नरेन्द्र भदौरिया
भोपाल। आर एस एस का विरोध करने वाले भारत के कई संगठनों को अब आश्चर्य में आँखें फाड़कर संघ के लोगों को घूरते और अनर्गल बातें करते देखा जा रहा है।
यह लोग अपनी बुद्धि पर तरस खाते तो यह स्वीकारने में देर नहीं करते कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 100 वर्षों से वास्तव में क्या कर रहा था । यह रहस्य जानने समझने में उनसे भारी भूल हो हुई है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वास्तव में एक हजार वर्षों से दबे कुचले सनातनी हिन्दुओं के आत्मिक स्वाभिमान को जगाने में चुपचाप लगा रहा। इस अवधि में झूठे आरोप, मिथ्या प्रतिबन्ध और प्रताड़ना सहन करता रहा।
अपनी आंखों के सामने दासियों लाख हिन्दुओं का प्रायोजित नर संहार देखा। करोड़ों आस्थावान लोगों को भय , लोभ और प्रताड़ना के बल पर मतांतरित किये जाते देखा। मातृभूमि को बंटते , कटते देखा। असुरक्षित सीमाओं पर चीन और पाकिस्तान के हमले देखे । तो अपने विशाल देश को आतंक के सहारे उंगलियों पर नचाते भारत और सीमा पार के षड्यंत्रकारियों की मिलीभगत के दुष्परिणाम देखे। जम्मू कश्मीर जैसे राज्य से साढ़े पांच लाख हिन्दु परिवारों को हिंसा में पिसते देखा। इसी राज्य की गलियों में भारतीय सेना के जवानों को पत्थरों के हमले सहते, थप्पड़ खाते देखा। देश के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में सरेआम गोवंश की का वध होते देखा।
हिन्दुओं के परिवारों की लड़कियों को लूट कर ले जाते मुस्लिम गुंडों के झुण्ड देखे। फिर लव जिहाद में हिन्दुओं की बेटियों को फंसते उनकी नीलामी होते देखा।
विदेशी षड्यंत्रों के माध्यम से अटल बिहारी वाजपेयी को सत्ता से बाहर होते देखा। सांसदों से लेकर वोटरों तक की खरीद बिक्री देखी। मुस्लिम और ईसाई वोट बैंको के सहारे बनी सरकारों द्वारा हिन्दुओं के ग्रन्थों को नष्ट करते देखा।, संतों को पीटकर मारते देखा। । मन्दिरों को ध्वस्त होते देखा। संविधान को मनचाहे ढंग से बदलते देखा। देश की सुरक्षा के लिए रक्षा उपकरण बनाने वाले संस्थानों को सरकारों द्वारा नेताओं की दलाली के निमित्त स्वयं ठप करते देखा। फिर अरबों रुपए के रक्षा सौदे करके दलाली में लिप्त नेताओं अधिकारियों को बचते बचाते खुली छूट मिलते देखा। समाज को लड़ाने के अनेक हथकण्डे देखे। बार बार हिंसक दंगे कराकर समाज को भ्रमित करते नेताओं को देखा।
कभी भाषा के बहाने भारत को उत्तर दक्षिण में बांटा जाता रहा तो कभी राम के जन्मस्थान पर शौचालय बनवाने के अपमानित करने वाले वक्तव्यों पर मौन साधे रहने की विवशता झेली। अयोध्या का मन्दिर नहीं बने इसके लिए कैसे कई तरह के विरोधी परस्पर मिलकर आड़े आते रहे। राजनीति से उठे बवंडरों में प्रशासन और न्यायपालिका को भ्रमित होते देखा ।यह सब तो बहुत थोड़ी झलक है। और जाने क्या क्या देखते हुए संघ ने सौ वर्ष बिता दिये । इस अवधि में तीन बार मिथ्या प्रतिबंध सहन किये । अपने संगठन के हजारों कार्यकर्ताओं को संघ ने असमय खोने की पीड़ा भी सहन की।
अब संघ अपनी स्थापना के एक सौ वर्ष बीतने पर सबकी सुनते हुए यह बताने को उत्सुक है कि इतना सब कुछ सहन करते हुए यह संगठन मौन क्यों रहा। संघ ने खुलकर बताया है कि वह नकारात्मक विमर्श करना उचित नहीं समझता। हमारा ध्येय सनातन संस्कृति से बंधा है। संघ सत्य के पक्ष में खड़े रहकर देश के नागरिकों को स्व की भावना से जोड़ने में लगा है। राष्ट्र के स्वाभिमान की टेक से संघ बंधा है। हमारी संस्कृति की पहचान आखिर हम हैं कौन जैसे मूलभूत प्रश्न से जुड़ी है। स्व की यह भावना इस मुख्य तत्व को अच्छी तरह समझने , विश्वास करने , उसको जीने से प्रकट होगी। अपने स्वत्त्व को भुलाने से बडा दोष और कोई नहीं हो सकता। अपने स्व अर्थात पहचान को हृदयंगम करो। फिर उसके अनुरूप अपने को बदलो।
संघ की राह कभी आसान नहीं थी। आज संघ के पास विभिन्न संगठनों की परिधि में खड़े बीसियों करोड़ राष्ट्रभक्त कार्यकर्ताओं की बड़ी सेना खड़ी है। भविष्य के कुशल रचनाकार समर्पित उन्नायक , संगठक और लक्ष्य संधान को तत्पर करोड़ों हाथ एक साथ जुड़े हैं। वन्दे मातरम का मंत्र वाणी और मानस में गूंज रहा है। स्वार्थ रहित सेवा का ध्येय संघ के कार्यकर्ताओं को समर्पण करना सिखाता आ रहा है। देखते रहो , बढ़ते रहो। जो साथ हैं वही नहीं जो छिटक कर दूर खड़े हैं वह भी अपने हैं । यह सोच सामान्य नहीं है। इसीलिए संघ के कार्यकर्ता निडर हैं। इनके हृदय में उतावलापन नहीं दिखेगा। यह संगठन एक दो या दस बीस वर्ष की बात नहीं करता। इसके लिए सहस्त्राब्दियों की कल्पना भी छोटी है। ऐसे सत अर्थात विशुद्ध राष्ट्र भक्त तथा संस्कृति के प्रति निष्ठा से जुड़े संगठन को ध्येय निष्ठा से बंधे कार्यकर्ताओं के कारण सिद्धियां प्राप्त हैं। यह कहने में सन्देह करने वाले बड़े अल्पज्ञ हैं।