Try Pakistan in International Court of Justice for acts of Genocides: Panelists

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JKUF announces intent to form International Alliance for Prevention of Genocides

New Delhi, Jan 27: Jammu and Kashmir Unity Foundation today demanded trial of Pakistan in International Court of Justice and announced its intent to form an International  Alliance for Prevention of Genocides.

The panelists at the International Seminar on the Holocaust Remembrance Day held at India International Centre, New Delhi  today termed Pakistan as a Genocidal Nation which has been  perpetrating Genocide in the whole of Indian Subcontinent including India, Bangladesh, Pakistan, Balochistan, Hazaras, Afghanistan etc. They said Pakistan is the Mother of Terrorism and in each and every terrorist act across world Pakistan has a direct role.

The panelists included Bob Blackman, MP, United Kingdom Parliament (Online), Francois Gautier, Journalist & Author, Dr. Nuzhat Choudhury, Bangladesh, Dr. Ajay Chrungoo, Chairman Panun Kashmir, Bashir Assad, writer of K Files, Sandhya Jain, Author Balochistan in the Crosshairs and Ajaat jamwal, president Jammu Kashmir Unity Foundation.

Speaking on the Occasion through Web Mr. Bob Blackman, MP UK Parliament regretted his inability to come to the seminar. In his message he said that UK officially observes International Holocaust day and it was imperative that the victims of genocides and right thinking people come together to fight for prevention of genocide. He that people of Jammu and  Kashmir have been the victims of Pakistan sponsored terrorism and the revocation of Article 370 has restored the rights of the deprived sections. Mr. Bob Blackman hailed Govt of India for the historic step.

Dr. Nuzhat Choudhaury from Bangladesh said that her country has been a victim of Genocide at the hands of Islamic Republic of  Pakistan and Pakistani Army killed Bangladeshis in 1971 without differentiating between Hindus or Muslims. She sad that Pakistani Army killed Bangla nationals and it was their avowed objective to kill Bangladeshi  men and women.

Nuzhat Choudhury said that her organizations is working for bringing the perpetrators of inflicting Genocides on Bangladesh nationals and would not rest till Generals of Pakistani army are tried for Pakistan. She supported the idea of forming an International Alliance for prevention of Genocides.

Dr. Ajay Chrungoo narrated the tales of horror faced by Kashmiri Hindus at the hands of Pakistan sponsored terrorist. He said that denial of Genocide replicates genocide. He insisted upon the Govt of India to enact a Bill for prevention of  genocides.

Francois Gautier spoke on Genocide of kashmiri Hindus, Bangladesh and Pakistan.

Sandhya Jain narrated the tales of exploitation of Balochistan.

Bashir Assad narrated the tales of both sides players in Jammua and Kashmir. He said that disruptionists need to be tackled with firm hands.  

Ajaat Jamwal President, Jammu Kashmir Unity Foundation speaking on the occasion said that International Holocaust Rememberance day is observed in the memory of 6 Million Jews and Armenians killed. But United Nation has not recognized the genocides in India, Bangladesh, Pakistan and J&K perpetuated by Genocidal Nation Pakistan. He said that soon JK Unity Foundation will reach out to like minded people/nations to form the International Alliance for Prevention of Genocides.

Dr. Gopal Parthasarthi Sharma welcomed the guest and conducted the programme.

Prominent among others present were Elena Bistiu, Charge D Affairs, Embassy of Romania, Dr. Vijay Sagar Dheman, Col. Rakesh Aima, Sushil Pandit, panelist, SP Slathia, CS, Dr. Monika Langeh, Dr. Pawan Dutta, Vikram Singh Jasrotia, Advocate, Gotam Singh, Amit Gupta and others.   

सुधीर चौधरी और दीपक चौरसिया से डरे शाहीन बाग के सफेदपोश

आशीष कुमार ‘अंशु’

भारतीय टेलीविजन पत्रकारिता के इतिहास में 27 जनवरी की तारीख को याद रखा जाएगा। आने वाले समय में यह तारीख पत्रकारिता के शोधार्थियों के लिए अध्ययन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव होगा कि कैसे सामाजिक सरोकार के लिए राष्ट्रीय खबरिया चैनलों के दो बड़े पत्रकार आपसी प्रतिद्वन्दीता को भूलाकर एक साथ मैदान में उतरे।

 एक तरफ शाहीन बाग के कथित प्रदर्शनकारी कह रहे थे कि हमारी आवाज सुनी नहीं जा रही। वे कह रहे थे कि हमारा प्रोटेस्ट लोकतांत्रिक है। उसी कथित विरोध को कवर करने के लिए दीपक चौरसिया और सुधीर चौधरी जब शाहीन बाग पहुंचे तो उन्हें कवर करने से रोका गया। ऐसा कौन सा लोकतांत्रिक प्रदर्शन होगा जिसमें शामिल होने वालों को रोका जाता हो?

सुधीर चौधरी

चौधरी ने लिखा — ”आज मैं और दीपक चौरसिया शाहीन बाग गए। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि हम शाहीन बाग में ‘अलाउड’ नहीं हैं। रोकने के लिए पहली पंक्ति में महिलाओं को खड़ा कर दिया। पुरुष पीछे खड़े हो गए। नारेबाज़ी हुई। राजधानी में ये वो जगह है जहां पुलिस भी नहीं जा सकती। लोकतंत्र का मज़ाक़ है ये।”

देश की राजधानी दिल्ली में जब मुट्ठी भर समुदाय विशेष के गुंडा तत्वों ने ऐसा माहौल बना दिया है, सोचिए छोटे शहरों में समुदाय विशेष के कट्टरपंथियों ने जो घेटोज बनाए हैं, वहां क्या हाल होता होगा? इसी का परिणाम है कि धीरे—धीरे दिल्ली वालों की सहानुभूति जामिया नगर और शाहीनबाग के प्रति कम होती जा रही है। शांतिपूर्ण प्रदर्शन के पक्ष में समाज हो सकता है लेकिन गुंडा तत्व जब आंदोलन में घुल-मिल जाए तो ऐसे कथित आंदोलनों को खत्म ही कर देना चाहिए। इस कथित आंदोलन की वजह से लाखों लोगों की जिन्दगी प्रतिदिन ऐसी उलझी हुई है कि बच्चे ना स्कूल जा पा रहे है और ना बच्चे के पापा समय पर दफ्तर पहुंच पा रहे हैं।

24 जनवरी को शाहीन बाग के आयोजको से बातचीत करके दीपक चौरसिया अपनी टीम के साथ प्रदर्शन स्थल पर कवरेज के लिए पहुंचे। वहा उनके साथ मारपीट हुई। जिसमें उन्हें चोट आई। उनका एक कैमरा प्रदर्शनकारियों ने गायब कर दिया। जिसकी शिकायत उन्होंने पुलिस के पास की। दीपक शाहीन बाग के लोगों की आवाज पूरे देश में पहुंचाना चाहते थे और वे खुद मॉब लिंचिंग के शिकार हो गए।

दीपक चौरसिया

दीपक ने हार नहीं मानी। उन्होंने एक प्रयास और किया। जिसमें उनका साथ वरिष्ठ पत्रकार सुधीर चौधरी ने दिया। इस बार भी शाहीन बाग के आयोजक खुद को ‘सच्चा मुसलमान’ साबित करने में चूक कर गए। जबकि दीपक चौरसिया का किरदार इस मामले में पूरे देश ने देखा और लेफ्ट लिबरल पत्रकारों को छोड़कर हर तरफ उनकी तारिफ हुई।

मोहम्मद साहब और क्रोधी स्वभाव वाली बुढ़िया की कहानी दुहराता तो हर मुसलमान है लेकिन मानो इस कहानी से प्रेरणा दीपक ने ली और पूरा शाहीन बाग उस कर्कश बुढ़िया की भूमिका में था जो नमाज पढ़ने के लिए जब मोहम्मद साहब जाते तो वह घर की सारी गंदगी उनके ऊपर उड़ेल देती थी। मोहम्मद साहब कभी बुढ़िया पर नाराज नहीं हुए। दीपक भी बातचीत में शाहीन बाग में नाराज नहीं दिखे। वे बार—बार यही निवेदन करते रहे कि मैं आपसे बात करना चाहता हूं। उसके बावजूद उनकी बात को अनसुना करने वाला मोहम्मद साहब का अनुयायी तो नहीं हो सकता।

बूढ़ी औरत और मोहम्मद साहब की कहानी कूड़ा फेंकने पर खत्म नहीं होती। एक दिन जब उस राह से मोहम्मद गुजरे तो उन पर कूड़ा आकर नहीं गिरा। वे थोड़े हैरान हुए। फिर आगे बढ़ गए। अगले दिन फिर ऐसा ही हुआ। मोहम्मद साहेब को कुछ अंदेशा हुआ। वे उस बूढ़ी महिला के घर चले गए। दरवाजा खोलकर जब अंदर गए तो देखते हैं कि बूढ़ी महिला दो दिनों की बीमारी में ही बेहद कमजोर हो गई है। इस हालत में देखकर मोहम्मद साहब दुखी हुए। उन्होंने डॉक्टर बुलाया। उस बूढ़ी महिला की सेवा सुश्रुषा तब तक की जब तक वह स्वस्थ नहीं हो गई।

अब जो लोग खुद को मोहम्मद का अनुयायी कहते हैं और उनके किरदार में इतना छीछोरापन नजर आए कि देश के दो पत्रकार आपके दरवाजे पर खड़े हों और आप दरवाजा बंद कर दें। ऐसे में दरवाजा बंद करने वाले किस मुंह से खुद को मुसलमान कहलाने का दावा पेश करेंगे?

इसी तरह का अपने मित्र अहमद सुल्तान से जुड़ा एक वाकया इस्लाम के बड़े जानकार मौलाना वहिदुद्दीन खान साहब सुनाते हैं— एक मोहल्ले में फसाद होने वाला था। मानों दोनों तरफ से इसकी तैयारी पूरी हो चुकी थी। एक जुलूस निकल कर आने वाला था, उससे मुसलमानों का टकराव होता और फिर फसाद होता। अहमद सुल्तान साहब को जब इस पूरे मामले की जानकारी हुई तो वे मोहल्ले की मस्जिद में गए और इमाम साहब से मिले। सुल्तान साहब ने कहा— जब उनका जुलूस आए तो आप रोक—टोक मत कीजिए। आप सिर्फ इतना कीजिए कि बाजार से दस हार मंगवा लीजिए। जब जुलूस आए उस वक्त ट्रे में हार लेकर आप सड़क पर खड़े हो जाइए और जो भी आगे चलकर आ रहे हों। जुलूस के नेता हों, उन्हें हार पहना दीजिए और उनका स्वागत कीजिए। इमाम ने ऐसा किया और जो साम्प्रदायिक दंगा होना तय था, वह ना सिर्फ टला बल्कि दोनों समुदायों  के बीच एक मजबूत रिश्ते की उस दिन नींव पड़ी।

वैसे सच यह भी है कि शाहीन बाग का आंदोलन सिर्फ शाहीन बाग के लोगों से नहीं चल रहा। इसके कुछ स्टेक होल्डर बाहर भी हैं। जिस तरह इस पूरे मामले में एनडीटीवी रूचि ले रहा है, ऐसा लगता है कि वह भी इस कथित आंदोलन में एक स्टेक होल्डर है।  संभव है इसीलिए एनडीटीवी के एक स्टार एंकर ने श्री चौरसिया के साथ शाहीन बाग में पिछले दिनों जो गलत व्यवहार हुआ उसकी सुध लिए बिना उलटा उनकी पत्रकारिता को लेकर सवाल पूछा। एनडीटीवी के एंकर के बयान की आईसा—एसएफआई की वैचारिक पत्रकारिता स्कूल से निकले पत्रकारों को छोड़कर हर तरफ आलोचना हुई और यह सवाल भी सामने आया कि एनडीटीवी का इतना महत्वपूर्ण चेहरा जब कोई बात लिख रहा है तो उसे निजी राय नहीं माना जा सकता।

यहां गौरतलब है कि एनडीटीवी के पत्रकारों को शाहीन बाग में आसानी से जाने का रास्ता मिल जाता है। जामिया में हुई हिंसा और आगजनी के दौरान सहायता के लिए जिन लोगों के मोबाइल नंबर छात्रों के बीच वाट्सएप पर शेयर किए जा रहे थे, उसमें भी  एक एनडीटीवी का पत्रकार था और दूसरी पत्रकार का ताल्लूक वायर नाम की एक वेबसाइट से था। यह भी एक संयोग है कि देशद्रोह का आरोपी शरजील इमाम भी वायर नाम की वेबसाइट से जुड़ा रहा है।

  एनडीटीवी और वायर की पूरे मामले में जो भूमिका दिखाई पड़ी, उसे देखकर उनपर संदेह होना स्वाभाविक है। एनडीटीवी और वायर दूसरे चैनलों के साथ वहां हो रहे दुर्व्यवहार के सवाल को क्यों नहीं उठाते?  आज एनडीटीवी—वायर, शाहीन बाग में न्यूज नेशन और जी न्यूज को रोके जाने पर उत्सव मना रहे हैं।  वह नहीं जानते कि अगला नंबर उनका भी हो सकता है और फिर उनके पत्रकार किस मुंह से लोकतंत्र की दुहाई देंगे?

इस पूरे प्रकरण में एनडीटीवी और वायर ने अपने लिए यह मुसीबत जरूर मोल ले ली कि
उनके पत्रकारों पर भी लोग इस तरह का दबाव बना सकते हैं। उनसे भी लोग सवाल पूछ सकते हैं— पहले बताओ कि तुमने पत्रकारिता के लिए क्या किया है?

या फिर उनका माईक देखते ही कोई कह सकता है कि जो रिपोर्ट करना है सामने करो। मेरे मन का करो। अब सोचिए जब एनडीटीवी के पत्रकार के साथ यह हो रहा होगा तो वे किस मुंह से इसकी शिकायत कर पाएंगे। जबकि शाहीन बाग की अराजक भीड़ के पक्ष में वे लगातार रिपोर्ट कर रहे हैं।

इस संबंध में पत्रकारिता के पूर्व छात्र रहे चंदन श्रीवास्तव लिखते हैं —”एनडीटीवी के एक पत्रकार शाहीन बाग में दीपक चौरसिया पर हुए हमले की निन्दा करते हुए, उसे जस्टीफाई कर रहे हैं। वह पूछते हैं कि दीपक चौरसिया का पत्रकारिता में क्या योगदान है? इसमें कोई शक नहीं कि दीपक चौरसिया अपनी महात्वाकांक्षा की वजह से वह दीपक चौरसिया नहीं रह गए जो वह कुछ सालों पहले तक होते थे। लेकिन उनके आज की वजह से उनके कल की उपेक्षा करना तो उनके साथ अन्याय होगा।

एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार जिनके पूरे पत्रकारिता के करीयर में एक भी खोजी रिपोर्ट दर्ज नहीं है, वह दीपक चौरसिया के लिए पूछते हैं कि उनका पत्रकारिता में, इस देश के जनतंत्र में क्या योगदान है। जिस समय रवीश कुमार रवीश की रिपोर्ट नाम से औसत डाक्युमेंट्री बनाया करते थे, उस समय शाहीन बाग में पिटने वाला यह पत्रकार इलेक्ट्रानिक मीडिया की पत्रकारिता का सिरमौर हुआ करता था और कई वर्षों तक रहा भी। पत्रकारिता की पढाई करने वाले हर छात्र इलेक्ट्रानिक मीडिया में जाने का सपना पालते थे, तब वे दीपक चौरसिया बनने का ही ख्वाब देखते थे, रवीश बनने का नहीं।

2004-06 में हिन्दी पत्रकारिता एवं जनसंचार की पढ़ाई के दौरान हमने भी देखा कि गेस्ट लेक्चर के लिए आने वाले सक्रिय बड़े पत्रकार हमें दीपक चौरसिया के पत्रकारिता की बारीकियां सिखाया करते थे। मुझे याद है कि 26/11 के वक्त मुम्बई से लाइव करते हुए, दीपक चौरसिया बताते कि अभी-अभी मुझे दिल्ली में हुए अमुक डेवलपमेंट का पता चला है। हम लोग आश्चर्यचकित होते कि ये शख्स एक-दो मिनट के ब्रेक में कैसे दिल्ली की इतनी महत्वपूर्ण सूचनाएं मुम्बई में रहकर संकलित कर रहा है। ये उनके सूत्रों के मजबूत तंत्र का कमाल था।

पत्रकारिता में सूत्रों का महत्व होता है न कि एजेन्डा सेट करने की आपकी काबिलियत का। आखिर रवीश कुमार पत्रकारिता कहते किसे हैं? ढकी, लुकी-छिपी जानकारियों को निकाल कर जनता के सामने रख देने को या वह जो वे करते हैं, एजेन्डा पत्रकारिता। पत्रकार अपने सीवी में अपने खोजी रिपोर्ट्स को प्रमुखता से स्थान देता है। क्या रवीश की सीवी में ऐसी एक भी रिपोर्ट है, जिसे खोजी कहा जा सके? इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट्स का हिन्दी अनुवाद करके एक घंटे लेक्चर छांटना, कुछ भी हो पत्रकारिता तो नहीं है ना!”

एनडीटीवी और वायर की श्रृंखला में एक नाम कॉमरेड भाषा सिंह का भी जुड़ता है। शाहीनबाग में दीपक चौरसिया के साथ जब हाथापाई हो रही थी, उस वक्त वहां खड़ी तमाशबीनों में शामिल थी। यह बात उन्होंने अपने एक वीडियो में स्वीकार किया है। सिंह वीडियो में कहती हैं— ”आखिर दीपक क्या दिखाना चाह रहे हैं? जो शाहीन बाग से रिकॉर्ड करेंगे वह या ये कुछ और दिखाएंगे? उसी वक्त मंच से दरख्वास्त होती है कि दीपक चौरसियाजी शाहीन बाग से लाइव शो करें। इसके पीछे आयोजकों की चिन्ता यह है कि उनका टीवी चैनल शाहीन बाग को जेहादियों के अड्डे के तौर पर पेश कर रहा है, इससे उन्हें गहरी नाराजगी थी।”

10 साल पुरानी बात है। जिसे मुख्यधारा का मीडिया कहते हैं, वहां आरएसएस के कामों की बहुत कम सकारात्मक रिपोर्टिंग मिलेगी। लेकिन क्या आरएसएस ने किसी पत्रकार को रिपोर्टिंग से रोका। देशभर के मीडिया संस्थानों का बड़ा हिस्सा आईसा और एसएफआई से निकले कैडर और वामपंथी रूझान वाले पत्रकारों के हिस्से था। यदि आरएसएस यही व्यवहार लेफ्ट के पत्रकारों के साथ करता, भाषा सिंह को लिखने से पहले बंधक बना लेता और कहता कि भाषा तुम आउट लुक में जो लिखने वाली हो यहां लिखकर आउटलुक भेजो क्योंकि तुम यहां कुछ और कहती हो और छापती कुछ और हो। क्या भाषा को यह स्वीकार होता? वामपंथी जहर ने इनके दिमाग के एक हिस्से को मानो पक्षाघात का शिकार बना दिया है। यह बोलती हुई समझ नहीं पा रहीं कि इनकी यह सोच पत्रकारिता के लिए कितनी बड़ी खाई खोद रहा है। फिर रवीश, बरखा और राजदीप को अब कोई भी घेर के कह सकता है कि भैया तुम चैनल पर जाकर बकवास करते हो, अब जो रिपोर्ट करना है, हमारे सामने करो। फिर कहने के अधिकार का क्या होगा? फिर जिस आजादी की बात शाहीन बाग में हो रही है, वह झूठी और बेमानी ही साबित होगी क्योंकि जब तक आप दूसरों की आजादी का सम्मान नहीं कर पाएंगे तब तक आपकी आजादी की डिमांड तो धोखा ही है।

हम सबने ‘न्यूज नेशन’ और ‘जी न्यूज’ की संयुक्त प्रस्तुति में देखा कि कैसे दोनों पत्रकारों ने मिलकर कथित आंदोलन का हिस्सा बने लोगों से संवाद स्थापित करने की कोशिश की। वास्तव में वहां मौजूद भीड़ को यह पता तक नहीं है कि वे एक झूठ के सहारे पर वहां खड़े किए गए हैं। दीपक चौरसिया और सुधीर चौधरी जैसे पत्रकारों के  वहां मौजूद रहने से आयोजकों को डर रहा होगा कि उनका खेल खुल ना जाए। उनका झूठ बेपर्दा ना हो जाए।

शाहीन बाग में मीडिया रिपोर्टिग की जगह झूठ का कारोबार ही चल रहा है। सांच को आंच नहीं होता। लेकिन जिस तरह न्यूज नेशन और जी न्यूज के कैमरों से शाहीन बाग कथित आंदोलनकर्मी भागते हुए नजर आए, उससे यही पता चल रहा था कि कोई सच है जिस पर वे पर्दा डालना चाहते हैं।

यूं तो शाहीन बाग के मंच से एक नहीं दर्जनों झूठ बोले जा रहे थे। हो सकता है कि दीपक और सुधीर की मौजूदगी में वह झूठ बोलना मंच पर चढ़े लोगों के लिए सहज नहीं रह जाता। यह भेद देश के सामने जाहिर हो जाता। वहां गांधीजी की तस्वीर लगाकर बोली जाने वाली हिंसक बातों से पर्दा हट जाता। उनके झूठ पर पर्दा पड़ा रहे इसलिए जरूरी था कि दीपक चौरसिया और सुधीर चौधरी उनके कथित आंदोलन से दूर रहे।

शाहीन बाग के मंच से एक झूठ डिटेन्सन सेन्टर को लेकर भी लगातार बोला जा रहा है। यह भय फैलाया जा रहा है कि असम में जैसे डिटेन्सन सेन्टर बनाया गया है, वैसा सेन्टर पूरे देश में बनाकर मुसलमानों को उसमें कैद किया जाएगा। यह उतना ही बड़ा झूठ है, जैसे इस्लाम में कोई मोहम्मद साहब को खुदा कह दे। मोहम्मद साहब मुसलमानों के पैगम्बर तो हैं लेकिन वे खुदा नहीं।

वास्तव में वर्ष 2011 का साल एनआरसी के खिलाफ सड़क पर उतरे लोगों के लिए महत्वपूर्ण है। लेफ्ट यूनिटी की मीडिया किस तरह झूठ फैलाती है इस बात से जुड़ा है यह संदर्भ। 2011 वह साल था जब देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे और असम के मुख्यमंत्री तरूण गोगोई। मतलब केन्द्र और असम दोनों जगह कांग्रेसी डबल इंजन सरकार थी। भाजपा सरकार एनआरसी 24 मई 2016 को सर्बानंद सोनवाल के मुख्यमंत्री बनने के बाद लाई। इसके पांच साल पहले ही असम में तीन डीटेन्सन सेन्टर कांग्रेस की सरकार बनवा चुकी थी। इससे यह साबित होता है कि डिटेन्सन सेन्टर में घुसपैठिए रखे जरूर गए हैं लेकिन उन सभी घुसपैठियों की पहचान कांग्रेस सरकार में हुई थी। जबकि एनआरसी में जिन लोगों का नाम नहीं आया है, वे लोग वहां नहीं डाले गए। प्रधानमंत्री मोदी ने जब डिटेन्सन सेन्टर ना बनने की बात की तो उसका सीधा सा मतलब था कि उनकी सरकार ने ऐसा कोई सेन्टर नहीं बनवाया। या फिर यह मतलब था कि एनआरसी में जिन 19 लाख लोगों का नाम नहीं आया वे लोग वहां नहीं डाले गए हैं। अब डिटेन्सन सेन्टर पर ‘चंदा मीडिया’ ने क्या रिपोर्ट किया है, वह पढ़िए और चंदे पर केन्द्रित इनकी निष्पक्षता को समझिए।

दीपक चौरसिया को लेकर दो खेमों में बंटे पत्रकार

सोशल मीडिया पर वरिष्ठ पत्रकार व न्यूज नेशन के कंसल्टिंग एडिटर दीपक चौरसिया पर दिल्ली के शाहीनबाग में हुए हमले का मुद्दा अभी भी गर्माया हुआ है। कुछ पत्रकारों ने जहां इस घटना की निंदा की है, वहीं कुछ इसके लिए दीपक चौरसिया को ही जिम्मेदार ठहराने में लगे हैं। आमतौर पर ऐसे मामलों में मीडियाकर्मी एक सुर में आवाज बुलंद करते हैं, मगर यहां वह अलग-अलग खेमों में विभाजित नजर आ रहे हैं। दरअसल, चौरसिया को ऐसे पत्रकार के रूप में देखा जाता है जो मोदी सरकार की नीतियों पर प्रहार नहीं करते, इसलिए जब नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में चल रहे प्रदर्शन में उन्हें निशाना बनाया गया, तो कई लोगों ने इसे साजिश की तरह से देखा, जिसमें कुछ पत्रकार भी शामिल हैं। यही वजह है कि सोशल मीडिया पर पत्रकार भी पक्ष-विपक्ष की भूमिका में नजर आ रहे हैं।

‘द वायर’ की आरफा खानम शेरवानी को ‘इंडिया टुडे’ समूह के न्यूज डायरेक्टर राहुल कंवल ने दीपक चौरसिया पर सवाल खड़े करने के लिए आड़े हाथों लिया है। आरफा ने शाहीनबाग की घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखा था, ‘दीपक चौरसिया के साथ जो कुछ हुआ वह निंदनीय है, लेकिन यह पत्रकार या पत्रकारिता पर हमला नहीं है। सरकार के समक्ष नतमस्तक हो जाना पत्रकारिता नहीं होती। उत्पीड़ित समुदायों का गलत चित्रण पत्रकारिता नहीं कहलाती। एक पत्रकार के विशेषाधिकारों का दावा न करें, क्योंकि आप पत्रकार नहीं हैं’।

इसके जवाब में राहुल ने कहा, ‘बकवास तर्क। दीपक चौरसिया जैसी चाहें, वैसी पत्रकारिता रखने का अधिकार रखते हैं। यदि आपको पसंद नहीं तो न देखें। लेकिन एक पत्रकार पर सिर्फ इसलिए हमला करना क्योंकि आप उसकी बात को पसंद नहीं करते, पूरी तरह से अस्वीकार्य है। यह प्रदर्शनकारियों के एक वर्ग की असहिष्णुता को दर्शाता है’।

इसी तरह महाराष्ट्र के वरिष्ठ पत्रकार निखिल वाघले ने जहां घटना के लिए चौरसिया को कठघरे में खड़ा किया है, वहीं ‘डीडी न्यूज’ के एंकर अशोक श्रीवास्तव उनके पक्ष में उतर आये हैं। उन्होंने वाघले के ट्वीट का स्क्रीनशॉट शेयर किया है, जिसमें लिखा है ‘दीपक चौरसिया पत्रकार नहीं हैं। इस बात की जांच होनी चाहिए कि वह शाहीनबाग किसी खास मिशन पर गए थे या नहीं’।

अशोक श्रीवास्तव ने इसे लेकर वाघले पर जोरदार हमला बोला है। उन्होंने अपने जवाबी ट्वीट में कहा है ‘ये आदमी खुद को पत्रकार कहता है। आजकल सर्टिफिकेट बांट रहा है कि कौन पत्रकार है, कौन नहीं। मुझे इसने ब्लॉक कर दिया है, आप लोग पूछ लें कि कब सड़क पर नंगे होकर दौड़ लगाएंगे ये। 2019 के चुनावों से पहले इसने ट्वीट किया था कि मोदी जीते तो नंगा होकर सड़क पर दौडूंगा’।

साथ ही श्रीवास्तव ने ‘द प्रिंट’ की पत्रकार जानिब सिकंदर को भी निशाना बनाते हुए लिखा है ‘ये @print से जुड़ीं पत्रकार हैं, जिसके आका @ShekharGupta हैं। इन्हें लगता है कि #ShaheenBagh में पत्रकारों की जो पिटाई “polite” तरीके से हुई। ये वो जमात है जो चाहती है कि इनके पक्ष में जो न बोले उसे लिंच कर दो, मार दो। ये बाबरी मानसिकता वाले पत्रकार हैं’। कई अन्य पत्रकार भी इस मुद्दे पर अलग-अलग सोच प्रदर्शित करते सोशल मीडिया पर नजर आ रहे हैं।

TRAI के फैसले के खिलाफ उतरा मीडिया समूह

सन टीवी’  नेटवर्क ‘टेलिकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया’ (ट्राई) द्वारा टैरिफ ऑर्डर में पिछले दिनों किए गए संशोधन के खिलाफ खुलकर मैदान में आ गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ‘सन टीवी’ ने ट्राई के नए टैरिफ ऑर्डर-2.0 (NTO 2.0) को चुनौती देते हुए मद्रास हाई कोर्ट में एक केस दायर किया है। नेटवर्क का कहना है कि ट्राई ने ब्रॉडकास्टर्स से सलाह मशविरा किए बिना टैरिफ ऑर्डर में संशोधन किया है।

 जानकारी के अनुसार ट्राई के वकील ने मद्रास हाई कोर्ट से इस मामले को स्थगित करने के लिए कहा है, जब तक कि बॉम्बे हाई कोर्ट में  30 जनवरी को मामले की सुनवाई नहीं हो जाती। इस पर मद्रास हाई कोर्ट ने अब इस मामले में सुनवाई के लिए चार फरवरी की तारीख निश्चित की है।

13 जनवरी को बॉम्बे हाई कोर्ट में ‘इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन’ ने ट्राई के खिलाफ एक याचिका दायर कर नए टैरिफ ऑर्डर-2.0 के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की मांग की है। हाई कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई के लिए 30 जनवरी की तारीख तय की है और दोनों पक्षों को तलब किया है। वहीं, ब्रॉडकास्टर्स की याचिकाओं के जवाब में ट्राई ने हाई कोर्ट में एक एफिडेविट दायर किया है।

ज्ञात हो कि ट्राई ने एक जनवरी को नई टैरिफ पॉलिसी जारी की थी, जिसके तहत ब्रॉडकास्टर्स को 15 जनवरी से चैनल्स के लिए नई मूल्य सूची अपनाने का निर्देश दिया गया था। ट्राई के इस नए टैरिफ ऑर्डर-2.0 (NTO 2.0) का पिछले दिनों टीवी ब्रॉडकास्टर्स ने विरोध किया था और संयुक्त रूप से इस मुद्दे पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की थी।

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