विलक्षण प्रतिभा के धनी क्रांतिकारी थे, श्याम जी कृष्ण वर्मा

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श्री श्याम जी कृष्णवर्मा विलक्षण प्रतिभा के धनी क्रांतिकारी थे जिन्होंने अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए समर्पण भाव से विदेशी धरती से निरंतर प्रयास करके अनेक युवाओं को क्रांतिकारी बनाया और स्वाधीनता संग्राम में महती भूमिका निभाई। छत्रपति शिवाजी की ही भांति उनके जीवन में संस्कार व कौशल जगाने का कार्य उनकी माता ने किया। हाईस्कूल की शिक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वह वेदशाला में संस्कृत का अध्ययन भी करने भी गए।
 मुंबई में  महर्षि दयानंद सरस्वती के संपर्क में आने के बाद उन्होंने भारत में  संस्कृत भाषा एवं वैदिक विचारों के प्रचार का संकल्प लिया और वह धर्म प्रचारक बन गये। नासिक, अहमदाबाद, बड़ौदा, भड़ौच, सूरत आदि जिलों में उन्होंने संस्कृत भाषा में ही प्रचार कार्य किया। इसी दौरान ब्रिटिश प्रोफेसर विलियम्स ने उन्हें आक्सफोर्ड  विश्वविद्यालय में संस्कृत का अध्यापक नियुक्त करवाने में सहायता की परंतु उन्होंने वेदों का प्रचार जारी रखा। कुछ समय बाद वह भारत वापस आ गये और मुंबई में वकालत करने लगे ।
वह भारत की गुलामी से बहुत दुखी थे । उसी समय में  लोकमान्य तिलक जी ने उन्हें विदेशों में स्वतंत्रता हेतु कार्य करने का सुझाव दिया। तिलक जी का सुझाव मानकर वह इंग्लैड चले गये और उन्होंने भारतीय छात्रों के लिए एक मकान खरीदकर उसका नाम इंडिया हाउस (भारत भवन ) रखा। यह भवन क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र बन गया। उन्होंने राणा प्रताप और शिवाजी के नाम पर छात्र वृत्तियाँ प्रारम्भ कीं।
1857 के समर का अर्धशताब्दी उत्सव भारत भवन में धूमधाम से मनाया गया।  वर्मा जी ने इंडियन सोशियोलाजिस्ट नामक समाचार पत्र भी निकाला। उनके विचारों से ही प्रभावित होकर वीर सावरकर, सरदार सिंह राणा और मादाम भीका जी कामा जैसे महान क्रांतिकारी स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हुए। लाला लाजपत राय विपिन चंद्रपाल जैसे महान क्रांतिकारी भी वहां आने लग गये। विजयादशमी  पर्व पर भारत भवन में वीर सावरकर और गांधी जी भी उपस्थित हुए थे। जलियांवाला हत्याकांड के अपराधी माइकेल ओ डायर का वध करने वाले ऊधम सिंह के प्रेरणा स्रोत श्याम जी ही थे लाला हरदयाल और मदन लाल धींगड़ा को बनाने वाले भी श्याम जी कृष्ण वर्मा ही थे।
ब्रिटिश सरकार से बचने के लिए  वह पेरिस चले गये और  पेरिस जाकर ”तलवार“ नामक समचार पत्र निकाला तथा छात्रों के लिए धींगरा छात्रवृत्ति प्रारम्भ की। भारत में होने वाली आधिकांश बड़ी क्रांतिकारी घटनाओं  में उनका नाम ही जुड़ रहा था  अतः पेरिस की पुलिस भी उनके पीछे पड़ गयी।  कई साथी पकड़े गये और उन पर भी  ब्रिटेन में राजद्रोह का मुकदमा चलने लगा अतः वे पेरिस से जेनेवा चले गये जहां उनका निधन हो गया।

बल के साथ शील की उपासना से राष्ट्र निर्माण या नागरिक चरित्र से होगा राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण

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शिवेश प्रताप

मोहन भागवत जी का आज का विजयादशमी उद्बोधन भारतीय समाज और राष्ट्र निर्माण के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक संदेश था। एक मजबूत नागरिक चरित्र से ही एक मजबूत राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण होता है। अपने वक्तव्य ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और समसामयिक संदर्भों के माध्यम से उन्होंने समाज और राष्ट्र के उत्थान में नागरिकों के कर्तव्यों पर जोर दिया। उन्होंने संवैधानिक अनुशासन के साथ मन, कर्म और वचन के विवेक पर ध्यान देते हुए बल के साथ शील की उपासना से राष्ट्र निर्माण पर जोर देने की बात कही।

उनके वक्तव्य का मर्म था की हम सभी को यह समझना होगा कि हमारी सामूहिक शक्ति ही हमें वैश्विक चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनाएगी। हमें मिलकर सुख, शांति, और सद्भावना के लिए कार्य करना चाहिए, ताकि भारत एक ऐसा राष्ट्र बने जो न केवल अपने नागरिकों के लिए बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत कर सके। आइये उनके भाषण मे कहे गए विचारों की विस्तार से चर्चा करें;

भारतीय संस्कृति और महान विभूतियों का स्मरण:

मोहन भागवत जी ने महारानी दुर्गावती, अहिल्याबाई होल्कर, स्वामी दयानंद सरस्वती, और भगवान बिरसा मुंडा जैसे महापुरुषों का स्मरण करते हुए बताया कि ये विभूतियां हमारे समाज और राष्ट्र के लिए आदर्श हैं। इन महापुरुषों ने निस्वार्थ भाव से देश और समाज के लिए काम किया और अपने जीवन के माध्यम से समाज को नई दिशा दी। उनका जीवन आदर्श और निष्ठा का प्रतीक था, जिसने भारतीय समाज को एकता, साहस और निस्वार्थ सेवा का पाठ पढ़ाया। ये महापुरुष व्यक्तिगत और राष्ट्रीय चरित्र के उन्नयन का प्रतीक हैं, और हमें उनसे प्रेरणा लेकर अपने समाज और देश को मजबूत बनाना होगा।

व्यक्तिगत और राष्ट्रीय चरित्र की आवश्यकता:

उनके भाषण का एक प्रमुख पहलू था व्यक्तिगत और राष्ट्रीय चरित्र का महत्त्व। उन्होंने स्पष्ट किया कि एक राष्ट्र का वैभव और शक्ति उसके नागरिकों के चारित्रिक गुणों पर निर्भर करते हैं। जो समाज अपने नागरिकों में निष्ठा, साहस, और सत्यनिष्ठा के गुणों को विकसित करता है, वह ही सशक्त और समर्थ बनता है। उन्होंने भारतीय समाज में इन गुणों को और अधिक सुदृढ़ करने की आवश्यकता पर बल दिया। वे मानते हैं कि जब तक समाज में चारित्रिक बल नहीं होगा, तब तक राष्ट्रीय प्रगति संभव नहीं है। यही कारण है कि उन्होंने समाज के हर क्षेत्र में ऐसे गुणों को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर जोर दिया।

विज्ञान प्रगति के साथ नैतिक प्रगति आवश्यक:

मोहन भागवत जी ने भारतीय समाज और राष्ट्र की वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी में प्रगति का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि भारत टेक्नोलॉजी, शिक्षा, और विज्ञान के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है। यह प्रगति हमारे समाज की समझदारी और नवाचार के परिणामस्वरूप हो रही है। लेकिन उन्होंने यह भी चेताया कि प्रगति का मार्ग चुनौतियों से भरा होता है। इसीलिए हमें न केवल भौतिक दृष्टि से बल्कि चारित्रिक और नैतिक दृष्टि से भी मजबूत होना चाहिए, ताकि हम हर प्रकार की चुनौतियों का सामना कर सकें।

वैश्विक परिदृश्य और चुनौतियां:

भागवत जी ने वैश्विक संदर्भ में भी महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की। उन्होंने इसराइल-हमास युद्ध और अन्य वैश्विक संघर्षों का जिक्र करते हुए कहा कि आज का मानव समाज भले ही वैज्ञानिक और तकनीकी दृष्टि से बहुत उन्नत हो गया हो, लेकिन स्वार्थ और अहंकार के कारण दुनिया में कई संघर्ष और समस्याएं पैदा हो रही हैं। उन्होंने चेताया कि भारत की प्रगति से कुछ विदेशी ताकतें खुश नहीं हैं और वे तरह-तरह के षड्यंत्र करके भारत को रोकने का प्रयास कर रही हैं। यह वैश्विक स्थिति हमें सतर्क करती है कि हमें केवल भौतिक प्रगति पर ही निर्भर नहीं रहना चाहिए, बल्कि हमें नैतिक और चारित्रिक बल की भी आवश्यकता है ताकि हम विश्व मंच पर मजबूती से खड़े रह सकें।

सामाजिक एकता और कट्टरता का मुकाबला:

मोहन भागवत जी ने अपने भाषण में बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के खिलाफ हो रहे अत्याचारों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि कट्टरपंथ की प्रवृत्ति, चाहे वह किसी भी समाज में हो, समाज को कमजोर करती है। भारत में सामाजिक एकता और सौहार्द बनाए रखना बहुत जरूरी है, क्योंकि विभाजन और कट्टरता देश की प्रगति में बड़ी बाधाएं हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि हिंदू समाज को संगठित रहना चाहिए और देश के विकास में अपनी सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए। यह केवल हिंदू समाज के लिए नहीं, बल्कि सभी अल्पसंख्यक समुदायों के लिए भी आवश्यक है।

संघ का राष्ट्र निर्माण में योगदान:

संघ प्रमुख ने संघ के कार्यों का जिक्र करते हुए बताया कि संघ ने पिछले 99 वर्षों में समाज को संगठित करने और उसे नैतिक रूप से सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। संघ का उद्देश्य समाज को एकजुट करना और समाज में नैतिक और चारित्रिक बल को विकसित करना है। उन्होंने कहा कि संघ का कार्य केवल संगठन का विस्तार नहीं है, बल्कि समाज के हर व्यक्ति में चारित्रिक गुणों का विकास करना है ताकि वह राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे सके।

भागवत जी ने यह भी कहा कि वर्तमान समय में भारत के सामने कई चुनौतियां हैं, जिनसे निपटने के लिए समाज को जागरूक और संगठित होना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि सामाजिक असमानता, जातिवाद, और धार्मिक कट्टरता जैसी समस्याएं समाज को कमजोर करती हैं। यदि समाज इन चुनौतियों से निपटने में सफल होता है, तो भारत न केवल आर्थिक और वैज्ञानिक दृष्टि से बल्कि चारित्रिक दृष्टि से भी विश्वगुरु बनने की दिशा में अग्रसर हो सकता है।

युवा में देश के प्रति गर्व की भावना:

मोहन भागवत जी ने विशेष रूप से युवा पीढ़ी की भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आज के युवा में देश के प्रति गर्व की भावना जाग रही है और यह एक सकारात्मक संकेत है। युवा पीढ़ी में साहस, निष्ठा, और सेवा के गुणों का विकास करना आवश्यक है ताकि वे राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें। उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे केवल व्यक्तिगत लाभ के बारे में न सोचें, बल्कि समाज और देश के विकास के लिए भी योगदान दें।

सामाजिक समरसता का महत्व:

भागवत जी ने अपने भाषण में सामाजिक समरसता और सद्भावना की चर्चा की, जिसे उन्होंने स्वस्थ समाज की पहली शर्त माना। उनके अनुसार, संगठन और एकता केवल प्रतीकात्मक कार्यक्रमों से नहीं आएगी, बल्कि व्यक्तिगत और पारिवारिक स्तर पर काम करने से आएगी। यह विचार दर्शाता है कि एकता और सहयोग की भावना केवल समारोहों और आयोजनों से नहीं, बल्कि हर व्यक्ति के व्यक्तिगत प्रयासों से ही विकसित होगी।

उन्होंने कहा कि सभी वर्गों के बीच मित्रता होनी चाहिए। जब हम विभिन्न पंथ, भाषा और रीति-रिवाजों के बावजूद एक-दूसरे के प्रति मित्रता का भाव रखेंगे, तभी समाज में वास्तविक समरसता आएगी। इसके लिए भागवत जी ने सुझाव दिया कि विभिन्न धार्मिक उत्सवों को सभी को मिलकर मनाना चाहिए। जैसे कि वाल्मीकि जयंती और रविदास जयंती आदि पर्वों को पूरे हिंदू समाज द्वारा मनाना चाहिए।

जातिगत नेतृत्व और सामूहिक प्रयास:

भागवत जी ने जातिगत नेतृत्व की महत्वपूर्णता को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि जाति और वर्ग के सभी मुखिया अगर ब्लॉक स्तर पर एकत्र होकर समाज की समस्याओं पर चर्चा करें और उन्हें सुलझाने का प्रयास करें, तो समाज में सद्भावना को बनाए रखने में मदद मिलेगी। उन्होंने उदाहरण दिया कि कैसे राजपूत समाज ने वाल्मीकि बंधुओं की समस्या को समझा और उनके बच्चों के लिए विद्यालय में निःशुल्क शिक्षा का निर्णय लिया। यह उदाहरण स्पष्ट करता है कि जब विभिन्न जातियां मिलकर काम करती हैं, तो समाज में सहयोग और एकता का माहौल बनता है। इससे समाज में सकारात्मक परिवर्तन संभव हो सकता है।

पर्यावरणीय चिंताओं पर सार्थक प्रयास को बल:

भागवत जी ने आज की वैश्विक समस्याओं, विशेषकर पर्यावरणीय चिंताओं, पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि संपूर्ण सृष्टि और पर्यावरण की रक्षा के लिए एक नई दृष्टि की आवश्यकता है। हमारे देश में विभिन्न पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं, जैसे जल संकट, वायु प्रदूषण, और वन्यजीवों का अस्तित्व संकट में आ गया है।

उन्होंने जोर देकर कहा कि हम सभी को अपने पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होना पड़ेगा और उसके प्रति जिम्मेदारी से कार्य करना पड़ेगा। इस संदर्भ में, उन्होंने जैविक कृषि और स्थानीय वृक्षों के महत्व को बताया। उन्होंने आग्रह किया कि हमें प्लास्टिक का उपयोग कम करना चाहिए और जल संरक्षण की दिशा में काम करना चाहिए।

संस्कार और शिक्षा से चरित्र निर्माण:

भागवत जी ने शिक्षा और संस्कार के महत्व पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि शिक्षा केवल विद्यालयों में नहीं, बल्कि घर पर भी प्रारंभ होती है। मातृ-पितृ की भूमिका और घर का वातावरण बच्चों के संस्कार के निर्माण में अहम होता है। उन्होंने सुझाव दिया कि नयी शिक्षा नीति में सांस्कृतिक मूल्यों का प्रशिक्षण शामिल होना चाहिए।

इस संदर्भ में, उन्होंने शिक्षकों की जिम्मेदारी का उल्लेख किया कि वे विद्यार्थियों के लिए आदर्श बने और सही मार्गदर्शन करें। उन्होंने कहा कि समाज में जो प्रमुख लोग होते हैं, उन्हें अपने आचरण से दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनना चाहिए।

संविधान परिभाषित एक अनुशासन की आवश्यकता:

सरसंघचालक जी ने कहा की देश को एक अनुशासन की आवश्यकता है, जो हमारे संविधान द्वारा परिभाषित है। संविधान की प्रस्तावना में पहला वाक्य है: “हम भारत के लोग अपने आप को इस संविधान को अर्पण करते हैं,” जो हमारे देश के संचालन का आधार है। सभी नागरिकों को संविधान के चार महत्वपूर्ण प्रकरणों—प्रस्तावना, मार्गदर्शक तत्व, मूलभूत कर्तव्य, और मूलभूत अधिकार—की जानकारी होनी चाहिए।

उन्होंने कहा की हमें एक साथ मिलकर चलने की कला विकसित करनी होगी, जिसमें पारस्परिक व्यवहार, सद्भावना, भद्रता, और समाज के प्रति आत्मीयता शामिल हो। कानून और संविधान का निर्दोष पालन व्यक्तिगत और राष्ट्रीय विकास का आधार है, और देश की सुरक्षा, एकता, अखंडता, और विकास के लिए ये पहलू अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इनका त्रुटि रहित और संपूर्ण होना आवश्यक है।

मन, वचन, और कर्म का विवेक:

उन्होंने बताया की मन, वचन, और कर्म का विवेक राष्ट्रीय चरित्र का एक महत्वपूर्ण पहलू है। भारत एक विविधता से भरा देश है, जहां विभिन्न स्थितियों में लोग रहते हैं। इसलिए, कोई एक बात या कानून सभी के लिए स्वीकार्य होना असंभव है। इस विविधता को लेकर आपस में लड़ाई-झगड़ा करना उचित नहीं है। संवेदनशीलता आवश्यक है, लेकिन उसे संयम के साथ व्यक्त किया जाना चाहिए। किसी एक वर्ग को पूरे समूह के लिए जिम्मेदार ठहराना गलत है; सहिष्णुता और सद्भावना हमारी परंपरा का हिस्सा हैं। असहिष्णुता मानवता के खिलाफ है। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी महापुरुष, ग्रंथ, या संत का अपमान न हो, और जब ऐसा हो, तो हमें संयमित रहना चाहिए। बैर से बैर की शांति नहीं होती; हमें सभी के प्रति सद्भाव और सद्भावना का पालन करना चाहिए, क्योंकि समाज की एकात्मता और सदाचार सबसे महत्वपूर्ण हैं।

बल के साथ शील की उपासना:

उन्होंने बताया की यह परम सत्य है कि किसी भी राष्ट्र के लिए मनुष्यों के सुखी अस्तित्व और सहजीवन का एकमात्र उपाय शक्ति है। दुर्बल धर्म का वहन नहीं कर सकते; इसीलिए सशक्त समाज की आवश्यकता है, जो आत्म-निर्भर और समृद्ध हो। जब भारत की शक्ति कमजोर थी, तब उसके प्रति अपमान और अन्याय का सिलसिला जारी था। हालाँकि, अब जब भारत की शक्ति बढ़ गई है, तब नागरिकों की प्रतिष्ठा भी ऊंचाई पर पहुंच गई है। यह एक सकारात्मक परिवर्तन है जो दर्शाता है कि जब राष्ट्र मजबूत होता है, तब उसकी आवाज़ भी विश्व स्तर पर सुनी जाती है।

शक्ति की साधना शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक सभी क्षेत्रों में आवश्यक है। इस दृष्टि से, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) जैसे संगठन इस दिशा में कार्य कर रहे हैं, जहां शक्ति को शील और नैतिकता के साथ जोड़कर देखा जाता है। उनका मानना है कि वास्तविक शक्ति केवल तभी प्रासंगिक है जब वह सकारात्मक दिशा में कार्य करती हो। आज का पर्व शक्ति की साधना का प्रतीक है, जिसमें देवी शक्ति का जागरण किया जाता है, जिससे विश्व में सद्भावना और शांति का आधार स्थापित होता है।

व्यक्तिगत स्तर पर परिवर्तन की आवश्यकता:

भागवत जी ने कहा कि परिवर्तन का आरंभ व्यक्तिगत स्तर से होना चाहिए। उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि वे अपने घरों में छोटे-छोटे बदलाव करें, जैसे पेड़ लगाना, जल संरक्षण करना और प्लास्टिक का कम से कम उपयोग करना। यह दृष्टिकोण दर्शाता है कि बड़े बदलाव छोटे-छोटे कदमों से ही संभव हैं।

आज के समय में, जब ओटीटी प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया का प्रभाव बढ़ रहा है, भागवत जी ने इसके प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि समाज के प्रमुख व्यक्तियों को ध्यान रखना चाहिए कि उनके द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला संदेश समाज में भद्रता और संस्कार को बनाए रखे।

मोहन भागवत जी का विजयादशमी भाषण भारतीय समाज और राष्ट्र के लिए प्रेरणादायक है। उन्होंने चारित्रिक बल, सामाजिक एकता, और राष्ट्र निर्माण के महत्व को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया। उनका स्पष्ट संदेश है कि समाज नैतिक और चारित्रिक रूप से मजबूत होने पर ही प्रगति स्थायी होगी। हमें अपने समृद्ध इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर से प्रेरणा लेकर एकजुट होना होगा। भौतिक और आर्थिक विकास के साथ-साथ नैतिकता, निष्ठा, और चारित्रिक बल भी आवश्यक हैं। भागवत जी ने सामाजिक समरसता, जातिगत नेतृत्व, और पर्यावरणीय चिंताओं पर जोर देते हुए बताया कि एक मजबूत नागरिक चरित्र ही एक समृद्ध राष्ट्र का निर्माण करेगा। भारत की महानता उसकी विविधता में निहित है। मित्रता और सहयोग का भाव रखते हुए हम एक सफल राष्ट्र की ओर बढ़ सकते हैं। यह भाषण हमें प्रेरित करता है कि छोटे-छोटे प्रयासों से बड़े परिवर्तन की दिशा में कदम बढ़ाएं।

हमें व्यक्तिगत प्रगति के साथ-साथ समाज और राष्ट्र की प्रगति के लिए भी योगदान देना चाहिए। एकता में शक्ति है, और सभी जातियाँ, पंथ, और वर्ग मिलकर सुरक्षित और समृद्ध भविष्य की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। भागवत जी का संदेश हमें याद दिलाता है कि समाज को एक नए आयाम की ओर ले जाना हमारे कर्तव्यों में शामिल है, ताकि हम एक ऐसा भारत बना सकें जो मानवता के लिए एक उदाहरण बने।

लेखक: शिवेश प्रताप एक लोकनीति विश्लेषक एवं संघ अध्येता हैं

प.पू. डॉ एम. भागवत के बौद्धिक का विश्लेषण

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डॉ. आदित्य

आज सरसंघचालकडॉ मोहन राव भागवत जी ने विजयादशमी पर अपना उद्बोधन दिया। यह उद्बोधन काफी सामान्य श्रेणी का था। संघ कभी अराजक बौद्धिक नहीं करता । यहां साधारण  लहजे में की जाने वाली बातों को भी बौद्धिक ही कहा जाता है। हम प्रत्येक से पू. गोलवलकर वाली उम्मीद नहीं कर सकते। उनका बौद्धिक सामान्य सोसल मीडिया कंटेंट की तरह प्रतीत हो रहा है।  डॉ भागवत ऐसी ही बातें करते हैं। विजयादशमी के बौद्धिक में कोई कोडीफाइड ज्ञान या संकेत नहीं है। संघ बोलने में कमजोर है या यूं कहें कि संगठन को डिसलेक्सिया है।

संघ का विकास ही ऐसा हुआ है। संघ बहुत व्यवहारिक संस्था है। ये बोलने से ज्यादा करने में विश्वास करता है। संघ के राष्ट्र की परिकल्पना के लिये लाखों प्रचारकों ने अपना जीवन लगा दिया है। लाखों मतलब लाखों। प्रचारक बन जाने के कारण कई घर सूने हो गए । संघ की सबसे बड़ी उपलब्धि भाजपा है।

संघ पहले राजनीतिक शक्ति से ज्यादा सामाजिक शक्ति में भरोसा करता था। चूंकि स्वत्रंतर्योत्तर भारतीय समाज कायर है अतः संघ, सामाजिक शक्ति से ज्यादा राजनीतिक शक्ति में निवेश करने लगा। हरियाणा चुनाव में ऐसा लग रहा था कि भाजपा हार जाएगी। लेकिन संघ ने जीजान लगाकर भाजपा को जितवा दिया। 

संघ से बेहतर राजनीतिक सलाह देने वाली आजतक कोई संस्था ही नहीं है। भारत में लोकतंत्र अध्ययन के लिये बड़ी बड़ी संस्थाएं हैं। अशोक यूनिवर्सिटी, ADR, CSDS etc लेकिन ये राजनीति को संघ से बेहतर नहीं समझ सकते। आज डॉ भागवत ने कल्चरल मार्क्सवाद, डीप स्टेट और वोकइज्म शब्द का इस्तेमाल किया।

वस्तुतः लगभग 6 दशक पूर्व ही सांस्कृतिक मार्क्सवाद का देहांत हो चुका है। इस विषय पर आज चर्चा करना हास्यास्पद है, ऐसा लगता है संघ इस जिन्न को पोटली से बाहर निकालना चाहता है।भारत वोकइज्म का विश्व बाप है, भारत से ज्यादा वोक इस दुनियां में पैदा ही नहीं हुए। महात्मा बुद्ध से लेकर मक्कली गोशला सब वोक ही तो थे ! और आज से लगभग 300 ईसापूर्व (?) चाणक्य ने डीप स्टेट के विषय में भरपूर बोला, समझाया और उदाहरण प्रस्तुत करके गए। 

इसलिये ये सब कोई नई बातें नहीं हैं। पूरब की बातें जब पश्चिम से घूम कर आती है तो नया और क्रांतिकारी विचार लगने लगता है। कुल मिलाकर आज का प्रबोधन हर बार की तरह समाधान मूलक ना होकर बस समस्या और विफलता मूलक था। 

संपूर्ण क्रांति के महानायक लोकनायक जयप्रकाश नारायण की 122 वीं जयंती समारोह मनाई गई

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दिल्ली। दिनांक 11 अक्टूबर 2024 को लोकनायक जयप्रकाश अंतरराष्ट्रीय अध्ययन विकास केंद्र एवं राष्ट्रीय संगत पंगत के संयुक्त तत्वावधान में जेपी स्मृति पार्क , बहादुर शाह ज़फ़र मार्ग , पर नई दिल्ली में भारत के महान् स्वतंत्रता सेनानी एवं संपूर्ण क्रांति के प्रणेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण की 121 बी जयंती समारोह वृहत स्तर पर मनाई गई। इस कार्यकर्म को मुख्य अतिथि के रूप में भारत सरकार के केंद्रीय शहरी विकास मंत्री माननीय श्री मनोहर लाल खट्टर ने जेपी की भव्य प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित किया। इस अवसर पर उन्होंने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण समाज के सभी वर्गों के हिमायती थे, उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक है , जितना उस समय थे। जेपी एक अकेले ऐसे राजनेता थे जिन्होंने कभी भी पद प्रतिष्ठा की लालसा नहीं की और देश की आजादी और आजाद भारत में सरकार की तानाशाही के खिलाफ रहे और भारत में लोकशाही की स्थापना की।

श्री मनोहर लाल खट्टर ने जेपी स्मृति पार्क के रख रखाव पर उपस्थित लोगों का ध्यान आकर्षित करते हुए यह भी आश्वासन दिया कि संस्था एक समिति बनाकर केन्द्र सरकार को पहल करे तो इस जेपी स्मृति उद्यान का रख रखाव एवं पर्यटन स्थल के रुप विकसित किया जाएगा।

इसके पूर्व लोकनायक जयप्रकाश अंतरराष्ट्रीय अध्ययन विकास केंद्र के राष्ट्रीय महासचिव अभय सिन्हा ने बताया कि भारत की राजधानी दिल्ली में पिछले 24 वर्षों से संस्था 11 अक्टूबर को जेपी जयंती समारोह , 5 जून को संपूर्ण क्रांति दिवस , 8 अप्रैल को जेपी आंदोलन दिवस एवं 8 अगस्त को अगस्त क्रान्ति दिवस का आयोजन लगातार किया गया है। श्री सिन्हा ने आज के नौजवानों से अपील किया की आज भी जेपी की संपूर्ण क्रांति की विचारधारा लोगों के मन में जीवित है , इस आन्दोलन को धार देने के लिए आप आगे आएं। उन्होंने कार्यकर्म में आए सभी लोगों के प्रति ह्रदय से आभार व्यक्त किया।

कार्यकर्म के अध्यक्ष पूर्व सांसद राज्यसभा एवं राष्ट्रीय संगत पंगत के संस्थापक श्री आर के सिन्हा ने कहा कि जेपी देश के ऐसे महान् नेता रहे जो कभी भी किसी विधान सभा या लोकसभा में नहीं गए लेकिन राजनीति में उनका कद इतना बड़ा था की जब उस समय देश की प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जब देश में आपातकाल लागू की तो जेपी ने पूरे देश में भ्रमण कर लोकशक्ति को इकट्ठा कर एक ऐसा माहौल बनाया जो कालांतर में इंदिरा गांधी को घुटने टेकने को मजबूर होना पड़ा और अन्ततः लोकशाही की जीत हुई।

इस सभा को प्रख्यात पत्रकार एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के अध्यक्ष पदमश्री राम बहादुर राय , देश के जाने माने पत्रकार एवं लेखक श्री सुधांशु रंजन , अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के अध्यक्ष एवं पूर्व आई आर एस अधिकारी डॉ. अनुप श्रीवास्तव , भारत तिब्बत समन्वय केन्द्र के दलाई लामा के प्रसिद्ध अनुनायी आचार्य फैंस्टोक , सुप्रीम कोर्ट के गवर्नमेंट काउंसिल डॉ. ए पी सिंह , भोजपुरी समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक श्रीवास्तव , राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद के अध्यक्ष श्री मयंक श्रीवास्तव , अखिल भारतीय सेवा दल के अध्यक्ष श्री राम नगीना सिंह , आर्ट एंड कल्चरल ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ शूल पाणी सिंह, राष्ट्रीय संगत पंगत के श्री अनुरंजन श्रीवास्तव ने कार्यकम को संबोधित किया। इसके पूर्व कथक गुरु नृत्यांगना श्रीमति प्रभा दूबे और उनकी शिष्या के द्वारा संस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया। जबकि कार्यकर्म का संचालन श्रीमती रंजीता श्रीवास्तव ने किया और धन्यवाद ज्ञापन संगत पंगत की श्रीमती रत्ना सिन्हा ने किया। इस कार्यकर्म में दिल्ली एवं एनसीआर से भारी संख्या में लोग शामिल हुए।

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