नई दिल्ली में चल रहे विश्व पुस्तक मेले में शब्द उत्सव के अंतर्गत थीम मंडप में सुविधा के गांधी विषय पर चर्चा का आयोजन किया गया। इस चर्चा में विख्यात चिन्तक एवं विचारक श्री रामेश्वर मिश्र पंकज एवं इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी मुख्य वक्ता थे। चर्चा का संचालन पांच्जन्य के सम्पादक श्री हितेश शंकर ने किया।
चर्चा आरंभ करते हुए यह पूछे जाने पर कि जब गांधी जी
ने यह कहा कि जिस कार्य के लिए कोंग्रेस का गठन हुआ था, वह पूर्ण हुआ और अब उसे भंग कर देना
चाहिए, पर श्री रामेश्वर मिश्र पंकज ने कहा कि यह सत्य है कि
गांधी जी ने कहा था कि जिस कार्य के लिए कोंग्रेस का गठन हुआ था, उसे भंग कर देना चाहिए क्योंकि दलीय व्यवस्था में लोग एक दूसरे के विरोधी
होते हैं। वह एक दूसरे के विरुद्ध लड़ते हैं, सामने खड़े होते
हैं। जबकि कोंग्रेस का जब गठन हुआ था तो वह स्वराज हासिल करने के लिए हुआ था। और
स्वराज भी बाद में जुड़ा था, जैसे जैसे पढ़े लिखे युवाओं में
दासता बोध आया था। और जब कोंग्रेस बनी और कार्य कर रही थी तब उसमे हर तरह के लोग
थे, और उसका कार्य समाज को एक सूत्र में जोड़कर अंग्रेजी शासन
से लोहा लेना था। ऐसे में कोंग्रेस उस संसदीय दल के अनुसार नहीं थी जिसे अभी हम
देखते हैं। यह कोंग्रेस का नैतिक कर्तव्य था कि वह स्वयं को भंग कर दे। मगर ऐसा
नहीं हुआ, और जिसका दुष्परिणाम हम देख रहे हैं।
यह पूछे जाने पर कि जिस तरह से सरकारी क़दमों में
गांधी जी को थोड़ा उबाऊ बना दिया है और जनता उनसे जुड़ नहीं पाती है, तो ऐसे में वह असरकारी कदम क्या उठाए
जाएं, जिससे जनता और जुड़ सके, डॉ.
सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि यह बहुत आवश्यक है कि जनता को गांधी जी के साथ जोड़ने के
लिए नए कदम उठाए जाएं जो यह सरकार उठा रही है। उन्होंने कहा कि विकी पीडिया की
तर्ज पर गान्धीपीडिया भी इस सरकार ने आरम्भ किया है, जिसमें
गांधी जी के विषय में जानकारी मिल सकती है, और इसीके साथ उन्होंने
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र द्वारा चलाए गए विभिन्न कार्यक्रमों का उल्लेख
करते हुए कहा कितने लोगों को यह पता है कि गांधी जी को समर्पित कई रागों की रचना
हुई है और गांधी को समर्पित लोक गीतों और लोक नृत्य भी सैकड़ों की संख्या में है।
उन्होंने बताया कि केंद्र द्वारा विगत अक्टूबर में इन्हीं सब दुर्लभ रचनाओं को
जनता के सामने प्रस्तुत किया गया. उन्होंने यह भी कहा कि महात्मा गांधी का सपना था
कौशल को विकसित करना, अत: केंद्र ऐसे कई कदम उठा रहा है
जिसके माध्यम से हुनर को प्रोत्साहित किया जाए। गांधी जी तो शाश्वत हैं, वह हमेशा रहेंगे। गांधी जी जितना गूढ़ चिंतन किसी और का हो ही नहीं सकता।
धर्म परिवर्तन के विषय में बोलते हुए श्री रामेश्वर
मिश्र पंकज ने कहा कि महात्मा गांधी धर्मांतरण के सबसे बड़े विरोधी थे। वह ईसाई
मिशनरियों द्वारा भोले भाले ईसाईयों का धर्म परिवर्तन करने को सबसे बड़ा पाप मानते
थे। गांधी जी ने ईसाई दर्शन को समझा था और उन्हें ईसाई मिशनरी आमंत्रित करती रहती
थीं। उन्होंने पश्चिम और ईसाई धर्म पर बोलते हुए कहा कि यूरोप और अमेरिका में ईसाई
धर्म केवल जीसस के आसपास घूमता है। उन्हें गांधी जी बहुत चमत्कारिक व्यक्तित्व
लगते थे, वह बार बार उन्हें
ईसाई बनाने की फिराक में रहते थे। वे लोग चाहते थे कि महात्मा गांधी ईसाई बन जाएं,
मगर महात्मा गांधी ईसाई दर्शन के खिलाफ थे। उसमें यह है कि हर इंसान
पापी है और जब तक वह शुद्ध नहीं हो जाता और चर्च के प्रति समर्पण की कसमें नहीं
खाता तब तक वह अपवित्र है. और जो सबसे बड़ा दोष उन्हें ईसाई धर्म में दिखता था वह
था स्त्री और पुरुष के परस्पर सम्बन्धों को पाप समझना। वह इस बात के एकदम खिलाफ थे
कि कैसे केवल जोशुआ की संताने ही धरती की संताने हो सकती हैं। गांधी जी के अनुसार
यह धरती सभी के लिए है और सभी की है, सभी ईश्वर की संताने
हैं। वह मानते थे कि धर्म परिवर्तन मानवता के लिए सबसे बड़ा अभिशाप है. किसी को यह
कहना कि तुम पापी हो और फिर उसमे चाहे कितने भी सद्गुण क्यों न हों अर्थात वह शराब
न पीता हो, वह सच बोलता हो और वह हिंसा न करता हो, वह ईसाई धर्म न मानने के कारण पापी हो जाएगा और जो सारे कुकर्म करता है वह
केवल ईसाई बन जाने के कारण पापमुक्त हो जाएगा, यह तो सबसे
बड़ा धोखा है।
इसी के साथ नर नारी मिलन को भी ईसाई धर्मावलम्बी पाप
मानते थे और गांधी इसके विरोधी थे। वह देखते थे कि भारतीय दर्शन कितना समृद्ध है
कि इसमें प्रेम को कितना उच्च स्थान प्राप्त है। वह यह मानते थे कि यूरोप से न
जाने कितने जीसस को जन्म लेना होगा, न जाने कितने जीसस को सूली पर चड़ना होगा, और तभी सुधार हो जाएगा। वह यूरोप में उपजी बौद्धिकता के जाल में नहीं फंसे
और बार बार इसी बात पर जोर देते रहे कि धर्म परिवर्तन से बड़ा पाप नहीं है और यह
कृत्य पैशाचिकता से भरा हुआ है। स्त्री को इव और ईविल कहना सबसे बड़ा पाप है।
उन्होंने कहा कि यूरोप में स्त्रियों ने चर्च सत्ता से कितना संघर्ष किया है,
यह हम सबकी कल्पना से परे है।
गांधी जी को अपने अपने स्वार्थ के अनुसार प्रयोग करने
पर डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि केवल जेब में रखने से गांधी नहीं मिलेंगे, हमें गांधी जी को दिल में रखना होगा।
उन्होंने कहा कि गांधी जी गावों को आर्थिक रूप से सशक्त करने के लिए कहते थे,
वह कहते थे कि गाँव यदि स्वयं के पैरों पर खड़ा होगा तो वह अपना
विकास स्वयं कर लेगा, मगर सरकार ने इसे गलत अर्थ में ले लिया
और तमाम तरह के प्रक्रियागत कदम उठा लिए जिन्होंने ग्राम विकास की अवधारणा पर ही
प्रश्न चिंह लगा दिया। और उन्होंने कहा कि नेपथ्य में छिपे हुए ऐसे लोगों को सामने
लाना होगा जो जीवन में गांधी दर्शन को लागू कर रहे हैं और कायाकल्प कर रहे हैं।
नए सन्दर्भों में गांधी जी पर बोलते हुए श्री
रामेश्वर मिश्र पंकज का कहना था कि यह निर्भर करता है कि हम उन्हें किस रूप में
देखते हैं। उन्होंने कहा
कि कोंग्रेस ने उन्हें एक वस्तु के रूप में देखा और प्रयोग किया। गांधी जी पूर्वजन्म
और कर्म को मानते थे। वह मानते थे कि इस जीवन के बाद भी जीवन होता है और हमें बार
बार कर्मों के अनुसार यहीं आना होगा। क्योंकि
पुनर्जन्म ही है जिसके कारण आप दिल से अच्छे कार्य करेंगे। क्योंकि आपको दंड का भय
होगा। उन्होंने कहा कि गांधी जी की आस्था हिन्दू धर्म
में कितनी थी यह उनके वेदों से सम्बन्धित विचार से ही पता चल जाता है। उनका कहना
था कि वेद अनादिकाल से हैं। वह स्रष्टि की प्रथम रचना हैं। वह भारतीय ज्ञान
परम्परा के सबसे बड़े संतों में से एक थे। वह किसान को किसी भी पढ़े लिखे व्यक्ति से
अधिक पढ़ा लिखा मानते थे। गांधी जी हमेशा ही लघुता से विराटता की यात्रा करने के
लिए कहते थे।
लघुता से विराटता को ही आगे बढ़ाते हुए डॉ. जोशी ने
कहा कि हमें गांधी जी को नए सन्दर्भों में पढने की आवश्यकता है। जब वह औद्योगीकरण
का विरोध करते हैं तो वह विकास का नहीं बल्कि अनियंत्रित मशीनीकरण का विरोध करते
हैं। डॉ. जोशी ने कहा कि आज जिस तरह हम हाथ में मोबाइल का शिकार हो गए हैं, यह वही खतरा है जिसके विषय में गांधी
जी तब कह गए थे, अत: आवश्यक है कि हम उन्हें नए सन्दर्भों
में देखें।
उन्होंने पाञ्चजन्य के गांधी विशेषांक के विषय में भी
बात करते हुए श्री हितेश शंकर से उस विशेषांक के विषय में बताने के लिए कहा। श्री
हितेश शंकर का कहना था कि गांधी जी सभी के थे. वह पूरे भारत के हैं। उन्हें एक दल
के साथ जोड़ना बहुत गलत है। उन्होंने कहा कि गोडसे ने तो गोली मारी थी, मगर उन्हें अस्पताल तक ले जाने के
लिए लापरवाही की गयी तथा जब यह सूचना पहले से थी कि गांधी जी पर आक्रमण हो सकता है
तो उनकी सुरक्षा क्यों नहीं की गयी। ऐसे कई प्रश्न हैं
जिनका उत्तर हमें खोजना ही होगा।
बुनियादी तौर पर गांधी जी को कैसे देखने की बात पर
श्री मिश्र का कहना था कि वह गांधी जी को भारत के एक महान सपूत के रूप में देखते
हैं जिनके रोम रोम में हिन्दू दर्शन और भारत था। वह गीता, गाय, किसान,
पुनर्जन्म, उपनिषद, हिन्दू
सांख्य दर्शन आदि को मानते थे और वह यह मानते थे कि धर्मांतरण देश की आत्मा पर
किया गया सबसे क्रूर प्रहार और अत्याचार है। वह भारतीय ज्ञान परम्परा के प्रतीक थे।
इसी विषय पर डॉ. जोशी का कहना था कि जैसे हिंदुत्व का
दर्शन मात्र हिन्दुओं का न होकर पूरे विश्व का है, उसी प्रकार महात्मा गांधी भी सभी के हैं।
उन्होंने कहा कि एक तरफ हम गांधी जी से दूर हो रहे हैं और विश्व में बाकी सभी लोग
गांधी जी को अपना रहे हैं।
इस अवसर पर डॉ. सच्चिदानंद जोशी जी के लेखों की
पुस्तक मेरा देश, मेरा धर्म का
विमोचन भी किया गया। इस पुस्तक का सम्पादन डॉ. यशस्विनी ने किया है।
सत्र के अंत में उत्सव निर्देशक श्री अनिल पांडे ने
सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया तथा स्मृति स्वरुप एक एक पुस्तक भेंट की गयी।