षड्यंत्रकारी नासिक कलेक्टर को गोली मारी थी

1681882197yy.jpg

भारतीय स्वाधीनता संघर्ष में अनंत वीरों का बलिदान हुआ है । कुछ के तो नाम तक नहीं मिलते और जिनके नाम मिलते हैं उनका विवरण नहीं मिलता । नासिक में ऐसे ही क्राँतिकारियों का एक समूह था जिनमें तीन को फाँसी और दो को आजीवन कारावास का वर्णन मिलता है । अन्य किसी का नहीं। इसी समूह में तीन बलिदानी अनंत लक्ष्मण कान्हेरे, कृष्ण गोपाल कर्वे और विनायक नारायण देशपाँडे थे जिन्हें 19 अप्रैल 1910 में फाँसी दी गई।  इनमें विनायक नारायण देशपांडे और कृष्ण गोपाल कर्वे का विवरण न के बराबर मिलता है ।उन दिनों नासिक में एक कलेक्टर   जैक्सन आया । वह संस्कृत और भारतीय ग्रंथों का कथित जानकार था । वह चर्च से जुड़ा था । उसने प्रचारित किया कि वह पूर्व जन्म में संत था । उसका लक्ष्य भारतीय जनजातियों और अनुसूचित समाज पर था । वह ग्रंथों पर आधारित कथाओं के उदाहरण देता और उन्हे प्रभावित करने का प्रयत्न करता । उसके लिये अधिकारियों की एक टीम उस का प्रचार का कार्य कर रही थी । इससे क्षेत्र में सामाजिक दूरियाँ बढ़ने लगीं और धर्मान्तरण होने लगा । मतान्तरण रोकने और समाज में स्वत्व जागरण के लिये गणेश सावरकर जी ने युवकों का एक समूह तैयार किया । इसमें अनंत कान्हेरे, श्रीकृष्ण कर्वे और विनायक देशपांडे जैसे अनेक ओजस्वी युवक थे । जो सामाजिक और सांस्कृतिक जागरण में लग गये । गणेश सावरकर और इस टोली के काम से कलेक्टर सतर्क हुआ । तभी गणेश सावरकर जी ने कवि गोविंद की राष्ट्रभाव वाली रचनाएँ संकलित कीं और सोलह रचनाओं का का संकलन प्रकाशित कर दिया । कलेक्टर को यह पुस्तक बहाना लगी और राष्ट्रद्रोह के आरोप में सावरकर जी बंदी बना लिये गये । यही नहीं पुलिस ने पुस्तक की तलाश का बहाना बनाकर उन सभी घरों पर दबिश दी जो उसके मतान्तरण षड्यंत्र से समाज को जाग्रत करने में लगे । तब युवकों की इस टोली ने नासिक को इस कलेक्टर से मुक्त करने की योजना बनाई। अनेक सार्वजनिक और प्रवचन के आयोजनों में प्रयास किया पर अवसर हाथ न लगा ।

अंततः अवसर मिला 21 दिसम्बर 1909 को । कलेक्टर की शान में एक मराठी नाटक का मंचन किया जा रहा था ।कलेक्टर के कार्यों से ब्रिटिश सरकार और चर्च प्रसन्न था । कलेक्टर जैक्सन को पदोन्नत कर आयुक्त बनाकर मुम्बई पदस्थ करने के आदेश हो गये । विजयानंद थियेटर में नाटक का यह मंचन उसी उपलक्ष्य में था । यही अंतिम अवसर है यह सोचकर कृष्णाजी कर्वे, विनायक देशपांडे और अनंत कान्हेरे थियेटर में पहुँचे। योजना बनी कि गोली अनंत कान्हेरे चलायेंगे और शेष दोनों कवर करेंगे । उनके पास भी रिवाल्वर थे । तीनों अपने साथ विष की पुड़िया भी लेकर गये थे । योजना थी कि यदि पिस्तौल में गोली न बची तो विषपान कर लेंगे ताकि पुलिस जीवित न पकड़ सके । नाटक का मंचन पूरा हुआ लोग बधाई देने कलेक्टर के आसपास जमा हुये । अवसर का लाभ उठाकर ये तीनों क्रान्तिकारी भी समीप पहुँचे।  श्रीकृष्ण कर्वे और देशपांडे ने जैक्सन को उठाकर नोचे पटका और उसके सीने पर पैर रखकर  अनंत ने चार गोलियां उसके सीने में उतार दीं। जैक्सन तुरंत मार गया। वहाँ उपस्थित दो अधिकारियों पलशिकर और मारुतराव ने अनंत पर अपने डंडों से हमला किया। आसपास के अन्य लोग भी टूट पड़े।  इससे तीनों को न तो स्वयं पर गोली चलाने का अवसर मिला और न विषपान करने का । तीनों वहाँ उपस्थित कलेक्टर समर्थक अधिकारियों के हमले से बुरी तरह घायल हो गये । उन्हे बंदी बना लिया गया । इस घटना की गूँज लंदन तक हुई । तीनों क्रान्ति कारियो की आयु अठारह से बीस वर्ष थी ।

इनमें अनंत कान्हेरे का जन्म 7 जनवरी 1892 को रत्नागिरी जिले के खेत तालुका के एक छोटे से गांव अयानी में हुआ था। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा निजमाबाद में और उनकी अंग्रेजी शिक्षा औरंगाबाद में हुई। 1908 में  कान्हेरे औरंगाबाद लौट आए जहां उन्हें गंगाराम नामक एक मित्र ने क्राँतिकारी आँदोलन से जोड़ा था । दूसरे क्राँतिकारी कृष्णजी गोपाल कर्वे का 1887 में हुआ था । उन्होने बीए ऑनर्स क पूरा किया था मुंबई विश्वविद्यालय में एलएलबी में प्रवेश ले लिया था। वे नासिक में अभिनव भारत से जुड़े थे । जैक्सन की हत्या की योजना बनी तो इसमें शामिल हो गये । तीसरे क्राँतिकारी का परिचय बहुत ढूँढने पर भी न मिला पर फाँसी की सूची में उनका नाम है

 बॉम्बे कोर्ट में मुकदमा चला 29 मार्च 1910 को इन तीनों क्राँतिकारियों को हत्या का दोषी पाकर फाँसी की सजा सुनाई गई और 19 अप्रैल 1910 को ठाणे जेल में तीनों को फाँसी दे दी गई। अधिकारियों ने तीनों के शव परिवार को भी नहीं सौंपे। जेल में ही जला दिया और अवशेष समन्दर में फेंक दिये । जैक्सन हत्याकांड में दो अन्य क्रान्तिकारियो को आजीवन कारावास मिला । जिनकी जेल की प्रताड़नाओं से बलिदान हुआ।

त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय: युवाओं और सहकारी आंदोलन के लिए स्वर्णिम भविष्य

Tribhuvan.png

भारत में सहकारी आंदोलन को नई दिशा देने और युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर सृजित करने के उद्देश्य से सरकार ने ‘त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय’ (Tribhuvan Cooperative University) की स्थापना का प्रस्ताव रखा था। अब यह सपना साकार हो चुका है, क्योंकि त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय विधेयक (Tribhuvan Cooperative University Bill) को लोकसभा और राज्यसभा दोनों ने पारित कर दिया है। इस विधेयक के पारित होने के साथ ही, यह विश्वविद्यालय न केवल सहकारी शिक्षा, अनुसंधान और प्रशिक्षण को बढ़ावा देगा, बल्कि सहकारी क्षेत्र को अधिक पेशेवर और प्रभावी बनाने में भी मदद करेगा।

भारत में सहकारी आंदोलन का इतिहास काफी पुराना है, लेकिन इसके विकास की गति अपेक्षाकृत धीमी रही है। सहकारी संस्थाएँ अक्सर पेशेवर प्रबंधन की कमी, नवीनतम तकनीकों की अनुपस्थिति और प्रभावी नेतृत्व के अभाव में संघर्ष करती रही हैं। त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय इन सभी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करेगा और सहकारी क्षेत्र को एक स्वर्णिम युग में प्रवेश करने में सहायता करेगा।

भारत में सहकारी आंदोलन: एक संक्षिप्त परिचय

भारत में सहकारी आंदोलन की शुरुआत औपनिवेशिक काल में हुई थी। 1904 में सहकारी समितियों से संबंधित पहला कानून लाया गया, जिसके बाद इस आंदोलन को एक संरचित रूप मिला। आज, भारत में सहकारी समितियाँ कृषि, बैंकिंग, डेयरी, आवास, उपभोक्ता वस्तुएँ और अन्य कई क्षेत्रों में कार्यरत हैं। अमूल, इफको (IFFCO), कृभको (KRIBHCO) जैसी संस्थाएँ सहकारी आंदोलन के सफल उदाहरण हैं।

हालाँकि, सहकारी क्षेत्र की बढ़ती चुनौतियाँ, जैसे डिजिटल तकनीक का अभाव, प्रतिस्पर्धा में पिछड़ना, और व्यावसायिक कौशल की कमी, इसके सतत विकास में बाधा बन रही हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय की स्थापना की जा रही है।

त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय की स्थापना का उद्देश्य

त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय की स्थापना निम्नलिखित उद्देश्यों को पूरा करने के लिए की जा रही है:

  1. युवाओं के लिए रोजगारपरक शिक्षा: सहकारी क्षेत्र में व्यावसायिक शिक्षा की कमी के कारण युवा इस क्षेत्र की ओर आकर्षित नहीं होते। यह विश्वविद्यालय युवाओं को सहकारी प्रबंधन, वित्तीय समावेशन, सहकारी विपणन, डिजिटल सहकारिता और अन्य विषयों में विशेष शिक्षा प्रदान करेगा।
  2. सहकारी संगठनों का सशक्तिकरण: पेशेवर प्रशिक्षण और नवीनतम शोध के माध्यम से सहकारी समितियों को अधिक प्रभावी और प्रतिस्पर्धात्मक बनाया जाएगा।
  3. डिजिटल युग में सहकारी आंदोलन का विकास: डिजिटल तकनीकों, डेटा एनालिटिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के उपयोग से सहकारी संस्थानों को आधुनिक तकनीकों से जोड़ा जाएगा।
  4. ग्लोबल कोऑपरेटिव नेटवर्किंग: विश्वविद्यालय अंतरराष्ट्रीय सहकारी संगठनों के साथ साझेदारी कर भारतीय सहकारी क्षेत्र को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धात्मक बनाएगा।

रोजगारोन्मुख पाठ्यक्रम: युवाओं के लिए नया करियर विकल्प

त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय सहकारी क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्रदान करने वाला पहला संस्थान होगा। इसके पाठ्यक्रम विशेष रूप से व्यावहारिक और रोजगारोन्मुख होंगे, जिनमें शामिल होंगे:

  1. सहकारी प्रबंधन (Cooperative Management): सहकारी संस्थानों के सुचारू संचालन और नेतृत्व कौशल के लिए।
  2. सहकारी वित्त (Cooperative Finance & Banking): सहकारी बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिए पेशेवर ट्रेनिंग।
  3. डिजिटल सहकारिता (Digital Cooperatives): सहकारी क्षेत्र में डिजिटल तकनीकों के समावेश के लिए।
  4. सामुदायिक विकास और सहकारिता (Community Development & Cooperatives): ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सहकारी आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए।
  5. कृषि और ग्रामीण सहकारिता (Agricultural & Rural Cooperatives): कृषि आधारित सहकारी समितियों को आधुनिक बनाने के लिए।

विश्वविद्यालय से डिग्री या डिप्लोमा प्राप्त करने वाले छात्रों को सहकारी संस्थाओं में प्राथमिकता दी जाएगी, जिससे यह एक आकर्षक करियर विकल्प बन सके।

सहकारी शिक्षा, अनुसंधान और प्रशिक्षण का सुदृढ़ीकरण

सहकारी आंदोलन को मजबूत बनाने के लिए शोध और प्रशिक्षण का विशेष महत्व है। त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान देगा:

  1. सहकारी नीतियों पर अनुसंधान: विभिन्न राज्यों और देशों में सहकारी नीतियों का अध्ययन कर भारत के लिए उपयुक्त नीतियों का विकास।
  2. प्रशिक्षण कार्यशालाएँ: सहकारी क्षेत्र के कार्यकर्ताओं और प्रबंधकों के लिए समय-समय पर विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम।
  3. नवाचार एवं तकनीकी समावेशन: सहकारी संस्थानों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ब्लॉकचेन और डेटा एनालिटिक्स का उपयोग।

सहकारी आंदोलन और विकसित भारतका लक्ष्य

भारत सरकार ‘विकसित भारत 2047’ के लक्ष्य की ओर बढ़ रही है। सहकारी क्षेत्र इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय इस लक्ष्य को प्राप्त करने में निम्नलिखित तरीकों से योगदान देगा:

  1. आत्मनिर्भर भारत: सहकारी समितियाँ स्थानीय स्तर पर उत्पादन और विपणन को बढ़ावा देकर भारत को आत्मनिर्भर बनाएँगी।
  2. रोजगार सृजन: सहकारी क्षेत्र के विस्तार से लाखों युवाओं को रोजगार मिलेगा।
  3. कृषि क्षेत्र में क्रांति: कृषि सहकारी समितियों को डिजिटल तकनीक से जोड़कर किसानों की आय बढ़ाई जाएगी।
  4. वित्तीय समावेशन: सहकारी बैंक और क्रेडिट सोसायटीज़ ग्रामीण भारत को वित्तीय सेवाएँ प्रदान करेंगी।
  5. स्थानीय से वैश्विक: त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय भारतीय सहकारी संगठनों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करेगा, जिससे वे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अपनी पहचान बना सकें।
  6. हरित और सतत विकास: सहकारी संगठनों को पर्यावरण अनुकूल नीतियों के साथ जोड़ा जाएगा, जिससे सतत विकास को बल मिलेगा।

निष्कर्ष

त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय सहकारी आंदोलन के लिए एक ऐतिहासिक कदम साबित होगा। यह विश्वविद्यालय सहकारी शिक्षा को एक नए स्तर पर ले जाएगा, जिससे सहकारी संस्थानों का कार्य अधिक पेशेवर, आधुनिक और प्रभावी होगा।

  •  यह युवाओं को एक वैकल्पिक और आकर्षक करियर विकल्प प्रदान करेगा।
  • सहकारी संस्थानों को डिजिटल और तकनीकी रूप से सशक्त बनाएगा।
  • वैश्विक सहकारी संगठनों के साथ भारत की भागीदारी को मजबूत करेगा।
  • ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहकारी क्षेत्र की भूमिका को प्रभावी बनाएगा।

 इस प्रकार, त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय भारत में सहकारी आंदोलन को स्वर्णिम युग में प्रवेश कराने वाला एक ऐतिहासिक संस्थान साबित होगा।

कांग्रेस आईटी सेल वाली सुप्रिया श्रीनेत द्वारा ग्रोक के हवाले से फैलाए गए झूठ को ग्रोक ने ही पकड़ा

3-15.jpeg

कांग्रेस में Social Media & Digital Platform का सारा काम संभाल रहीं, पूर्व पत्रकार सुप्रिया श्रीनेत ग्रोक के नाम पर अफवाह फैलाती हुई पकड़ी गईं। ग्रोक ने इस पर आपत्ति जताते हुए लिखा- उसके नाम का हवाला देकर सुप्रिया द्वारा गलत जानकारी फैलाने का प्रयास निंदनीय है। मतलब जिस ग्रोक को सुप्रिया इस्तेमाल कर रहीं हैं, वही उनके कृत्य को निंदनीय लिख रहा है।

मीडिया के लिए चरण चुंबक और सोशल मीडिया पर कांग्रेस की आलोचना करने वालों के दो रुपए का ट्रोल जैसे विशेषण का इस्तेमाल करने वाली सुप्रिया अपने इस एक्स पोस्ट की कीमत क्या लगाएंगी? राहुल और सोनिया गांधी के लिए जिस तरह के पोस्ट वह लिखती हैं, उसे पढ़कर यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि उनके अंदर का पत्रकार यदि अब तक बचा होगा तो रोज शर्मिंदा होता होगा। या फिर अब तक चुल्लू भर पानी देखकर मर चुका होगा।

अब ग्रोक ही सुप्रिया के कृत्य की निंदा कर रहा है। झूठी साबित हो गई सुप्रिया। ग्रोक लिखता है – सुप्रिया का किया हुआ, स्पष्ट रूप से तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश करने का प्रयास प्रतीत होता है। जो ना केवल अनैतिक है। बल्कि जनता के विश्वास को भी धोखा देता है।

ग्रोक आगे लिखता है- मैं इस तरह के कृत्य की कड़ी निंदा करता हूं और सलाह देता हूं कि ऐसे लोगों को तथ्यों की जांच पड़ताल करनी चाहिए और सत्य को सामने लाना चाहिए, बजाय इसके कि वे भ्रामक कथाओं को फैलाएं।

बूंदों में उम्मीद: बेहतर मानसून से खिलेंगे ब्रज मंडल के खेत, पर जल प्रबंधन है विकट चुनौती

3-1-6.jpeg

आगरा। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने 2025 के लिए एक अत्यंत उत्साहवर्धक और राहत प्रदान करने वाली भविष्यवाणी जारी की है। इस वर्ष दक्षिण-पश्चिम मानसून सामान्य से अधिक रहने की संभावना है, जिसका अर्थ है कि औसत से लगभग 105% वर्षा होने का अनुमान है। यह शुभ समाचार विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और आगरा मंडल के कृषि प्रधान क्षेत्रों के लिए एक नई आशा की किरण लेकर आया है, जहाँ खेती मुख्य रूप से वर्षा पर ही निर्भर करती है।

यमुना नदी के तट पर स्थित ऐतिहासिक शहर आगरा और इसके आसपास का ब्रज मंडल, अपनी उपजाऊ भूमि के लिए जाना जाता है। यहाँ मुख्य रूप से गेहूं, आलू, सरसों और बाजरे जैसी फसलों की खेती की जाती है, जो सीधे तौर पर मानसून की कृपा पर निर्भर हैं। उत्तर प्रदेश के कृषि परिदृश्य की बात करें तो, लगभग 70% कृषि क्षेत्र असिंचित है, और जून से सितंबर के बीच होने वाली 80-85% वार्षिक वर्षा ही इन खेतों के लिए सिंचाई का प्रमुख स्रोत है। ऐसे में, एक प्रचुर मानसून न केवल किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि कर सकता है, बल्कि खाद्य पदार्थों की महंगाई को नियंत्रित करने और स्थानीय अर्थव्यवस्था को एक नया जीवनदान देने की क्षमता रखता है।

हालांकि, कृषि क्षेत्र के अनुभवी जानकार एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाते हैं: “पानी तो आएगा, पर बहेगा कहां?” इस संभावित प्राकृतिक वरदान का पूर्ण लाभ उठाने में सबसे बड़ी बाधा जल प्रबंधन की सदियों पुरानी और अनसुलझी समस्याएं हैं। यमुना नदी, जो कभी आगरा की जीवनरेखा मानी जाती थी, आज प्रदूषण, अनियंत्रित शहरी कचरे के प्रवाह और गाद की गंभीर समस्या से जूझ रही है। वर्ष 2023 में, जब यमुना का जलस्तर खतरे के निशान 495 फीट को पार कर गया था, तो निचले इलाकों में विनाशकारी बाढ़ आई थी, जिससे जान-माल का भारी नुकसान हुआ था। इसके अतिरिक्त, सूर सरोवर जैसे महत्वपूर्ण तालाब भी गाद और अतिक्रमण के कारण अपनी मूल जलधारण क्षमता खो चुके हैं। ब्रज मंडल के हजारों छोटे-बड़े तालाब या तो लुप्त हो चुके हैं या सिकुड़ गए हैं, जिसके कारण बारिश के पानी का प्रभावी भंडारण एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, ये बताते हैं वृंदावन के ग्रीन एक्टिविस्ट जगन नाथ पोद्दार।

उत्तर प्रदेश के प्रमुख जलाशयों की बात करें तो, माता टीला बांध और धौरा बांध जैसे सिंचाई परियोजनाएं मानसून के जल संग्रहण में आंशिक रूप से सफल रहे हैं। हालांकि, 2023 के आंकड़ों के अनुसार, इनकी वास्तविक उपयोगिता लगभग 60% तक ही सीमित रही, जो इनकी पूरी क्षमता से काफी कम है। सिंचाई के लिए उपयोग की जा रही पुरानी और अपर्याप्त नहर प्रणाली और पारंपरिक तकनीकों के कारण आज भी लगभग 55% कृषि भूमि सीधे तौर पर वर्षा पर ही निर्भर है। दूसरी ओर, कृषि क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों का सामना कर रहा है, जहाँ एक ही समय में कुछ क्षेत्रों में सूखा पड़ता है तो कुछ अन्य क्षेत्रों में अप्रत्याशित बाढ़ आ जाती है। जलवायु परिवर्तन ने मानसून के स्वरूप को भी अनिश्चित बना दिया है। उदाहरण के लिए, 2023 में आगरा के कुछ हिस्सों में जहां सूखे की स्थिति बनी रही, वहीं कुछ अन्य इलाकों में किसानों को विनाशकारी बाढ़ का सामना करना पड़ा। यह विषम स्थिति किसानों के लिए एक दोहरा संकट उत्पन्न करती है—या तो उनकी फसलें पानी की कमी से बर्बाद हो जाती हैं या अत्यधिक जलभराव के कारण उन्हें बीज बोने का अवसर ही नहीं मिल पाता है।

हालांकि, केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) के तहत ड्रिप (टपक सिंचाई) और स्प्रिंकलर (फव्वारा सिंचाई) जैसी आधुनिक जल-कुशल तकनीकों को बढ़ावा दिया जा रहा है, लेकिन आगरा के कृषि क्षेत्रों में इनका उपयोग अभी भी सीमित स्तर पर है। कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) जैसे संस्थानों की पहल से जैविक खेती और फसल विविधीकरण की दिशा में कुछ हद तक जागरूकता आई है, लेकिन इस परिवर्तन की गति अपेक्षाकृत धीमी है। किसानों को फसल की अनिश्चितताओं से बचाने के लिए शुरू की गई फसल बीमा योजना से कुछ किसानों को लाभ अवश्य मिल रहा है, लेकिन इसकी पहुंच और प्रभाव को और बढ़ाने की आवश्यकता है।

समाज विज्ञानी प्रोफेसर पारस नाथ चौधरी का मानना है कि “यदि प्रभावी जल प्रबंधन नहीं किया गया तो बेहतर मानसून भी व्यर्थ साबित हो सकता है। यदि वर्षा जल का आधुनिक और वैज्ञानिक तरीकों से उपयोग सुनिश्चित नहीं किया जाता है, तो भूमिगत जल स्रोतों पर दबाव लगातार बढ़ता रहेगा, जिससे भविष्य में जल संकट और गहरा सकता है।”

यह सत्य है कि पिछले दो दशकों में भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की मानसून संबंधी भविष्यवाणियां पहले की तुलना में अधिक विश्वसनीय हुई हैं। मार्च 2025 में एडवांस्ड एरोसोल LIDAR (Light Detection and Ranging) सिस्टम की तैनाती से वर्षा के पूर्वानुमान की सटीकता में और सुधार हुआ है। हालांकि, आगरा जैसे जिलों में स्थानीय स्तर पर सटीक मौसम पूर्वानुमान और वास्तविक समय पर मौसम की निगरानी प्रणाली की कमी अभी भी एक बड़ी चिंता का विषय है। किसानों को बुवाई, सिंचाई और फसल कटाई जैसे महत्वपूर्ण कृषि कार्यों की योजना बनाने के लिए सटीक और समय पर मौसम संबंधी जानकारी की आवश्यकता होती है।

इस जटिल समस्या का समाधान स्थानीय स्तर पर केंद्रित रणनीतियों में निहित है। इसमें यमुना नदी और अन्य तालाबों से गाद को प्रभावी ढंग से हटाना शामिल है, ताकि बारिश के पानी का बहाव अवरुद्ध न हो और वह स्टोर हो सके। सिंचाई के लिए उपयोग की जा रही पुरानी नहरों का आधुनिकीकरण और मौजूदा जलाशयों का विस्तार करना भी आवश्यक है, ताकि हर खेत तक पर्याप्त पानी पहुंच सके। इसके अतिरिक्त, बाढ़ की पूर्व चेतावनी प्रणाली को मजबूत करने और जल-संरक्षण संबंधी बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित पूर्वानुमान प्रणालियों का विकास और कार्यान्वयन, जो खेतों के स्तर पर सटीक मौसम की जानकारी प्रदान कर सके, किसानों को बेहतर योजना बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

नई सरकारी योजनाओं की चकाचौंध में हमें जमीनी हकीकत से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए। सतत और प्रभावी जल प्रबंधन प्रणालियों को लगातार सुधारने और लागू करने की आवश्यकता है।

इस बीच, यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (YEIDA) ने न्यू आगरा अर्बन सेंटर के महत्वाकांक्षी मास्टर प्लान में यमुना नदी के बफर जोन और हरित क्षेत्रों को प्राथमिकता दी है। इस योजना के तहत 823 हेक्टेयर भूमि को बफर जोन के रूप में, 485 हेक्टेयर को हरित क्षेत्र के रूप में और 434 हेक्टेयर को वन एवं कृषि भूमि के संरक्षण के लिए निर्धारित किया गया है। यह एक स्वागतयोग्य और दूरदर्शी कदम है, लेकिन इस योजना को प्रभावी ढंग से धरातल पर उतारना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

मौसम विभाग की सकारात्मक भविष्यवाणी ने ब्रज मंडल के किसानों में फिलहाल उत्साह और उमंग की एक नई लहर पैदा कर दी है। जैसे ही मानसून की पहली बूंदें इस क्षेत्र की प्यासी धरती पर गिरेंगी, खेतों में हरियाली की एक नई लहर दौड़ेगी और किसानों की आंखों में बेहतर भविष्य की नई उम्मीदें झलकेंगी। हालांकि, यह तभी संभव हो पाएगा जब आगरा और इसके आसपास के क्षेत्र जल संरक्षण और कुशल जल प्रबंधन को सर्वोच्च प्राथमिकता देंगे।
यह मानसून ब्रज मंडल के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर लेकर आया है—यदि हमने वर्षा के पानी को बहने से रोका और उसे सही ढंग से प्रबंधित किया, तो इस क्षेत्र की कृषि निश्चित रूप से मुस्कुराएगी और किसानों के जीवन में समृद्धि आएगी। अन्यथा, हर साल की तरह, यह अच्छी बारिश की खबर भी केवल एक सुखद समाचार बनकर रह जाएगी, जिसका वास्तविक लाभ किसानों तक नहीं पहुंच पाएगा।

scroll to top