Closing Ceremony of the 13th All India Police Archery Championship-2024 at ITBP Greater Noida Campus

1-1-7.jpeg

Greater Noida: The 13th All India Police Archery Championship-2024, organized by the Indo-Tibetan Border Police (ITBP) from December 9 to December 13, 2024, concluded today with a grand closing ceremony at the 39th Battalion ITBP campus in Greater Noida(UP). Shri R.A. Chandra Sekhar, Special Director, Intelligence Bureau, graced the occasion as the Chief Guest.

Shri R.A. Chandra Sekhar congratulated ITBP, the All India Police Sports Control Board, all participants and the jury from various state police forces and Central Armed Police Forces for the successful completion of the championship. He expressed hope that this event would bring forth new talent, which will undoubtedly bring glory to the nation at the national and international levels.

The Chief Guest thanked the police forces and congratulated everyone on the successful organization and vibrant conclusion of the championship. He remarked that police forces have a proud legacy in archery. He expressed confidence that the championship provided an excellent platform for the best archers from police forces to showcase their skills, inspiring youth across the country to take up sports.

He also appreciated the unwavering dedication of the police forces in meeting challenges, whether in internal security or serving humanity through various missions. He encouraged the forces to continue their exemplary work and remain prepared to face any future challenges.

Shri R.A. Chandra Sekhar extended hearty congratulations to all the teams and participants who won medals and praised ITBP for the excellent organization of the championship.

Shri Nirbhai Singh, IG (Training), ITBP HQs, welcomed the Chief Guest and provided a detailed overview of the championship. He assured that the force would continue organizing such All India Police Championships whenever entrusted with the responsibility.

Shri Anand Singh Yersong, DIG, SHQ (Delhi), ITBP, delivered the vote of thanks.

The championship witnessed the participation of 321 athletes, including 189 men and 132 women, from 24 Central Armed Police Forces, State Police Forces, and Union Territory Police Forces. Additionally, 18 team managers, 24 coaches, and 13 technical officials participated in the event. A total of 37 events were conducted, competing for 174 medals, including 58 gold, 58 silver, and 58 bronze medals.

In the men’s category, ITBP emerged as the Overall Champion, followed by Uttar Pradesh Police in second place and Assam Rifles in third.


In the women’s category, the Border Security Force (BSF) secured the Overall Champion title, ITBP took second place, and Assam Rifles stood third.

Shri R. A. Chandra Sekhar, Special Director, Intelligence Bureau, Shri Abdul Gani Mir, ADG, ITBP HQs and senior officer from the Central Armed Police Forces, State Police Forces and Union Territory Police Forces attended the event.

एक राष्ट्र, एक चुनाव: सतही समाधान या वास्तविक सुधार?

19_10_2022-eci_pics_23150791.jpg

भाजपा सरकार द्वारा शुरू की गई “एक राष्ट्र, एक चुनाव” पहल महत्वपूर्ण चिंताएँ पैदा करती है और चुनावी सुधार के वास्तविक प्रयास के बजाय ध्यान भटकाने की रणनीति को दर्शाती है। एक नरेटिव प्रचारित किया जा रहा है कि बार-बार चुनाव कराने से प्रशासनिक कामकाज बाधित होता है और विकास की गति धीमी होती है।

राजनीतिक टिप्पणीकार प्रोफेसर पारस नाथ चौधरी के अनुसार “यह पूरी तरह से बकवास है, और सरकारी कामकाज को सुव्यवस्थित करने में घोर विफलता को उचित ठहराने या तर्कसंगत बनाने का एक बेकार बहाना है। यह दलील कि राज्य, केंद्र और स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराने से राजकोष पर बोझ कम हो सकता है, बेकार है क्योंकि लोकतंत्र और चुनाव महंगे अभ्यास लग सकते हैं लेकिन पुराने सामंती राजशाही को बर्दाश्त करने से बेहतर और आवश्यक तौर पर ज्यादा जन उपयोगी हैं।”

जबकि सरकार ONOP, “वन नेशन वन पोल” को दक्षता और चुनाव-संबंधी खर्चों को कम करने की दिशा में एक पहल के रूप में पेश करती है, यह कदम हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले अधिक अहम मुद्दों को दरकिनार कर देता है। भारत की लोकशाही का ताना-बाना उन जरूरी समस्याओं के बोझ तले दब रहा है जिन पर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है।

सामाजिक कार्यकर्ता पद्मिनी अय्यर कहती हैं, “राजनीति में अपराधियों का लगातार प्रवेश, चुनावों पर अत्यधिक खर्च और उम्मीदवारों की गिरती गुणवत्ता ऐसे बुनियादी मुद्दे हैं, जिनमें व्यापक सुधार की गुंजाइश है। उदाहरण के लिए, चुनाव तीन दिनों की विस्तारित अवधि में, स्थायी चुनाव कार्यालयों में, या ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से, एटीएम जैसी मशीनों के जरिए क्यों नहीं कराए जा सकते?”

सामाजिक कार्यकर्ता मुक्ता गुप्ता कहती हैं कि हमें ईवीएम से आगे बढ़ने की आवश्यकता है। जवाबदेही और पारदर्शिता हासिल करने वाली प्रणाली को बढ़ावा देने के बजाय, “एक राष्ट्र, एक चुनाव” इन ज्वलंत वास्तविकताओं को अनदेखा करता है। बार-बार चुनाव केवल एक प्रशासनिक बोझ नहीं हैं; वे एक उत्तरदायी और जवाबदेह लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं।”

समाजवादी विचारक राम किशोर कहते हैं, “नियमित चुनाव सुनिश्चित करते हैं कि सरकार नागरिकों के प्रति जवाबदेह बनी रहे, हर स्तर पर जुड़ाव और भागीदारी को बढ़ावा मिले। वे जनता की भावनाओं के बैरोमीटर के रूप में कार्य करते हैं, जिससे नागरिक निर्वाचित अधिकारियों के प्रति अपनी स्वीकृति या असंतोष व्यक्त कर सकते हैं। एक साथ चुनाव कराने की वकालत करके, सरकार एक आत्मसंतुष्ट राजनीतिक माहौल बनाने का जोखिम उठाती है – जो खुद को मतदाताओं से दूर कर सकती है और जनता की बदलती जरूरतों और चिंताओं के प्रति आवश्यक जवाबदेही को बाधित कर सकती है।” इसके अलावा, यह पहल इस तरह के व्यापक बदलाव के पीछे की वास्तविक मंशा के बारे में सवाल उठाती है। क्या यह चुनावी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने का एक वास्तविक प्रयास है, या सरकार द्वारा भ्रष्टाचार और राजनीति में आपराधिक तत्वों की पैठ जैसे प्रणालीगत मुद्दों को संबोधित करने में विफलताओं से ध्यान हटाने का एक प्रयास है?

जबकि सरकार चुनावों को एक साथ कराने पर ध्यान केंद्रित करती है, महत्वपूर्ण चुनावी सुधार दरकिनार रह जाते हैं। अपराधियों को चुनाव लड़ने से रोकने वाले उपाय उल्लेखनीय रूप से अनुपस्थित हैं। वर्तमान कानूनी ढांचा आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों पर मुश्किल से ही अंकुश लगाता है, जिससे ऐसी स्थिति पैदा होती है जहां सार्वजनिक पद पर योग्यता और ईमानदारी को लगातार कमतर आंका जाता है। शासन की प्रभावशीलता सीधे तौर पर उसके प्रतिनिधियों की क्षमता से जुड़ी होती है; इसलिए, इसे अनदेखा करने से दोषपूर्ण प्रणाली बनी रहती है, सामाजिक कार्यकर्ता विद्या झा कहती हैं।

इसके अलावा, चुनावों से जुड़े अत्यधिक वित्तीय बोझ गंभीर सुधार की मांग करते हैं। चुनावी खर्च को कम करने की दिशा में ठोस प्रयासों के बिना, हम राजनीति को और अधिक संपन्न उम्मीदवारों और पार्टियों के हाथों में धकेलने का जोखिम उठाते हैं, जिससे आम नागरिकों की आवाज़ प्रभावी रूप से हाशिए पर चली जाती है। पर्यावरणविद् डॉ. देवाशीष भट्टाचार्य कहते हैं कि चुनावी परिदृश्य में न्यायसंगत प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना चाहिए, न कि केवल कुछ शक्तिशाली खिलाड़ियों को, जो महंगे अभियान चला कर राजनीति को दूषित करते हैं।

“एक राष्ट्र, एक चुनाव” एक सतही उपाय है जो भारत की लोकतांत्रिक अखंडता को बढ़ाने के लिए आवश्यक चुनावी सुधारों से ध्यान हटाता है। शिक्षाविद टीएनवी सुब्रमण्यन के अनुसार, राजनीति में अपराधीकरण, कम चुनावी खर्च की आवश्यकता और बेहतर गुणवत्ता वाले उम्मीदवारों की तत्काल आवश्यकता के दबाव वाले मुद्दे उपेक्षित रहते हैं।

एक स्वस्थ लोकतंत्र सहभागिता, जवाबदेही और नागरिकों को अपने प्रतिनिधियों को जवाबदेह ठहराने के लिए समय-समय पर मिलने वाले अवसरों, यानि इलेक्शंस से पनपता है। अब समय आ गया है कि सरकार अपना ध्यान मौलिक चुनावी सुधारों की ओर पुनः केंद्रित करे जो वास्तव में हमारी लोकतांत्रिक राजनीति की गुणवत्ता और कार्यप्रणाली में सुधार करते हैं।

सवा ग्यारह साल लगे थे मास्टर माइंड अफजल गुरू को फाँसी देने में..

p1-8.jpg

भारत ने स्वाधीनता संघर्ष में असंख्य बलिदान दिये हैं। लेकिन स्वाधीनता के बाद बलिदानों पर विराम न लगा । पहले अंग्रेजों की गोलियों से देशभक्तों के बलिदान हुये अब आतंकवादियों के निशाने पर सुरक्षाबल और सामान्य जन हैं। तेईस वर्ष पहले आतंकवादियों का एक भीषण हमला संसद भवन पर हुआ था । जिसमें में नौ सिपाही बलिदान हुये और सत्रह अन्य घायल लेकिन हमले के मास्टर माइंड अफजल गुरु को फाँसी देने में सवा ग्यारह वर्ष लगे थे ।

वह 13 दिसम्बर 2001 की तिथि थी । संसद भवन में लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों का सत्र चल रहा था । किसी विषय पर हंगामा हुआ और दोनों सदनों की कार्यवाही चालीस मिनिट के लिये स्थगित हुई थी । प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेई और नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सोनिया गाँधी सहित कुछ सांसद तो अपने निवास की ओर रवाना हो गये थे पर गृह मंत्री लालकृष्ण आडवानी, प्रमोद महाजन सहित कुछ वरिष्ठ मंत्री, कुछ वरिष्ठ पत्रकार तथा दो सौ से अधिक सांसद संसद भवन में मौजूद थे । उपराष्ट्रपति कृष्णकांत संसद से निकलने वाले थे । उनके लिये द्वार पर गाड़ियाँ लग गईं थीं । तभी अचानक यह घातक आतंकवादी हमला हुआ । संसद पर हमला करने आये आतंकवादियों की कुल संख्या पांच थी । वे एक कार में आरडीएक्स और आधुनिक बंदूकें लेकर संसद भवन में घुसे थे । कार पर लालबत्ती लगी थी, गृह मंत्रालय का स्टीकर और कुछ वीआईपी जैसी पर्चियां भी चिपकी थीं। इसलिये संसद के आरंभिक द्वारों पर उनकी कोई रोक टोक न हुई । यह कार प्रातः 10-45 पर संसद भवन में घुसी थी और आसानी से आगे बढ़ रही थी। वह बहुत सरलता से गेट नम्बर 11 तक पहुंच गये थे । यहाँ से वे सीधे उस गेट ओर जा रहे थे जहाँ उपराष्ट्रपति को निकलने के लिये गाड़ियाँ लगीं थीं। लेकिन जैसे ही संसद भवन के द्वार क्रमांक नम्बर ग्यारह पर यह कार पहुँची । वहाँ तैनात महिला एएसआई मिथलेस कुमारी ने कार को रुकने के लिये हाथ दिया । पर कार न रुकी और तेजी से आगे बढ़ी । इसपर संदेह हुआ, सीटी बजाई गई । सुरक्षाबल सक्रिय हुये, सिपाही जीतनराम ने आगे तैनात सुरक्षा टोली को आवाज दी । सुरक्षाबलों की सीटियाँ बजने लगीं वायरलैस की आवाज भी गूंजने लगी । सिपाही जगदीश यादव दौड़ा। आतंकवादियों ने गाड़ी की गति और बढ़ाई । वे तेजी से संसद के भीतर घुसना चाहते थे । उनका उद्देश्य सांसदों को बंधक बनाने का था । पर सुरक्षा बलों की सतर्कता और घेरने के प्रयास से उनकी गाड़ी का चालक विचलित हुआ और आतंकवादियों की यह कार संसद भवन के भीतरी द्वार पर उपराष्ट्रपति की रवानगी के लिये खड़ी कारों की कतार में लगी कारों में एक कार से टकरा गई । तब आतंकवादियों ने यह प्रयास किया कि वे गोलियाँ चलाते हुए संसद के भीतर घुस जाँए। उन्होंने गोलियाँ चलाना आरंभ कर दीं। उनकी गोलियों की बौछार उसी सुरक्षा बल टोली की ओर थी जो उन्हे घेरने का प्रयास कर रही थी । यह वही टोली थी जिसे इस कार पर संदेह हुआ था और रोकने की कोशिश की थी । जब कार न रुकी तो ये सभी जवान दौड़कर पीछा कर रहे थे ।

आतंकवादियों की गोली के जबाव में सुरक्षाबलों ने भी गोली चालन आरंभ किया । पूरा संसद भवन से गोलियों की आवाज से गूँज गया । आतंकवादियों की कुल संख्या पांच थी । इन सभी के हाथों में एक के 47 रायफल और गोले भी थे । एक आतंकवादी युवक ने गोलियाँ चलाते हुये गेट नंबर-1 से सदन में घुसने की कोशिश की । लेकिन सफल न हो सका । सुरक्षाबलों ने उसे वहीं ढेर कर दिया । उसके शरीर पर बम बंधा था । उस आतंकवादी के गिरते ही उसके शरीर पर लगा बम ब्लास्ट हो गया। इससे उठे धुंये और अफरा तफरी का लाभ उठाकर अन्य चार आतंकियों ने गेट नंबर-4 से सदन में घुसने की कोशिश की, लेकिन सुरक्षाबलों की फायरिंग शुरु करदी इससे तीन आतंकवादी द्वार पर पहुँचने से पहले ही ढेर हो गये । अंतिम बचे पाँचवे आतंकी ने गेट नंबर पाँच की ओर दौड़ लगाई, लेकिन सुरक्षाबल सतर्क था । वह आतंकी भी ढेर हो गया । आतंकवादी जिस कार में आये थे उसमें तीस किलो आरडीएक्स रखा था । यह तो कल्पना भी नहीं की जा सकती कि यदि आतंकवादी इस आरडीएक्स में विस्फोट करने में सफल हो जाते तब क्या दृश्य उपस्थित हो जाता । जो अंतिम आतंकी बचा था उसने कार में विस्फोट करने का प्रयास किया, पहले गोलियाँ चलाई फिर हथगोला फेकने का प्रयास किया । उसका निशाना चू । और सुरक्षाबलों की गोलियों से ढेर हो गया । एक हथगोला तो उसके हाथ में ही फटा ।

ये सभी आतंकवादी आतंकवादी संगठन जैस-ए-मोहम्मद से संबंधित थे । इसका मुख्यालय पाकिस्तान में है । उसका अपना नेटवर्क भारत में भी है । इस घटना के दो दिन बाद 15 दिसम्बर 2001 को इस हमले के योजनाकार के रुप चार लोग बंदी बनाये गये । इनमें एक अफजल गुरु, एसएआर गिलानी, अफशान गुरु और शौकत हुसैन थे । अफजल गुरु को मास्टर माइंड माना गया । उसका संपर्क जैस-ए- मोहम्मद से था । अफजल गुरु पाकिस्तान जाकर प्रशिक्षण लेकर भी आया था । पहले चारों को दोषी मानकर अलग अलग सजाएँ दीं गई। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने गिलानी और अफशान को साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया । अफजल गुरु की फांसी की यथावत रही । शौकत हुसैन को फाँसी की सजा घटा कर 10 साल कर दी । सुप्रीम कोर्ट ने 4 अगस्त, 2005 को अफजल गुरु को फांसी की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की तमाम औपचारिकताओं के बाद 20 अक्टूबर 2006 को अफजल को फांसी पर लटका देने का आदेश था । लेकिन फाँसी न दी जा सकी । 3 अक्टूबर 2006 को अफजल की पत्नी तब्बसुम ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल की।राष्ट्रपति जी को गृह मंत्रालय तथा अन्य विशेषज्ञों से सलाह लेने में वर्षों लगे और अंत में 13 फरवरी 2013 को अफजल गुरु फाँसी पर लटकाया जा सका ।

संसद भवन पर हुये इस हमले की प्रतिक्रिया दुनियाँ भर में हुई । आतंकवादी दोनों तैयारी से आये थे । भारतीय सांसदों को बंधक बनाकर अपनी कुछ शर्तें मनवाने और कार में आरडीएक्स में विस्फोट करके पूरे संसद को उड़ाने की योजना थी । लेकिन सुरक्षाबलों की सतर्कता और चुस्ती से मुकाबला करने की रणनीति से वे सफल न हो सके थे । इस हमले में सुरक्षाबलों के जवानों ने अपनी जान की बाजी लगाकर संसद की सुरक्षा की और कोई बड़ा नुकसान होने से पहले ही पांचों आतंकवादियों को ढेर कर दिया । इस आतंकी हमले में कुल 9 भारतीय जवानों का बलिदान हुआ संसदीय सुरक्षा के दो सुरक्षा सहायक जगदीश प्रसाद यादव और मातबर सिंह नेगी, दिल्ली पुलिस के पांच सुरक्षाकर्मी नानक चंद, रामपाल, ओमप्रकाश, बिजेन्द्र सिंह और घनश्याम के साथ ही केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की एक महिला कांस्टेबल कमलेश कुमारी और सीपीडब्ल्यूडी के एक कर्मचारी देशराज शामिल थे । इनके अतिरिक्त 16 अन्य जवान घायल हुए ।संसद हमले के इन बलिदानियों में जगदीश प्रसाद यादव, कमलेश कुमारी और मातबर सिंह नेगी को अशोक चक्र और नानक चंद, ओमप्रकाश, घनश्याम, रामपाल एवं बिजेन्द्र सिंह को कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया। साथ ही अतुलनीय साहस का परिचय देने के लिए संतोष कुमार, वाई बी थापा, श्यामबीर सिंह और सुखवेंदर सिंह को शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया ।

लेकिन दूसरी ओर भारत में एक समूह ऐसा भी था जिसने अफजल गुरु को फाँसी देने की वर्षी मनाई । देश में नारे लगे । जिसका कुछ राजनैतिक दलों ने समर्थन भी किया ।

स्टिलबर्थ सोसाइटी ऑफ इंडिया ने हैदराबाद घोषणापत्र जारी किया

6__1713280385.jpg

अलीगढ़ 12 दिसंबर: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के जे.एन. मेडिकल कॉलेज के प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग के प्रोफेसर तमकिन खान द्वारा स्थापित स्टिलबर्थ सोसाइटी ऑफ इंडिया (एसबीएसआई) ने हैदराबाद घोषणापत्र जारी किया, जो भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और यूनिसेफ, डब्ल्यूएचओ और यूएनएफपीए सहित अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ विचार-विमर्श के बाद किया गया एक सहयोगात्मक प्रयास है, जिसमें देश भर में स्टिलबर्थ को कम करने के लिए कार्रवाई योग्य रणनीतियों पर जोर दिया गया है।

प्रो. खान ने कहा कि उपरोक्त घोषणापत्र का अनावरण सोसाइटी के दूसरे वार्षिक सम्मेलन के दौरान किया गया, जो हैदराबाद के पार्क होटल में आयोजित किया गया था, जिसमें अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ डॉ. जेसन गार्डोसी, स्वास्थ्य मंत्रालय, यूनिसेफ, डब्ल्यूएचओ, यूएनएफपीए और एफओजीएसआई के प्रतिनिधियों और शोक संतप्त माता-पिता सहित 296 प्रतिनिधि और 43 संकाय सदस्य शामिल हुए थे।

उन्होंने कहा कि सम्मेलन में उनके नेतृत्व में शोक परामर्श पर एक प्रभावशाली कार्यशाला शामिल थी, जिसमें करुणामय देखभाल के लिए रणनीतियां प्रदान की गईं और “अस्पष्टीकृत स्टिलबर्थ” पर एक पैनल आयोजित किया गया तथा 2030 तक प्रति 1,000 जन्मों पर 10 से कम स्टिलबर्थ के राष्ट्रीय लक्ष्य को पूरा करने के लिए रणनीतियां बनाई गईं। उन्होंने कहा कि सम्मेलन में मौखिक और पोस्टर प्रस्तुतियों के साथ स्टिलबर्थ की रोकथाम पर शोध प्रदर्शित किया गया तथा पैनल चर्चा “महिलाओं की आवाज” में नुकसान की मार्मिक कहानियों पर चर्चा की गई, शोक संतप्त परिवारों के साथ एकजुटता को बढ़ावा दिया गया तथा कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।

scroll to top