हरियाणा के नए नवेले विवाहित जोड़े हिमांशी और विनय नरवाल के साथ जो हुआ वही हुआ जो दिसंबर 1999 में गुड़गांव के रुपिन कत्याल और उनकी पत्नी रचना कत्याल के साथ हुआ था । मेरी आंखों के सामने रचना कत्याल घूम गयी रुपिन कत्याल के शादी वाले घर की तस्वीरें घूम गयीं । उन दिनों मैं जी न्यूज़ चैनल में रिपोर्टर थी । कंधार विमान अपहरण जो मुसलमान आंतकवादियों ने अपने खूंखार साथियों को छुडा़ने के लिए किया था उसमें हनीमून मना कर काठमांडू से लौट रहे कत्याल दंपत्ति भी थे । आंतकवादियों ने रूपिन को मार डाला कल्पना किजिए कैसे एक सप्ताह तक नयी नवेली दुल्हन ने इन बेदिल बर्बर आंतकवादियों के बीच पति की लाश के साथ दिन काटे होंगें कोई अपना नहीं था साथ ,खौफ का साया हर समय ।
24 दिसंबर से 31 दिसंबर तक हम सभी रिपोर्टर तीन डिग्री तापमान और ठंडी हवाओं के बीच नागरिक उड्डयन मंत्रालय में ज़मीन पर अखबार बिछाकर रात काटते मंत्रालय ने हमारे लिए दाल चावल का इंतजाम कर दिया था लेकिन सर्दी तो हमें झेलनी ही थी । दिन में प्रधानमंत्री आवास के बाहर खड़े रहते उन दिनों प्रधानमंत्री आवास के गेट के बाहर ही हमारे बैठने की व्यवस्था रहती थी आजकल मैं देखती हूं काफी दूर मीडिया को खड़े रहना पड़ता है । रिपोर्टर आती जाती कारों का पीछा करते कुछ मंत्री उतर कर बात भी कर लेते थे । दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास संतूर होटल में अपहृत विमान यात्रियों के परिजनों को रखा गया था उनसे भी हम संवाददाता मिलते ।
रिहा हो कर जब वे लौटे तो जाहिर सी बात है सबका ध्यान रूपिन कत्याल पर था । रूपिन का अंतिम संस्कार कवर करने का जिम्मा मुझे दिया गया था । गुड़गांव में रूपिन की बड़ी सारी कोठी थी जिसमें शादी के घर की पूरी शुभता दिखायी दे रही थी । दीवारों पर हल्दी के हाथों के थापे देवताओं के थापे वंदनवारों से सजा घर सोचिए जिस घर में शादी की मिठाइयां रखी हुई थी वहां नवविवाहित बेटे की लाश लायी जाए मेंहदीं रचे हाथों में चूड़ा पहने दुल्हन विधवा हो कर लौटे । उस दर्द को केवल महसूस किया जा सकता है ।
जैसे रचना ने आंतकवादियों के आगे हाथ जोड़े थे वैसे ही हिमांशी ने भी जोड़े लेकिन इनको तो अल्लाह के नाम पर मासूमों का कत्ल करना था सो कर दिया ।
कत्याल परिवार के घर के बाहर सैंकड़ों लोग थे उनके रिश्तेदार कम और उनसे सहानूभूति रखने वाले ज्यादा । मीडिया का पूरा जमावड़ा था । रूपिन कत्याल की शव यात्रा और अंतिम संस्कार को मैने पूरा कवर किया । उनके परिवार के साथ साथ गुड़गांव के लोगों का रूदन भी देखा नहीं जा रहा था ।
सोचिए कि 16 अप्रैल को जिसकी शादी हुई और 22 अप्रैल को उसकी आंखों के सामने आंतकवादियों ने पति को गोली मार दी उस लड़की की उसके परिवार की ससुराल वालों की क्या हालत होगी ।
और हमारे बेशर्म हिंदु ही कह रहे हैं कि गलती आंतकवादियों की नहीं सुरक्षा बलों की है । लेकिन ये भी सच है कि घाटी के किसी टूर ऑपरेटर की सूचना पर ही आंतकवादी वहां पहुंचे उनको बताया गया था कि भारत सरकार के कई अधिकारी इस टूर ग्रुप में शामिल हैं । हिंदुओं का कुछ नहीं हो सकता पूरी दुनिया में आंतकवादी घटनाओं को कौन अंजाम देता है ये कौन नहीं जानता पूरी दुनिया में आंतकवादी संगठन किसके हैं ये सबको पता है फिर भी इनकी फंडिंग और मदद करनेवालों की कमी नहीं है विशेषकर भारत का बुद्धिजीवी वर्ग । चाहे वो पत्रकारिता में हो वकालत में हो शिक्षा जगत में हों लेखन में हों कला में हों ऐसे तर्क पेश करते हैं कि जैसे सलीम जावेद की स्क्रिप्ट पर बनी फिल्मों में स्मगलर , गुंडा बना नायक । बेचारे के बाप को चोरी के इल्जाम में फंसा दिया गया उसके हाथ पर बचपन में चोर लिख दिया गया तो वो स्मगलरों के गिरोह में चला गया । आंतकवाद का समर्थन और मोदी का विरोध करने वालों जब आंच तुम्हारे घर तुम्हारे बेटे बेटियों बहुओं तक पहुंचेगी तब ही तुम्हारी आंख खुलेगी । जब आंतकवादियों से सामना होगा वो नहीं देखेंगे कि तुमने कितनी हिंदु विरोधी पोस्ट लिखी तुमने गंगा जमुनी तहजीब का कितना राग गाया । बस तुम अल्लाह के दीन पर नहीं चलते यही देखा जाएगा । ये कौम के नाम पर पूरी दुनिया में एक है तुम गाते रहो सेकुलरजिम का राग तुम बनते रहो प्रगतिशील और इनको क्या चाहिए इनकी फांसी की सजा रूकवाने के लिए नसीरूद्दीन जैसे अभिनेता सामने आते हैं ।