भारत में दान करने की प्रथा से गरीब वर्ग का होता है कल्याण

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भारत में हिंदू सनातन संस्कृति के संस्कारों में दान दक्षिणा की प्रथा का अलग ही महत्व है। भारत में विभिन्न त्यौहारों एवं महापुरुषों के जन्म दिवस पर मठों मंदिरों, गुरुद्वारों एवं अन्य पूजा स्थलों पर समाज के सम्पन्न नागरिकों द्वारा दान करने की प्रथा अति प्राचीन एवं सामान्य प्रक्रिया है। गरीब वर्ग की मदद करना ईश्वर की सबसे बड़ी सेवा माना जाता है। समाज में आपस में मिल बांटकर खाने पीने की प्रथा भी भारत में ही पाई जाती है और यह प्रथा भारतीय समाज में बहुत आम है। परिवार में आई किसी भी खुशी की घटना को समाज में विभिन्न वर्गों के बीच आपस में बांटने की प्रथा भी भारत में ही पाई जाती है। इस उपलक्ष में कई बार तो बहुत बड़े स्तर पर सामाजिक एवं धार्मिक आयोजन भी किए जाते हैं। जैसे जन्म दिवस मनाना, परिवार में शादी के समारोह के पश्चात समाज में नाते रिश्तेदारों, दोस्तों एवं मिलने वालों को विशेष आयोजनों में आमंत्रित करना, आदि बहुत ही सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत के विभिन्न मठों, मंदिरों, गुरुद्वारों एवं अन्य पूजा स्थलों पर प्रतिदिन 10 करोड़ से अधिक नागरिकों को प्रसादी के रूप में भोजन वितरित किया जाता है।      

साथ ही, पूरी दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश है, जिसमें निवासरत नागरिक, चाहे वह कितना भी गरीब से गरीब क्यों न हो, अपनी कमाई में से कुछ राशि का दान तो जरूर करता है। भारतीय शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि हिंदू सनातन संस्कृति के अनुरूप, महर्षि दधीच ने तो, देवताओं को असुरों पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से, अपने शरीर को ही दान में दे दिया था, जिसे इतिहास में उच्चत्तम बलिदान की संज्ञा भी दी जाती है।

आज के युग में जब अर्थ को अत्यधिक महत्व प्रदान किया जा रहा है, तब अधिक से अधिक धनराशि का दान करना ही शुभ कार्य माना जा रहा है। इस दृष्टि से वैश्विक स्तर पर नजर डालने पर ध्यान में आता है कि दुनिया में सबसे बड़े दानदाता के रूप में आज भारत के टाटा उद्योग समूह के श्री रतन टाटा का नाम सबसे ऊपर उभर कर सामने आता है। इस सूची में टाटा समूह के संस्थापक श्री जमशेदजी टाटा का नाम भी बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है, जिन्होंने अपने जीवन में शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक उत्थान के क्षेत्र में 8.29 लाख करोड़ रुपए की राशि का महादान किया था। इसी प्रकार, श्री रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा समूह ने वर्ष 2021 तक 8.59 लाख करोड़ रुपए की राशि का महादान किया था। आप अपनी कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा गरीब वर्ग की सहायतार्थ दान में दे देते थे। श्री रतन टाटा केवल भारत स्थित संस्थानों को ही दान नहीं देते थे बल्कि वैश्विक स्तर पर समाज की भलाई के लिए कार्य कर रहे संस्थानों को भी दान की राशि उपलब्ध कराते थे। आपने वर्ष 2008 के महामंदी के दौरान अमेरिका स्थित कार्नेल विश्वविद्यालय को 5 करोड़ अमेरिकी डॉलर का दान प्रदान किया था। श्री रतन टाटा ने आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे छात्रों को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने के उद्देश्य से जे. एन. टाटा एंडाउमेंट, सर रतन टाटा स्कॉलर्शिप एवं टाटा स्कॉलर्शिप की स्थापना कर दी थी। श्री रतन टाटा चूंकि अपनी कमाई का बहुत बड़ा भाग दान में दे देते थे, अतः उनका नाम कभी भी अमीरों की सूची में बहुत ऊपर उठकर नहीं आ पाया। इस सूची में आप सदैव नीचे ही बने रहे। श्री रतन टाटा जी के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवन काल में इतनी बड़ी राशि का दान किया था कि आज विश्व के 2766 अरबपतियों के पास इतनी सम्पत्ति भी नहीं है।

यूं तो टाटा समूह ने भारत राष्ट्र के निर्माण में बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, परंतु कोरोना महामारी के खंडकाल में श्री रतन टाटा के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। जिस समय पूरा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा था, उस समय श्री रतन टाटा ने न केवल भारत बल्कि विश्व के कई अन्य देशों को भी आर्थिक सहायता के साथ साथ वेंटिलेटर, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) किट, मास्क और दस्ताने आदि सामग्री उपलब्ध कराई। श्री रतन टाटा के निर्देशन में टाटा समूह ने इस खंडकाल में 1000 से अधिक वेंटिलेटर और रेस्पिरेटर, 4 लाख पीपीई किट, 35 लाख मास्क और दास्ताने और 3.50 लाख परीक्षण किट चीन, दक्षिणी कोरिया आदि देशों से भी आयात के भारत में उपलब्ध कराए थे। 

श्री रतन टाटा के पूर्वज पारसी समुदाय से थे और ईरान से आकर भारत में रच बस गए थे। श्री रतन टाटा ने न केवल भारतीय हिंदू सनातन संस्कृति के संस्कारों को अपने जीवन में उतारा, बल्कि इन संस्कारों का अपने पूरे जीवनकाल में अक्षरश: अनुपालन भी किया। इन्हीं संस्कारों के चलते श्री रतन टाटा को आज पूरे विश्व में सबसे बड़े दानदाता के रूप में जाना जा रहा है।    

टाटा समूह का वर्णन तो यहां केवल उदाहरण के रूप में किया जा रहा है। अन्यथा, भारत में ऐसे कई औद्योगिक घराने हैं जिन्होंने अपनी पूरी संपत्ति को ही ट्रस्ट के माध्यम से समाज के उत्थान एवं समाज की भलाई के लिए दान में दे दिया है। प्राचीन भारत में यह कार्य राजा महाराजाओं द्वारा किया जाता रहा हैं। हिंदू सनातन संस्कृति के विभिन्न शास्त्रों में यह वर्णन मिलता है कि ईश्वर ने जिसको सम्पन्न बनाया है, उसे समाज में गरीब वर्ग की भलाई के लिए कार्य करना चाहिए। यह सहायता गरीब वर्ग को सीधे ही उपलब्ध कराई जा सकती है अथवा ट्रस्ट की स्थापना कर भी गरीब वर्ग की मदद की जा सकती है। वर्तमान में तो निगमित सामाजिक दायित्व (सी एस आर – कोरपोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी) के सम्बंध में कानून की बना दिया गया है। जिन कम्पनियों की सम्पत्ति 500 करोड़ रुपए से अधिक है अथवा जिन कम्पनियों का वार्षिक व्यापार 1000 करोड़ रुपए से अधिक है अथवा जिन कम्पनियों का वार्षिक शुद्ध लाभ 5 करोड़ से अधिक है, उन्हें इस कानून के अंतर्गत अपने वार्षिक शुद्ध लाभ के दो प्रतिशत की राशि का उपयोग समाज की भलाई के लिए चलाई जा रही परियोजनाओं पर खर्च करना आवश्यक होता है। इन विभिन्न मदों पर खर्च की जाने वाली राशि का प्रतिवर्ष अंकेक्षण भी कराना होता है, ताकि यह जानकारी प्राप्त की जा सके राशि का सदुपयोग समाज की भलाई के लिए किया गया है एवं इस राशि का किसी भी प्रकार से दुरुपयोग नहीं हुआ है। 

भारत में गरीब वर्ग/परिवारों को गरीबी रेखा से ऊपर लाने में समाज में सम्पन्न वर्ग द्वारा किए जाने वाले दान आदि की राशि से भी बहुत मदद मिलती है। निगमित सामाजिक दायित्व (सी एस आर) योजना के अंतर्गत चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का सीधा लाभ भी समाज के गरीब वर्ग को ही मिलता है। अतः विश्व में शायद भारत ही एक ऐसा देश है जहां सरकार एवं समाज मिलकर गरीब वर्ग की भलाई हेतु कार्य करते हुए दिखाई देते हैं। इसीलिए ही अब यह कहा जा रहा है कि हिंदू सनातन संस्कृति का विस्तार यदि वैश्विक स्तर पर होता है तो, इससे पूरे विश्व का ही कल्याण हो सकता है एवं बहुत सम्भव है कि वैश्विक स्तर पर गरीबी का नाश होकर चहुं ओर खुशहाली फैलती दिखाई दे।                

भारतीय ज्ञान परंपरा की संवाहक है भारतीय शिक्षा बोर्ड की हिंदी की पाठ्यपुस्तकें:- प्रो. राम दरश मिश्र

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दिनांक 12/12/2024 को साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, रवीन्‍द्र भवन के सभागार में आयोजित भारतीय शिक्षा बोर्ड की हिंदी की पाठ्यपुस्तकों के विमोचन एवं पतंजलि योगपीठ (ट्रस्ट) तथा भारतीय शिक्षा बोर्ड के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित सम्मान समारोह में युग पुरुष प्रो. रामदरश मिश्र को ‘पतंजलि शिक्षा गौरव सम्मान’ प्रदान किया गया।

समारोह में उपस्थित आगत अतिथियों का स्वागत करते हुए बोर्ड के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. एन. पी. सिंह ने कहा कि प्रो. रामदरश मिश्र को सम्मानित कर पतंजलि योगपीठ एवं भारतीय शिक्षा बोर्ड स्वयं को सम्मानित कर रहा है । हम सौभाग्यशाली हैं जो ऐसे युग नायक को देख-सुन रहे हैं तथा आपके मार्गदर्शन में बोर्ड की हिंदी की पाठ्‌यपुस्तकें मूर्त रूप ले रही हैं ।

प्रो. राम दरश मिश्र ने इस अवसर पर अपनी कुछ कविताओं का पाठ किया तथा कहा कि उनके दीर्घायु होने का रहस्य उनकी महत्वाकांक्षों से मुक्त जीवन शैली है ।

सम्मान समारोह के उपरांत भारतीय शिक्षा बोर्ड की हिंदी की पाठ्‌यपुस्तकों की कक्षा-1 से आठ तक की श्रृंखला का विमोचन सम्मानित सलाहकार मंडल एवं पाठ्यपुस्तक निर्माण समिति के करकमलों से हुआ । इस गौरवमयी बेला के साक्षी सुप्रसिद्ध साहित्‍यकार, पत्रकार, संपादक, शिक्षाविदों का समूह रहा। बोर्ड के सलाहकार मंडल के सदस्य क्रमशः प्रो. प्रमोद दुबे, डॉ. क्षमा शर्मा, श्री सूर्यनाथ सिंह, डॉ. ओम निश्चल, कमलेश कमल, प्रो. स्मिता मिश्र, प्रो. रवि शर्मा, डॉ. अर्चना त्रिपाठी तथा पाठ्य पुस्तक निर्माण समिति के सदस्‍य सुश्री सुधा शर्मा, श्री देवेश चौबे, श्री मिथिलेश शुक्‍ला, डॉ. सुधांशु कुमार, डॉ. विजयालक्ष्मी पाडेण्‍य, डॉ. नारायण दत्त मिश्र, श्रीमती पिंकी उपाध्‍याय, ज़ेबी अहमद, डॉ. प्रदीप ठाकुर, डॉ. केशव मोहन पाण्डेय, श्रीमती इंदुमती मिश्रा, अनुराग पाण्‍डेय, मंच पर उपस्थित रहे । कार्यक्रम का संचालन पाठ्यपुस्‍तकों की समन्‍वयक डॉ. सोनी पाण्‍डेय ने किया ।

पाठ्‌यपुस्तकों के सलाहकार संपादक प्रो. प्रमोद कुमार दुबे एवं डॉ. ओम निश्चल जी ने पाठ्यपुस्तकों की विशेषता क्रमवार बताते हुए उपस्थित समूह से अनुरोध किया कि पाठ्यपुस्‍तकों का अवलोकन कर भावी पीढ़ी के विकासक्रम का उन्हें वाहक बनाएँ, क्योंकि यह न केवल, भारतीय शिक्षा पद्धति की संवाहक है बल्कि स्वंय में राष्ट्रीय शिक्षा नीति की ज्ञान गंगा का सम्मिलन करने वाली भारतीय ज्ञान परंपरा की समर्थ थाती हैं ।

पतंजलि योग पीठ ट्रस्‍ट की प्रतिनिधि, पतंजलि विश्‍वविद्यालय की पूज्‍य डीन साध्‍वी देवप्रिया जी ने अपने वक्‍तव्‍य में सभी को इस श्रमसाध्य कार्य को पूर्ण करने हेतु शुभकामानाएँ दीं तथा साथ ही स्वयं को इस पावन क्षण का साक्षी मानते हुए सौभाग्यशाली बताया।

अंत में संस्था के सचिव श्री राजेश प्रताप सिंह जी ने सम्मानित सभागार एवं समृद्ध मंच के प्रति आभार व्‍यक्‍त करते हुए कहा कि यह भारतीय शिक्षा बोर्ड की पाठ्‌यपुस्‍तकों के विमोचन का आगाज़ है जो अब क्रमवार चलता रहेगा। उन्होंने उपस्थित जन समूह को अवगत कराते हुए कहा कि बोर्ड की कक्षा1 से 8वीं तक की पाठ्यपुस्तकों का निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है जिसे बोर्ड राष्ट्र के नवनिहालों तक पहुँचाने के लिए प्रतिबद्ध है। इस अवसर पर राम दरश मिश्र के परिजन, विद्यार्थीं तथा साहित्‍य अकादमी के उप सचिव डॉ. कुमार अनुपम, राजर्षि टंडन मुक्‍त विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. सत्‍यकाम, दिल्‍ली राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र की महिला पतंजलि योग समिति की प्रभारी सुश्री सविता तिवारी, डाँ अमरेंद्र पाण्‍डेय, डॉ. वेद मिश्र शुक्‍ल, राज्‍य प्रभारी, भारत स्‍वाभिमान डॉ. परमिन्‍दर सिंह गुलिया, मानस मिश्रा, राघवेंन्‍द्र सिंह के साथ-साथ दिल्‍ली एन.सी.आर के शिक्षण संस्‍थाओं के प्रति‍निधि उपस्थित रहे ।

ब्रज भूमि: बॉलीवुड का उभरता सिनेमाई केंद्र

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बॉलीवुड में ब्रज भाषा और ब्रज संस्कृति ने हमेशा फिल्म निर्माताओं को आकर्षित किया है। भक्ति और दिव्य प्रेम का स्थानीय स्वाद अनेकों गीतों में प्रतिध्वनित हुआ है।

वास्तव में, भारत के जुड़वां शहर आगरा और मथुरा, इतिहास और आध्यात्मिकता के एक अनूठे मिश्रण को मूर्त रूप देते हैं, जो उन्हें जीवंत फिल्म शूटिंग हॉटस्पॉट के लिए आदर्श उम्मीदवार बनाता है। फिल्म निर्माताओं को आगरा में अंतरंग रोमांटिक ड्रामा से लेकर महाकाव्य ऐतिहासिक कथाओं तक एक बहुमुखी सेटिंग मिलती है, जो सभी इसके विरासत स्थलों के आश्चर्यजनक दृश्यों से बढ़ जाती है।

दूसरी ओर, भगवान कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक समृद्धि से भरपूर है। इसके पवित्र मंदिर और जीवंत त्यौहार एक मनोरम वातावरण बनाते हैं जो दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। यह शहर उन फिल्मों के लिए एक आदर्श कैनवास है जो आस्था, प्रेम और परंपरा के विषयों का पता लगाती हैं, जो दर्शकों के साथ गहरे स्तर पर जुड़ने का वादा करती हैं। मथुरा का आध्यात्मिक सार, आगरा के ऐतिहासिक आकर्षण के साथ मिलकर इन शहरों को सिनेमा में कहानी कहने के लिए दोहरे रत्न के रूप में स्थापित करता है।

अपनी क्षमता के बावजूद, ये शहर फिल्म उद्योग में कम उपयोग किए जाते हैं। योगी सरकार ने आगरा के दावे की अनदेखी करते हुए ग्रेटर नोएडा को फिल्म सिटी स्थापित करने के लिए चुना। स्थानीय फिल्म निर्माता और अभिनेता जैसे रंजीत सामा, सूरज तिवारी, उमा शंकर मिश्रा, अनिल जैन और कई अन्य लोगों (तमाम नाम छूट रहे हैं) ने अपने योगदान के माध्यम से फिल्मांकन गतिविधि में वृद्धि की है जिससे स्थानीय पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, रोजगार पैदा होंगे और क्षेत्र की सांस्कृतिक ताने-बाने में वृद्धि होगी। आगरा और मथुरा को प्रमुख फिल्म शूटिंग स्थलों के रूप में विकसित करने से न केवल उनकी लुभावनी सुंदरता और समृद्ध विरासत को उजागर किया जाएगा बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा मिलेगा। राज्य सरकार के पास इन शहरों को फिल्म उद्योग में अगली बड़ी चीज बनाने के लिए उनकी सिनेमाई क्षमता में निवेश करने का अवसर है। कभी अपने आध्यात्मिक महत्व के लिए जाना जाने वाला ब्रज क्षेत्र, जिसमें मथुरा, वृंदावन और आगरा शामिल हैं, भारतीय फिल्म उद्योग को आकर्षित कर रहा है । ब्रज के शांत मंदिर, जीवंत त्यौहार और रोमांटिक स्थान ऐतिहासिक नाटकों से लेकर समकालीन प्रेम कहानियों तक विभिन्न शैलियों के लिए एकदम सही सेटिंग प्रदान करते हैं। स्थानीय प्रतिभा भी फल-फूल रही है।

आगरा के युवा अभिनेता, संगीतकार और तकनीशियन राष्ट्रीय मंच पर अपनी पहचान बना रहे हैं। फिल्म निर्माण के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के उदार प्रोत्साहन ने क्षेत्र की अपील को और बढ़ा दिया है। राज्य सरकार की ओर से उदार वित्तीय प्रोत्साहन और सहायता की पेशकश करके, आगरा और मथुरा फिल्म निर्माण के लिए समृद्ध केंद्रों में बदल सकते हैं। ऐसी पहलों में कर छूट, सुव्यवस्थित फिल्मांकन परमिट और स्थानीय प्रतिभाओं के लिए धन शामिल हो सकते हैं, जिससे एक मजबूत फिल्म पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा मिलेगा। पर्याप्त सब्सिडी और सहायक बुनियादी ढांचे के साथ, ब्रज भारतीय सिनेमा के लिए एक प्रमुख केंद्र बनने के लिए तैयार है। जैसे-जैसे बॉलीवुड नए क्षितिज तलाश रहा है, ब्रज क्षेत्र चमकने के लिए तैयार है। इसकी कालातीत सुंदरता और सांस्कृतिक महत्व इसे फिल्म निर्माताओं और दर्शकों के लिए एक आकर्षक गंतव्य बनाता है। अतीत में, खूंखार चंबल के बीहड़ों में बड़े पैमाने पर डकैतों की कहानियों की शूटिंग की गई थी, जिसमें “गंगा जमुना”, “जिस देश में गंगा बहती है”, “मुझे जीने दो” और बाद में “बैंडिट क्वीन” जैसी यादगार फिल्में शामिल थीं, जिन्होंने फिल्म निर्माताओं को आकर्षित किया। अब ब्रज संस्कृति और परंपराओं का लाभ उठाते हुए, फोकस सॉफ्ट स्टोरीज, धार्मिक उपाख्यानों और यहां तक ​​कि पारिवारिक नाटकों पर स्थानांतरित हो गया है।

एक कारण आतिथ्य उद्योग और बेहतर श्रेणी के होटलों का विकास है। फिर, आपके पास शूटिंग के लिए कई रोमांचक स्थान हैं। शहर का सामान्य माहौल भी बेहतर हुआ है, खासकर पर्यटक परिसर क्षेत्र में। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि पिछले कुछ वर्षों में बड़ी संख्या में युवा स्थानीय कलाकारों ने बॉलीवुड को प्रभावित किया है, क्योंकि आगरा अब एक जीवंत सांस्कृतिक केंद्र के रूप में उभर रहा है। 2012 में शुरू किए गए कलाकृति ऑडिटोरियम में दैनिक “मोहब्बत द ताज” शाम के ऑडियोविजुअल शो ने पूरे भारत के कलाकारों के प्रदर्शन और उत्पादन की गुणवत्ता के लिए फिल्म बिरादरी से प्रशंसा प्राप्त की है। फैशन फोटोग्राफर प्रवीण तालान से लेकर अभिनेता अर्चना गुप्ता, यशराज पाराशर और सत्यव्रत मुद्गल तक बॉलीवुड में पहले से ही एक दर्जन युवा नाम धूम मचा रहे हैं। दिवंगत प्रख्यात कवि नीरज लंबे समय से बॉलीवुड फिल्म उद्योग में एक प्रसिद्ध नाम रहे हैं। “चक धूम धूम” फेम स्पर्श श्रीवास्तव, साथ ही आकाश मैनी और करतार सिंह यादव ताज नगरी के नवीनतम चमकते सितारे हैं। आगरा के डांस गुरु अनिल दिवाकर वैश्विक प्रभाव बना चुके हैं। मथुरा जिनकी कर्मभूमि थी, शैलेन्द्र का योगदान भुलाया नहीं जा सकता। ये सिलसिला जारी है।

साहित्य अकादमी के पुस्तकायन में राजीव रंजन प्रसाद के उपन्यास ‘लाल अंधेरा’ पर चर्चा

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नई दिल्ली। साहित्य अकादमी के मंच पर पुस्तकायन कार्यक्रम के अंर्तगत लेखक राजीव रंजन प्रसाद के यश पब्लिकेशंस द्वारा प्रकाशित उपन्यास “लाल अंधेरा” पर चर्चा हुई। इस अवसर पर वरिष्ठ लेखक व भाषाविद कमलेश कमल, प्रसिद्ध टेलीविजन एंकर प्रखर श्रीवास्तव, सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी दुबे तथा वरिष्ठ पत्रकार आशीष कुमार अंशु ने इस उपन्यास पर अपने विचार रखे। माओवाद की सच्चाई को पेश करता उपन्यास ‘लाल अंधेरा’ उन घटनाओं और पात्रों का विवरण देता है, जिनकी कभी चर्चा भी नहीं होती। इस अवसर पर बोलते हुए लेखक राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि सरकारी व्यवस्था और माओवादियों के बीच पिसने वाले आदिवासियों का जीवन भी किसी दुविधा से कम नहीं है। यह बस्तर का ऐसा कड़वा सत्य है, जिसके विषय में हर किसी को अवश्य जानना चाहिए। साहित्यकार तथा आईटीबीपी में कमांडेन्ट कमलेश कमल ने अपने बस्तर पदस्थापना के अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि उपन्यास लाल अंधेरा लेखक के बस्तर पर केंद्रित गहन शोध और आत्मानुभव की अभिव्यक्ति है।

लेखक व टेलीविजन एंकर प्रखर श्रीवास्तव ने मीडिया की हिपोक्रेसी को उजागर करते हुए कई उदाहरण दे कर बताया कि कैसे नक्सल विभीषिका और आतंक की खबरों को मुख्यधारा के चैनल व अखबार सप्रयास दबा रहे हैं। संविधान और कानून के जानकार अश्विनी दुबे ने बताया कि किस तरह शहरी माओवादी कानून को ही गुमराह करते हैं। वे कहते हैं कि शहरी माओवादी हमारे सिस्टम के भीतर घुस आये हैं उसकी पहचान करना आवश्यक है। कार्यक्रम में मॉडरेटर की भूमिका आशीष कुमार अंशु ने निर्वहित की और धन्यवाद ज्ञापन प्रकाशक जतिन भारद्वाज ने किया।

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