23 जनवरी 1809 क्राँतिकारी वीर सुरेन्द्र साय का जन्म : पुलिस प्रताड़ना : जेल में बलिदान

भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध 1857 की क्रांन्ति से सब परिचित हैं । लेकिन इससे पहले भी क्रांतियाँ हुईं हैं । यह अलग बात है कि उन क्रांतियों पर व्यापक चर्चा न हो सकीं और इतिहास में उतना स्थान बना जितनी जाग्रति उन अभियानों में क्रान्तिकारियों ने की थी । फिर भी यहाँ वहाँ उनका उल्लेख है । शताब्दियाँ बीत जाने पर भी लोक जीवन की चर्चाओं में उनका उल्लेख है । ऐसी ही एक क्रांति के नायक थे वीर सुरेन्द्र साय जो उड़ीसा में जन्मे थे । जिन्होंने अपने जीवन के 36 वर्ष जेल में बिताये और जेल की प्रताड़ना से ही उनका बलिदान हुआ । उन्होंने मध्यप्रदेश की असीरगढ़ की जेल में जीवन की अंतिम श्वाँस ली ।

वीर सुरेन्द्र साय का जन्म 23 जनवरी 1809 को उड़ीसा प्रांत के संबलपुर जिले में हुआ । उनका गाँव संबलपुर से तीस किलोमीटर दूर खिण्डा था । 1827 में संबलपुर के राजा का निधन हो गया । राजा निसंतान थे । यह वह दौर था जब अंग्रेज एक एक करके देशी रियासतों को अपनी मुट्ठी में कर रहे थे । अंग्रेजों ने उनकी विधवा रानी मोहन कुमारी को गद्दी पर बिठा कर सारे अधिकार अपने हाथ में ले लिये । रानी बहुत सहज थी । अंग्रेजों के रेजीडेन्ट ने इसका पूरा लाभ उठाया और हर जगह अपने लोगों को तैनात कर दिया और शोषण आरंभ हुआ । अंग्रेजी पुलिस राजस्व वसूली के नाम पर पूरी उपज पर कब्जा करने लगी । वनोपज पर भी और खनिज उपज पर भी अधिकार करने लगे । उन्हे इससे क़ोई मतलब न था कि किसानों के पास खाने को बचा है या नहीं । इससे हाहा कार शुरू हुआ और विरोध भी । विरोध के लिये कुछ जमींदार और कुछ जागरुक नागरिक आगे आये । इन सबको एकत्र किया वीर सुरेन्द्र साय ने । सशस्त्र नौजवानों का एक दल बनाया जिसमें 250 से अधिक नौजवान शामिल हुये । इस संख्या के पाँच दल बनाये गये जो अलग-अलग स्थानों में सक्रिय किये गये । इन दलों को जहाँ कहीं भी बल पूर्वक वसूली की सूचना मिलती ये दल वहां धमक जाता और लोगों को अंग्रेजों के अत्याचार से मुक्ति दिलाता । इनका आक्रमण इतना आकस्मिक और योजना से होता कि राजस्व वसूली के नाम पर लूट करने वाले अंग्रेजी अमले को लौटना पड़ता। कुछ उदाहरण तो ऐसे भी हैं जब इस क्राँतिकारी दल ने अंग्रेजों के अनाज गोदाम को लूटकर समाज में वितरित किया । इससे अंग्रेज सरकार बौखलाई। पर उन्होंने अपना बसूली अभियान तो बंद न किया पर अमले के साथ सुरक्षा प्रबंध और तगड़े कर दिये । इसके साथ ही इस दल को पकड़ने केलिये जाल फैलाना आरंभ किये । कुछ विश्वासघाती तैयार किये । एक दिन जब दल के प्रमुख लोग भावी रणनीति पर विचार के लिये एकत्र हुये तो अंग्रेज सेना ने धावा बोल दिया । यह घटना 1837 की है इस भिडन्त में क्रांतिकारी दल के बलभद्र सिंह का बलिदान हो गया । जबकि वीर सुरेन्द्र साय, बलराम सिंह, उदसम साय आदि क्रांति कारी निकलने में सफल हो गये । ये पांचों क्राँतिकारी अपने अपने दल के नायक थे और भविष्य की रणनीति बनाने एकत्र हुये थे । इस बैठक की सूचना किसी विश्वासघाती ने अंग्रेजों को दे दी थी और पुलिस ने घेर लिया । पुलिस ने जब हमला बोला तब दोपहर का भोजन चल रहा था । इससे क्राँतिकारियों को मोर्चा लेने में देर लगी फिर भी शाम तक मुकाबला चला । बलभद्र सिंह शहादत के बाद इस मुठभेड से सुरक्षित निकलने की रणनीति बनी और शेष क्राँतिकारी निकलने में सफल हो गये ।

1840 में सुरेन्द्रसाय किसी की सूचना पर बंदी बनाये गये उन्हे हजारीबाग जेल में रखा गया । जब 1857 की क्रांति आरंभ हुई तब उसका प्रभाव हजारीबाग में भी हुआ और 30 जुलाई 1857 एक भीड़ ने जेल तोड़ कर सभी बंदियों को मुक्त कर दिया । सुरेन्द्र साय पुनः अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र अभियान में लग गये । लेकिन दो वर्ष बाद ही बंदी बना लिये गये । उन्हे इस बार उड़ीसा से बाहर भेज दिया गया । पहले छत्तीसगढ़ के रायपुर जेल में फिर महाराष्ट्र के नागपुर जेल में और अंत में मध्यप्रदेश के असीरगढ़ जेल भेजा गया जहाँ प्रताड़ना से वे 23 मई 1884 को बलिदान हुये ।

2025’s Must-Have Corporate Gifts: Combining Elegance with Utility

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As we step into 2025, the corporate gifting landscape is evolving emphasizing elegance and
utility while catering to the diverse preferences of the metropolitan regions like Delhi NCR,
Bangalore, Hyderabad, and Mumbai. With an array of practical yet stylish options from some
leading corporate gifting companies like Consortium Gifts, companies can make a lasting
impression without breaking the bank. Here’s a curated list of must-have corporate gifts that
meet the budget-friendly criteria, ranging from Rs 500 to Rs 5000.

Luxury Collection By Shantanu Nikhil

Combining high fashion with corporate elegance, gifts from the Shantanu Nikhil collection
offers items like customised bags, stationary, stylish clothing accessories for all. These luxurious gifts express appreciation while remaining functional, making them perfect for employee onboarding events or high profile meetings. With a minimum order quantity of 25 pieces, they can be delivered the same day for smaller orders.

Tech Gifts: A blend of Style and Functionality

In a tech driven world, gifts like wired and wireless headphones, smartwatches, powerbanks
and speakers are all the rage. These products not only resonate with a tech-savvy audience but also enhance day-to-day work life. Ideal for conferences and achievement celebrations, these gifts are especially appealing in metro cities where tech integration is pivotal. Available at
budget-friendly prices with a swift 5-7 day delivery for bulk orders, they are sure to impress.

Daily Utility Goods: Everyday Essentials with a Twist

Gifts that combine daily utility and aesthetic appeal are a practical yet elegant choice.
Drinkware like travel mugs and steel bottles, as well as office accessories such as pen holders
and notebooks, cater to professionals looking for style in everyday use. These items are budget- friendly, ranging from ₹700–₹4,000, and make an excellent choice for fostering goodwill.

Sustainability at the Forefront

With environmental consciousness becoming a priority, sustainable gifts like reusable sippers,
eco-friendly tote bags, and bamboo diaries are gaining popularity. Such items not only align
with green practices but also convey a company’s commitment to social responsibility.
Affordable options in this category typically fall within ₹500–₹3,000, making them accessible for
businesses of all sizes.

Health and Wellness Gifts

Wellness-focused gifts are now essential in fostering a culture of care and work-life balance.
Fitness trackers, yoga accessories, and even simple items like weighing scales reflect an
organization’s dedication to employee well-being. These thoughtful gifts, often priced between
₹2,000–₹5,000, resonate with recipients and add a personal touch to professional relationships.

The Evolving Purpose of Corporate Gifting

In recent years, corporate gifting has moved beyond mere formality to become an integral part
of employee engagement and client relations. Data indicates that 72% of professionals
associate well-chosen gifts with higher job satisfaction and stronger business ties. The growing
emphasis on personalization, sustainability, and functionality reflects a broader cultural shift
towards more meaningful exchanges in the professional sphere.
As we look ahead, corporate gifting in 2025 is not just about choosing products—it’s about
fostering connections and aligning with the values of recipients. This evolving approach ensures

that gifting is not only memorable but also impactful, reflecting a deeper understanding of the
needs of today’s workforce.

वैश्विक स्तर पर भारतीय रुपए के मान को गिरने से बचाने हेतु कम करना होगा आयात

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ग्वालियर : एक अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपया 86.62 रुपए तक के रिकार्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है, बहुत सम्भव है कि आगे आने वाले समय में यह 87 रुपए अथवा 90 रुपए के स्तर को भी पार कर जाय। हालांकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपए की गिरावट के लिए वैश्विक स्तर पर कई कारक जिम्मेदार है परंतु मुख्य रूप से अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लगातार मजबूत होने के संकेत मिल रहे हैं, जैसे, रोजगार हेतु नई नौकरियों की तो जैसे बहार ही आई हुई है। जनवरी 2025 माह में दिसम्बर 2024 माह के जारी किए के आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में 256,000 से अधिक नई नौकरियां पैदा हुई हैं जबकि अनुमान लगभग 200,000 नौकरियों का ही था, नवम्बर 2024 माह में 212,000 नौकरियां पैदा हो सकी थीं। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मजबूती के चलते फेडरल रिजर्व, यूएस फेड रेट में कमी की घोषणा को रोक सकता है एवं अब अमेरिकी अर्थशास्त्रियों का मत है कि केलेंडर वर्ष 2025 में केवल एक अथवा दो बार ही फेड रेट में कमी की घोषणा हो, क्योंकि, रोजगार के क्षेत्र में मजबूती के चलते बहुत सम्भव है कि मुद्रा स्फीति में कमी लाने में अधिक समय लग सकता है। अमेरिका में बढ़ी हुई ब्याज दर के चलते अमेरिकी डॉलर इंडेक्स एवं अमेरिकी ट्रेजरी बिल पर यील्ड भी मजबूत बनी हुई है इससे अमेरिकी डॉलर लगातार और अधिक मजबूत हो रहा है एवं पूरे विश्व से डॉलर अमेरिका की ओर आकर्षित हो रहा है जबकि इसके विरुद्ध अन्य देशों की मुद्राओं पर स्पष्टत: दबाव दिखाई दे रहा है।

दिनांक 20 जनवरी 2025 को श्री डानल्ड ट्रम्प के अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद बहुत सम्भव है कि अमेरिका में आयात किए जाने वाले कई उत्पादों पर आयात कर की दर बढ़ा दी जाय क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव प्रचार के दौरान बार बार इसका जिक्र किया गया है। यदि ऐसे निर्णय अमेरिका में लागू किए जाते हैं तो इससे अमेरिका में मुद्रा स्फीति फैलेगी और यदि ऐसा होता दिखाई देता है तो यू एस फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में कमी के स्थान पर वृद्धि की घोषणा भी कर सकता है। इससे अमेरिकी डॉलर में और अधिक मजबूती आएगी और अन्य देशों की मुद्राओं का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और अधिक अवमूल्यन होने लगेगा।

दूसरे, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें भी एक बार पुनः बढ़ती हुई दिखाई दे रही है जो 81 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को पार कर गई हैं। इससे भी भारतीय रुपए पर दबाव बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। भारत आज भी अपने कच्चे तेल की कुल खपत का 87 प्रतिशत से अधिक तेल का आयात करता है और इस आयातित कच्चे तेल का भुगतान अमेरिकी डॉलर में करना होता है, जिससे भारत के लिए अमेरिकी डॉलर की मांग भी लगातार बढ़ रही है। बल्कि इससे तो भारत में भी मुद्रा स्फीति के बढ़ने का खतरा उत्पन्न हो रहा है। पिछले वर्ष भारत ने कच्चे तेल के आयात पर 13,200 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि खर्च की है।

तीसरे, विदेशी संस्थागत निवेशक भारतीय शेयर बाजार से अपना पैसा निकालने में लगे हुए हैं क्योंकि उन्हें अमेरिका में ब्याज दरों के अच्छे स्तर को देखते हुए अपने निवेश पर अधिक आय की सम्भावना दिखाई दे रही है। विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा 27 सितम्बर 2024 से भारतीय शेयर बाजार में लगातार बिकवाली की जा रही है और दिनांक 17 जनवरी 2025 तक 232,317 करोड़ रुपए की बिकवाली शेयर बाजार में उनके द्वारा की जा चुकी है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक देश की मुद्रा की तुलना में दूसरे देश की मुद्रा की कीमत यदि गिरने लगे तो इसके पीछे सामान्यतः दोनों देशों में मुद्रा स्फीति की दर को जिम्मेदार माना जाता है। जैसे यदि अमेरिका में मुद्रा स्फीति की दर 3 प्रतिशत प्रतिवर्ष है और भारत में मुद्रा स्फीति की दर 5.5 प्रतिशत प्रतिवर्ष है तो भारतीय रुपए की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में अमेरिकी डॉलर की तुलना में 2.5 प्रतिशत से गिरनी चाहिए। इस दृष्टि से अर्थशास्त्र में यह एक सैद्धांतिक कारण माना जाता है और इस सिद्धांत को अपनाकर विदेशी निवेशक उन्हीं देशों में अधिक निवेश करते हैं जहां मुद्रा स्फीति की दर नियंत्रण में रहती है।

पूरे विश्व का 88 प्रतिशत विदेशी व्यापार अमेरिकी डॉलर में होता है। जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिकी डॉलर की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। बाजार में जिस भी उत्पाद की मांग बढ़ेगी और यदि उस उत्पाद की आपूर्ति बाजार में नियंत्रित है तो उस उत्पाद की कीमत भी बाजार में बढ़ेगी। यही हाल अमेरिकी डॉलर का अंतरराष्ट्रीय बाजार में आज हो रहा है। अमेरिकी डॉलर की कीमत बढ़ रही है तो अन्य देशों की मुद्राओं की कीमत स्वाभाविक रूप से गिर रही है। साथ ही, 17 जनवरी 2025 को अमेरिकी डॉलर इंडेक्स 109.35 के स्तर पर पहुंच गया है। अमेरिकी डॉलर इंडेक्स का बढ़ना यानी दुनिया भर में डॉलर की मांग बढ़ रही है। अमेरिका में 10 वर्षीय बांड पर यील्ड भी 4.65 प्रतिशत प्रतिवर्ष से भी आगे निकल गई है। अन्य देशों की मुद्राओं की बाजार कीमत भारतीय रुपए की तुलना में अधिक तेजी से गिरी है। जनवरी 2024 से लेकर जनवरी 2025 के बीच अमेरिकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगभग 10 प्रतिशत मजबूत हुआ है। जबकि गिरने वाली मुद्राओं में भारतीय रुपया 3.5 प्रतिशत, ब्रिटिश पाउंड 3.8 प्रतिशत, यूरो 6.59 प्रतिशत, स्विस फ्रैंक 7.07 प्रतिशत, आस्ट्रेलियन डॉलर 8.09 प्रतिशत, स्वीडिश क्रान 9.5 प्रतिशत, न्यूजीलैंड डॉलर 12.5 प्रतिशत, टरकिश लीरा 18.5 प्रतिशत एवं ब्राजीलियन रीयल 24.74 प्रतिशत तक गिरा है। अब यदि भारतीय रुपए की तुलना अमेरिकी डॉलर को छोड़कर अन्य देशों की मुद्राओं से करें तो भारत की स्थिति मजबूत दिखाई देती है परंतु अंतरराष्ट्रीय बाजार में अधिकतम उपयोग तो अमेरिकी डॉलर का करना होता है। अतः अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर की तुलना में कितना गिरा है, यह तथ्य अधिक महत्वपूर्ण है।

अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव प्रचार के दौरान श्री डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा अपने चुनाव अभियान के दौरान लगातार यह घोषणा की जाती रही है कि उनके राष्ट्रपति चुने जाने के बाद वे अमेरिका में आयात की जाने वाली अनेक वस्तुओं पर भारी मात्रा में आयात कर लागू कर देंगे जिससे अमेरिका में इन देशों से वस्तुओं के आयात को कम किया जा सके एवं इन वस्तुओं का उत्पादन अमेरिका में ही प्रारम्भ किया जा सके। विशेष रूप से अमेरिका में चीन से आयात होने वाले उत्पादों पर तो 60 से 100 प्रतिशत तक का आयात शुल्क लगाये जाने की बात की जा रही है। श्री ट्रम्प की इन घोषणाओं का असर अंतरराष्ट्रीय बाजार में हुआ है एवं विदेशी निवेशक अपनी पूंजी अन्य विकासशील देशों के पूंजी बाजार से निकालकर इस उम्मीद में अमेरिकी पूंजी बाजार में निवेश करने लगे हैं कि आगे आने वाले समय में अमेरिका एक बार पुनः विनिर्माण केंद्र के रूप में विकसित होगा और उनके निवेश पर अमेरिका में ही उन्हें अधिक आय की प्राप्ति होगी। हालांकि, ट्रम्प प्रशासन यदि अमेरिका में आयात की जाने वाली वस्तुओं पर भारी मात्रा में आयात कर बढ़ाता है तो शुरुआती दौर में तो इससे अमेरिका में मुद्रा स्फीति की दर और अधिक तेज होगी क्योंकि अमेरिका में इन वस्तुओं की आयातित लागत बढ़ेगी। आज पूरे विश्व में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्य करने वाली सबसे बड़ी कम्पनियों में 73 प्रतिशत अमेरिकन कम्पनियां हैं, इसी प्रकार स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्य कर रही सबसे बड़ी कम्पनियों में 65 प्रतिशत अमेरिकन कम्पनियां हैं। और, इन कम्पनियों द्वारा अन्य विकासशील देशों में अपनी विनिर्माण इकाईयां स्थापित की हुई हैं। यदि ट्रम्प प्रशासन द्वारा अन्य देशों में इन कम्पनियों द्वारा निर्मित उत्पादों के आयात पर भारी मात्रा में आयात कर लगाया जाता है तो ये कम्पनियां अपनी विनिर्माण इकाईयों को अमेरिका में स्थापित करेंगी, इससे अन्य देशों के निर्यात प्रभावित होंगे और अमेरिका में अन्य देशों से आयात कम होंगे।

अतः अब भारत को भी विभिन्न क्षेत्रों में अपने आप को आत्म निर्भर बनाना होगा ताकि अन्य देशों से विभिन्न उत्पादों के आयात पर निर्भरता कम की जा सके। आज भारत में विभिन्न वस्तुओं का भारी मात्रा में आयात हो रहा है, विशेष रूप कच्चे तेल एवं स्वर्ण जैसे पदार्थों का। जबकि, भारत से वस्तुओं के निर्यात की वृद्धि दर अपेक्षाकृत कम है जिससे चालू खाता घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है और अंततः इससे अमेरिकी डॉलर की मांग हमारे देश में बढ़ रही है और रुपए पर दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। अतः भारत को कच्चे तेल एवं स्वर्ण के आयात में कमी लानी ही होगी ताकि चालू खाता घाटे को कम किया जा सके। साथ ही, अब भारत को अपने यहां मुद्रा स्फीति को भी नियंत्रण में रखना अति आवश्यक है। इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय बजट में सरकारी घाटे को नियंत्रण में रखना होगा। क्योंकि, अधिक ऋण लेने से सरकार को अपनी आय का एक बड़ा भाग ब्याज के भुगतान के लिए उपयोग करना होता है और इससे देश की विकास दर प्रभावित होती है एवं विदेशी निवेशक अपने निवेश को नियंत्रित करने लगते हैं। भारत में हालांकि केंद्र सरकार द्वारा अपने बजटीय घाटे को लगातार कम करने में सफलता अर्जित की जा रही है। कोरोना महामारी के दौरान केंद्र सरकार के बजट में यह घाटा 9 प्रतिशत के आसपास पहुंच गया था परंतु अब यह घटकर 5 प्रतिशत के आसपास आ गया है। परंतु, अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार अभी भी यह अधिक है। बजटीय घाटे को कम करने से भारत सरकार को ऋण पर ब्याज के रूप में कम राशि खर्च करनी होगी एवं देश के विकास कार्यों के लिए अधिक राशि उपलब्ध होगी, इससे विदेशी निवेश भी अधिक मात्रा में आकर्षित होगा।

डोनाल्ड ट्रम्प की कैसी होगी मुस्लिम दुनिया ?

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आचार्य श्रीहरि

डोनाल्ड ट्रम्प की कैसी होगी मुस्लिम दुनिया? इस प्रश्न को लेकर मुस्लिम मीडिया, ईसाई मीडिया और यूरोपीय मीडिया में मंथन चल रहा है। क्या थोडा नरम पडेंगे या फिर और मर्म होंगे? थोडा डर भी है। मुस्लिम दुनिया भी डरी हुई है। हमास, तालिबान और अलकायदा से लेकर आतंक के संरक्षक मुस्लिम देश भी डरे हुए हैं। शपथग्रहण के पूर्व से ही डर का असर तो दिख रहा है। विरोधी अपनी दुकानें समेटने में लगे हुए हैं, विरोधी अपनी पिछली करतूतो को ढकने में लगे हुए हैं, विरोधी जो चतुर्य थे वे पहले ही रंग बदल लिये हैं, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि उनकी जय-जय कार करने में लगे हुए हैं। कुख्यात और कुचर्चित रिशर्च कंपनी हिंडनबर्ग अपनी दुर्गति कराने और अपने अपमान के भय से अपना बोरिया-विस्तर समेट लिया, ईरान ने हवा का रूख पहचाना और घोर तथा हिंसक, युद्धक इस्राइल विरोध की सोच को नरम कर लिया, बांग्लादेश सहित उन तमान मुस्लिम देशों में जहां पर अराजकता और मजहबी हिंसा अमानवीय हुई वहां पर भी बदलाव देखा जा रहा है, उनके आखों के सामने डोनाल्ड ट्रम्प की चौधरी वाली लाठी नांच रही है, तालिबान जैसी हिंसक और विध्वंशक शक्ति ने भी अपनी पाकिस्तान भक्ति छोडकर तटस्थता की सोच प्रदर्शित करना शुरू कर दिया है। समर्थक तो उत्साह से भरे ही हैं, वे उछल-कूद भी कर रहे है। समर्थको ने डोनाल्ड ट्रम्प को फिर से राष्ट्रपति बनाने के लिए जेल की यात्राएं करने से भी नहीं डरे थे, हवाइट हाउस पर कब्जा करने से नहीं डरे थे, चुनाव प्रचारों के दौरान डोनाल्ड ट्रम्प पर हुए हमले के बाद भी नहीं डरे समर्थक। समर्थकों का कहना है कि ईसाई राष्ट्रवाद को इस तरह से शक्तिशाली बनाओ और समृद्ध करों की अन्य राष्ट्रीयताएं खुद ही अपना अस्तित्व खो दे। डोनाल्ड ट्रम्प के शपथ ग्रहण के साथ ही साथ दुनिया की कूटनीति में परिवर्तन दिखेगा और खासकर मुस्लिम दुनिया के खिलाफ डोनाल्ड ट्रम्प की आक्रमकता धमाल मचायेगी।

                     समर्थक कौन हैं? उनकी प्राथमिकताएं क्या हैं? वे किस लक्ष्य के प्रति अति सक्रिय हैं? सबसे पहले यह जानना होगा कि डोनाल्ड ट्रम्प के समर्थक ईसाई राष्ट्रवादी हैं, उनकी प्राथमिकताएं ईसाई अस्मिता का संरक्षण करना है और उनकी अति सक्रियता मुस्लिम हिंसक आबादी को अमेरिका से बाहर करने या फिर मुस्लिम आबादी की हिंसक आतंकवाद और जिहाद की मानसिकता को नियत्रित करना और मुस्लिम आबादी को अमेरिका में प्रवेश को प्रतिबंधित कराना है। डोनाल्ड ट्रम्प की पिछली हार एक आघात की तरह था और समर्थ्रक वर्ग उस हार को पचा नहीं पाये थे, स्वीकार ही नहीं कर पाये थे, वे गुस्से में हवाइट हाउस तक कब्जा करने की हिंसक कोशिश की थी। चार सालों तक समर्थक डोनाल्ड ट्रम्प के पीछे बहादुरी के साथ खडे रहे हैं, जनसमर्थन देते रहे और डेमोक्रेट पार्टी के राष्ट्रवाद के परिपेक्ष्य में उदारवाद के खिलाफ लडाई लडते रहे। यही कारण है कि डोनाल्ड ट्रम्प का हौसला बना रहा और अपनी राजनीतिक प्राथमिकताओं को गति प्रदान करते रहे। फिर से राष्ट्रपति का चुनाव जीत कर डोनाल्ड ट्रम्प ने इतिहास रच दिया। डोनाल्ड ट्रम्प की जीत को ईसाई राष्ट्रवाद की जीत मानी गयी और मुस्लिम राष्ट्रवाद की हार मानी गयी थी। यह कहा जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रम्प अपने अंतिम काल में मुस्लिम अस्मिता का संहार जरूर करेंगे। इसके पीछे कारण भी हैं। राष्ट्रपति चुनाव के दौरान मस्जिदों से सरेआम अंजान दिया जाता था कि डोनाल्ड ट्रम्प से इस्लाम को खतरा है, इसलिए डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ मतदान करना चाहिए, इसके साथ ही साथ दुनिया भर के मुस्लिम संगठन अपने-अपने तरीके से डोनाल्ड ट्रम्प की जीत को रोकने के लिए अभियान रत थे। फिर भी डोनाल्ड ट्रम्प की धमाकेदार जीत हुई।

                    डोनाल्ड ट्रम्प को मुस्लिम आबादी और मुस्लिम देशों से खुन्नश क्या है? कोई भी देश अपनी मूल सभ्यता और संस्कृति को खतरे में नहीं डालना चाहता है। अपनी संस्कृति और सभयता की समृद्धि को संरक्षित देखना चाहता है। इस प्रकार की राजनीतिक संस्कृति सिर्फ अमेरिका में नहीं देखी जा रही है। इस प्रकार की राजनीतिक संस्कृति भारत में स्थायी तौर पर भूमिका निभा रही है। नरेन्द्र मोदी खुद अपनी मूल संस्कृति की अस्मिता और समृद्धि के बल पर शासक बने हुए हैं और दो बार पूर्ण बहुमत हासिल करने का पराक्रम दिखा चुके हैं। यूरोप के कई देशों में मूल संस्कृति की भूमिका प्रबंल रहती है। अरब देश अपनी मुल संस्कृति के सामने अन्य संस्कृतियों का हिंसक संहार करते हैं, शिकार करते हैं। निश्चित तौर पर अमेरिका में ईसाई संस्कृति की समृद्धि रही है, ईसाइयों ने अमेरिका संवारा और समृद्ध किया, दुनिया पर शासन करने की शक्ति बनायी। लेकिन समस्या उत्पन्न तब हुई जब मुस्लिम आबादी दया और करूणा को भूल गयी, अपने संरक्षण कर्ता को भूल गयी। अमेरिका ने मानवाधिकार के नाम पर मुसलमानों को शरण दिया, मुसलमानों को सभ्य बनाने के लिए अपनी अर्थव्यवस्था झोकी और अपने देश की मूल आबादी के भविष्य को नजरअंदाज किया फिर भी मुस्लिम आबादी सभ्य नहीं बनीं, अपनी जिहाद की मानसिकता से मुक्त नहीं हो सकी, भस्मासुर बनने की भूमिका से अलग नहीं हो सकी। मुस्लिम आबादी की संहारक भूमिका का प्रमाण अमेेरिकी वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकी हमले थे। उसके बाद अमेरिका के अंदर ईसाई और मुस्लिम राष्ट्रीयता एक दूसरे के खिलाफ खडी हो गयी। कई आतंकी घटनाओं में मुस्लिम आबादी की सक्रियता, मस्जिदो की बढती संख्या और अजान के शोर से अमेरिका के अंदर विखंडन की आवाज सुनाई पडने लगी। डोनाल्ड ट्रम्प इन्ही मुस्लिम विखंडन की आवाज के खिलाफ सशक्त हस्ती बन कर सामने खडे हो गये। अपने पहले कार्यकाल में डोनाल्ड ट्रम्प ने दुनिया के हिंसक और आतंकी देशों के मुस्लिम आबादी पर अमेरिका में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था और आतंरिक स्तर पर भी मुस्लिम आबादी की आतंकी मानसिकता को नियंत्रित करने के लिए कई कदम उठाये थे। इस कारण उनकी छबि मुस्लिम आबादी विरोधी बन गयी थी।

                   मुस्लिम गोलबंदी को डोनाल्ड ट्रम्प चुनौती जरूर देंगे, सिर्फ चुनौती ही नही देंगे बल्कि मुस्लिम गोलबंदी का शिकार भी करेंगे, उन्हे अमेरिकी चौधराहट का पाठ भी पढायेंगे। राष्ट्रपति का चुनाव जीतते के साथ ही साथ उन्होंने मुस्लिम दुनिया को शख्त संदेश दे दिया था कि हिंसा और आतंक से अमेरिकी हितो का नुकसान नहीं होने दिया जायेगा। इस्राइल के साथ अमेरिकी हित जुडे है, अमेरिका का दोस्त इस्राइल है। इस्राइल के पीछे मुस्लिम गोलबंदी किस तरह पीछे पडी रहती है, यह भी जगजाहिर है। इस्राइल के खिलाफ हमास का हमला कितना भयानक और विभत्स था, यह भी बताने की जरूरत नहीं है। जो बाइडन थोडा नरम था, इस्राइल के हाथ बांधकर रखना चाहते थे। डोनाल्ड ट्रम्प ने इस्राइल को खुली छूट दी और हमास का संहार के लिए तैयार रहने के लिए कह दिया। इसका नतीजा भी सामने आ गया। हमास की हेकडी टूट गयी। उसे पता चल गया कि ईरान उसकी सहायता नहीं कर पायेगा। ईरान भी डोनाल्ड ट्रम्प की शख्त नीति का भुक्तभोगी है, इसलिए ईरान ने भी हमास प्रकरण पर टांग अडाने का कोई प्रयास नहीं किया। इसका सुखद परिणाम यह निकला कि हमास ने इस्राइली बंधकों को रिहा करने के लिए तैयार हो गया। इधर सीरिया में भी डोनाल्ड ट्रम्प की नीति का डंका बजने वाला है। सीरिया में भी वही होगा जो डोनाल्ड ट्रम्प की इच्छा होगी।

                       मुस्लिम दुनिया के दो स्वयं भू नेता है। एक ईरान है और दूसरा सउदी अरब है। सउदी अरब तो अमेरिका का मित्र है। पर ईरान अपने आप को अमेरिका विरोधी बताता है। परमाणु प्रसार के प्रश्न पर ईरान अकड कर चलता है। ईरान की समस्या यह है कि वह एक शिया देश है, सुन्नी देश ईरान के पक्षधर नहीं है। ईरान के परमाणु घरों पर हमले हुए हैं, कई परमाणु वैज्ञानिकों की हत्याएं हुई हैं। हत्या करने वाले कौन थे, उसे ईरान खोज ही नहीं पाता है। ईरान के परमाणु और बिजली घरों के साथ ही साथ सैनिक अड्डे भी इस्राइल के निशाने पर है। अगर ईरान थोडा सा भी इधर-उधर करने की कोशिश की जो फिर डोनाल्ड ट्रम्प ईरान की सैनिक शक्ति का तहस-नहस करा सकते है। तालिबान सहित जितने भी हिंसक और आतंकी सगठन हैं उन पर भी डोनाल्ड ट्रम्प की संहारक नीति चलेगी। पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों पर लोकतंत्र और अल्पसंख्यक संहार पर डोनाल्ड ट्रम्प की नीति संहारक हो सकती है। दुनिया की शांति के लिए मुस्लिम दुनिया की अराजक, हिंसक और संहारक सक्रियता व गोलबंदी को रोकना जरूरी है और यह काम विश्व में सिर्फ और सिर्फ डोनाल्ड ट्रम्प ही कर सकते हैं।

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