Rochdale Pioneers Award of The International Cooperative Alliance (ICA) bestowed to Dr. U.S. Awasthi, MD, IFFCO.

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2nd Indian to receive this award after Dr. Verghese Kurien. 

Under his leadership IFFCO became the largest fertilizer producer and marketer in India and the largest cooperative globally in terms of GDP per capita.

The 2024 Rochdale Pioneers Award of ICA presented to Dr Awasthi, Managing Director of the Indian Farmers Fertiliser Cooperative Limited (IFFCO). Dr Awasthi is the second Indian citizen to receive the Award, after Dr Verghese Kurien, the recipient of the 2001 Award. Established in 2000, the Rochdale Pioneers Award is the highest honour the ICA bestows. It aims to recognise, in the spirit of the Rochdale Pioneers, a person or, under special circumstances, a cooperative organisation, having contributed to innovative and financially sustainable cooperative activities that have significantly benefited their membership.

A chemical engineer, he joined IFFCO in 1976. Under his leadership, the cooperative increased its production capacity by 292% and net worth by 688%, Under his leadership IFFCO has forayed into various business sphere, diversified its business and successfully innovated and indigenously developed Nano Fertilisers for the farmers of India.

ICA President Ariel Guarco presented the award to Dr Awasthi during a special ceremony at the ICA Global Conference in New Delhi, India, on 25 November. IFFCO Ltd. is hosting the ICA General Assembly and Global Cooperative Conference 2024 in partnership with the International Cooperative Alliance and the Union Ministry of Cooperation. The event is being held at Bharat Mandapam in Delhi and will conclude on 30th November 2024.

Dr Awasthi said that, “I am humbled and honored to receive this prestigious award of ICA. This award embodies the Hon’ble Prime Minister Shri Narendra Modi’s vision of “Sahkar se Samriddhi” and highlights IFFCO’s exceptional efforts under the guidance & dynamic leadership of the Hon’ble Minister of Cooperation, Shri Amit Shah. We remain dedicated to advancing their vision of elevating India’s cooperative movement on the global stage. I extend my heartfelt gratitude to the International Cooperative Alliance and global cooperative fraternity for this recognition, that inspires us to uphold and advance the cooperative spirit globally.”

Dr Awasthi further said that; IFFCO championed sustainable agriculture through Nano fertilizers like Nano DAP and Nano Urea Liquid, transforming farming practices and meeting the demand for eco-friendly solutions. Locally produced Nano fertilizers tackled logistical issues, reduced import reliance, and replaced bulky packaging with compact bottles. These innovations improved soil health, boosted farmer profitability, and promoted environmentally responsible farming”. IFFCO’s new indigenously developed products Nano Urea and Nano DAP is being used by farmers happily across the nation now and the acceptance of these products are widely being accepted by farmers in each and every corner of India and some other foreign countries specially neighbouring countries and IFFCO is being approached by other foreign countries also for the supply of Nano Fertilisers and we are planning to export the Nano fertiliser to 25 more foreign countries in upcoming future.

IFFCO has achieved notable operational success, with the production of 44 lakh bottles of Nano DAP Liquid and selling over 2.04 crore bottles of Nano Urea Liquid. It conducted 80,000 field demonstrations, training over 80,000 farmers and 1,500 rural entrepreneurs. Total fertilizer production reached 88.95 lakh tons, including 48.85 lakh tons of urea and 40.10 lakh tons of NPK, DAP, WSF, and specialty fertilizers. Domestic and international sales totaled 112.26 lakh tons, further advancing organic and chemical fertilizer use.

The full list of laureates is available here: https://ica.coop/en/media/library/fact-sheets/rochdale-award-laureates

अध्यात्म एवं विज्ञान में कोई विरोध नहीं है – डॉ. मोहन भागवत जी

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि अध्यात्म एवं विज्ञान में कोई विरोध नहीं है। विज्ञान में भी और अध्यात्म में भी श्रद्धायुक्त व्यक्ति को ही न्याय मिलता है। अपने साधन एवं ज्ञान का अहंकार जिसके पास होता है, उसे नहीं मिलता है। श्रद्धा में अंधत्व का कोई स्थान नहीं है। जानो और मानो यही श्रद्धा है, परिश्रमपूर्वक मन में धारण की हुई श्रद्धा।

पूजनीय सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी मंगलवार को नई दिल्ली में मुकुल कानिटकर द्वारा लिखित एवं आई व्यू एंटरप्रायजेस द्वारा प्रकाशित जीवन मूल्यों पर आधारित पुस्तक ‘बनाएं जीवन प्राणवान’ के विमोचन के अवसर पर बोल रहे थे। दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर में आयोजित इस पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में पंचदशनाम जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर पू स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूजनीय सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि गत 2000 वर्षों से विश्व अहंकार के प्रभाव में चला है। मैं अपने ज्ञानेन्द्रिय से जो ज्ञान प्राप्त करता हूं वही सही है उसके पर एक कुछ भी नहीं है, इस सोच के साथ मानव तब से चला है जब से विज्ञान का अदुर्भाव हुआ है। परंतु यही सब कुछ नहीं है। विज्ञान का भी एक दायरा है, एक मर्यादा है। उसके आगे कुछ नहीं, यह मानना गलत है।

उन्होंने कहा कि यह भारतीय सनातन संस्कृति की विशेषता है कि हमने बाहर देखने के साथ-साथ अंदर देखना भी प्रारंभ किया। हमने अंदर तह तक जाकर जीवन के सत्य को जान लिया। इसका और विज्ञान का विरोध होने का कोई कारण नहीं है। जानो तब मानो। अध्यात्म में भी यही पद्धति है। साधन अलग है। अध्यात्म में साधन मन है। मन की ऊर्जा प्राण से आती है। यह प्राण की शक्ति जितनी प्रबल होती है उतना ही उसे पथ पर आगे जाने के लिए आदमी समर्थ होता है।

इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि पंचदशनाम जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर पू स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज ने कहा कि प्राण का आधार परमात्मा है जो सर्वत्र है। प्राण की सत्ता परमात्मा से ही है, उसमें स्पंदन है, उसी से चेतना है, उसी से अभिव्यक्ति है, उसी से रस संचार है और वहीं जीवन है। प्राण चैतन्य होता है।

पुस्तक के लेखक श्री मुकुल कानिटकर जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति में सब कुछ वैज्ञानिक है। आयुर्वेद, वास्तुशास्त्र, स्थापत्य के साथ ही दिनचर्या और ऋतुचर्या के सभी नियम भी बिना कारण के नहीं है। हज़ार वर्षों के संघर्षकाल में इस शास्त्र का मूल तत्व विस्मृत हो गया। वही प्राणविद्या है। सारी सृष्टि में प्राण आप्लावित है। उसकी मात्रा और सत्व-रज-तम गुणों के अनुसार ही भारत में जीवन चलता है।

विभिन्न शास्त्र ग्रंथों में दिए तत्वों को इस पुस्तक में सहज भाषा में प्रस्तुत करने का प्रयत्न हुआ है। नई पीढ़ी के मन में आनेवाले सामान्य संदेहों के शास्त्रीय कारण स्पष्ट करने में सहयोगी होगी।

मुकुल कानिटकर ने उपस्थित श्रोताओं को मुद्राभ्यास द्वारा व्यान प्राण की अनुभूति करवाई।

मुकुल कानिटकर द्वारा लिखित पुस्तक बनाएं जीवन प्राणवान हिन्दू जीवन मूल्यों को समर्पित है। आई व्यू एंटरप्राइजेज द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक भारतीयता के गूढ़ रहस्यों और हिंदुत्व के सनातन दर्शन पर आधारित है, जिसमें प्राचीन ऋषियों के सिद्धांतों और उनके व्यावहारिक उपयोग को प्रस्तुत किया गया है। यह पुस्तक प्राण की महत्ता और भारतीय जीवनशैली में इसकी केंद्रीय भूमिका को रेखांकित करती है। मुकुल कानिटकर ने इस पुस्तक के माध्यम से भारतीयता को समझने के लिए बाहरी निरीक्षण से अधिक आंतरिक अनुभव और अभ्यास की आवश्यकता का महत्व बताया है।

इफको के एमडी डॉ. उदय शंकर अवस्थी प्रतिष्ठित रोशडेल पायनियर्स अवार्ड 2024 से सम्मानित

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– डॉ. वर्गीस कुरियन के बाद यह पुरस्कार पाने वाले दूसरे भारतीय हैं डॉ. अवस्थी
– डॉ. अवस्थी के नेतृत्व में इफको बनी सबसे बड़ी उर्वरक उत्पादक और विपणनकर्ता
– प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के हिसाब से विश्व की सबसे बड़ी कोऑपरेटिव है इफको

नई दिल्ली। इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड (इफको) के प्रबंध निदेशक डॉ. उदय शंकर अवस्थी को प्रतिष्ठित रोशडेल पायनियर्स अवार्ड 2024 प्रदान किया गया है। डॉ. वर्गीस कुरियन के बाद यह पुरस्कार पाने वाले डॉ. अवस्थी दूसरे भारतीय हैं। डॉ. कुरियन को वर्ष 2001 में यह पुरस्कार प्रदान किया गया था। रोशडेल पायनियर्स अवार्ड इंटरनेशनल कोऑपरेटिव अलायंस (आईसीए) द्वारा दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है। इस अवार्ड की शुरुआत वर्ष 2000 में हुई थी। इसका उद्देश्य एक व्यक्ति या विशेष परिस्थितियों में एक सहकारी संगठन को मान्यता देना है, जिसने नवीन और वित्तीय रूप से टिकाऊ सहकारी गतिविधियों में योगदान दिया है जिससे उनके सदस्यों को काफी लाभ हुआ है।

केमिकल इंजीनियर डॉ. अवस्थी 1976 में इफको में नियुक्त हुए। उनके नेतृत्व में इस सहकारी संस्था ने अपनी उत्पादन क्षमता में 292% और शुद्ध संपत्ति में 688% की वृद्धि की। उनके नेतृत्व में इफको ने विभिन्न व्यावसायिक क्षेत्रों में कदम रखा है, अपने व्यवसाय में विविधता लाई है और भारत के किसानों के लिए सफलतापूर्वक नवाचार और स्वदेशी नैनो उर्वरक विकसित किया है।

आईसीए के अध्यक्ष एरियल ग्वार्को ने भारत में पहली बार आयोजित हो रहे आईसीए के वैश्विक सहकारी सम्मेलन में एक विशेष समारोह के दौरान 25 नवंबर को डॉ. अवस्थी को यह पुरस्कार प्रदान किया। इफको लिमिटेड आईसीए और केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय की साझेदारी में आईसीए महासभा और वैश्विक सहकारी सम्मेलन 2024 की मेजबानी कर रहा है। यह सम्मेलन नई दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित किया जा रहा है जो 30 नवंबर, 2024 को समाप्त होगा।

पुरस्कार ग्रहण करने के बाद इफको के एमडी डॉ. उदय शंकर अवस्थी ने कहा, “मैं इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को पाकर बेहद सम्मानित महसूस कर रहा हूं। यह पुरस्कार माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के “सहकार से समृद्धि” के दृष्टिकोण का प्रतीक है। साथ ही यह माननीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह के मार्गदर्शन में इफको के असाधारण प्रयासों को उजागर करता है। हम भारत के सहकारी आंदोलन को वैश्विक मंच पर मजबूती प्रदान करने के उनके दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने के लिए समर्पित हैं। मैं इस सम्मान के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहकारी गठबंधन (आईसीए) का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं, जो हमें विश्व स्तर पर सहकारी भावना को बनाए रखने और आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है।”

डॉ. अवस्थी ने कहा, “इफको ने नैनो डीएपी और नैनो यूरिया (तरल) जैसे नैनो उर्वरकों के माध्यम से टिकाऊ कृषि का समर्थन किया, कृषि पद्धतियों में बदलाव किया और पर्यावरण-अनुकूल समाधानों की मांग को पूरा किया है। स्वदेशी नैनो उर्वरकों ने लॉजिस्टिक मुद्दों से निपटने, भारत की उर्वरक आयात निर्भरता कम करने और भारी पैकेजिंग को कॉम्पैक्ट बोतलों से बदल दिया। इन नवाचारों ने मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार किया, किसानों की लाभप्रदता को बढ़ावा दिया और पर्यावरण की दृष्टि से जिम्मेदार खेती को बढ़ावा दिया है।“ इफको के नए स्वदेशी उत्पाद नैनो यूरिया (तरल) और नैनो डीएपी (तरल) का उपयोग अब पूरे देश के किसान खुशी से कर रहे हैं। भारत के हर कोने और कुछ अन्य देशों, विशेष रूप से पड़ोसी देशों के किसानों द्वारा व्यापक रूप से इसे स्वीकार किया जा रहा है। नैनो उर्वरकों की आपूर्ति के लिए अन्य देश भी इफको से संपर्क कर रहे हैं। भविष्य में हम 25 और देशों में नैनो उर्वरक निर्यात करने की योजना बना रहे हैं।”

इफको ने नैनो डीएपी (तरल) की 44 लाख बोतलों का उत्पादन और नैनो यूरिया (तरल) की 2.04 करोड़ से अधिक बोतलें बेचकर उल्लेखनीय परिचालन सफलता हासिल की है। इसने 80,000 क्षेत्रीय प्रदर्शन आयोजित किए, 80,000 से अधिक किसानों और 1,500 ग्रामीण उद्यमियों को प्रशिक्षण दिया। इफको का कुल उर्वरक उत्पादन 88.95 लाख टन तक पहुंच गया, जिसमें 48.85 लाख टन यूरिया और 40.10 लाख टन एनपीके, डीएपी, डब्ल्यूएसएफ और विशेष उर्वरक शामिल हैं। जबकि घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बिक्री कुल 112.26 लाख टन रही। इससे जैविक और रासायनिक उर्वरक के उपयोग में और वृद्धि हुई है।

पुरस्कार प्राप्त करने वालों की पूरी सूची यहां उपलब्ध हैः

https://ica.coop/en/media/library/fact-sheets/rochdale-award-laureates

संविधान में भारतीय आत्मा के दर्शन..!

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कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल

प्राचीनकाल में भारत के समस्त राजा ‘धर्म की सत्ता’ का अनुकरण करते हुए राज्य शासन चलाते थे। धर्म सत्ता से अभिप्राय – धर्मानुसार आचरण करते हुए प्रजापालन करना था। शासन संचालन का अर्थ ही — प्रजा की उन्नति एवं समृद्धि के लिए प्रतिबद्ध रहना था। धर्म का अर्थ ही – सत्य , न्याय एवं लोकमङ्गल के साथ समता – समरसता – समृध्दि के मूल्यों से एकमेव होना था। वैसे भी हमारा देश भारत सदैव से लोकतान्त्रिक मूल्यों की जननी रहा है। राजा हरिश्चन्द्र की दानशीलता एवं विक्रमादित्य की न्यायप्रियता की कथाओं के किस्से हमारे मनो मस्तिष्क में गहरे समाए हुए हैं। भारतीय सभ्यता ने अपने अतीत में गौरवशाली अध्याय लिखे हैं । वैदिक युग से लेकर भगवान श्री राम का त्रेता युग ,द्वापर में कृष्ण से लेकर महात्मा गौतम बुद्ध, भगवान महावीर के काल होते हुए , सम्राट विक्रमादित्य सहित समस्त भारतीय शासक प्रजाहितैषी मूल्यों का पालन करते थे।आधुनिक समय में स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात भारतीय जीवन मूल्यों, सांस्कृतिक इतिहास, परम्पराओं, संस्कृति एवं भारतीय आदर्शों – महापुरुषों द्वारा स्थापित परिपाटी को आधार बनाकर — हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान की थाती हमें सौंपी है। वैशाली के गणतंत्र से लेकर आचार्य चाणक्य की छाँव में चन्द्रगुप्त मौर्य ने लोकतन्त्र एवं एकीकरण के कीर्तिमान स्थापित किए। जो आगे चलकर सम्राट अशोक के समय अपने गौरव को प्राप्त हुआ।‌

आधुनिक सन्दर्भ में 9 दिसम्बर 1946 को संविधान सभा की प्रथम बैठक से संविधान निर्माण का शुभारम्भ हुआ। आगे संविधान सभा ने — 2 वर्ष 11 माह 18 दिन की दीर्घ अवधि की — संवैधानिक बहसों और विश्व के समस्त देशों के संविधानों से श्रेष्ठ विचारों – उपबंधों को आत्मसात किया। इस प्रकार भारतीय जनता की आशा अपेक्षाओं – आकांक्षाओं को पूरा करने एवं उन्हें समता के समस्त अधिकारों को प्रदान करने के ध्येय से संविधान की रचना की। संविधान सभा ने अपने द्वारा निर्मित संविधान को — 26 नवम्बर ,1949 ई. ( मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी,सम्वत दो हजार छह विक्रमी ) को अंगीकृत अधिनियमित एवं आत्मार्पित किया। और इसके साथ ही आगे चलकर 26 जनवरी सन् 1950 से संविधान पूर्णरुपेण लागू हो गया। और इसके साथ आधुनिक लोकतंत्र में भारतीय संविधान एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में सामने आया। हमारे संविधान निर्माताओं की दृष्टि में भारत की सांस्कृतिक विरासत एवं महापुरुषों की प्रखर दीप्ति से आलोकित विचार गङ्गा थी। इसी को संविधान निर्माण के समय , संविधान के मूल स्त्रोत और मूल शक्ति को ‘हम भारत के लोग’ यानि भारतीय जनता को बनाया गया। वहीं हमारे संविधान की उद्देशिका हमारे संविधान की आत्मा के दर्शन के रूप में श्रेष्ठ लोकतांत्रिक व्यवस्था की संस्थापना की घोषणा करती है।‌

हमारे संविधान एवं संवैधानिक व्यवस्था में लिए गए एक एक प्रतीक , चिन्ह , शब्द, ध्येय वाक्यों, राष्ट्रीय ध्वज – तिरंगा, राष्ट्रगान – ‘जनगणमन’ ष राष्ट्र गीत – वन्देमातरम्, राष्ट्रीय पक्षी – मोर, राष्ट्रीय पुष्प – कमल, राष्ट्रीय पशु – बाघ सहित समस्त राष्ट्रीय प्रतीकों – व्यवस्थाओं का अपना अनुपमेय – महत्व है। इनमें भारतीयता के आदर्शों एवं मूल्यों से अनुप्राणित लोकतान्त्रिक दृष्टि के महान सूत्र समाहित हैं। कुछ उदाहरण दृष्टव्य हैं — हमारा राष्ट्रीय ध्येय वाक्य – सत्यमेव जयते , सर्वोच्च न्यायालय का ध्येय वाक्य (यतो धर्मस्ततो जयः , कैग का — लोकहितार्थ सत्यनिष्ठा, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का —
प्रत्नकीर्तिमपावृणु (Let us uncover the glory of the past) , ऑल इंडिया रेडियो का — ‘बहुजन हिताय बहुजन‍ सुखाय‌’ वहीं भारतीय इण्टेलीजेंस ब्यूरो का ध्येय वाक्य— जागृतं अहर्निशम्’ है।

भारत के सांस्कृतिक मूल्यों के आलोक में ही भारतीय संसद के पुराने दोनों सदनों के साथ नवीन संसद भवन को अलंकृत किया गया है। यहां भारतीय संस्कृति के श्लोक, वैदिक मंत्र एवं अन्य सांस्कृतिक विरासत के चित्रों को प्रदर्शित किया गया है। ताकि इससे प्रेरणा लेकर हमारी व्यवस्थाएं कार्य करें। इन चित्रों, ध्येय वाक्यों और स्तम्भों में भारतीयता ‘स्व’ सर्वत्र परिलक्षित होता है। नवीन संसद भवन के लोकार्पण के समय भारत की सांस्कृतिक परंपरा अनुरूप ‘सेंगोल’ धर्मदंड की स्थापना उसी का प्रतीक है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारतीयता के स्व और सांस्कृतिक उत्कर्ष को उकेरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

भारतीय स्वातंत्र्य आन्दोलनों के समय हमारे स्वतन्त्रता सेनानी पूर्वजों ने जिन विचारों और कार्यों को अपने अभूतपूर्व तप, त्याग, शौर्य, पराक्रम और साहस के साथ सम्पन्न किया। हमारे संविधान में उनका स्पष्ट प्रतिबिम्ब दृष्टव्य होता है। संवैधानिक विकास क्रम में मूल रूप से 22 भागों , 395 अनुच्छेदों व आठ अनुसूचियों वाले संविधान में आवश्यकतानुसार अनेकों परिर्वतन – संशोधनों को अपनाया। अब 22-25 भाग और 450 से अधिक अनुच्छेद एवं 12 अनुसूचियां है।‌ संविधान की मूल प्रतियाँ टाइप या मुद्रित नहीं थीं। बल्कि उन्हें प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा ने हस्तलिखित रुप में तैयार किया था। जो संसद के पुस्तकालय में हीलियम से संरक्षित हैं। संविधान के प्रत्येक पृष्ठ को आकर्षक ढंग से अलंकृत करने का काम गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के शांति निकेतन के नंदलाल बोस ने किया था। संविधान के सभी 22 भागों में उसकी मूल भावना के अनुरूप भारत के सांस्कृतिक गौरव के चित्रों से अलंकृत किया है। इसी प्रकार संविधान को मूल रूप हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखा गया है। संविधान के हिंदी संस्करण की कैलीग्राफी वसंत कृष्ण वैद्य ने की। 264 पृष्ठों वाले हिंदी संस्करण का वजन 14 किलोग्राम है। इतना ही नहीं संविधान निर्माण में नारियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है जिन्होंने संविधान सभा के सदस्य के तौर पर बहसों में भाग लिया। संशोधन कराए।

संविधान में मौलिक अधिकारों के साथ मौलिक कर्तव्यों, नीति निर्देशक तत्वों,पंचायती राज्य व्यवस्था , सूचना के अधिकार सहित , मानवाधिकारों, महिला सशक्तिकरण, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए विशेष व्यवस्थाएं हैं। इसके साथ ही प्रत्येक विभाग के लिए पृथक मंत्रालय से लेकर प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण सम्वर्द्धन – गंगा मंत्रालय से लेकर, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, नीति आयोग , आरक्षण की व्यवस्था जैसे अनेकानेक क्षेत्रों में संवैधानिक व्यवस्था ने कदम बढ़ाए हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, राजभाषा के लिए काम सहित , भारतीय भाषाओं के विकास, नवाचार, मीडिया एवं प्रेस के विविध स्वरूप, पत्रकारिता के विविध आयाम, किसान एवं कृषि, युवाओं , वैज्ञानिक अनुसंधानों, शोध का मार्ग संवैधानिक व्यवस्था के चलते ही प्रशस्त हुआ है। स्वस्थ निर्वाचन, स्वतन्त्र न्यायपालिका एवं आधुनिक तकनीकी व विज्ञान के साथ कदम ताल करते हुए — सामाजिक, आर्थिक राजनीतिक, सांस्कृतिक तौर पर विश्व के समक्ष महाशक्ति के रूप में उभरने का मार्ग संविधान ने ही सुझाया है। स्वाधीनता के अमृतकाल में भारत के सर्वांगीण विकास गुलामी के समस्त प्रतीकों को उतार फेंकने — आत्मनिर्भरता, स्वदेशी, स्वावलंबन, इनोवेशन के साथ अंतिम छोर के व्यक्ति के जीवन में खुशहाली लाने में संविधान की विचार दृष्टि की महत्वपूर्ण भूमिका है।

राष्ट्र इस वर्ष यानी 26 नवंबर 2024 से संविधान की यात्रा के 75 वें वर्ष में प्रवेश करेगा। वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने 26 नवंबर को ‘संविधान दिवस’ मनाने की अधिसूचना जारी की थी। इस प्रकार 2015 से केंद्र एवं राज्य सरकारों ने आधिकारिक रूप से औपचारिक कार्यक्रमों की शुरुआत की। इस वर्ष 26 नवंबर 2024 को पुरानी संसद भवन के सेंट्रल हॉल / संविधान सदन में संविधान को अंगीकृत किए जाने की 75 वीं वर्षगांठ मनाई गई। इस दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने 75 रुपए का सिक्का और स्मारक डाक टिकट जारी किया। साथ ही संविधान के संस्कृत और मैथिली संस्करण का विमोचन भी किया गया। हमारा संविधान हमारा स्वाभिमान की दृष्टि से दो पुस्तकों — ‘एक झलक’ और ‘भारतीय संविधान का निर्माण और इसकी गौरवशाली यात्रा’ भी देश को सौंपी गई। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला समेत पक्ष-विपक्ष के सांसद/ मंत्रिमंडल के सदस्य उपस्थित रहे।

यदि हम 1975 से 1977 के इंदिरा गांधी शासनकाल के क्रूर आपातकाल के दौर को छोड़ दें तो भारतीय संविधान पर कभी आंच नहीं आई है। उसी बीच 3 जनवरी 1977 को संविधान में 42 वां संशोधन कर सेक्युलरिज्म, समाजवादी शब्द संविधान की उद्देशिका में जोड़े गए। जबकि हमारे संविधान निर्माता इन दोनों शब्दों के पक्ष में कभी नहीं थे। इन्हीं दो शब्दों से जुड़े हुए कुछ प्रसंग दृष्टव्य हैं। प्रो. के.टी. शाह संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता शब्द जोड़ने का प्रस्ताव लेकर गए थे।‌ उस समय संविधान निर्माण की प्रारुप समिति के अध्यक्ष बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने उनके प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया था। उस समय जब प्रोफेसर के.टी शाह ने 15 नवंबर,1948 को संविधान सभा से प्रस्तावना में तीन शब्द – निरपेक्ष धर्म, संघीय और समाजवादी को शामिल करने की मांग की थी लेकिन कई अन्य सदस्यों के साथ ही डॉ. अंबेडकर ने भी इन्हें प्रस्तावना में शामिल करने से अस्वीकार कर दिया था ।

उस समय उन्होंने कहा था — “श्रीमान् उपाध्यक्ष महोदय, मुझे खेद है कि मैं प्रो. के. टी. शाह का संशोधन स्वीकार नहीं कर सकता। संक्षेप में मेरी दो आपत्तियाँ हैं। पहली आपत्ति तो यह है, जैसा कि मैं प्रस्ताव के समर्थन में सदन में दिये अपने उद्घाटन भाषण में कह चुका हूँ कि संविधान राज्य के विभिन्न अंगों के कार्यों को विनियमित करने वाली एक क्रियाविधि मात्र है। यह कोई ऐसा तंत्र नहीं है जिसके माध्यम से किसी दल के किन्हीं सदस्यों को पदासीन कर दिया जाता है। राज्य की नीति क्या हो, समाज को सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से किस प्रकार व्यवस्थित किया जाये, ये ऐसे मसले हैं जो स्वयं लोगों द्वारा समय तथा परिस्थितियों के अनुसार तय किए जाने चाहिएं। संविधान स्वत: यह निर्धारित नहीं कर सकता, क्योंकि ऐसा करना लोकतंत्र को पूरी तरह से नष्ट करने जैसा होगा। यदि आप संविधान में यह व्यवस्था करते हैं कि राज्य का सामाजिक स्वरूप एक विशेष प्रकार का होगा तो मेरी दृष्टि में, आप लोगों से अपने सामाजिक स्वरूप तय करने की आजादी छीन रहे हैं जिसमें वे रहना चाहते हैं। आज यह बिल्कुल सम्भव है कि अधिकतर लोग यह मान लें कि समाज की समाजवादी व्यवस्था समाज की पूंजीवादी व्यवस्था से बेहतर है। परंतु पूर्णत: यह भी संभव हो सकता है कि चिंतनशील लोग सामाजिक व्यवस्था के कुछ दूसरे स्वरूप ईजाद कर लें जो आज या कल की समाजवादी व्यवस्था से बेहतर साबित हो। इसलिए मैं नहीं समझता कि संविधान को लोगों को एक विशेष रूप में रहने के लिए बाध्य करना चाहिए और इसके बारे में तय करने का अधिकार लोगों पर ही छोड़ देना चाहिए जिसकी वजह से संशोधन का विरोध किये जाने का यह पहला कारण है। दूसरा कारण है कि संशोधन बिलकुल अनावश्यक है। मेरे माननीय मित्र प्रो. शाह ने इस तथ्य का ध्यान नहीं रखा है कि संविधान में सम्मिलित मूल अधिकारों के अलावा हमने दूसरी धाराओं का भी प्रावधान किया है जो राज्य नीति निर्देशात्मक सिद्धांतों से संबंधित हैं। यदि मेरे माननीय मित्र भाग IV में समाविष्ट अनुच्छेदों को पढ़ें तो वह पायेंगे कि विधायिका और कार्यपालिका दोनों को ही संविधान द्वारा नीति के स्वरूप के बारे में कुछ जिम्मेवारियाँ सौंपी गई हैं।”

( बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर संपूर्ण वाङ्मय, खण्ड 27 – प्रकाशक, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार )

इसी प्रकार लोकसभा में सेक्युलर स्टेट नाम लेने पर जब एक सदस्य ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू से सेक्यूलर स्टेट का मतलब पूछा तो उन्होंने अर्थ बताने के स्थान पर सदस्य को डाँटकर शब्द कोश देखने के लिए कह दिया था। जबकि उस समय ये दोनों शब्द संविधान की शब्दावली में कहीं नहीं थे।

हमारा संविधान उन्हीं भावों और विचारों को निरुपित करता है जिन्हें पं. दीनदयाल उपाध्याय ने इस प्रकार व्यक्त किया था। उन्होंने कहा था भारत की राष्ट्रीयता प्राणिमात्र के प्रति कल्याण की भावना लेकर प्रकट हुई है और भारत की राष्ट्रीयता संघर्ष में नहीं पनपी है । सभ्यता के आरम्भ काल से ही भारत सांस्कृतिक राष्ट्र रहा है।”

यह भारत के लोकतंत्र की खूबी ही है कि स्वातंत्र्योत्तर कालखंड में संसद, विधानसभाओं न्यायपालिका एवं सर्वोच्च संवैधानिक पदों में — महिलाओं, वंचित समूहों, जनजातीय समाज एवं अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व मिला है। भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से लेकर प्रथम भारतीय महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल और जनजातीय समाज से आने वाली वर्तमान महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु सहित विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका एवं शासन प्रशासन के समस्त क्षेत्रों में भारतीय लोकतंत्र गौरवशाली इतिहास के अध्याय रचे हैं। ये सभी कीर्तिमान हमारे सांस्कृतिक भारत एवं सांस्कृतिक लोकतन्त्र के साथ उम्मीद की लौ जलाते हैं।

इसी सन्दर्भ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत द्वारा ‘भविष्य का भारत विषय’ पर विज्ञान भवन नई दिल्ली में 18 सितम्बर सन् 2018 को दिए गए वक्तव्य प्रकाश डालते हैं —
स्वतंत्र भारत के सब प्रतीकों के अनुशासन में उसका पूर्ण सम्मान करके हम चलते हैं। हमारा संविधान भी ऐसा ही प्रतीक है। शतकों के बाद हम को फिर से अपना जीवन अपने तंत्र से खड़ा करने का जो मौका मिला, उस पर हमारे देश के मूर्धन्य लोगों ने, विचारवान लोगों ने एकत्रित होकर, विचार करके संविधान को बनाया है।‘ (भविष्य का भारत – 18 सितम्बर 2018, विज्ञान भवन, नई दिल्ली)

और आगे डॉ. मोहन भागवत कहते हैं —
संविधान ऐसे ही नहीं बना है। उसके एक-एक शब्द का बहुत विश्लेषण हुआ है और उनको लेकर सर्वसहमति उत्पन्न करने के पूर्ण प्रयास के बाद जो सहमति बनी, वह संविधान के रूप में अपने पास आयी, उसकी एक प्रस्तावना है। उसमें नागरिक कर्तव्य बताए हैं। उसमें नीति-निर्देशक सिद्धांत है और उसमें नागरिक अधिकार भी हैं। हमारे प्रजातांत्रिक देश ने, हमने एक संविधान को स्वीकार किया है। वह संविधान हमारे लोगों (भारतीय लोगों ने) ने तैयार किया है। हमारा संविधान, हमारे देश की चेतना है। इसलिए उस संविधान के अनुशासन का पालन करना, यह सबका कर्तव्य है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इसको पहले से मानता है।” (भविष्य का भारत, नई दिल्ली – 18 सितम्बर 2018)

वर्तमान में अधिकारों की बात तो सब करते हैं किन्तु अपने कर्त्तव्यों के बारे में हम ध्यान नहीं देते हैं। इस संबंध में डॉ. मोहन भागवत के नागरिक कर्त्तव्य बोध और संविधान-कानून के पालन के ये विचार सर्वथा प्रासंगिक हैं — “शासन-प्रशासन के किसी निर्णय पर या समाज में घटने वाली अच्छी बुरी घटनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया देते समय अथवा अपना विरोध जताते समय, हम लोगों की कृति, राष्ट्रीय एकात्मता का ध्यान व सम्मान रखकर, समाज में विद्यमान सभी पंथ, प्रांत, जाति, भाषा आदि विविधताओं का सम्मान रखते हुए व संविधान कानून की मर्यादा के अंदर ही अभिव्यक्त हो, यह आवश्यक है। दुर्भाग्य से अपने देश में इन बातों पर प्रामाणिक निष्ठा न रखने वाले अथवा इन मूल्यों का विरोध करने वाले लोग भी, अपने-आप को प्रजातंत्र, संविधान, कानून, पंथनिरपेक्षता आदि मूल्यों के सबसे बड़े रखवाले बताकर, समाज को भ्रमित करने का कार्य करते चले आ रहे हैं। 25 नवम्बर, 1949 को संविधान सभा में दिए अपने भाषण में श्रद्धेय डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने उनके ऐसे तरीकों को ‘अराजकता का व्याकरण कहा था। ऐसे छद्मवेषी उपद्रव करने वालों को पहचानना व उनके षड्यंत्रों को नाकाम करना तथा भ्रमवश उनका साथ देने से बचना समाज को सीखना पड़ेगा।” (विजयादशमी उत्सव, नागपुर – 25 अक्तूबर 2020)

संविधान को लेकर जब विभाजनकारी कृत्य राजनेताओं द्वारा किए जा रहे हैं। समाज के मध्य विभाजन की रेखा खींची जा रही है। वोट और सत्ता प्राप्ति के लिए संवैधानिक संस्थाओं , मूल्यों और संविधान पर खुलेआम कुठाराघात किया जा रहा है। ऐसे में हमें बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के विचारों पर चिन्तन मंथन करना नितांत आवश्यक हो जाता है। 25 -26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा में डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद और बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के निम्न वक्तव्यों के आलोक में सभी को आत्मावलोकन करना चाहिए। साथ ही संवैधानिक मूल्यों का अनुसरण करते हुए उनके पालन की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।

संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपने समापन भाषण में विचार व्यक्त करते हुए कहा था कि — “संविधान सभा सब मिलाकर एक अच्छा संविधान बनाने में सफल रही है। और उन्हें विश्वास है कि यह देश की जरूरतों को अच्छी तरह से पूरा करेगा। किंतु इसके साथ ही उन्होंने भविष्य के लिए संकेतात्मक चेतावनी भी देते हुए कहा था कि —“ यदि लोग, जो चुनकर आएंगे, योग्य, चरित्रवान और ईमानदार हुए तो वे दोषपूर्ण संविधान को भी सर्वोत्तम बना देंगे। यदि उनमें इन गुणों का अभाव हुआ तो संविधान देश की कोई मदद नहीं कर सकता। आखिरकार, एक मशीन की तरह संविधान भी निर्जीव है। इसमें प्राणों का संचार उन व्यक्तियों के द्वारा होता है, जो इस पर नियंत्रण करते हैं तथा इसे चलाते हैं और भारत को इस समय ऐसे लोगों की जरूरत है, जो ईमानदार हों तथा जो देश के हित को सर्वोपरि रखें। हमारे जीवन में विभिन्न तत्वों के कारण विघटनकारी प्रवृत्ति उत्पन्न हो रही है। हममें सांप्रदायिक अंतर हैं, जातिगत अंतर हैं, भाषागत अंतर हैं, प्रांतीय अंतर हैं। इसके लिए दृढ़ चरित्र वाले लोगों की, दूरदर्शी लोगों की, ऐसे लोगों की जरूरत है, जो छोटे-छोटे समूहों तथा क्षेत्रों के लिए देश के व्यापक हितों का बलिदान न दें और उन पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ सकें जो इन अंतरों के कारण उत्पन्न होते हैं। हम केवल यही आशा कर सकते हैं कि देश में ऐसे लोग प्रचुर संख्या में सामने आएंगे। ”

वहीं बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर ने कहा था कि —
“मैं महसूस करता हूं कि संविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, यदि वे लोग, जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाए, खराब निकलें तो निश्चित रूप से संविधान भी खराब सिद्ध होगा। दूसरी ओर, संविधान चाहे कितना भी खराब क्यों न हो, यदि वे लोग, जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाए, अच्छे हों तो संविधान अच्छा सिद्ध होगा। संविधान पर अमल केवल संविधान के स्वरूप पर निर्भर नहीं करता। संविधान केवल विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे राज्य के अंगों का प्रावधान कर सकता है। राज्य के उन अंगों का संचालन लोगों पर तथा उनके द्वारा अपनी आकांक्षाओं तथा अपनी राजनीति की पूर्ति के लिए बनाए जानेवाले राजनीतिक दलों पर निर्भर करता है। कौन कह सकता है कि भारत के लोगों तथा उनके राजनीतिक दलों का व्यवहार कैसा होगा?जातियों तथा संप्रदायों के रूप में हमारे पुराने शत्रुओं के अलावा, विभिन्न तथा परस्पर विरोधी विचारधारा रखनेवाले राजनीतिक दल बन जाएंगे। क्या भारतवासी देश को अपने ‘पंथ’ से ऊपर रखेंगे या पंथ को देश से ऊपर रखेंगे? मैं नहीं जानता। लेकिन यह बात निश्चित है कि यदि राजनीतिक दल अपने पंथ को देश से ऊपर रखेंगे तो हमारी स्वतंत्रता एक बार फिर खतरे में पड़ जाएगी और संभवतया हमेशा के लिए खत्म हो जाए। हम सभी को इस संभाव्य घटना का दृढ़ निश्चय के साथ प्रतिकार करना चाहिए। हमें अपनी आजादी की खून के आखिरी कतरे के साथ रक्षा करने का संकल्प करना चाहिए।”

हमारे समक्ष भारतीय संविधान की वह धरोहर है जो दिनों दिन काल सुसंगत ढंग से लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना करती हुई — भारत एवं भारतीयता के बोध के साथ निरन्तर पथ प्रशस्त कर रही है। संविधान में निहित मूल्यों – आदर्शों का पालन करते हुए नागरिक कर्त्तव्यों को आचरण में लाने की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। ताकि संविधान निर्माताओं एवं महापुरुषों की के विचारों को मूर्तरूप देकर भारत को विश्वगुरु की पदवी पर पुन: आसीन कराया जाए। पूज्य स्वामी विवेकानंद के इन वचनों को आत्मसात करने की आवश्यकता है — “यह देखो, भारतमाता धीरे-धीरे आँख खोल रही है। वह कुछ देर सोयी थी । उठो, उसे जगाओ और पहले की अपेक्षा और भी गौरवमण्डित करके भक्ति भाव से उसे उसके चिरन्तन सिंहासन पर प्रतिष्ठित कर दो।”

(लेखक साहित्यकार, स्तम्भकार एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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