सवा ग्यारह साल लगे थे मास्टर माइंड अफजल गुरू को फाँसी देने में..

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भारत ने स्वाधीनता संघर्ष में असंख्य बलिदान दिये हैं। लेकिन स्वाधीनता के बाद बलिदानों पर विराम न लगा । पहले अंग्रेजों की गोलियों से देशभक्तों के बलिदान हुये अब आतंकवादियों के निशाने पर सुरक्षाबल और सामान्य जन हैं। तेईस वर्ष पहले आतंकवादियों का एक भीषण हमला संसद भवन पर हुआ था । जिसमें में नौ सिपाही बलिदान हुये और सत्रह अन्य घायल लेकिन हमले के मास्टर माइंड अफजल गुरु को फाँसी देने में सवा ग्यारह वर्ष लगे थे ।

वह 13 दिसम्बर 2001 की तिथि थी । संसद भवन में लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों का सत्र चल रहा था । किसी विषय पर हंगामा हुआ और दोनों सदनों की कार्यवाही चालीस मिनिट के लिये स्थगित हुई थी । प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेई और नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सोनिया गाँधी सहित कुछ सांसद तो अपने निवास की ओर रवाना हो गये थे पर गृह मंत्री लालकृष्ण आडवानी, प्रमोद महाजन सहित कुछ वरिष्ठ मंत्री, कुछ वरिष्ठ पत्रकार तथा दो सौ से अधिक सांसद संसद भवन में मौजूद थे । उपराष्ट्रपति कृष्णकांत संसद से निकलने वाले थे । उनके लिये द्वार पर गाड़ियाँ लग गईं थीं । तभी अचानक यह घातक आतंकवादी हमला हुआ । संसद पर हमला करने आये आतंकवादियों की कुल संख्या पांच थी । वे एक कार में आरडीएक्स और आधुनिक बंदूकें लेकर संसद भवन में घुसे थे । कार पर लालबत्ती लगी थी, गृह मंत्रालय का स्टीकर और कुछ वीआईपी जैसी पर्चियां भी चिपकी थीं। इसलिये संसद के आरंभिक द्वारों पर उनकी कोई रोक टोक न हुई । यह कार प्रातः 10-45 पर संसद भवन में घुसी थी और आसानी से आगे बढ़ रही थी। वह बहुत सरलता से गेट नम्बर 11 तक पहुंच गये थे । यहाँ से वे सीधे उस गेट ओर जा रहे थे जहाँ उपराष्ट्रपति को निकलने के लिये गाड़ियाँ लगीं थीं। लेकिन जैसे ही संसद भवन के द्वार क्रमांक नम्बर ग्यारह पर यह कार पहुँची । वहाँ तैनात महिला एएसआई मिथलेस कुमारी ने कार को रुकने के लिये हाथ दिया । पर कार न रुकी और तेजी से आगे बढ़ी । इसपर संदेह हुआ, सीटी बजाई गई । सुरक्षाबल सक्रिय हुये, सिपाही जीतनराम ने आगे तैनात सुरक्षा टोली को आवाज दी । सुरक्षाबलों की सीटियाँ बजने लगीं वायरलैस की आवाज भी गूंजने लगी । सिपाही जगदीश यादव दौड़ा। आतंकवादियों ने गाड़ी की गति और बढ़ाई । वे तेजी से संसद के भीतर घुसना चाहते थे । उनका उद्देश्य सांसदों को बंधक बनाने का था । पर सुरक्षा बलों की सतर्कता और घेरने के प्रयास से उनकी गाड़ी का चालक विचलित हुआ और आतंकवादियों की यह कार संसद भवन के भीतरी द्वार पर उपराष्ट्रपति की रवानगी के लिये खड़ी कारों की कतार में लगी कारों में एक कार से टकरा गई । तब आतंकवादियों ने यह प्रयास किया कि वे गोलियाँ चलाते हुए संसद के भीतर घुस जाँए। उन्होंने गोलियाँ चलाना आरंभ कर दीं। उनकी गोलियों की बौछार उसी सुरक्षा बल टोली की ओर थी जो उन्हे घेरने का प्रयास कर रही थी । यह वही टोली थी जिसे इस कार पर संदेह हुआ था और रोकने की कोशिश की थी । जब कार न रुकी तो ये सभी जवान दौड़कर पीछा कर रहे थे ।

आतंकवादियों की गोली के जबाव में सुरक्षाबलों ने भी गोली चालन आरंभ किया । पूरा संसद भवन से गोलियों की आवाज से गूँज गया । आतंकवादियों की कुल संख्या पांच थी । इन सभी के हाथों में एक के 47 रायफल और गोले भी थे । एक आतंकवादी युवक ने गोलियाँ चलाते हुये गेट नंबर-1 से सदन में घुसने की कोशिश की । लेकिन सफल न हो सका । सुरक्षाबलों ने उसे वहीं ढेर कर दिया । उसके शरीर पर बम बंधा था । उस आतंकवादी के गिरते ही उसके शरीर पर लगा बम ब्लास्ट हो गया। इससे उठे धुंये और अफरा तफरी का लाभ उठाकर अन्य चार आतंकियों ने गेट नंबर-4 से सदन में घुसने की कोशिश की, लेकिन सुरक्षाबलों की फायरिंग शुरु करदी इससे तीन आतंकवादी द्वार पर पहुँचने से पहले ही ढेर हो गये । अंतिम बचे पाँचवे आतंकी ने गेट नंबर पाँच की ओर दौड़ लगाई, लेकिन सुरक्षाबल सतर्क था । वह आतंकी भी ढेर हो गया । आतंकवादी जिस कार में आये थे उसमें तीस किलो आरडीएक्स रखा था । यह तो कल्पना भी नहीं की जा सकती कि यदि आतंकवादी इस आरडीएक्स में विस्फोट करने में सफल हो जाते तब क्या दृश्य उपस्थित हो जाता । जो अंतिम आतंकी बचा था उसने कार में विस्फोट करने का प्रयास किया, पहले गोलियाँ चलाई फिर हथगोला फेकने का प्रयास किया । उसका निशाना चू । और सुरक्षाबलों की गोलियों से ढेर हो गया । एक हथगोला तो उसके हाथ में ही फटा ।

ये सभी आतंकवादी आतंकवादी संगठन जैस-ए-मोहम्मद से संबंधित थे । इसका मुख्यालय पाकिस्तान में है । उसका अपना नेटवर्क भारत में भी है । इस घटना के दो दिन बाद 15 दिसम्बर 2001 को इस हमले के योजनाकार के रुप चार लोग बंदी बनाये गये । इनमें एक अफजल गुरु, एसएआर गिलानी, अफशान गुरु और शौकत हुसैन थे । अफजल गुरु को मास्टर माइंड माना गया । उसका संपर्क जैस-ए- मोहम्मद से था । अफजल गुरु पाकिस्तान जाकर प्रशिक्षण लेकर भी आया था । पहले चारों को दोषी मानकर अलग अलग सजाएँ दीं गई। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने गिलानी और अफशान को साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया । अफजल गुरु की फांसी की यथावत रही । शौकत हुसैन को फाँसी की सजा घटा कर 10 साल कर दी । सुप्रीम कोर्ट ने 4 अगस्त, 2005 को अफजल गुरु को फांसी की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की तमाम औपचारिकताओं के बाद 20 अक्टूबर 2006 को अफजल को फांसी पर लटका देने का आदेश था । लेकिन फाँसी न दी जा सकी । 3 अक्टूबर 2006 को अफजल की पत्नी तब्बसुम ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल की।राष्ट्रपति जी को गृह मंत्रालय तथा अन्य विशेषज्ञों से सलाह लेने में वर्षों लगे और अंत में 13 फरवरी 2013 को अफजल गुरु फाँसी पर लटकाया जा सका ।

संसद भवन पर हुये इस हमले की प्रतिक्रिया दुनियाँ भर में हुई । आतंकवादी दोनों तैयारी से आये थे । भारतीय सांसदों को बंधक बनाकर अपनी कुछ शर्तें मनवाने और कार में आरडीएक्स में विस्फोट करके पूरे संसद को उड़ाने की योजना थी । लेकिन सुरक्षाबलों की सतर्कता और चुस्ती से मुकाबला करने की रणनीति से वे सफल न हो सके थे । इस हमले में सुरक्षाबलों के जवानों ने अपनी जान की बाजी लगाकर संसद की सुरक्षा की और कोई बड़ा नुकसान होने से पहले ही पांचों आतंकवादियों को ढेर कर दिया । इस आतंकी हमले में कुल 9 भारतीय जवानों का बलिदान हुआ संसदीय सुरक्षा के दो सुरक्षा सहायक जगदीश प्रसाद यादव और मातबर सिंह नेगी, दिल्ली पुलिस के पांच सुरक्षाकर्मी नानक चंद, रामपाल, ओमप्रकाश, बिजेन्द्र सिंह और घनश्याम के साथ ही केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की एक महिला कांस्टेबल कमलेश कुमारी और सीपीडब्ल्यूडी के एक कर्मचारी देशराज शामिल थे । इनके अतिरिक्त 16 अन्य जवान घायल हुए ।संसद हमले के इन बलिदानियों में जगदीश प्रसाद यादव, कमलेश कुमारी और मातबर सिंह नेगी को अशोक चक्र और नानक चंद, ओमप्रकाश, घनश्याम, रामपाल एवं बिजेन्द्र सिंह को कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया। साथ ही अतुलनीय साहस का परिचय देने के लिए संतोष कुमार, वाई बी थापा, श्यामबीर सिंह और सुखवेंदर सिंह को शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया ।

लेकिन दूसरी ओर भारत में एक समूह ऐसा भी था जिसने अफजल गुरु को फाँसी देने की वर्षी मनाई । देश में नारे लगे । जिसका कुछ राजनैतिक दलों ने समर्थन भी किया ।

स्टिलबर्थ सोसाइटी ऑफ इंडिया ने हैदराबाद घोषणापत्र जारी किया

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अलीगढ़ 12 दिसंबर: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के जे.एन. मेडिकल कॉलेज के प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग के प्रोफेसर तमकिन खान द्वारा स्थापित स्टिलबर्थ सोसाइटी ऑफ इंडिया (एसबीएसआई) ने हैदराबाद घोषणापत्र जारी किया, जो भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और यूनिसेफ, डब्ल्यूएचओ और यूएनएफपीए सहित अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ विचार-विमर्श के बाद किया गया एक सहयोगात्मक प्रयास है, जिसमें देश भर में स्टिलबर्थ को कम करने के लिए कार्रवाई योग्य रणनीतियों पर जोर दिया गया है।

प्रो. खान ने कहा कि उपरोक्त घोषणापत्र का अनावरण सोसाइटी के दूसरे वार्षिक सम्मेलन के दौरान किया गया, जो हैदराबाद के पार्क होटल में आयोजित किया गया था, जिसमें अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ डॉ. जेसन गार्डोसी, स्वास्थ्य मंत्रालय, यूनिसेफ, डब्ल्यूएचओ, यूएनएफपीए और एफओजीएसआई के प्रतिनिधियों और शोक संतप्त माता-पिता सहित 296 प्रतिनिधि और 43 संकाय सदस्य शामिल हुए थे।

उन्होंने कहा कि सम्मेलन में उनके नेतृत्व में शोक परामर्श पर एक प्रभावशाली कार्यशाला शामिल थी, जिसमें करुणामय देखभाल के लिए रणनीतियां प्रदान की गईं और “अस्पष्टीकृत स्टिलबर्थ” पर एक पैनल आयोजित किया गया तथा 2030 तक प्रति 1,000 जन्मों पर 10 से कम स्टिलबर्थ के राष्ट्रीय लक्ष्य को पूरा करने के लिए रणनीतियां बनाई गईं। उन्होंने कहा कि सम्मेलन में मौखिक और पोस्टर प्रस्तुतियों के साथ स्टिलबर्थ की रोकथाम पर शोध प्रदर्शित किया गया तथा पैनल चर्चा “महिलाओं की आवाज” में नुकसान की मार्मिक कहानियों पर चर्चा की गई, शोक संतप्त परिवारों के साथ एकजुटता को बढ़ावा दिया गया तथा कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।

अराजक चरमपंथी आजादी खतरे में कड़े सुधारों का वक्त आ गया है

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डंडा, गोली, जेल, इनसे ही कानून का भय पैदा किया जा सकता है। लेकिन भारत कानून के शासन से मुक्त होता दिख रहा है। हमारे यहां, अनुशासन हीन व्यवस्था, लोकतंत्र का पर्याय बन चुकी है। 

75 वर्ष आजादी के बाद, भारत एक ऐसा देश बन चुका है जहां स्वतंत्रता और सेक्युलरिज्म के नाम पर रूल ऑफ लॉ का खुलेआम मजाक बनाकर अराजकता को न्यौता जा रहा है।

न भ्रष्ट नेताओं को खौफ है, न अपराधी समूहों को किसी प्रकार का भय। कीमत चुकाओ , लाभ कमाओ, नए युग के विकास का मंत्र !!

वाकई, समय आ गया है जब पूछना पड़ेगा कि क्या संवैधानिक लोकतंत्र,  शासन की सर्वोत्तम उपलब्ध प्रणाली है, या इस सिद्धांत पर पुनर्विचार करने और नए विकल्पों का आविष्कार करने या नई समस्याओं और बाधाओं का जवाब देने के लिए नए प्रयोगों  की आवश्यकता है? 

ये प्रश्न प्रासंगिक हो गए हैं क्योंकि दुनिया भर के लोकतंत्र विकासवादी बाधाओं और अप्रत्याशित चुनौतियों से जूझते दिख रहे हैं। हाल ही में लोकतांत्रिक दुनिया ने खुलेपन और स्वतंत्रता का विरोध करने वाले चरमपंथी समूहों द्वारा संवैधानिक स्वतंत्रता का दुरुपयोग देखा है। भारत हो या अमेरिका, या हाल ही की बांग्लादेश की घटनाएं बता रही हैं कि कट्टरपंथी समूह सभ्य संरचनाओं को तोड़फोड़ करने और भीतर से व्यवस्था को नष्ट करने के लिए लगातार काम कर रही हैं। 

पिछले कुछ वर्षों से अधिकांश सामाजिक और राजनीतिक टिप्पणीकारों को लगता है कि पुलिस और न्यायिक प्रणाली में सुधार की तत्काल आवश्यकता है।
 कुछ लोग कहते हैं कि राजनीतिक वर्ग के भीतर अनुज्ञप्ति और लोभ के बीच के अंतर्संबंध ने जनता  के लिए भयावह परिणाम दिए हैं। राजनीतिक नेता अक्सर ऐसी प्रथाओं में संलग्न होते हैं जो सार्वजनिक कल्याण पर उनके हितों को प्राथमिकता देते हैं।

न्यायिक प्रणाली को भी महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जिनमें तत्काल सुधार की आवश्यकता है। न्याय में देरी, भ्रष्टाचार और जवाबदेही की कमी ने एक अप्रभावी कानूनी ढांचे का मार्ग प्रशस्त किया है जो निष्पक्षता और सुरक्षा के अपने वादे को पूरा करने में विफल रहता है। कई नागरिक न्यायालयों को न्याय के स्वतंत्र मध्यस्थों के बजाय राजनीतिक तंत्र का विस्तार मानते हैं। यह धारणा कानून के शासन में बाधा डालती है, निराशा का माहौल पैदा करती है जहां व्यक्तियों को लगता है कि उनकी शिकायतों पर उचित विचार या समाधान नहीं होगा। 

सुधार के महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक में पुलिस और न्यायिक प्रणाली दोनों के भीतर जवाबदेही की स्पष्ट रेखाएँ स्थापित करना शामिल होना चाहिए। यह न केवल कानून प्रवर्तन अधिकारियों के आचरण से संबंधित है, बल्कि इसमें यह भी शामिल है कि न्यायिक निर्णय कैसे किए जाते हैं और इसमें शामिल प्रक्रियाओं की पारदर्शिता क्या है। जवाबदेही की इन रेखाओं को मजबूत करके, हम एक ऐसी प्रणाली बना सकते हैं जो न केवल उल्लंघनों का जवाब देती है बल्कि व्यक्तियों के अधिकारों का सम्मान भी करती है और सार्वजनिक विश्वास को बढ़ावा देती है। 

इसके अलावा, नौकरशाही को सुनिश्चित करना चाहिए कि कानून के तहत प्रत्येक नागरिक के साथ समान व्यवहार किया जाए। यह संरेखण उन संस्थानों में विश्वास बहाल करने के लिए महत्वपूर्ण है जो सार्वजनिक हित की सेवा करने के लिए हैं। अकुशलता और अस्पष्टता से भरी नौकरशाही प्रणाली केवल मौजूदा निराशावाद को बढ़ाती है, जिससे नागरिक उन शासन प्रणालियों से अलग-थलग महसूस करते हैं, जिनका उद्देश्य उनकी रक्षा करना है। 

कम्युनिटी पुलिसिंग की भी तत्काल आवश्यकता है जो नागरिकों को सशक्त बनाती हैं और कानून प्रवर्तन और उनके द्वारा सेवा प्रदान किए जाने वाले समुदायों के बीच सहयोग को बढ़ावा देती हैं। 

अगर हमें सरकार में जनता के भरोसे के कम होते ढांचे को सुधारना है तो पुलिसिंग और न्यायपालिका के व्यवस्थित सुधार को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। जनता को शासन में अपनी आवाज़ फिर से हासिल करनी चाहिए – जवाबदेही, ईमानदारी और कानून के शासन के प्रति प्रतिबद्धता की मांग करनी चाहिए।  केवल तभी हम ऐसे समाज का विकास कर सकते हैं जहां कानून प्रवर्तन शांति के रक्षक के रूप में कार्य करता है, और न्यायिक प्रणाली सच्चे न्याय का प्रतीक है, जो हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में विश्वास की बहाली को सक्षम बनाती है।

Jaipur Literature Festival 2025 Announces First List of Speakers for Landmark 18 th Edition

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Jaipur : India’s pioneering festival curator and production house, Teamwork Arts, announced the first tranche of speakers for its much-awaited 18 th edition of the iconic Jaipur Literature Festival, scheduled to take place from 30th January to 3rd February 2025, at Hotel Clarks Amer in Jaipur. Globally known as the ‘greatest literary show on Earth’, the Festival will once again bring together a vibrant mix of writers, thinkers and readers to explore the transformative power of literature and its unique ability to connect people across cultures.

The 2025 edition of the world’s grandest celebration of books and ideas will reinforce the timeless power of our stories to bridge divides, foster empathy, and celebrate our shared human experiences. In line with a commitment to sustainability, the 2025 iteration will feature environmentally conscious practices throughout the Festival. With an engaging lineup of debates, thought-provoking discussions, and unforgettable performances, this year’s programme promises a unique blend of cultural wealth, literary masterpieces, and a focus on a greener future, making it a literary festival like no other. At its heart, the Jaipur Literature Festival remains a champion of linguistic diversity, providing a platform for a wide array of languages. This year’s sessions will feature works and discussions in languages including Hindi, Bengali, Rajasthani, Kannada, Tamil, Telugu, Odiya, Sanskrit, Assamese, Malayalam, Marathi, Punjabi, and Urdu emphasising the Festival’s commitment to inclusivity and representation of India’s rich literary heritage.

The 18th edition will feature over 300 speakers across five dynamic venues, offering attendees the chance to engage with a stellar lineup of global and Indian literary figures. The first list of speakers includes literary luminaries such as André Aciman, Anirudh Kanisetti, Anna Funder, Ashwani Kumar, Cauvery Madhavan, Claudia De Rham, David Nicholls, Fiona Carnarvon, Ira Mukhoty, Irenosen Okojie, Jenny Erpenbeck, John Vaillant, Kallol Bhattacherjee, Maithree Wickramasinghe, Manav Kaul, Miriam Margolyes, Nassim Nicholas Taleb, Nathan Thrall, Prayaag Akbar, Priyanka Mattoo, Stephen Greenblatt, Tina Brown, V. V. Ganeshananthan, Venki Ramakrishnan, and Yaroslav Trofimov, promising a series of stimulating and eclectic discussions.

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