इजराईल – ईरान युद्ध में भारत निभा सकता है अहम भूमिका

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भोपाल।रूस – यूक्रेन एवं इजराईल – हम्मास के बीच युद्ध अभी समाप्त भी नहीं हुआ है और तीसरे मोर्चे इजराईल – ईरान के बीच भी युद्ध प्रारम्भ हो गया है। हालांकि इस बीच भारत – पाकिस्तान के बीच भी युद्ध छिड़ गया था परंतु भारत की बड़े भाई की भूमिका के चलते इस युद्ध को शीघ्रता से समाप्त करने में सफलता मिल गई थी। दो देशों के बीच युद्ध में किसी एक देश का फायदा नहीं होकर बल्कि दोनों ही देशों का नुक्सान ही होता है। परंतु, आवेश में आकर कई बार दो बड़े देश भी आपस में टकरा जाते हैं एवं इन दोनों देशों के पक्ष एवं विपक्ष में कुछ देश खड़े हो जाते हैं जिससे कुछ इस प्रकार की परिस्थितियां निर्मित हो जाती हैं कि विश्व युद्ध छिड़ जाते हैं। वर्ष 1914 से वर्ष 1918 के बीच प्रथम विश्व युद्ध एवं वर्ष 1939 से वर्ष 1945 के बीच द्वितीय विश्व युद्ध इसके उदाहरण हैं। इजराईल – ईरान के बीच हाल ही में प्रारम्भ हुए युद्ध में अमेरिका भी कूदने की तैयारी करता हुआ दिखाई दे रहा है। अगर ऐसा होता है तो बहुत सम्भव है कि ईरान की सहायता के लिए रूस एवं चीन भी इस युद्ध में कूद पड़ें एवं यह युद्ध तृतीय विश्व युद्ध का स्वरूप ले ले। ऐसा कहा जा रहा है कि इजराईल एवं अमेरिका ईरान में सत्ता परिवर्तन करवाना चाह रहे हैं ताकि ईरान में उनके हितों को साधने वाली सरकार स्थापित हो सके।

वैश्विक स्तर पर आज परिस्थितियां बहुत सहज रूप से नहीं चल रही है। विभिन्न देशों के बीच विश्वास की कमी हो गई है जिसके चलते छोटे छोटे मुद्दों को तूल दी जाकर आपस में खटास पैदा करने के प्रयास हो रहे हैं। कुछ देश, दो देशों के बीच, इन मुद्दों को हवा देते हुए भी दिखाई दे रहे हैं। जैसे आतंकवाद के मुद्दे को ही लें, यदि ये देश आतंकवाद से स्वयं ग्रसित हैं तो इनके लिए आतंकवाद बुराई की जड़ है और यदि कोई अन्य देश आतंकवाद को लम्बे समय से झेल रहा है तो इन देशों के लिए आतंकवाद कोई बहुत बड़ा मुद्दा नहीं है। बल्कि, आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देशों को प्रोत्साहन दिया जाता हुआ दिखाई दे रहा है। चौधरी बन रहे कुछ देश अपनी विस्तरवादी नीतियों के चलते कई देशों में अपने हित साधने वाली सरकारों की स्थापना करना चाह रहे हैं एवं इन देशों में इस प्रकार की परिस्थितियां निर्मित करने के प्रयास कर रहे हैं ताकि ये देश आपस में लड़ाई प्रारम्भ करें। रूस एवं यूक्रेन के बीच युद्ध इसका जीता जागता उदाहरण है । साथ ही, कुछ देशों की कथनी और करनी में पाए जाने वाले फर्क के चलते भी वैश्विक स्तर पर परिस्थितियां बिगड़ रही हैं। चौधरी बन रहे देशों को तो उदाहरण पेश करते हुए अपनी कथनी एवं करनी में फर्क को समाप्त करना ही होगा। अन्यथा, वैश्विक स्तर पर परिस्थितियां भयावह स्तर तक पहुंच सकती हैं।

चूंकि इजराईल भी आतंकवाद से पीड़ित देश है एवं इजराईल की सीमाएं चार मुस्लिम राष्ट्रों से जुड़ी हुई हैं; यथा, उत्तर में लेबनान, दक्षिण पश्चिम में ईजिप्ट (एवं गाजा), पूर्व में जॉर्डन (एवं वेस्ट बैंक) एवं उत्तर पूर्व में सीरिया। अतः इजराईल अत्यधिक आक्रात्मकता के साथ आतंकवादियों (हम्मास एवं हूथी आदि संगठनों) से युद्ध करता रहता है। इस्लाम के अनुयायी यहूदियों के कट्टर दुश्मन हैं, इसके चलते भी इजराईल के नागरिकों को आतंकवाद को लम्बे समय से झेलना पड़ रहा है।

ईरान के बारे में तो कहा जा रहा है कि ईरान स्थित लगभग 60 प्रतिशत मस्जिदों में इबादत के लिए कोई भी व्यक्ति पहुंच ही नहीं रहा है क्योंकि ईरान में एवं ईरान द्वारा पड़ौसी देशों में फैलाए गए आतंकवाद से ईरान के मूल नागरिक अत्यधिक परेशान हैं। महिलाओं पर आतंकवादियों द्वारा किए जा रहे अत्याचारों से स्थानीय नागरिक बहुत दुखी हैं। अतः अब वे अपने पुराने धर्म जोरोस्ट्रीयन को अपनाने के लिए आतुर दिखाई दे रहे हैं अथवा इस्लाम धर्म का परित्याग करना चाह रहे हैं। जोरोस्ट्रीयन, ईरान का मूल धर्म हैं एवं यह अब ईरान के कुछ (बहुत कम) क्षेत्रों में सिमट कर रह गया है। भारत में भी जोरोस्ट्रीयन धर्म को मानने वाले पारसी समुदाय के कुछ नागरिक शांतिपूर्वक रह रहे हैं एवं भारत के आर्थिक विकास में अपना भरपूर योगदान दे रहे हैं।

वैश्विक स्तर पर निर्मित हो रही उक्त वर्णित परिस्थितियों के बीच भारत की विशेष भूमिका रह सकती है क्योंकि भारत के इजराईल एवं ईरान दोनों ही देशों के साथ आर्थिक रिश्ते बहुत मजबूत हैं। भारत, ईरान से भारी मात्रा में कच्चा तेल खरीदता रहा है एवं भारत ने ईरान में चाबहार बंदरगाह के निर्माण में भारी आर्थिक एवं तकनीकी सहायता प्रदान की है। चाबहार बंदरगाह का संचालन भी ईरान की सरकार के साथ भारतीय इंजीनियरों द्वारा ही किया जा रहा है। भारत और ईरान के बीच प्रतिवर्ष 200 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की राशि का विदेशी व्यापार होता है। दूसरी ओर, इजराईल भारत का रणनीतिक साझीदार है। भारत इजराईल से भारी मात्रा में सुरक्षा उपकरण भी खरीदता है। भारत और इजराईल के बीच प्रतिवर्ष 650 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की राशि का विदेशी व्यापार होता है, इसमें भारत द्वारा इजराईल से आयात किये जाने वाले सुरक्षा उपकरणों की राशि शामिल नहीं है। कुल मिलाकर, भारत के इजराईल एवं ईरान, दोनों देशों के साथ बहुत पुराने व्यापारिक एवं सांस्कृतिक रिश्ते हैं।

भारतीय सनातन हिंदू संस्कृति में “वसुधैव कुटुम्बकम”; “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय” एवं “सर्वे भवंतु सुखिन:” की भावना पर विश्वास किया जाता है। अतः भारतीय नागरिक सामान्यतः शांत स्वभाव के होते है एवं पूरे विश्व में ही भ्रातत्व के भाव का संचार करते हैं। आज 4 करोड़ से अधिक भारतीय मूल के नागरिक विभिन्न देशों के आर्थिक विकास में अपना भरपूर योगदान दे रहे हैं। इन देशों में होने वाले अपराधों में भारतीय मूल के नागरिकों की संलिप्तता लगभग नहीं के बराबर पाई गई है। इसी कारण के चलते आज वियतनाम, जापान, इजराईल, आस्ट्रेलिया एवं सिंगापुर जैसे कई देश भारतीय मूल के नागरिकों को अपने देश में कार्य करने एवं बसाने में सहायता करते हुए दिखाई दे रहे हैं। खाड़ी के देश यथा ओमान, बहरीन, सऊदी अरब, यूनाइटेड अरब अमीरात आदि में भी लाखों की संख्या में भारतीय मूल के नागरिक निवास कर रहे हैं एवं शांतिप्रिय जीवन व्यतीत कर रहे हैं। कुल मिलाकर, विभिन्न देशों में निवासरत भारतीय मूल के नागरिकों का रिकार्ड बहुत ही संतोषजनक पाया जाता है, क्योंकि, भारतीयों की मूल प्रकृति ही सनातन हिंदू संस्कारों के अनुरूप पाई जाती है एवं वे किसी भी प्रकार के कर्म में धर्म को जोड़कर ही इसे सम्पन्न करने का प्रयास करते हैं। और, धर्म के अनुरूप किये गए किसी भी कार्य से किसी का अहित हो ही नहीं सकता।

उक्त वर्णित परिप्रेक्ष्य में वैश्विक स्तर पर जब चौधरी बन रहे देशों द्वारा अन्य देशों के साथ न्याय नहीं किया जाता हुआ दिखाई दे रहा है तो ऐसे में भारत को आगे आकर युद्ध में झौंके जा रहे देशों के नागरिकों की मदद करनी चाहिए। भारत की तो वैसे भी नीति ही “वसुधैव कुटुम्बकम” की है। यदि पूरे विश्व में भाईचारा फैलाना है तो सनातन हिंदू संस्कृति के अनुपालन से ही यह सब सम्भव हो सकता है। उक्त परिस्थितियों के बीच सनातन हिंदू संस्कृति की स्वीकार्यता विभिन्न देशों के नागरिकों की बीच तेजी से बढ़ भी रही है क्योंकि कई देश अब आतंकवाद से बहुत अधिक परेशान हो चुके हैं। अतः अब वे किसी तीसरे रास्ते की तलाश में हैं। इन विपरीत परिस्थितियों के बीच उनके पास अब विकल्प केवल सनातन हिंदू संस्कृति के संस्कारों को अपनाने का ही बचता है, जिसके प्रति वे लालायित भी हैं। और फिर, आतंकवाद से यदि छुटकारा पाना है तो इससे लड़ते हुए छुटकारा पाने में तो कुछ देशों को कई प्रकार के बलिदान देने पड़ सकते हैं और यदि सनातन हिंदू संस्कृति के संस्कारों को स्वीकार कर लिया जाता है तो कई देशों के नागरिकों को इस बलिदान से बचाया जा सकता है। अतः विश्व के देशों में सनातन हिंदू संस्कृति के संस्कारों को तेजी से वहां के स्थानीय नागरिकों के बीच किस प्रकार फैलाया जा सकता है, इस विषय पर विश्व में शांति स्थापित करने के उद्देश्य से अब गहन चिंतन एवं मनन करने की आवश्यकता है।

गुरु को बचाने अपने प्राण न्यौछावर किये

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यह घटना उन दिनों की है जब अंग्रेजों ने भारत से जाने की घोषणा कर दी थी और भारत विभाजन की प्रकिया भी आरंभ हो गई थी। लेकिन अंग्रेज जाते जाते कुछ ऐसा करके जाना चाहते थे चर्च की जमाशट पर कोई अंतर न आये और न उनकी कोई सांस्कृतिक परंपरा प्रभावित हो। इसके लिये उनके कुछ “स्लीपर सेल” सक्रिय थे जो देशभर में काम रहे थे। इसी षड्यंत्र में इस बालिका का बलिदान हुआ।

कालीबाई एक तेरह वर्षीय वनवासी बालिका थी। यह राजस्थान के डूंगरपुर जिले के वनाँचल की रहने वाली थी । कालीबाई का जन्म कब हुआ इसका इसका उल्लेख कहीं नहीं मिलता । अनुमानतः कालीबाई का जन्म जून 1934 माना गया। अंग्रेजीकाल में चर्च ने वनवासी अंचलों में चर्च ने अपने विद्यालय आरंभ करने का अभियान चलाया हुआ था। जिनका उद्देश्य वनवासी समाज को उनके मूल से दूर करना था। उनकी शिक्षा की शैली कुछ ऐसी थी कि वनवासी क्षेत्र में मतान्तरण तेजी से होने लगा था । उस समय के अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और सामाजिक साँस्कृतिक संगठन इसके लिये चिंतित थे। विशेषकर ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जो आर्यसमाज या राम-कृष्ण मिशन से जुड़े हुये थे उनमें यह भाव अधिक प्रबल था। राजस्थान में स्वामी दयानन्द सरस्वती और स्वामी विवेकानंद के बहुत प्रवास हुये थे इसलिये राजस्थान क्षेत्र में इन दोनों संस्थाओं का प्रभाव था । सुप्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी नानाभाई खांट आर्यसमाज से जुड़े थे उन्होंने डूंगरपुर जिले के रास्तापाल गाँव में एक विद्यालय आरंभ किया। विद्यालय में वनवासी बच्चों की शिक्षा का प्रबंध किया गया था । विद्यालय में उस समय की आधुनिक शिक्षा तो दी जाती थी पर भारतीय गुरु शिष्य परंपरा को भी जीवंत किया था। विद्यालय ने शाम को एक प्रार्थना सभा का आरंभ भी किया। जिसमें वनवासी परिवार भी आने लगे। इस विद्यालय में मुख्य शिक्षक सेंगाभाई थे। वनवासी बालिका कालीबाई भी यहाँ पढ़ने आती थी । यह भील समाज से संबंधित थी। उसकी आयु अनुमानित तेरह वर्ष थी। यह क्षेत्र डूंगरपुर रियासत के अंतर्गत आता था। आर्यसमाज ने विद्यालय आरंभ करने की अनुमति महारावल डूंगरपुर से ले ली थी। इस क्षेत्र में एक चर्च भी सक्रिय था। इस विद्यालय और उसकी गतिविधि से वनवासी समाज चर्च से दूर होने लगा। चर्च को आपत्ति हुई। चर्च ने कमिश्नर को शिकायत की। अंग्रेजों ने भले भारत से जाने की घोषणा कर दी थी पर उनकी पूरी प्रशासनिक व्यवस्था और रियासतों पर रुतबा कम न हुआ था।

शिकायत मिलते ही कमिश्नर ने डूंगरपुर के महारावल पर दबाब बनाया और विद्यालय बंद करने के आदेश हो गये। आदेश मिलते ही नानाभाई ने विद्यालय तो यथावत रखा और उन्होने महाराज से मिलने का प्रयास किया लेकिन अनुमति न मिली। मिलने का समय टाला गया। नानभाई को आशा थी महाराज से मिलने के बाद अनुमति यथावत हो जायेगी इसलिये विद्यालय बंद न हुआ । वे यह भी जानते थे कि अंग्रेज तो जाने वाले हैं। तब चर्च और अंग्रेज अधिकारियों के आगे क्यों झुकना। उनके इंकार करने से अधिकारी बौखला गये । एक भारी पुलिस बल के साथ अधिकारी विद्यालय पहुँचे। वे ताला लगाकर विद्यालय सील करना चाहते थे । किन्तु शिक्षक सेंगाभाई ने विद्यालय के द्वार पर खड़े होकर रास्ता रोकना चाहा। पुलिस ने पकड़ कर किनारे किया और विद्यालय पर ताला लगा दिया । शिक्षक सेंगाभाई को रस्सी से गाड़ी के पीछे बाँध दिया गया। गाड़ी रवाना हुई तो शिक्षक सेंगाभाई घसीटते हुये जा रहे थे । उनका पूरा शरीर लहूलुहान हो गया । रास्ते में कालीबाई खेत में काम कर रही थी ।

उसने देखा कि उनके गुरू को पुलिस गाड़ी में पीछे बाँधकर घसीटते हुये लेकर जा रही है। कालीबाई के हाथ में हँसिया था । वह हँसिया लेकर दौड़ी और रस्सी काट दी। पुलिस इससे और बौखला गई। पुलिस ने गोलियाँ चला दीं। पुलिस की गोली से कालीबाई का शरीर छलनी हो गया। गोली की आवाज सुनकर भील समाज एकत्र हो गया। सबने शिक्षक की दुर्दशा और अपनी बेटी का शव देखा। पूरा भील समाज आक्रोशित हो गया और पुलिस दोनों को छोड़कर भाग गई। कालीबाई का बलिदान मौके पर ही हो गया था । यह घटना 19 जून 1947 की है । सेंगाभाई इतने घायल हो गये थे कि रात में उनका भी प्राणांत हो गया । अगले दिन बीस जून को दोनों का अंतिम संस्कार किया गया । गुरु के प्राण बचाने केलिये बालिका कालीबाई का बलिदान इतिहास की पुस्तकें में आज भी लोकगीतों में है । स्वतंत्रता के बाद उस स्थान पर एक पार्क बनाया गया है इस पार्क में कालीबाई की प्रतिमा भी स्थापित है ।

अपराध करने का क्या लायसेंस बन गया है जय भीम

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इस देश में ‘जय भीम’ कह देने से कानून हाथ में लेने का किसी को अधिकार मिल जाता है क्या?

एक मामला सामने आया है, जिसमें कथित तौर पर एक युवक पर आरोप है कि उसने बाबा साहब का अपमान किया है।

यदि लगता है कि उस युवक ने बाबा साहब का वास्तव में अपमान किया है, फिर आप कोर्ट में जा सकते हैं। थाने में एफआईआर करा सकते हैं।

न्यायालय का रास्ता तो बाबा साहब का ही दिखाया हुआ रास्ता है? यदि आप कानून हाथ में ले रहे हैं तो जय भीम बोलना पहले छोड़िए। कानून जिन्हें हाथ में लेना है, वे बाबा साहब और जय भीम को क्यों बदनाम कर रहे हैं?

कानून हाथ में लेने वालों से बाबा साहब का क्या रिश्ता?

कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता प्रियांशु के एक्स अकाउंट से ऐसा ही एक वीडियो शेयर हुआ है। जिसमें एक युवक को राजपूत बताया जा रहा है। जिस पर प्रियांशु का आरोप है कि उसने बाबा साहब पर कोई आपत्तिजनक टिप्पणी की है और कथित आरोपी युवक को बीस पच्चीस लोग लिंच कर रहे हैं।

उस युवक को एक महिला बचाने के लिए बीच में आती है,संभवत: वह महिला पीड़ित युवक के परिवार से होगी। इस बात का भी भीड़ ख्याल नहीं करती। यह वीडियो प्रियांशु के एक्स हैंडल पर पोस्ट लिखे जाने तक शेयर है।

इस अपराध में जो लोग भी शामिल है, उन पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। इस तरह के अपराध में एक मिसाल कायम होनी चाहिए कि भविष्य में कोई इस तरह से कानून हाथ में लेने का प्रयास ना करे।

लेकिन जय भीम कहते हुए इस तरह के अपराध के दर्जनों वीडियो बिना किसी डर और भय के शेयर किए जा रहे हैं।

पिछले दिनों कथित तौर पर महाराष्ट्र के एक वीडियो में कुछ लोग एक व्यक्ति को मारते हुए ले जा रहे थे। उस पर लिखा था, जय भीम।

क्या जय भीम लिख देने से अराजक तत्वों को कानून हाथ में लेने का आजकल लायसेंस मिल जाता है?

एक अपराधी को सम्मानित क्यों कर रहा है मुसलमान संगठन

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एक महिला को पिस्तौल निकाल कर पेट्रोल पंप पर रंगदारी करते हुए सभी ने देखा। सीसीटीवी फूटेज ना आई होती तो वह महिला पिस्तौल की बात से इंकार कर देती। उसके पिस्तौल पकड़ने के अंदाज से पता चलता है कि उसने पहली बार पिस्तौल नहीं निकाली है।

भारतीय कानून में इस तरह सार्वजनिक जगहों पर पिस्तौल समाज में खौफ पैदा करने के लिए निकालना अपराध है। दूसरी बात उस पिस्तौल का लायसेंस उस लड़की के नाम पर भी नहीं था। जिनके नाम पर था, वह अपने पिस्तौल की हिफाजत नहीं कर पाए, इसलिए स्थानीय पुलिस को उनसे वह पिस्तौल वापस ले लेनी चाहिए।

इतना सबकुछ होने के बावजूद कुछ यू ट्यूबर लड़की का महिमा मंडन कर रहे हैं। उसने पिता की रक्षा के लिए ऐसा किया। जबकि फूटेज को देखकर कहीं से भी नहीं लगता कि उसके अब्बू की जान खतरे में थी।

लेकिन पिस्तौल छाती पर जिस व्यक्ति के लगाई गई, उसकी जान तो कुछ समय के लिए खतरे में आ गई थी। गलती से ट्रीगर दब जाता तो उस आदमी के लिए बहुत मुश्किल होने वाली थी।

ऐसे में क्या पेट्रोल पंप पर काम करने वाले उस पीड़ित व्यक्ति की बहन या बेटी को यह लायसेंस मिल जाएगा कि किसी की पिस्तौल लेकर वह पिस्तौल वाली महिला के घर आ जाए।

यदि कोई व्यक्ति गरीब है। पिस्तौल का लायसेंस नहीं ले सकता है। पेट्रोल पंप पर काम करके गुजारा चलाने को मजबूर है तो किसी अमीर बाप की बेटी को यह लायसेंस नहीं मिल जाता कि अपने बाप का लायसेंस वाला पिस्तौल लेकर उसकी छाती पर रख दे, सिर्फ इसलिए कि वह गरीब है।

दुर्भाग्य की बात है कि मुसलमानों का कोई संगठन आगे आकर इस अपराधी युवति को सम्मानित कर रहा है। जो कैमरे पर अपना अपराध कुबूल कर चुकी है। इस तरह युवति को सम्मानित करने वाला संगठन मुसलमानों के बीच क्या संदेश दे रहा है?

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