कब नसीब होगा जे जे कॉलोनी के निवासियों को पेय जल?

ओखला के मदनपुर खादर जे जे कॉलोनी को बसे 17 वर्ष हो चुके हैं। लेकिन अभी तक यहां के निवासी मूलभूत सुविधा से वंचित हैं। उल्लेखनीय हैं कि श्री राम चौक से होकर पानी का पाइप लाइन गया है। लेकिन इन पाइप लाइन से जाने वाली पानी इनके नसीब में नहीं है। यहां के निवासी मजबूरन पीने के लिए अन्य स्रोत पर निर्भर हैं। चापाकल का पानी पीने योग्य नहीं होता। इससे स्वास्थ्य बिगड़ने के खतरा रहता है। अतः मजबूरन लोगों को 15-20 रुपये गैलन के दर से पेय जल खरीदना पड़ता है।

गौरतलब है कि सभी चुनाव यहां पानी जैसे मूलभूत सुविधाओं के मुद्दे पर लड़ा जाता है। पानी का मुद्दा सभी पार्टियों के घोषणा पत्र में प्राथमिकता में रहता है। परंतु चुनाव जीतने के बाद जनप्रतिनिधि इस मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल देते हैं। और जनता जनार्दन बार बार छले जाते हैं।

ज्ञात हो कि इस मुद्दे को लेकर मैथिल स्वाभिमान संघ ने कई बार आवाज उठाया भी। परंतु इतने हो हल्ला पर भी जनप्रतिनिधि चैन की नींद ले रहे है तथा इस तरफ से लापरवाह हैं। बरहाल यहां के जनता के जुबान पर यही सवाल रहता है कि कब मिलेगा पानी?

गंदगी में जीवन यापन को मजबूर हैं खादर निवासी

राजधानी दिल्ली के ओखला में मदनपुर खादर एक्सटेंशन के लोग गंदगी में जीवन यापन को मजबूर हैं। बात दरअसल यह है कि यहां दूर दूर तक कोई कूड़ा दान या कूड़ा घर नहीं है। और न ही यहां नियमित रूप से mcd का कोई कूड़ा गाड़ी कूड़ा लेने आती है। मजबूरन लोग बाद अपने अपने घरों का कूड़ा अगल बगल में खाली पड़े प्लॉट में फेंकते हैं। ये कूड़ा हवा से उड़कर लोगों के घरों में भी आ जाते हैं। गंदगी के जमा होने से लोग बाग विभिन्न बीमारियों से भी ग्रस्त हो जाते है। 
स्थानीय लोगों से जब बात की गई तो पता चला कि कूड़ा गाड़ी महीना 2 महीना में कभी इस क्षेत्र में आता है और आधा अधूरा कूड़ा उठा कर चलता बनता है। गंदगी के जमा होने से क्षेत्र के निवासियों की स्थिति नारकीय है। इस क्षेत्र की सफाई व्यवस्था को देखकर तो भारत सरकार का स्वच्छता अभियान दम तोड़ता नज़र आता है।

समस्याओं की गिरफ्त में न्यू प्रियंका कैम्प के निवासी

अपने आप को आम जन की सरकार कहे जानेवाली विकास का नारा देनेवाली दिल्ली की तथाकथित ईमानदार सरकार जनता के मूलभूत आवश्यकता के प्रति कितनी ईमानदार है, ये पता चलता है प्रियंका कैम्प जाने पर। जब आज के आधुनिक परिवेश में देश के राजधानी दिल्ली के जनता को मूलभूत आवश्यकताओं के अभाव से जूझते हुए देखा जाता है तो यह सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि भारत अब भी अपने वर्तमान स्वरूप से दो दशक पीछे है। जी हां दिल्ली के ओखला स्थित मदनपुर खादर गांव से सटे न्यू प्रियंका कैम्प की तकरीबन 20 वर्ष पुरानी घनी आबादी वाले क्षेत्र में न तो पीने के पानी की व्यवस्था है न ही शौचालय की। यहां तक कि आवागमन के लिए कैम्प का अपना कोई निजी रास्ता भी नहीं है। जिसके वजह से लोगों को आने जाने में अत्यधिक असुविधाओं का सामना करना पड़ता है, यहां के लोग जंगली रास्ते से जाने को मजबूर हैं जहां छीन झपट और छेड़खानी की घटना आम बात है। कैम्प में लोगों के शौच के लिए एक ही सुलभ शौचालय की व्यवस्था है जो यहां इतनी बड़ी आबादी की आवश्यकता की पूर्ति करने में अक्षम है।

कहा जाता है कि बच्चे ही देश एवं समाज का भविष्य होते हैं और अगर इन बच्चों को विकास का मौका न दिया जाय तो राष्ट्र और समाज का विकास अवरूद्ध हो जाता है। परन्तु यहां के बच्चों के शिक्षा के लिए यहां कोई प्राथमिक विद्यालय भी नहीं है जिसमें बच्चे पढ़ सकें। मजबूरन शिक्षार्थ बच्चों को दूर मदनपुर खादर जाना पड़ता है जहां कि उन्हें उपेक्षा का पात्र समझा जाता है। कैम्प में तो लोगों को घूमने और बच्चों को खेलने के लिए पार्क की भी व्यवस्था नहीं है। जो भी पार्क हैं कूड़ों के ढेर से भरे पड़े हैं जो कि स्वास्थ्य के बदले कुस्वास्थ्य के कारक बने हुए हैं।

यहां कि जनता विभिन्न प्रकार के समस्याओं से ग्रसित है जनप्रतिनिधि इससे बेखबर चैन की नींद ले रहे हैं यह सत्तालोसुप राजनेतागण के लिए तथा आम जन के लिए शर्मनाक बात है। और दिल्ली सरकार अपने आप को आम जन की सरकार विकास की सरकार ईमानदार सरकार होने का ढिढोरा पीट रही है यह हास्यास्पद नहीं तो और क्या है? मेरा इन सत्तालोलुप राजनेताओं से कहना है कि अब भी समय है क्षेत्र के विकास हेतु जमीनी स्तर पर कार्यशील हों और झूठ मूठ का ढिढोरा पीटना बन्द करें अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब जनता के आक्रोश का सैलाब उमड़ेगा और तमाम सत्तालोलुप राजनीतिक दल उसमें बह जाएंगे।

गणपरास से मिली पहचान

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जानकी देवी एक खास किस्म के कीटनाषी की खोजकर्ता हैं। हाल में ही राश्ट्रीय नवप्रवर्तन संस्थान की ओर से पंाचवा राश्ट्रीय तृणमूल प्रोद्योगिकी नव प्रवर्तन एवं पारंपरिक ज्ञान पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया गया। वैसे जानकी खुद को इसका खोजकर्ता नहीं बताती हैं, वह कहती हैं- ‘इस तरह का ज्ञान हमारी प्रकृति में भरा पड़ा है। जरुरत है, उसे समझने और महसूस करने की।’ जानकी अधिक पढ़ी-लिखी नहीं हैं। इसलिए वे कीताबी बातें नहीं करती। उन्होंने सारा ज्ञान अपने अनुभव से हासिल किया है। वह बिहार के बेतिया की रहने वाली हैं।

JANKI DEVI PATNA जानकी देवी

JANKI DEVI |जानकी देवी

जानकी देवी द्वारा तैयार किया गया कीटनाषी बनाना बेहद सरल है। इस कीटनाषी को तैयार करने के लिए कनैल का बीज एक किलो चाहिए, इसके साथ में गणपरास एक किलो। पहले इन दोनों को आपस में अच्छी तरह मिला लें। उसके बाद गणपरास और कनैल के बीज के मिश्रण में पांच लीटर पानी मिलाएं और इसे पांच दिनों के लिए छोड़ दीजिए। पांचवे दिन इसका पानी निकाल कर खेतों में डालिए। जानकी देवी के बताए इस नुस्खे के माध्यम से जैविक पद्धति से उम्दा कीटनाषी तैयार किया जा सकता है। इसका छीड़काव खेतों में महीने में चार बार करना चाहिए। इससे छीड़काव का लाभ आपको दिखने लगेगा। कीटनाषी के संबंध में यह भी बताया गया कि ख्ेातों में उगने वाले खरपतवार को नश्ट करने में भी यह कीटनाषी मददगार हो सकता है।

इस कीटनाषी के मारक क्षमता को समझने की कहानी बेहद दिलचस्प है, जानकी देवी के अनुसार, उन दिनों वे अपने मायके साठी (पष्चिम चम्पारण) में थीं। वहां घर के पास ही बैंगन, करेला, खीरा लगाया गया था। इनमें से कुछ सब्जियों पर कीड़े लग गए थे। इन्हीं कीड़ों को हटाने के लिए पास ही लगे गणपरास को उठाकर जैसे ही जानकी देवी ने उन कीड़ों को हटाने की कोषिष की। उस समय जिस-जिस कीड़े को गणपरास ने छुआ, वे वहीं चारों खाने चीत हो गया। इस तरह जानकी देवी उस गणपरास की ताकत को समझ पाई।
पुरस्कार के संबंध में जब उनसे बात हुई, उन्होंने बेहद भोलेपन से कहा- ‘पुरस्कार के लिए जब बृजकिषोर बाबू हमारे पास फाॅर्म भरवाने आए तो मुझे हंॅसी आ गई। विष्वास ही नहीं हुआ कि इस काम के लिए भी पुरस्कार मिल सकता है।’
सच्चाई यही है, हमारे गांवों में खोजी लोगों की कमी नहीं है, जरुरत है उनके काम को सही दिषा देने की। यदि हमारे समाज में बिखरे पारंपरिक ज्ञान को ही हम सहेज पाए या उसका दस्तावेजीकरण कर पाए तो इसे भी कम बड़ी उपलब्धि नहीं कही जाएगी।

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