब्दों में समाज के बीच रख दी है। अब समाज को संघी और गैर संघी के बीच अंतर करने में कठिनाई नहीं होगी।

शेष हिन्दु समाज की बात करने का अधिकार इस देश में रहने वाले 140 करोड़ लोगों को है। लेकिन हिन्दु समाज पर बात करने वाला एक—एक व्यक्ति संघी है। ऐसा नहीं है। इस परिप्रेक्ष्य में भी मराठी में दिए गए संघ के माननीय सरसंघचालक के वक्तव्य को देखना चाहिए।

नीलेश देसाई को ‘जलमित्र पुरस्कार’ से सम्मानित: जल संरक्षण के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान

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29 दिसंबर 2024 को महाराष्ट्र विकास केंद्र द्वारा पुणे में आयोजित एक भव्य समारोह में जल संरक्षण और सामुदायिक जागरूकता के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान के लिए नीलेश देसाई को प्रतिष्ठित ‘जलमित्र पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। इस समारोह में राज्य के वरिष्ठ अधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता और विभिन्न क्षेत्रों के विशिष्ट अतिथि उपस्थित थे।

नीलेश देसाई ने पिछले कई वर्षों से जल संकट से जूझ रहे समाज को समाधान देने के लिए अथक प्रयास किए हैं। उनकी संस्था ‘संपर्क’ ने सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से हजारों गांवों में जल संरक्षण के विभिन्न कार्यों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है। उनके प्रयासों के केंद्र में सामूहिक जागरूकता और स्थायी समाधान का सिद्धांत रहा है।

जल संरक्षण के लिए सराहनीय कार्य

नीलेश देसाई ने अपने प्रयासों से झाबुआ जैसे बंजर और सूखे से प्रभावित क्षेत्रों में जल प्रबंधन की नई मिसाल कायम की है। उनके नेतृत्व में तालाबों के पुनर्निर्माण, वर्षा जल संग्रहण और आधुनिक सिंचाई तकनीकों का उपयोग बढ़ाने जैसे कई महत्वपूर्ण कार्य किए गए। इन परियोजनाओं के माध्यम से न केवल पानी की समस्या को हल किया गया, बल्कि क्षेत्र में कृषि उत्पादन और लोगों की आजीविका में भी सुधार हुआ।
इस दौरान उन्होंने 2000 से अधिक गांवों में जल प्रबंधन की योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू किया। उनके प्रयासों ने समाज के हर वर्ग को प्रेरित किया है। ग्रामीणों, किसानों और महिलाओं को साथ लेकर उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि सामूहिक प्रयासों से जल संकट जैसी गंभीर समस्याओं का समाधान संभव है।

पुरस्कार वितरण समारोह

पुणे में आयोजित इस समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने शिरकत की। सभी ने नीलेश देसाई के प्रयासों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। इस मौके पर जल संरक्षण और पानी की अहमियत पर विशेष चर्चा की गई। वक्ताओं ने कहा कि जल संरक्षण केवल एक मुद्दा नहीं है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य का सवाल है।
समारोह में नीलेश देसाई ने अपनी यात्रा और अपने कार्यों का श्रेय सामुदायिक सहयोग और टीम वर्क को दिया। उन्होंने कहा, “जल संरक्षण एक सामूहिक जिम्मेदारी है। जब समाज मिलकर काम करता है, तो किसी भी बड़ी चुनौती को पार किया जा सकता है।” उन्होंने युवा पीढ़ी को भी जल संसाधनों के प्रति जिम्मेदारी लेने के लिए प्रेरित किया।

सरकारी नीतियों में योगदान

संपर्क संस्था के काम की सफलता और नीलेश देसाई की लगन को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 2008 में “कृत्रिम भूजल संरक्षण सलाहकार समिति” का सदस्य नियुक्त किया। इस भूमिका में उन्होंने जल संरक्षण के लिए नीतिगत उपाय सुझाए और सामुदायिक भागीदारी पर जोर दिया। मध्य प्रदेश राज्य सरकार की जल नीति को प्रभावी बनाने में भी उनका योगदान अमूल्य रहा, जिससे जल संरक्षण योजनाओं में स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित हुई
प्रेरणा और आंदोलन

नीलेश देसाई का योगदान जल संरक्षण के क्षेत्र में एक प्रेरणा है। उनके प्रयासों ने जल संकट से जूझ रहे समाज को न केवल राहत दी, बल्कि एक आंदोलन का रूप भी दिया। उनकी यह उपलब्धि उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा है, जो समाज और पर्यावरण के लिए सकारात्मक बदलाव लाने के इच्छुक हैं।

यह पुरस्कार नीलेश देसाई की प्रतिबद्धता, परिश्रम और समाज के प्रति समर्पण को मान्यता देता है। उनके प्रयासों ने यह साबित किया है कि जल संरक्षण एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरे समाज का दायित्व है। उनके जैसे व्यक्तित्व से समाज को यह सीख मिलती है कि बड़े बदलाव सामूहिक प्रयासों से ही संभव हैं।

जलमित्र पुरस्कार मिलने के बाद, नीलेश देसाई ने इसे समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी और अधिक बढ़ाने का अवसर बताया। उनके कार्यों से प्रेरित होकर आने वाले समय में और अधिक लोग जल संरक्षण की दिशा में योगदान देंगे।

डॉ. आंबेडकर के नाम पर स्टंट कर रहे विरोधी दल

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संसद का शीतकालीन सत्र हंगामे के साथ समाप्त हो चुका है।अपनी आदत के अनुसार विपक्ष  विरोध के नाम पर सदन से भी  सियासी  चिंगारी निकालने का प्रयास कर रहा है। संसद के शीतकालीन सत्र में संविधान के 75 वर्ष पूर्ण  होने के अवसर पर  संविधान पर चर्चा का आयोजन किया  गया था जिसमें सत्तापक्ष और विपक्ष के नेताओं ने संविधान पर अपने- अपने विचार व्यक्त किये।
लोकसभा में  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने अपने संबोधन में संविधान, आरक्षण और डॉ. आंबेडकर पर कांग्रेस के विचारों को सप्रमाण सदन में रखा जिससे निरुत्तर हुई कांग्रेस ने राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह के संबोधन से 12 सेकेंड का एक टुकड़ा उठाकर उसे बाबा साहेब का अपमान बताते हुए गृहमंत्री के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। इस झूठे विमर्श को सच सिद्ध करने के प्रयास में पूरा विपक्ष कांग्रेस के नेतृत्व में एक बार फिर एकजुट हो रहा है।
यद्यपि दिल्ली विधानसभा चुनावों में आप और कांग्रेस आमने सामने हैं किन्तु आप के नेता भी गृहमंत्री की कथित टिप्पणी का वीडियो बनाकर गली- गली में घुमा रहे हैं कि शायद इसका लाभ विधान सभा चुनाव में मिल जाए । गृहमंत्री के विरुद्ध उसी प्रकार का वातावरण बनाने का प्रयास किया जा रहा जैसा 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को आरक्षण विरोधी व संविधान विरोधी साबित करने के लिए किया गया था। अब हर एक दल व नेता डॉ. आंबेडकर को भगवान बनाकर अपनी डूबती हुई राजनीतिक नैया को पार लगाने का स्वप्न देखने लगा है। गृहमंत्री अमित शाह के भाषण के अगले दिन राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा दलितों के प्रति अपना प्रेम दिखाने के लिए संसद परिसर में नीली टी शर्ट और नीली साड़ी पहनकर नमूदार हुए। उप्र में समाजवादी पार्टी भी भला पीछे क्यों रहती उसने भी डॉ.आंबेडकर की तस्वीरों के साथ यूपी विधानसभा में जमकर हंगामा किया ओर सदन की कार्यवाही ठप करने का प्रयास किया।
गृहमंत्री के बयान के खिलाफ विपक्ष देशव्यापी विरोध प्रदर्शन करने का प्रयास कर रहा है। इस पूरे घटनाक्रम में बसपा नेत्री मायावती ने भी आक्रामक तेवर अपनाए हैं किन्तु वह सधे हुए बयान देकर  कांग्रेस, भाजपा और सपा तीनों ही दलों को नसीहत दे रही हैं। बसपा नेत्री मायावती कांग्रेस पर हमलावर हैं, उनका कहना है कि बाबा साहेब की उपेक्षा करने वाली और देशहित में उनके द्वारा किये गये संघर्ष को हमेशा आघात पहुंचाने वाली कांग्रेस पार्टी का बाबा साहेब के अपमान को लेकर उतावालापन विशुद्ध छलावा है। बहिन मायावती ने डॉ. आंबेडकर के प्रति प्रेम दर्शा रहे समाजवादियों की पोल भी खोलकर रख दी है, मायावती का मानना है कि आज सपाई बाबासाहेब के नाम पर पीडीए का पर्चा निकाल रहे हैं जबकि वास्तविकता यह है कि सपा ने भी कभी भी डॉ. आंबेडकर का सम्मान नहीं किया था। समाजवादियों ने वास्तव में बाबा साहब सहित बहुजन समाज में जन्मे सभी महान संतों, गुरुओं, महापुरुषों के प्रति द्वेष के तहत नए जिले, नई संस्थाओं व जनहित योजनाओं तक के नाम बदल डाले थे। सपा सरकार में तो डॉ. आंबेडकर का नाम तक सही नहीं लिखा जाता था।
कांग्रेस पार्टी आज नीली टी शर्ट  व नीली साड़ी पहनकर इतराती हुई  घूम रही है और उसे लग रहा है कि उसे वह मुद्दा मिल गया है  जिससे उसकी वापसी की राह आसान हो जायेगी लेकिन कांग्रेस बहुत बड़े भ्रम में है। सभी जानते हैं यह वहीं कांग्रेस पार्टी है जिसने कभी भी डॉ. आंबेडकर का सम्मान नहीं किया और न ही  संविधान का कभी मान रखा ।आज कांग्रेस नीले कपड़े पहनकर दलित समाज को छलने के लिए निकल पड़ी है। अगर कांग्रेस पार्टी ने कभी भी डॉ. आंबेडकर का सम्मान किया होता तो आज उसकी यह दुर्गति न होती।
स्वतंत्रता संग्राम के समय से ही कांग्रेस और डॉ. आंबेडकर के मध्य गहरे मतभेद उत्पन्न हो गये थे। कांग्रेस के साथ बाबासाहेब का प्रथम विवाद 1930 में गोलमेज कांफ्रेस के समय हुआ था। आंबेडकर अनुसूचित जाति के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र चाहते थे जबकि गांधी जी इसके विरोधी थे। गांधी जी ने आंबेडकर जी के खिलाफ आमरण अनशन तक किया था। 29 जनवरी 1932 को दूसरी गोलमेज सम्मेलन के बाद मुंबई में बाबा साहब ने कहा कि मुझे कांग्रेसी देशद्रोही कहते हैं, यानी आज जो बाबासाहब की  फोटो लेकर राजनीति कर रहे हैं,उस समय उन्हें गद्दार कहते थे। संविधान सभा में आंबेडकर जी के चयन का रास्ता भी नेहरू जी ने ही रोका था। हिंदू कोड बिल और सरकार की दलित विरोधी मानकिता के चलते आंबेडकर ने 1951 में नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा देते हुए लिखा, “संरक्षण की सबसे अधिक जरूरत अनुसूचित जाति को है पर नेहरू का सारा ध्यान सिर्फ मुसलमानों पर है। ध्यान देने योग्य बात  है कि आज भी  कांग्रेस पार्टी पूरी तरह मुस्लिम परस्त  है।
कांग्रेस स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी आंबेडकर जी का लगातार अपमान करती रही । बाबा साहब को 40 साल तक भारत रत्न के लिए इंतजार करना पड़ा जबकि कांग्रेस अपने ही परिवार को भारत रत्न देती रही। नई दिल्ली में गांधी नेहरू परिवार की पीढ़ियों के स्मारक बने हैं जबकि गांधी परिवार ने आंबेडकर जी का अंतिम संस्कार तक दिल्ली में नही होने दिया। कांग्रेस ने पग -पग पर डॉ. आंबेडकर के विचारों का धुर  विरोध किया और आज राहुल गांधी नीली टी शर्ट पहनकर उनके अपमान पर घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। वस्तुतः  कांग्रेस का आंबेडकर के प्रति प्रेम 2019 लोकसभा चुनाव में हारने के बाद से उमड़ा है।
गृहमंत्री अमित शाह ने कांग्रेस व विरोधी दलों के सभी आरोपों को खारिज करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि वह सपने में भी डॉ.आंबेडकर का अपमान  नहीं कर सकते। संसद में चर्चा के दौरान यह तो सिद्ध हो गया है कि कांग्रेस ने न केवल जीते जी बाबा साहेब का लगातार अपमान किया वरन उनकी मृत्यु के बाद भी उनका मजाक उड़ाने का प्रयास किया। जब तक कांग्रेस सत्ता में रही बाबा साहेब का एक भी स्मारक नहीं बना जबकि जहां -जहां अन्य दलों की सरकारें आती गई वहां -वहां उनका स्मारक बनता चला गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने बाबासाहेब के जीवन से संबंधित पंचतीर्थ विकसित किये। जिसमें मध्य प्रदेश में महू, लंदन में डॉ. भीमराव आंबेडकर स्मारक, नागपुर में दीक्षा भूमि, दिल्ली में राष्ट्रीय स्मारक और महाराष्ट्र के मुंबई में चैत्य भूमि का विकास किया। 19 नवंबर 2015 को पीएम मोदी ने डॉ. आंबेडकर के सम्मान में 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाने की घोषणा की। आज जो लोग संविधान की किताब हाथ में लेकर घूम रहे हैं यही लोग संविधान दिवस का विरोध व बहिष्कार करते रहे हैं।
कांग्रेस के नेतृत्व में आज संपूर्ण विपक्ष केवल वोटबैंक की राजनीति के कारण ही सदन में डॉ. आंबेडकर के अपमान का मुद्दा उछाल रहा है, क्योंकि देश में 20 करोड़ 13 लाख78 हजार 86 दलित हैं जो आबादी का 16.63 फीसदी है। दलितो की आबादी का ग्रामीण क्षेत्रों में 68.8 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में 23.6 फीसदी है । इस आबादी को अपना वोट बैंक बनाने के लिए आतुर कांग्रेस अपने साथियों के साथ मिलकर रोज नए नए स्टंट कर रही है क्योंकिउसको लगता है कि अकेले मुस्लिम वोट बैंक से उसे सत्ता नहीं मिल सकती।
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