वित्तीय वर्ष 2025-26 के बजट में मध्यमवर्गीय परिवारों को देनी होगी राहत

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किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को गति देने में मध्यमवर्गीय परिवारों की प्रमुख भूमिका रहती है। देश में ही निर्मित होने वाले विभिन्न उत्पादों की मांग इन्हीं परिवारों के माध्यम से निर्मित होती है। गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे परिवार जब मध्यमवर्गीय परिवारों की श्रेणी में शामिल होते हैं तो उन्हें नया स्कूटर, नया फ्रिज, नया एयर कंडिशनर, नया टीवी एवं इसी प्रकार के कई नए पदार्थों (उत्पादों) की आवश्यकता महसूस होती है। साथ ही, नए मकानों की मांग भी मध्यमवर्गीय परिवारों के बीच से ही निर्मित होती है। इसीलिए यह कहा जाता है कि जिस देश में मध्यमवर्गीय परिवारों की संख्या जितनी तेजी से बढ़ती है उस देश का आर्थिक विकास भी उतनी ही तेज गति से आगे बढ़ता है। भारत में भी हाल ही के वर्षों में मध्यमवर्गीय परिवारों की संख्या में भारी वृद्धि दर्ज हुई है। परंतु, मुद्रा स्फीति, कर का बोझ एवं इन परिवारों की आय में वृद्धि दर में आ रही कमी के चलते इन परिवारों की खर्च करने की क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है, जिससे कई कम्पनियों का यह आंकलन सामने आया है कि विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में उपभोग की जाने वाली वस्तुओं की मांग में कमी दृष्टिगोचर हुई है। विशेष रूप से उपभोक्ता वस्तुओं (Fast Moving Consumer Goods – FMCG) के क्षेत्र में उत्पादन करने वाली कम्पनियों का इस संदर्भ में आंकलन बेहद चौंकाने वाला है। साथ ही, वित्तीय वर्ष 2023-24 की द्वितीय तिमाही में इन कम्पनियों द्वारा उत्पादित उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री एवं लाभप्रदता में भी कमी दिखाई दी है।

गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों के लिए केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा चलायी जा रही विभिन्न सहायता योजनाओं का लाभ अब सीधे ही इन परिवारों को पहुंचने लगा है। 80 करोड़ से अधिक नागरिकों को प्रतिमाह मुफ्त अनाज उपलब्ध कराया जा रहा है। किसानों के खातों में सहायता राशि सीधे ही जमा की जा रही है। विभिन्न राज्यों द्वारा लाड़ली लक्ष्मी योजना, लाड़ली बहिना योजना आदि माध्यम से महिलाओं के खातों में सीधे ही राशि जमा की जा रही है। इसके साथ ही इन परिवारों के सदस्यों को रोजगार के नए अवसर भी उपलब्ध होने लगे हैं। जिससे इस श्रेणी के परिवारों में से कई परिवार अब मध्यमवर्गीय श्रेणी के परिवारों में शामिल हो रहे हैं।

केंद्रीय श्रम मंत्री ने हाल ही में भारतीय संसद को बताया है कि देश में पिछले 10 वर्षों में रोजगार उपलब्ध नागरिकों की संख्या 36 प्रतिशत बढ़कर वित्तीय वर्ष 2023-24 में 64.33 करोड़ के स्तर पर आ गई है, यह संख्या वर्ष 2014-15 में 47.15 करोड़ के स्तर पर थी। वर्ष 2024 से वर्ष 2014 के बीच, 10 वर्षों में रोजगार में लगभग 7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई थी अर्थात इस दौरान केवल 2.9 करोड़ अतिरिक्त नौकरियां सृजित हो सकीं थी, जबकि वर्ष 2014 से वर्ष 2024 के बीच 17.19 करोड़ अतिरिक्त नौकरियां सृजित हुई हैं, यह लगभग 6 गुना से अधिक की वृद्धि दर्शाता है। पिछले केवल एक वर्ष अर्थात वित्तीय वर्ष 2023-24 के बीच ही देश में लगभग 4.6 करोड़ नौकरियां सृजित हुई हैं। कृषि क्षेत्र में वर्ष 2004 से वर्ष 2014 के बीच रोजगार में 16 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी जबकि वर्ष 2014 से वर्ष 2023 के बीच कृषि के क्षेत्र में रोजगार में 19 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई हैं। इसी प्रकार विनिर्माण के क्षेत्र में भी वर्ष 2004 से वर्ष 2014 के बीच रोजगार में केवल 6 प्रतिशत दर्ज हुई थी जबकि वर्ष 2014 से वर्ष 2023 के बीच विनिर्माण के क्षेत्र में रोजगार में 15 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। सेवा के क्षेत्र में तो और भी अधिक तेज वृद्धि दर्ज हुई है। वर्ष 2004 से वर्ष 2014 के बीच सेवा के क्षेत्र में रोजगार 25 प्रतिशत की दर से बढ़ा था, जबकि वर्ष 2014 से वर्ष 2023 के बीच इसमें 36 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। इस सबका असर बेरोजगारी की दर में कमी के रूप में देखने में आया है। देश में बेरोजगारी की दर वर्ष 2017-18 के 6 प्रतिशत से वर्ष 2023-24 में घटकर 3.2 प्रतिशत रह गई है। इसका सीधा असर कामकाजी आबादी अनुपात पर भी पड़ा है जो वर्ष 2017-18 के 46.8 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 58.2 प्रतिशत पर पहुंच गया है। सबसे अच्छी स्थिति तो संगठित क्षेत्र में कार्य कर रहे नागरिकों की संख्या में वृद्धि से बनी है। क्योंकि संगठित क्षेत्र में कार्य कर रहे युवाओं को नियोक्ताओं द्वारा कई प्रकार की अतिरिक्त सुविधाएं केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा जारी नियमों के अंतर्गत प्रदान की जाती है। संगठित क्षेत्र में शामिल होने वाले युवाओं (18 से 28 वर्ष के बीच की आयु के) की संख्या में सितम्बर 2017 से सितम्बर 2024 के बीच 4.7 करोड़ की वृद्धि दर्ज हुई है, ये युवा कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ई पी एफ ओ) से भी जुड़े हैं।

यदि किसी देश में मुद्रा स्फीति की दर लगातार लम्बे समय तक उच्च स्तर पर बनी रहे एवं नागरिकों की आय में वृद्धि दर मुद्रा स्फीति में हो रही वृद्धि दर से कम रहे तो इसका सीधा असर मध्यमवर्गीय परिवार के बचत एवं खर्च करने की क्षमता पर पड़ता है। यदि मध्यमवर्गीय परिवार के खर्च करने की क्षमता कम होगी तो निश्चित ही बाजार में विभिन्न उत्पादों की मांग भी कम होगी इससे विभिन्न कम्पनियों द्वारा उत्पादित वस्तुओं की बिक्री भी कम होगी। यह स्थिति हाल ही के समय में भारत की अर्थव्यवस्था में दृष्टिगोचर है। अतः वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट से यह अपेक्षा की जानी चाहिए कि केंद्र सरकार द्वारा इस प्रकार के प्रयास किए जाएंगे जिससे मुद्रा स्फीति की दर देश में कम बनी रहे एवं मध्यमवर्गीय परिवारों की आय में वृद्धि हो। साथ ही, मध्यमवर्गीय परिवारों की आय पर लगाए जाने वाले आय कर में भी कमी की जानी चाहिए। बैकों द्वारा प्रदान किए जा रहे ऋणों पर ब्याज दरों में कमी की घोषणा द्वारा भी मध्यमवर्गीय परिवारों को कुछ हद्द तक राहत पहुंचाई जा सकती है। ऋण पर ब्याज दरों में कमी करने से मध्यमवर्गीय परिवारों द्वारा ऋण खातों में जमा की जाने वाली मासिक किस्त की राशि में कमी होती है और उनकी खर्च करने की क्षमता में कुछ हद्द तक सुधार होता है। मध्यमवर्गीय परिवारों के हित में यदि उक्त उपाय नहीं किया जाते हैं तो बहुत सम्भव है कि यह मध्यमवर्गीय परिवार एक बार पुनः कहीं गरीबी रेखा के नीचे नहीं खिसक जाय। अतः वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट के माध्यम से मध्यमवर्गीय परिवारों को राहत प्रदान करने का भरपूर प्रयास किया जाना चाहिए।

पुतिन के बाद इंग्लैंड पर अमेरिकी चुनाव में दखल का आरोप

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अनुराग पुनेठा

यूके लेबर पार्टी ने, कीर स्टारमर की अगुवाई में, 2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में दखल देने की एक गुप्त योजना बनाई। इस मिशन का नाम था “लेबर फॉर कमला,” जिसमें 100 ऑपरेटिव्स को अमेरिकी स्विंग राज्यों (जैसे जॉर्जिया, पेंसिल्वेनिया, और नॉर्थ कैरोलिना) में भेजा गया, ताकि डोनाल्ड ट्रंप को हराकर कमला हैरिस की जीत सुनिश्चित की जा सके। इस घोटाले ने अमेरिका और ब्रिटेन के बीच “स्पेशल रिलेशनशिप” को हिलाकर रख दिया है। ट्रंप प्रशासन अब कड़ा जवाब देने की तैयारी कर रहा है।

यह पूरा ऑपरेशन लेबर पार्टी की ऑपरेशंस हेड, सोफिया पटेल, ने डिज़ाइन किया था। लिंक्डइन के जरिए पुराने और मौजूदा पार्टी स्टाफ को भर्ती कर, उन्होंने 100 से अधिक लोगों की एक टीम बनाई। इन ऑपरेटिव्स को कमला हैरिस के कैंपेन ऑफिसों में तैनात किया गया, और उनके खर्चे लेबर पार्टी के डोनर्स और हैरिस के कैंपेन द्वारा उठाए गए। रिपोर्ट्स के मुताबिक, पूर्व लेबर सांसद जोनाथन अशवर्थ ने अगस्त में शिकागो में हैरिस के करीबी साथियों से मुलाकात भी की थी। सोशल मीडिया पर इस योजना के लीक होने के बाद हंगामा मच गया, और सोफिया पटेल ने अपना पोस्ट डिलीट कर दिया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

अमेरिकी कानूनों का उल्लंघन:
लेबर पार्टी के इस हस्तक्षेप ने कई अमेरिकी संघीय और राज्य कानूनों का उल्लंघन किया। अमेरिकी कानून (52 U.S.C. § 30121) विदेशी हस्तक्षेप को पूरी तरह प्रतिबंधित करता है, लेकिन लेबर पार्टी ने हैरिस के कैंपेन को संसाधन और सेवाएं प्रदान कर इस कानून का उल्लंघन किया। इसके अलावा, विदेशी एजेंट रजिस्ट्रेशन एक्ट (FARA) के तहत, किसी विदेशी संगठन के लिए काम करने वाले व्यक्तियों को रजिस्टर करना अनिवार्य है, जिसे पटेल और उनकी टीम ने अनदेखा किया।

राजनीतिक और कूटनीतिक असर:
लेबर पार्टी की यह हरकत अमेरिका की संप्रभुता और अमेरिका-यूके रिश्तों के लिए खतरा है। ट्रंप प्रशासन अब आर्थिक प्रतिबंधों और कूटनीतिक कदमों पर विचार कर रहा है। यह एक कड़ा संदेश होगा कि अमेरिकी लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

निष्कर्ष:
कीर स्टारमर की लेबर पार्टी ने अमेरिकी लोकतंत्र और अमेरिका-यूके रिश्तों के साथ गहरा विश्वासघात किया है। ट्रंप प्रशासन को कड़ा कदम उठाकर यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में कोई भी विदेशी ताकत अमेरिकी चुनावों में हस्तक्षेप करने की हिम्मत न करे।

प्रयागराज में आयोजित हो रहे महाकुम्भ मेले का आध्यात्मिक एवं आर्थिक महत्व

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भोपाल: हिंदू सनातन संस्कृति के अनुसार कुंभ मेला एक धार्मिक महाआयोजन है जो 12 वर्षों के दौरान चार बार मनाया जाता है। कुंभ मेले का भौगोलिक स्थान भारत में चार स्थानों पर फैला हुआ है और मेला स्थल चार पवित्र नदियों पर स्थित चार तीर्थस्थलों में से एक के बीच घूमता रहता है, यथा, (1) हरिद्वार, उत्तराखंड में, गंगा के तट पर; (2) मध्य प्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर; (3) नासिक, महाराष्ट्र में गोदावरी के तट पर; एवं (4) उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में गंगा, यमुना और पौराणिक अदृश्य सरस्वती के संगम पर।

प्रत्येक स्थल का उत्सव, सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की ज्योतिषीय स्थितियों के एक अलग सेट पर आधारित है। उत्सव ठीक उसी समय होता है जब ये स्थितियां पूरी तरह से व्याप्त होती हैं, क्योंकि इसे हिंदू धर्म में सबसे पवित्र समय माना जाता है। कुंभ मेला एक ऐसा आयोजन है जो आंतरिक रूप से खगोल विज्ञान, ज्योतिष, आध्यात्मिकता, अनुष्ठानिक परंपराओं और सामाजिक-सांस्कृतिक रीति-रिवाजों और प्रथाओं के विज्ञान को समाहित करता है, जिससे यह ज्ञान में बेहद समृद्ध हो जाता है।

कुम्भ मूल शब्द कुम्भक (अमृत का पवित्र घड़ा) से आया है। ऋग्वेद में कुम्भ और उससे जुड़े स्नान अष्ठान का उल्लेख है। इसमें इस अवधि के दौरान संगम में स्नान करने से लाभ, नकारात्मक प्रभावों के उन्मूलन तथा मन और आत्मा के कायाकल्प की बात कही गई है। अथर्ववेद और यजुर्वेद में भी कुम्भ के लिए प्रार्थना लिखी गई है। इसमें बताया गया है कि कैसे देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन से निकले अमृत के पवित्र घड़े (कुम्भ) को लेकर युद्ध हुआ। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर कुम्भ को लालची राक्षसों के चंगुल से छुड़ाया था। जब वह इस स्वर्ग की ओर लेकर भागे तो अमृत की कुछ बूंदे चार पवित्र स्थलों पर गिरीं जिन्हें हम आज हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज के नाम से जानते हैं। इन्हीं चार स्थलों पर प्रत्येक तीन वर्ष पर बारी बारी से कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है।

कुम्भ मेला दुनिया में कहीं भी होने वाला सबसे बड़ा सार्वजनिक समागम और आस्था का सामूहिक आयोजन है। लगभग 45 दिनों तक चलने वाले इस मेले में करोड़ों श्रद्धालु गंगा, यमुना और रहस्यमयी सरस्वती के पवित्र संगम पर स्नान करने के लिए आते हैं। मुख्य रूप से इस समागन में तपस्वी, संत, साधु, साध्वियां, कल्पवासी और सभी क्षेत्रों के तीर्थयात्री शामिल होते हैं।

कुंभ मेले में सभी धर्मों के लोग आते हैं, जिनमें साधु और नागा साधु शामिल हैं, जो साधना करते हैं और आध्यात्मिक अनुशासन के कठोर मार्ग का अनुसरण करते हैं, संन्यासी जो अपना एकांतवास छोड़कर केवल कुंभ मेले के दौरान ही सभ्यता का भ्रमण करने आते हैं, अध्यात्म के साधक और हिंदू धर्म का पालन करने वाले आम लोग भी शामिल हैं।

कुंभ मेले के दौरान अनेक समारोह आयोजित होते हैं; हाथी, घोड़े और रथों पर अखाड़ों का पारंपरिक जुलूस, जिसे ‘पेशवाई’ कहा जाता है, ‘शाही स्नान’ के दौरान चमचमाती तलवारें और नागा साधुओं की रस्में, तथा अनेक अन्य सांस्कृतिक गतिविधियां, जो लाखों तीर्थयात्रियों को कुंभ मेले में भाग लेने के लिए आकर्षित करती हैं।

महाकुंभ मेला 2025 प्रयागराज में 13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी, 2025 तक आयोजित होने जा रहा है। यह एक हिंदू त्यौहार है, जो मानवता का एक स्थान पर एकत्र होना भी है। 2019 में प्रयागराज में अर्ध कुंभ मेले में दुनिया भर से 15 करोड़ पर्यटक आए थे। यह संख्या 100 देशों की संयुक्त आबादी से भी अधिक है। यह वास्तव में यूनेस्को द्वारा अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में सूचीबद्ध है।

कुंभ मेला कई शताब्दियों से मनाया जाता है। प्रयागराज कुंभ मेले का सबसे पहला उल्लेख वर्ष 1600 ई. में मिलता है और अन्य स्थानों पर, कुंभ मेला 14वीं शताब्दी की शुरुआत में आयोजित किया गया था। कुंभ मेला बेहद पवित्र और धार्मिक मेला है और भारत के साधुओं और संतों के लिए विशेष महत्व रखता है। वे वास्तव में पवित्र नदी के जल में स्नान करने वाले पहले व्यक्ति होते हैं। अन्य लोग इन साधुओं के शाही स्नान के बाद ही नदी में स्नान कर सकते हैं। वे अखाड़ों से संबंधित हैं और कुंभ मेले के दौरान बड़ी संख्या में आते हैं। घाटों की ओर जाते समय जब वे भजन, प्रार्थना और मंत्र गाते हैं, तो उनका जुलूस देखने लायक होता है।

कुंभ मेला प्रयागराज 2025 पौष पूर्णिमा के दिन शुरू होता है, जो 13 जनवरी 2025 को है और 26 फरवरी 2025 को समाप्त होगा। यह पर्यटकों के लिए भी जीवन में एक बार आने वाला अनुभव है। टेंट और कैंप में रहना आपको एक गर्मजोशी भरा एहसास देता है और रात में तारों से भरे आसमान को देखना अपने आप में एक अलग ही अनुभव है। कुंभ मेले में सत्संग, प्रार्थना, आध्यात्मिक व्याख्यान, लंगर भोजन का आनंद सभी उठा सकते हैं। महाकुंभ मेला 2025 में गंगा नदी में पवित्र स्नान, नागा साधु और उनके अखाड़े से मिलें। बेशक, यह कुंभ मेले का नंबर एक आकर्षण है। कुंभ मेले के दौरान अन्य आकर्षण प्रयागराज में घूमने लायक जगहें हैं जैसे संगम, हनुमान मंदिर, प्रयागराज किला, अक्षयवट और कई अन्य। वाराणसी भी प्रयागराज के करीब है और हर पर्यटक के यात्रा कार्यक्रम में वाराणसी जाना भी शामिल है।

महाकुम्भ 2025 में आयोजित होने वाले कुछ मुख्य स्नान पर्व निम्न प्रकार हैं –
मुख्य स्नान पर्व 13.01.2025
मकर संक्रान्ति 14.01.2025
मौनी अमावस्या 29.01.2025
बसंत पंचमी 03.02.2025
माघी पूर्णिमा 12.02.2025
महाशिवरात्रि 26.02.2025

प्रयागराज का अपना एक एतिहासिक महत्व रहा है। 600 ईसा पूर्व में एक राज्य था और वर्तमान प्रयागराज जिला भी इस राज्य का एक हिस्सा था। उस राज्य को वत्स के नाम से जाना जाता था और उसकी राजधानी कौशाम्बी थी, जिसके अवशेष आज भी प्रयागराज के दक्षिण पश्चिम में स्थित है। गौतम बुद्ध ने भी अपनी तीन यात्राओं से इस शहर को सम्मानित किया था। इसके बाद, यह क्षेत्र मौर्य शासन के अधीन आ गया और कौशाम्बी को सम्राट अशोक के एक प्रांत का मुख्यालय बनाया गया। उनके निर्देश पर कौशाम्बी में दो अखंड स्तम्भ बनाए गए जिनमें से एक को बाद में प्रयागराज में स्थानांतरित कर दिया गया। प्रयागराज राजनीति और शिक्षा का केंद्र रहा है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय को पूरब का ऑक्सफोर्ड कहा जाता था। इस शहर ने देश को तीन प्रधानमंत्रियों सहित कई राजनौतिक हस्तियां दी हैं। यह शहर साहित्य और कला के केंद्र के साथ साथ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का भी केंद्र रहा है।

प्रयागराज में आयोजित हो रहे महाकुम्भ का आध्यात्मिक महत्व तो है ही, साथ ही, आज के परिप्रेक्ष्य में इस महाकुम्भ का आर्थिक महत्व भी है। प्रत्येक 3 वर्षों के अंतराल पर आयोजित होने वाले कुम्भ के मेले में करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु ईश्वर की पूजा अर्चना हेतु प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक एवं उज्जैन में पहुंचते हैं। प्रयग्राज में आयोजित तो रहे महाकुम्भ की 44 दिनों की इस इस पूरी अवधि में प्रतिदिन एक करोड़ श्रद्धालुओं के भारत एवं अन्य देशों से प्रयागराज पहुंचने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है, इस प्रकार, कुल मिलाकर लगभग 45 करोड़ से अधिक श्रद्धालुगण उक्त 44 दिनों की अवधि में प्रयागराज पहुंचेंगे। करोड़ों की संख्या में पहुंचने वाले इन श्रद्धालुगणों द्वारा इन तीर्थस्थलों पर अच्छी खासी मात्रा में खर्च भी किये जाने की सम्भावना है। जिससे विशेष रूप से स्थानीय अर्थव्यवस्था को तो बल मिलेगा ही, साथ ही करोड़ों की संख्या में देश में रोजगार के नए अवसर भी निर्मित होंगे एवं होटल उद्योग, यातायात उद्योग, पर्यटन से जुड़े व्यवसाय, स्थानीय स्तर के छोटे छोटे उद्योग एवं विभिन्न उत्पादों के क्षेत्र में कार्य कर रहे व्यापारियों के व्यवसाय में भी अतुलनीय वृद्धि होगी। इस प्रकार, देश की अर्थव्यवस्था को भी, महाकुम्भ मेले के आयोजन से बल मिलने की भरपूर सम्भावना है।

(केंद्र सरकार एवं उत्तरप्रदेश सरकार की महाकुम्भ मेले से सम्बंधित वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी का उपयोग इस लेख में किया गया है।)

बाबा योगेन्द्र जन्मशती : जिन्होंने साबित किया कि संसाधनों की भव्यता से नहीं बल्कि “सत्व” से ही संगठन गढ़े जाते हैं।

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वेद प्रकाश

समस्त हिन्दू समाज को एक सूत्र में पिरोकर इस राष्ट्र को वैभवसंपन्न बनाने का संघ का अभियान धीरे – धीरे आकार ले रहा था। नागपुर के एक शाखा से प्रारंभ हुई इस यात्रा ने अब समाज जीवन के विविध क्षेत्रों में प्रवेश कर वहां भी स्थान बनाना शुरू कर दिया था। सामाजिक, धार्मिक, शिक्षा, मजदूर, किसान आदि विविध क्षेत्रों में पहल के बाद कला क्षेत्र की ओर ध्यान गया जहां, साम्यवादी प्रभाव के कारण इस क्षेत्र में वैचारिक असहमति को “अछूत” और अपराधी सदृश्य समझा जाता था। स्वतंत्रता के बाद भारत के स्वबोध जागरण की बजाय वामपंथी ताकतें कांग्रेसी सत्ता के सहारे सशक्त कला माध्यम द्वारा समाज विखंडन और आत्महीनता दलदल के दुष्चक्र में भारत को जोर – शोर से धकेलने में जुटे हुए थे।

ऐसी विषम परिस्थितियों के बीच सीतापुर (उ.प्र. ) के तत्कालीन विभाग प्रचारक श्री योगेंद्र जी को 57 वर्ष की आयु संघ ने कला क्षेत्र में कार्य कार्य करने की जिम्मेदारी सौंपी। तब संघ कार्य की व्याप्ति आज की तरह नहीं थी। योगेन्द्र जी के पास न इस क्षेत्र में कार्यकर्ता थे और न ही कोई पूंजी। बस एक चीज उनके पास थी – सबको जोड़ने वाला कोमल मन और प्रेमभरा हृदय।

बस 1981 के जनवरी में लखनऊ में दसेक कार्यकर्ताओं को इकट्ठा कर कला क्षेत्र में संस्कार भारती की स्थापना की गई और योगेन्द्र जी इसके संस्थापक संगठन मंत्री बनाए गए । 10 जून 2022 को 98 वर्ष की आयु में उनका शरीर पूर्ण हुआ। चार दशक की इस यात्रा में उनके पास संगठन को खड़ा करने के लिए संसाधन था तो केवल राष्ट्रीयता के ज्वाल से भरा हृदय, मन में अडिग संकल्प, घनघोर परिश्रमी स्वभाव और अपने – पराए से इतर सबको समा लेने की मधुरता। बस चल पड़े योगेन्द्र जी। 40 वर्षों की अपनी सांगठनिक अनथक यात्रा में उन्होंने सौ बार से ज्यादा देश को नापा। हजारों स्थानों पर समिति खड़ी की। कई हजार कलाकारों के हृदय को स्पर्श कर उन्होंने कार्य से जोड़ा। असंख्य हृदय को आत्मीयता के स्पर्श से अनुभूत किया। और बन गए सबके प्रिय बाबा योगेन्द्र।

आज बाबाजी की 101 वीं जयंती है। संवादहीनता के इस दौर में आज सबको उनकी कमी खलती है। लगता है कहीं से बाबा आकर बस अपनी खनकदार आवाज में कहेंगे – और बाबा कैसे हैं ? या सबका हाल – चाल लेने को फोन तो अवश्य ही आएगा। पर ऐसा कुछ अब होने वाला है नहीं।

बाबाजी का शरीर इस दुनिया में नहीं है लेकिन, अपने गुणों से आज भी वे हजारों कार्यकर्ताओं में मुझे स्पष्ट दिखते हैं। देशभर में असंख्य कला साधकों व कार्यकर्ताओं को जब संस्कार भारती को सींचते देखता हूं तो मुझे बाबाजी की उपस्थिति सभी जगह दिखती है। क्योंकि उन्हीं के द्वारा सिंचित कार्यकर्ता आज भी संगठन के नींव बन अनवरत कला क्षेत्र को संस्कारक्षम बनाने के अभियान में डटे हुए हैं।

बाबाजी की मधुर वाणी और मोती जैसे अक्षर में लिखे उनके लाखों पत्र आज भी कार्यकर्ताओं में चेतना का संचार करते हैं। क्योंकि वे संस्कार भारती के पदाधिकारी नहीं समस्त कार्यकर्ता / कलासाधक हृदय के अधिकारी थे। टेक्निकल जानकारी से वे लैस नहीं थे पर कार्यकर्ताओं के घर परिवार की वे प्रैक्टिकल चिंता करते थे। कीचड़ में कमल की भांति सादगी, शुचिता और पवित्रता यह उनका विशेषण नहीं बल्कि ऐसा ही था उनका जीवन ।

जैसे पतझड़ के बाद बसंत प्रकृति की स्वाभाविक नियति होती है। ऐसे ही इस राष्ट्रजीवन ने बहुत झंझावतों को सहन कर लिया है। आज वैश्विक क्षितिज पर “सर्वसमावेशी हिंदुत्व” का प्रकटीकरण दुनिया के सुख समृद्धि की एकमात्र गारंटी है। और इस गारंटी को भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक शक्ति ही पूर्ण कर सकेगी। संस्कार भारती इसमें अपनी गिलहरी भूमिका से पीछे नहीं हटेगी।

पुनश्च: बाबा योगेन्द्र जी कला के कोई अध्येता नहीं थे लेकिन अपने जीवन अनुभव की विशाल दृष्टि उनके पास थी। प्रचलित कला जगत में व्यक्ति खड़ा करने की खतरनाक प्रवृत्ति की बजाय वे कहा करते थे –
” हम व्यक्ति खड़ा करने नहीं समाज को जोड़ने निकले हैं, व्यक्ति के अंदर अहंकार का जन्म होता है और समाज के अंदर संस्कार का जन्म होता है। ”
ऐसी विशाल कालादृष्टि के नींव पर संस्कार भारती का भविष्य का मार्ग प्रशस्त होना है।

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